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'चाहे कुछ भी हो 8 फीसदी विकास चाहिए'

२४ अक्टूबर २०१२

भारत में हर रोज भ्रष्टाचार के नए मामले सामने आ रहे हैं और दूसरी तरफ महंगाई लोगों की कमर तोड़ रही है पर प्रधानमंत्री इन सब के बावजूद सालाना 8 फीसदी विकास की दर हासिल करने की उम्मीद दिल में बसाए हुए हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि देश की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को कम से कम आठ फीसदी की विकास दर हासिल करनी चाहिए भले ही दुनिया की आर्थिक हालत चाहे जितनी खराब हो. भारत की अर्थव्यवस्था 2005 से 2011 तक दहाई के आंकड़ों में विकास करती रही लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस साल विकास दर महज 4.9 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है.

प्रधानमंत्री ने वरिष्ठ अधिकारियों से कह दिया है, "हम वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नहीं रह सकते. हमारा विकास 8 से 8.5 फीसदी की दर पर बने रहना चाहिए चाहे दुनिया की अर्थव्यवस्था में कुछ भी हो. हमें निश्चित रूप से तैरना और तेजी से तैरना सीखना होगा चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों." एक समय लगातार छलांग लगा रही भारतीय अर्थव्यवस्था बीते महीनों में लगातार सुस्त हुई है. एक तरफ ब्याज की ऊंची दरें तो दूसरी तरफ यूरोपीय कर्ज संकट के कारण कम हुए निर्यात और विदेशी निवेश ने न सिर्फ देश के भीतर बल्कि बाहर भी सरकार की नीतियों और भ्रष्टाचार पर लोगों की चिंता बढ़ा दी है.

तस्वीर: AFP/Getty Images

हालांकि मनमोहन सिंह का मानना है कि भारत अपने बढ़ते मध्यमवर्ग पर ज्यादा ध्यान दे कर विकास की ऊंची दर हासिल कर सकता है. मनमोहन सिंह ने कहा, "अगर अंतरराष्ट्रीय मांग नहीं बढ़ती है तब भी घरेलू मांग से निवेश और हमारी कोशिशों को आगे ले जाना चाहिए."

प्रधानमंत्री भले ही आज घरेलू मांग और देश के मध्यमवर्ग की बात कर रहे हों लेकिन इससे पहले वह भारतीय अर्थव्यवस्था के सुस्त होने के लिए यूरोपीय कर्ज संकट को जिम्मेदार बताते रहे हैं. उन्होंने कई बार यह बात कही है कि दुनिया की मंदी ने उनकी सरकार के पास मौजूद रास्ते बेहद सीमित कर दिये हैं. आर्थिक नीतियों के मामले में कई महीने तक सोए रहने के बाद भारत सरकार में पिछले महीने कुछ हलचल दिखाई. अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए कई सुधार लागू किए गए इनमें खुदरा, उड्डयन और प्रसारण क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाया जाना शामिल है.

मंदी के इस हाल में भी भारत के मध्यवर्ग की जेब में ठीक ठाक रकम है. सिर्फ इतना ही नहीं भारत के मध्यवर्ग का विस्तार भी बहुत तेजी से हो रहा है. एक अनुमान के मुताबिक 2010 में पांच करोड़ लोग मध्यवर्ग के दायरे में आते थे. जिस रफ्तार से यह दायरा बढ़ रहा है वह बना रहा तो 2015 तक भारत के मध्यवर्ग में करीब 26.5 करोड़ लोग होंगे और उसके बाद के अगले 10 सालों में मध्यमवर्ग के दायरे में 50 करोड़ से ज्यादा लोग आ चुके होंगे. इतने लोगों की मांग पूरी करने में भारत तो क्या पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए विकास की जमीन तैयार हो जाएगी.

एनआर/एएम (एएफपी)

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