चीनी छात्र 'विचारों की आजादी' छीने जाने के विरोध में उतरे
१९ दिसम्बर २०१९
एक प्रमुख चीनी विश्वविद्यालय के चार्टर से 'फ्रीडम ऑफ थॉट' को बाहर कर दिया गया है. छात्र इसका विरोध कर रहे हैं जो कि चीन में कम ही दिखता है.
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इस शीर्ष विश्वविद्यालय के अलावा भी देश के दो दूसरे उच्चशिक्षा संस्थान के छात्रों ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी के इस कदम का विरोध किया है. इस हफ्ते खूब शेयर किए गए एक वीडियो में शंघाई की फूडान यूनिवर्सिटी के छात्रों को अपने संस्थान का एक गीत गाते देखा जा सकता है. गीत में "अकादमिक स्वतंत्रता और विचारों की आजादी" का खूब बखान है. अपना विरोध जताने के लिए छात्रों ने यह गीत गाया.
फूडान के चार्टर में बदलाव की घोषणा देश के शिक्षा मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर की. घोषणा के साथ ही उसकी आलोचना के स्वर उठने लगे और सोशल मीडिया पर यह चर्चा का विषय बन गया. हालांकि चीन के तेजतर्रार ऑनलाइन सेंसरशिप कार्यक्रम से यह ज्यादा देर तक बच नहीं सका और जल्द ही ऐसे पोस्ट मिटाए जाने लगे ताकि बहस आगे ना बढ़े.
चार्टर से "फ्रीडम ऑफ थॉट" हटाए जाने के अलावा उसमें यह बात जोड़ी गई है कि "शिक्षकों और छात्रों के मस्तिष्क में शी जिनपिंग की चीनी गुणों वाली समाजवादी विचारधारा के नए युग का सूत्रपात हो." यह भी अनिवार्य कर दिया गया है कि छात्र और फैकल्टी "मूल समाजवादी मूल्यों" का पालन करें और कैंपस में "सामंजस्यपूर्ण" माहौल बनाए रखें. इस तरह के माहौल से आशय परिसर के भीतर किसी भी तरह की सरकार विरोधी भावना को मिटाने के रूप में समझा जा सकता है. मंत्रालय ने इसी से मिलते जुलते बदलाव पूर्वी चीन की नानजिंग यूनिवर्सिटी और उत्तरी चीन के शांग्सी नोर्माल यूनिवर्सिटी में भी किए. लेकिन इन संस्थानों ने विचारों की स्वतंत्रता से इसे नहीं जोड़ा.
2012 में पद संभालने के बाद से ही शी ने देश में कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा बढ़ाने के लिए कई तरह के अभियान चलाए हैं. अपने व्यक्तित्व के प्रति लोगों में आसक्ति जगाने की तमाम कोशिशें की हैं, जैसे कि "शी जिनपिंग के विचार" के रूप में जाने जाने वाली बातों के समर्थन का आदेश देना और बात बात पर कम्युनिस्ट संस्थापक माओ त्से तुंग को याद करना. शी के शासन पर सामाजिक कार्यकर्ताओं, एक्टिविस्टों और दूसरे आलोचकों का गला घोंटने और पूरे चीनी समाज को मार्क्सवादी विचारों से भरने की कोशिश का आरोप लगता है. हालांकि कई मार्क्सवादी छात्रों को भी पुलिस कार्रवाई झेलनी पड़ी जब बीते साल उन्होंने श्रम अधिकारों के एक आंदोलन का समर्थन किया.
जब शी जिनपिंग के पिता को जेल में डाला गया था..
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विचारधारा अब चीन में पार्टी संविधान का हिस्सा है. माओ के बाद चीन के सबसे ताकतवर नेता बताये जा रहे शी जिनपिंग ने यहां तक पहुंचने के लिए लंबा सफर किया है. डालते एक नजर.
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परिवार
जन्म 1953 में हुआ. उनके पिता शी चोंगशुन कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थे. वह करिश्माई नेता माओ त्सेतुंग के करीबी थे और चीन के उप प्रधानमंत्री भी रहे.
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राजकुमार
इस तरह, शी जिनपिंग को एक "राजकुमार" की तरह देखा जाता है जिनका संबंध एक जाने माने परिवार से है और वे चीनी सत्ता के शिखर तक पहुंचे. लेकिन उनके लिए सब कुछ इतना आसान भी नहीं था.
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पिता को जेल
शी के परिवार को 1962 में उस वक्त नाटकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जब सांस्कृतिक क्रांति से पहले पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में उनके पिता को पद से हटाकर जेल में डाल दिया गया.
