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चावल के दाने पर कला का नमूना

४ अक्टूबर २०१३

भारत में चावल के दाने पर नाम लिखवाने की प्रथा है. कई लोग तो गीता के श्लोक भी लिख डालते हैं. तुर्की के कलाकार हसन काले इन दानों पर इस्तांबुल के खूबसूरत नजारे बनाते हैं.

तस्वीर: Fotolia/Dmitry Chumichev

घोड़ों और हाथियों के एक लंबे कारवां के साथ सफर करते राजा महाराजा या खिड़कियों से बादलों को ताकती बड़ी बड़ी आंखों वाली राजकुमारी. भारत में लघुचित्रों यानी मिनियेचर पेंटिंग्स की पुरानी परंपरा है, जिसके जरिए राजपूत महाराजाओं और मुगलों के जीवन को समझा जा सकता है. कुछ इसी तरह की परंपरा तुर्की में भी है. चावल के छोटे से दाने पर भी कला का हुनर देखा जा सकता है.

इस्तांबुल से प्रेरणा

मैदे की एक पट्टी पर इस्तांबुल का गलाता मीनार या फिर माचिस की तीली के सिरे पर किसकुलेसी यानी किशोरी मीनार, तुर्की के कलाकार हसन काले छोटी से छोटी चीज पर तस्वीर बना सकते हैं. उनका कहना है कि ये रोजमर्रा की चीजें हैं जिन्हें हम भूल जाते हैं, जिन पर हम ध्यान नहीं देते, "अपनी कला के जरिए मैं इस बात पर लोगों का ध्यान खींचना चाहता हूं कि यह छोटी चीजें कितनी सुंदर हैं. मैं खुद अपने लिए मुश्किल चीजें खोजता हूं. यह जरूरी नहीं है कि वह कितनी छोटे हैं या क्या वह रंग को अच्छी तरह सोखती हैं. जरूरी यह है कि इन्हें जिंदा किया जाए और देखने वालों को अच्छा लगे."

हसन काले को अपने शहर इस्तांबुल की तस्वीरें बनाना पसंद है. उन्होंने चीनी के क्यूब पर भी तस्वीरें बनाई हैं. उनकी तस्वीरें लगभग एक तरह की होती हैं और वे ज्यादातर इस्तांबुल पर ही आधारित होती हैं. वह बताते हैं, "इस्तांबुल की तस्वीर रहस्यमयी है. यह एक ऐसा शहर है जो कभी सोता नहीं. हर पल यहां अपने साथ एक नया अनुभव लाता है. जिसे इस्तांबुल पसंद है, वह इसे पूजता है. आप यहां सदियां बिता सकते हैं, लेकिन आप इस शहर को कभी सही तरह से समझ नहीं पाएंगे."

तुर्की के इस्तांबुल का खूबसूरत नजारातस्वीर: Fotolia/Jan Schuler

प्रेरणा की जरूरत हो तो हसन इस्तांबुल की उस जगह पहुंचते हैं, जहां परंपरा और आधुनिक जीवन मिलते हैं. फैशनेबल मुहल्ले बेयोग्लू और फातीह मुहल्ले के बीच गलाता पुल. यह मीनार हसन कई बार बना चुके हैं, "गलाता मीनार मेरा हिस्सा है, काम पर जाते वक्त रोज मैं इसे देखता हूं. जब मेरे पास वक्त होता है तो मैं हर दूसरे दिन मीनार जाता हूं और वहां कॉफी पीता हूं. यह मेरी यादों में इतना बस चुका है कि यह मुझे अपने हिस्से जैसा लगता है."

हसन अपनी तस्वीरों में पुराने इस्तांबुल को बनाकर शहर के इस हिस्से को अमर करना चाहते हैं. फातीह इलाके में हाजिया सोफिया भी इन इमारतों में से है. पहले तो यह एक चर्च था, फिर यह मस्जिद बना और आज संग्रहालय है.

सांस थाम कर

इस खूबसूरती को जैसे अपनी आंखों में बसाकर हसन घर जा कर सीधे दिमाग से इसकी तस्वीर बना लेते हैं. सांस रोकने पर ही उनके हाथ सही तरह काम करते हैं. छोटे से कैनवस पर महीन कारीगरी में तीन दिन लगते हैं. एक गलती से पूरा काम खराब हो सकता है. कला की ऐसी एक मिसाल के लिए कदरदान 4,000 यूरो देने को तैयार हैं. एक फली पर पूरी हाजिया सोफिया समा जाती है. हसन का कहना है, "अगर इस्तांबुल का कोई मेहमान मेरी इन छोटी तस्वीरों में तोपकपी महल, किशोरी मीनार, हाजिया सोफिया या गलाता मीनार को पहचान लेते हैं तो मेरे लिए यह सबसे अच्छी बात है. इसलिए मेरे लिए किसी और शहर की तस्वीरें बनाना बहुत मुश्किल है."

हसन काले दूसरे तुर्क शहरों की तस्वीरें नहीं बनाते लेकिन उनके पास कुछ और आइडिया भी हैं. उन्होंने चावल के एक दाने पर आधुनिक तुर्की को बनाने वाले कमाल आतातुर्क की तस्वीर बनाई है. इसके अलावा उन्होंने अपने शहर इस्तांबुल की तस्वीरें खबरबूजे की बीज पर भी बनाई हैं और कॉफी की फली पर भी.

रिपोर्टः ऑलिवर जालेट/मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः ईशा भाटिया

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