पाकिस्तान के कराची विश्वविद्यालय में 26 अप्रैल को एक आत्मघाती बम धमाके में तीन चीनी नागरिकों की मौत हुई है. कराची विश्वविद्यालय के कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट के सामने हुए हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान के अलगाववादी संगठन बलोच लिबरेशन आर्मी ने ली है. हमले में मारे गए चीनी नागरिक कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट में पढ़ाने वाले अध्यापक और इंस्टीट्यूट के निदेशक थे. एक पाकिस्तानी नागरिक की मौत की खबर भी आयी है.
इस हमले की जिम्मेदार एक महिला को बताया जा रहा है. कराची के पुलिस प्रमुख गुलाम नबी मेमन के अनुसार यह महिला कराची विश्वविद्यालय की ही एक छात्रा थी जिसका सम्बन्ध बलोच लिबरेशन आर्मी से था.
हमले की खबर आते ही चीन के सोशल मीडिया और माइक्रो ब्लागिंग साइट वाइबो पर तमाम पोस्ट आने लगे. कुछ पोस्ट ऐसे भी थे जिनमें चीनी शिक्षकों की तस्वीरों के साथ-साथ पाकिस्तान के नाम संदेश भी था जिसका सार यही था कि चीनियों को बलोच-पाकिस्तान सरकार के बवाल में ना घसीटा जाय.
बलोच लिबरेशन आर्मी का हाथ
बलोच लिबरेशन आर्मी 1964 से सक्रिय एक अलगाववादी संगठन है और पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के दक्षिण-पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान से सटी सीमा पर सक्रिय है.
2000 में पाकिस्तानी अधिकारियों पर हमले के बाद से चर्चा में आये इस संगठन की मांग है कि बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग एक स्वतंत्र देश का दर्जा दिया जाय. 2004 से बलोच लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तानी सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं. यह हमला भी उसी सिलसिले की कड़ी है.
लिबरेशन आर्मी को पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत बलोचिस्तान में काफी समर्थन है हालांकि संगठन अफगानिस्तान से अपनी गतिविधियां चलाता है.
लिबरेशन आर्मी ने इस साल कई हमले किये. इनमें जनवरी में कच, बलोचिस्तान में एक सिक्योरिटी चेकपोस्ट पर हमला भी है जिसमें 10 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे.
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लिबरेशन आर्मी के अनुसार फरवरी 2022 में पाकिस्तानी सेना के साथ पंजगुर और नुश्की जिलों में मुठभेड़ में उन्होंने 100 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को मारा था, हालांकि पाकिस्तानी सेना इसका खंडन करती है.
मार्च में भी बलोचिस्तान प्रांत की राजधानी क्वेटा में एक बम धमाके में एक पुलिस अधिकारी समेत तीन लोगों को लिबरेशन आर्मी ने मारा था. जाहिर है कि लिबरेशन आर्मी की गतिविधियों में तेजी आ रही है. हालांकि पाकिस्तान में चीनी संस्थानों और नागरिकों पर हुआ यह इस साल का पहला हमला था.
पिछले सालों में ऐसे कई हमले हुए हैं. बीते साल जुलाई में एक आत्मघाती हमलावर ने उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान में खैबर पख्तूनख्वा में एक यात्री बस में धमाका किया था.
उस हमले में 13 लोग मारे गए थे जिनमें एक जलविद्युत कारखाने में काम करने वाले 9 चीनी नागरिक भी थे. चीनी सरकार ने उसे बम धमाका और हमला माना था, जिसे पाकिस्तान ने बस में यांत्रिक गड़बड़ी से हुआ धमाका कह कर टालने की कोशिश की थी.
इन बातों से असंतुष्ट और अपने नागरिकों की सुरक्षा की चिंता के चलते चीन ने कुछ महीनों के लिए साइट पर कामकाज बंद कर दिया था. हालांकि बाद में चीजें वापस पटरी पर आ गयी.
इस बार पाकिस्तान और चीन दोनों ने इसे बम धमाके की संज्ञा दी है, जिसकी वजह यह भी है कि धमाके के पहले और उस दौरान की पूरी वीडियो चीनी सरकार के पास है.
चीन की तीखी प्रतिक्रिया
चीनी विदेश मंत्रालय ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए पाकिस्तान सरकार से मांग की है कि जिम्मेदार लोगों को पकड़ कर उचित कार्यवाही की जाय.
यही नहीं, अपने एक भावनात्मक सन्देश में चीनी विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि "चीनी नागरिकों का बहा खून बेकार नहीं जाएगा, और इस हमले के पीछे जो भी है उसे निश्चित रूप से इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा."
यह निसंदेह एक कड़ा सन्देश है जिसका सीधा मकसद पाकिस्तान में काम कर रहे चीनी लोगों को आश्वासन दिलाना है कि चीन की सरकार उन्हें पाकिस्तान भरोसे नहीं छोड़ रही.