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सांस्कृतिक क्रांति
एक दशक लंबी सांस्कृतिक क्रांति के तहत सरकार, शिक्षा और मीडिया में पूंजीवादी प्रभावों और बुर्जुआ सोच को खत्म करने की मांग की गयी. बहुत से पार्टी नेताओं को काम करने खेतों और कारखानों में भेज दिया गया.
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सात साल की मेहनत
15 साल की उम्र में शी जिनपिंग को "फिर से शिक्षित होने" के लिए देहाती इलाके में भेजा गया. एक गांव में उन्होंने सात साल तक कड़ी मेहनत की. इस अनुभव ने उनकी राजनीति सोच को आकार दिया.
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पार्टी ने किया खारिज
शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ जाने की बजाय उसे अपना लिया. उन्होंने कई बार पार्टी में शामिल होने की कोशिश की, लेकिन उनके पिता की वजह उन्हें खारिज किया गया.
आखिरकार 1974 में वह समय आया जब पार्टी ने उनके लिए अपने दरवाजे खोले. सबसे पहले वह हुबेई प्रांत में पार्टी के स्थानीय सचिव बने. उन्होंने कड़ी मेहनत की. इसी का नतीजा है कि उन्हें बाद में शंघाई का पार्टी मुखिया बनाया गया.
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सत्ता के शिखर पर
लगातार बढ़ते राजनीतिक कद ने उन्हें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में जगह दिलायी और फिर 2012 में वह कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने और 2013 में चीन के राष्ट्रपति.
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फर्स्ट कपल
सिंगहुआ यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले शी जिनपिंग की पत्नी पेंग लीयुआन एक जानी मानी गायिका हैं. दोनों की तस्वीरें चीनी मीडिया में खूब छपती हैं. इससे पहले के राष्ट्रपतियों की पत्नियां बहुत ही कम सार्वजनिक तौर पर दिखती थीं.
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एक बेटी
शी जिनपिंग को चीन में बेहद लोकप्रिय बनाया जाता है. उनकी एक बेटी है जिसका नाम शी मिंगत्से है. उनके बारे में ज्यादा जानकारी तो नहीं है लेकिन इतना जरूर बताया जाता है कि वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ी हैं.
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सख्त प्रशासक
बतौर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की छवि एक सख्त प्रशासक की है जिसे भ्रष्टाचार बिल्कुल मंजूर नहीं है. उनके दौर में अहम पदों पर बैठे कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में कड़ी कार्रवाई हुई है.
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विरोध की जगह नहीं
अपने विरोधियों से भी वह सख्ती से निपटने के लिए जाने जाते हैं. उनके दौर में जहां इंटरनेट पर सेंसरशिप लगातार सख्त हो रही है, वहीं चीन के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाया जा रहा है.
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कार्रवाई
कई आलोचक उन्हें "चेयरमैन माओ के बाद सबसे अधिनायकवादी नेता" मानते हैं. उनके कार्यकाल में कई विद्रोहियों और मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
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सुपरवापर चीन
शी जिनपिंग चीन को दुनिया का सबसे अग्रणी देश बनाना चाहते हैं. वन बेल्ट वन रोड जैसी महत्वकांक्षी परियोजनाओं के जरिए चीन दुनिया तक अपनी पहुंच और प्रभाव कायम करने में जुटा है.
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बढ़ता प्रभाव
चीन की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक ताकत सुपरवापर बनने के सपने को साकार करने में मदद कर रही है. चीन दुनिया भर में निवेश परियोजनाओं के जरिए अपने पांव पसार रहा है.
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संविधान में शी
शी की विचारधारा को चीनी संविधान का हिस्सा बना दिया गया है. इससे पहले सिर्फ माओ और चीन में आर्थिक सुधारों का रास्ता खोलने वाले देंग शियाओपिंग की विचारधारा को संविधान में जगह मिली है.
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उच्च शिक्षा का एक प्रतिष्ठित संस्थान और साथ ही उदारवादी विचारों का गढ़ माने जाने वाली फूडान यूनिवर्सिटी से निकली एक वीडियो क्लिप में करीब दो दर्जन छात्रों को अपने कैंपस की कैंटीन में विचारों की आजादी वाला गीत गाते देखा गया. सोंग नाम के छात्र ने चार्टर में बदलाव पर समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "मैं तो यही चाहता हूं कि छात्रों के पास अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार या समय हो." बाकी कई छात्रों ने कहा कि उन्हें तो असलियत में इसका बहुत असर दिखने की उम्मीद नहीं है. फूडान में दाखिले की इच्छा रखने वाली एक महिला ने कहा, "मुझे लगता है कि सबके पास अपने आपको जाहिर करने का हक होना चाहिए और निजी तौर पर मैं विचारों की आजादी का समर्थन करती हूं."
