1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

चिलचिलाती गर्मी और बिजली गुल

२७ मई २०१३

आसमान आग उगल रहा है और धरती तप रही है. उमस इतनी कि सांस लेने में दिक्कत है. पारा 45 डिग्री पार चल रहा है और उस पर बिजली भी कम सितम नहीं ढा रही है. यह कहानी नहीं भारत के कई हिस्सों की हकीकत है.

तस्वीर: DW/W. Suhail

भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के कुछ वीआईपी जिलों को छोड़ कहीं भी 14-16 घंटे से ज्यादा बिजली की सप्लाई नहीं हो रही है. मांग प्रतिदिन 12-13 हजार मेगावाट है, जबकि सप्लाई सिर्फ 8-9 हजार मेगावाट ही हो पाती है. पिछले दिनों सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के विधायकों ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कहा कि बिजली का यही हाल रहा तो 2014 के संसदीय चुनाव में पार्टी को मुश्किलों का सामना करना होगा.

लखनऊ समेत अधिकांश जिलों में बिजली पानी के लिए लोग सड़कों पर उतर रहे हैं. प्रदेश से टूट कर बना पड़ोसी राज्य उत्तराखंड बिजली के मामले में काफी समृद्ध हो गया है और अगले दो वर्षों में बिजली बेचने लगेगा. दूसरे पड़ोसी प्रांत बिहार में बिजली उत्पादन शून्य है और मांग सिर्फ 1500 मेगावाट है क्योंकि वहां न उद्योग धंधे हैं और न ही बढ़ रहे हैं. इसलिए बिहार की बिजली की मांग केंद्रीय पूल से आसानी से पूरी हो जाती है.

गर्मियों के दिनतस्वीर: DW/W. Suhail

उत्पादन से ज्यादा मांग

अधिक समस्या यूपी में है, जहां मांग प्रतिवर्ष 17 फीसदी की दर से बढ़ रही है. पिछले साल ईस्टर्न और नार्दर्न ग्रिड ट्रिप करने के बाद से केंद्रीय पूल ने ओवर ड्राफ्ट पर सख्त पाबंदी लगा दी है, जिससे निर्धारित कोटे 4885 मेगावाट के अलावा बिजली आयात नहीं हो पा रही है. यूपी की बिजली उत्पादन क्षमता 5000 मेगावाट प्रतिदिन ही है. इसलिए मांग और खपत के बीच ढाई-तीन हजार मेगावाट के अंतर की समस्या तो होनी ही है.

शहरों में तो हालत कुछ ठीक भी है, गावों का हाल ये है कि लखनऊ से मात्र 18 किलोमीटर दूर मोहनलाल गंज के गांव छिबऊखेड़ा में आजादी के 66 साल बाद जब बिजली पहुंची तो जश्न मनाया गया. यही हाल लखनऊ से 14 किलोमीटर दूर सरोजनी नगर के कासिमखेड़ा का रहा. वहां जब बिजली पहुंची तो लोग खुशी से निहाल हो गए. लखनऊ जिले के 1260 गांवों विद्युतीकरण ही नहीं हुआ है. बाकी जिलों के 79 फीसदी गांव भी विद्युतीकरण से महरूम हैं. उर्जा विभाग के अधिकारी ओपी राय कहते हैं कि बिजली सेक्टर को तो हमेशा मुनाफे में रहना चाहिए, कौन बिजली लेना नहीं चाहता लेकिन दुर्भाग्य से सरकार के लिए यही घाटे का सौदा हो गया है. वे कहते हैं, "बिजली चोरी नहीं रुकी तो उर्जा क्षेत्र में सुधार संभव ही नहीं. लाइन लॉस 30-35 फीसदी तक चला जाता है. ट्रांसमिशन अलग समस्या है, सुधार के लिए 741 करोड़ का प्रस्ताव है. लेकिन हालात सुधरने की उम्मीद नहीं क्योंकि बिजली चोरी सब समस्याओं पर सबसे भारी पड़ती है."