दूसरी वजह यह भी है कि कन्फ्यूशियस इंस्टिट्यूट की चीन में काफी प्रतिष्ठा है. इसे चीन की बेल्ट और रोड परियोजना के एक अंग के रूप में देखा जाता है.
कुछ-कुछ फ्रांस के अलायंस फ्रांस और जर्मनी के गोएथे इंस्टिट्यूट की तर्ज पर बने इस संस्थान का काम चीनी भाषा और संस्कृति का प्रचार - प्रसार और चीन की छवि में सुधार भी है. इस लिहाज से देखा जाय तो संस्थान के निदेशक का मारा जाना एक बड़ी बात है.
बलोची अलगाववादी आंदोलन है बड़ी वजह
बलोची अलगाववादी आंदोलन में चीनी नागरिकों की बलि कोई नयी बात नहीं है. दुर्भाग्य यह भी है कि शायद ऐसे हमले रुकेंगे नहीं. बलोच लिबरेशन आर्मी को पता है कि चीनी नागरिकों पर हमले से पाकिस्तान सरकार कमजोर पड़ती है और शायद कहीं ना कहीं उसके ग्वादर निवेश के मंसूबे की चूलें भी हिलती हैं.
दशकों से बलोचिस्तान पाकिस्तान से आजादी की मांग करता रहा है. बलोची नेताओं ने पाकिस्तान सरकार पर बलूचिस्तान के हितों को अनदेखा करने और उसे जानबूझ कर विकास परियोजनाओं से दूर रखने के आरोप भी लगाए हैं.
दिलचस्प है कि चीन का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट - ग्वादर पत्तन प्रोजेक्ट - बलूचिस्तान में ही है. ग्वादर पोर्ट चीन की महत्वाकांक्षी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का हिस्सा है. इस गलियारे को 2013 में लांच किया गया था जो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बहुदेशीय और बहुउद्देशीय बेल्ट और रोड परियोजना के तहत आता है.
शाहबाज शरीफ सरकार पर बढ़ेगा दबाव
इस बम धमाके ने शहबाज शरीफ सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. इमरान खान सरकार को गिरा कर हाल ही में सत्तारूढ़ हुए शहबाज शरीफ नवाज शरीफ के भाई हैं और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. शहबाज सरकार को एक लचर अर्थव्यवस्था, कमजोर विदेशनीति, और बिगड़ते अंदरूनी हालात विरासत में मिले हैं.
पाकिस्तान के दो बड़े सहयोगी रहे देश - अमेरिका और सऊदी अरब - पाकिस्तान से खास खुश नहीं हैं. यही वजह है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद शहबाज सबसे पहले सऊदी अरब की यात्रा पर निकल पड़े.
हालांकि उनकी यात्रा से ठीक पहले कराची विश्वविद्यालय में बम धमाके ने चीन को भी असंतुष्ट कर दिया है.
विदेशी मुद्रा कोष के बढ़ते संकट, बेतहाशा बढ़ती महंगाई, चीन से बढ़ते कर्ज, और पश्चिमी देशों से आर्थिक सहयोग में भारी कमी के बीच पाकिस्तान के लिए चीन ही हर मर्ज की दवा रहा है.
चीन और पाकिस्तान सामरिक सहयोगी हैं और अपनी दोस्ती को मजबूत भाईचारे की संज्ञा देते हैं. यही वजह है कि चीन इस हमले से बिफर गया है और पाकिस्तान से त्वरित कार्यवाही की उम्मीद कर रहा है.
हमले को लेकर चीनी प्रतिक्रिया से साफ है कि चीन पाकिस्तान पर और खास तौर पर चीन - पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर अपना दबाव और दखल दोनों बढ़ाएगा. पाकिस्तान के पास फिलहाल चीन को ना कहने की ना क्षमता है और ना ही कोई बड़ी वजह है.
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अगर चीनी सरकार पाकिस्तान में रह रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए चीनी सुरक्षा एजेंसियों को लगाने की कोशिश करती है - तो यह और बुरा होगा. बढ़ते चीनी दखल से घरेलू मोर्चे पर शहबाज की मुश्किलें बढ़ सकती हैं और हमलों की संख्या भी. बलूचिस्तान में चीनी लोगों पर हमले के पीछे वजह चीन का बढ़ता दखल और ऐसे ही तमाम सवाल हैं जिनका सीधा संबंध बलोच लोगों की अपनी स्थिति से है.
बलोच अलगावादियों के लिए चीनी नागरिकों और प्रतिष्ठानों पर हमला करना एक रणनीति है क्योंकि इससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय समुदाय खास कर चीन का ध्यान आकर्षित करने का मौका मिलता है.
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यही लगता है कि बलोच अलगाववादी ऐसे धमाके तब तक बंद नहीं करेंगे जब तक पाकिस्तान उनके खिलाफ कार्रवाई बंद नहीं करता या दोनों पक्ष किसी शांतिपूर्ण समझौते पर नहीं पहुंचते. इसके साथ ही चीन-पाकिस्तान की सरकारों को आर्थिक गलियारे में बलोच लोगों के हितों का ध्यान भी रखना होगा.
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)