पिछले कुछ महीनों से चीन हांगकांग के साथ सरकार-विरोधी प्रदर्शनों को लेकर जूझ रहा है. चीन की कड़ी नजर मुख्यभूमि के कालेज परिसरों पर भी है जहां से 20वीं सदी के सभी बड़े राजनीतिक आंदोलनों की शुरुआत हुई. सन 1989 में लोकतंत्र के समर्थन में बीजिंग के थियानमेन चौक पर इकट्ठे हुए हजारों यूनिवर्सिटी छात्रों पर इतनी कड़ी कार्रवाई की गई थी कि वह चीन के इतिहास में एक काला अध्याय बन गया.
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पांच साल में होने वाली कांग्रेस बीजिंग में हो रही है. 19वीं कांग्रेस के जरिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की सत्ता पर अपनी पकड़ को और मजबूत किया है. एक नजर पार्टी की अहम कांग्रेसों पर.
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चीन की ताकत
आम तौर पर गोपनीयता के लबादे में लिपटी पार्टी कांग्रेस एक अहम आयोजन होता है. चीन पर 68 साल से राज कर रही कम्युनिस्ट पार्टी ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं, लेकिन इसकी ताकत में लगातार इजाफा होता रहा है. पार्टी कांग्रेस में क्या क्या होता है, इसकी पक्की जानकारी आज भी मिल पाना मुश्किल है.
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पहली कांग्रेस
कांग्रेस 1921 में बेहद गोपनीय तरीके से शंघाई के आसपास हुई थी. इसी कांग्रेस में औपचारिक तौर पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्य और चार्टर को तैयार किया गया था. इस कांग्रेस में कम्युनिस्ट नेता माओ त्सेतुंग भी मौजूद थे, हालांकि उस वक्त वह बहुत युवा थे.
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जब माओ बने नेता
पार्टी की सांतवी कांग्रेस 1945 में उस समय बुलायी गयी जब चीन-जापान युद्ध खत्म होने ही वाला था. शांक्शी प्रांत में कम्युनिस्ट पार्टी के गढ़ यानान में यह बैठक हुई जिसमें माओ सुप्रीम लीडर के तौर पर उभरे. इसी कांग्रेस में माओ के "विचारों" को पार्टी की विचारधारा का आधार बनाया गया.
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सांस्कृतिक क्रांति का दौर
पार्टी की नौवीं कांग्रेस 1969 में हुई. यह वह दौर था जब चीन में सांस्कृतिक क्रांति अपने चरम पर थी. सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए माओ ने इस क्रांति का इस्तेमाल किया जिससे देश में दस साल तक भारी अव्यवस्था रही और लगभग गृह युद्ध जैसे हालात हो गये थे.
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चीनी चरित्र वाला समाजवाद
1982 में 12वीं कांग्रेस में चीनी नेता तंग शियाओफिंग ने "चीनी चरित्र वाले समाजवाद" का प्रस्ताव रखा, जिससे चीन में आर्थिक सुधारों का रास्ता तैयार हुआ और देश विशुद्ध कम्युनिस्ट विचारधारा से पूंजीवाद की तरफ बढ़ा. यही वजह है कि आज चीन की चकाचौंध सबको हैरान करती है.
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पूंजीपतियों को जगह
2002 में पार्टी की 16वीं कांग्रेस हुई जिसमें औपचारिक रूप से निजी उद्यमियों को पार्टी का सदस्य बनने की अनुमति दी गयी. यह अहम घटनाक्रम था क्योंकि आर्थिक सुधारों की बातें चीन में 1970 के दशक के आखिरी सालों में ही शुरू हो गयी थीं लेकिन पूंजीपतियों को लेकर फिर भी पार्टी में लोगों की त्यौरियां चढ़ी रहती थीं.
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अचानक उदय
2007 में हुई 17वीं पार्टी कांग्रेस शी जिनपिंग और ली कचियांग को सीधे नौ सदस्यों वाली पोलित ब्यूरो की एलिट स्थायी समिति का सदस्य बनाया गया जबकि उस समय वह पार्टी के 25 सदस्यों वाले पोलित ब्यूरो के सदस्य नहीं थे. इस तरह ये दोनों नेताओं की पांचवी पीढ़ी के सितारे बन गये.
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नाम में क्या रखा है
शी से पहले चीन के दो राष्ट्रपतियों हू जिनताओ और जियांग जेमिन ने 2002 और 2007 की पार्टी कांग्रेस के दौरान अपने विचारों को चीन के संविधान का हिस्सा बनाया, लेकिन सीधे सीधे अपने नाम का उल्लेख नहीं कराया. वहीं इससे पहले माओ और तंग के नाम भी आपको संविधान में दिखेंगे.