सप्लाई की समस्यातस्वीर: DW/W. Suhail

हालांकि राज्य का बिजली उत्पादन निगम अधिक बिजली बनाने की जीतोड़ कोशिश कर रहा है और पिछले अप्रैल माह में सबसे अधिक 2065 मिलियन यूनिट बिजली पैदा कर नया कीर्तिमान भी स्थापित किया है. उसका दावा है कि पिछले साल की तुलना में इस साल 20 फीसदी अधिक उत्पादन हुआ लेकिन ये ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है.

निजी कंपनियों को प्राथमिकता

ऑल इंडिया बिजली इंजीनियर्स फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल शैलेंद्र दुबे बताते हैं कि पिछले 20 वर्षों में बिजली उत्पादन में सरकारें निजी कंपनियों से एमओयू साइन करती रहीं और बिजली उत्पादन घटता गया. एनसीआर के दादरी में सरकार ने रिलायंस को बिजली बनाने के लिए 2500 एकड़ भूमि पट्टे पर दी, लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ और परियोजना बंद हो गई. उनके मुताबिक निजी कंपनियों की दिलचस्पी बिजली बनाने में कम और भूमि हड़पने में ज्यादा रहती है. उन्होंने बताया कि निजी क्षेत्र की बिजली साढ़े पांच रुपए प्रति यूनिट पड़ती है और सरकार 4 रुपए प्रति यूनिट उपभोक्ताओं को देती है. उनके मुताबिक हाइड्रो प्लांट से बिजली 53 पैसे, थर्मल प्लांट से 2 रुपए 53 पैसे और एनटीपीसी से 3 रुपए 20 पैसे प्रति यूनिट पड़ती है. इसके बावजूद सरकारें निजी क्षेत्र को आगे करती आई हैं. उनके मुताबिक आकलन है कि अगले दस सालों में यूपी को 23000 मेगावाट बिजली प्रतिदिन की आवश्यकता होगी तो इसे पूरा करने के लिए प्लांट लगने चाहिए पर सरकारें ऐसा नहीं कर रही हैं.

तपती धूप से बचने की कोशिशतस्वीर: DW/W. Suhail

छिबड़ामऊ की 75 वर्षीय रूपरानी और 80 साल की नन्हीं देवी गांव में बिजली के लिए बरसों से प्रार्थना कर रही थीं. बल्ब चमका तो कुछ महिलाएं तो मारे खुशी के रोने लगीं. इस तब्दीली से घर ही नहीं भविष्य भी रोशन होने की उम्मीद है. ग्रामीण युवक कम्प्यूटर लाना चाहते है. हालांकि सप्लाई शुरु होने के बाद से ही यहां बिजली गायब है, लेकिन ग्रामीणों को भरोसा है कि लगी है तो कभी तो आएगी ही. यूपी के बाकी इलाकों का भी यही हाल है. कस्बों, गावों और छोटे शहरों में बाजार बैट्री की लाइट से चलते हैं, तो गरीब का पसीना सुखाने के लिए बैट्री वाले पंखों की बिक्री जोरों पर है. इनवर्टर का बाजार पिछले 10 वर्षों में 355 गुना बढ़ गया है. लेकिन बिजली नहीं होने के कारण कभी कभी इनवर्टर चार्ज होने के भी लाले पड़ जाते हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब तलब किया है कि कन्नौज, इटावा और रामपुर जैसे जिलों में 24 घंटे बिजली सप्लाई का औचित्य क्या है. इन जिलों में भी रोस्टर के हिसाब से कटौती की जाए. लेकिन कोई असर नहीं हुआ. इटावा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का गृह जनपद है, कन्नौज से मुख्यमंत्री की पत्नी डिंपल यादव सांसद हैं और रामपुर सपा के मुस्लिम चेहरे आजम खां का गृह जनपद है. पिछली सरकार में उर्जा मंत्री और मायावती के गृह जनपदों को 24 घंटे बिजली मिलती थी.

रिपोर्ट: एस. वहीद, लखनऊ

संपादन: महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें