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चीन का रक्षा बजट 200 अरब डॉलर के पार

राहुल मिश्र
१२ मार्च २०२१

महाशक्ति बनने का सपना देखने वाले चीन ने अपने रक्षा बजट को बढ़ाकर 209 अरब डॉलर कर दिया है. चीन अपनी सैन्य क्षमता को लगातार धारदार बनाने में जुटा है. लेकिन इससे भारत और जापान जैसे चीन के पड़ोसियों की चिंता बढ़ सकती है.

China l Militärparade zur Feier des 70. Jahrestages der Gründung der Volksrepublik China
तस्वीर: picture alliance/Photoshot/L. Xiao

किसी भी देश का रक्षा बजट उसकी सेनाओं और सुरक्षा एजेंसियों के लिए बहुत मायने रखता है. इससे ना सिर्फ सेनाओं के रख-रखाव की नीतियों और हथियारों की खरीद के मसूबों का संकेत मिलता है बल्कि इससे देशों की सुरक्षा चिंताओं और भविष्य में लिए जाने वाले सामरिक निर्णयों की भनक भी लगती है. यही वजह है कि देशों के रक्षा बजट पर हर किसी की पैनी नजर होती है.

इस सिलसिले में चीन का हाल ही में सार्वजनिक किया गया 2021 रक्षा बजट महत्वपूर्ण स्थान रखता है. पिछले कई वर्षों से चीन के रक्षा बजट में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. और इस साल भी इसमें इजाफा ही हुआ है. 5 मार्च को चीन की नेशनल पीपल्स कांग्रेस की सालाना बैठक में रक्षा बजट के मसौदे पर चर्चा हुई और ऐलान किया गया कि इस साल रक्षा क्षेत्र में 209 अरब डालर खर्च किए जाएंगे. यह राशि पिछले साल के 196 अरब डालर से लगभग 7 फीसदी ज्यादा है.  आंकड़ों के मायाजाल से परे हट कर अगर इसे देखा जाय तो साफ है कि बजट में 13 अरब डालर की बढ़ोत्तरी हुई है.

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चीन की प्राथमिकता

जाहिर है, चीन के इस कदम से पड़ोसी देशों में हलचल मच गई है. इसमें खास तौर पर जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया, भारत और ताइवान जैसे देश आते हैं जिनके साथ चीन की सीमा विवाद और अन्य मुद्दों को लेकर अनबन है. चीन का कुल रक्षा बजट इन तमाम देशों के कुल जमा बजट से भी ज्यादा है.

चीन के भारत समेत लगातार एक के बाद एक कई देश के साथ बढ़ते तनाव के बीच यह तय ही  था कि चीन अपने रक्षा बजट को और बढ़ाएगा. जानकारों के बीच अटकलें सिर्फ इस बात को लेकर थीं कि यह राशि कितनी होगी. दूसरे देशों के मुकाबले कोविड महमारी के कठिन समय में भी चीन की अर्थव्यवस्था में बढ़ोत्तरी हुई है. इसका फायदा भी चीन को उठाना लाजमी ही था.

आम तौर पर चीन अपने रक्षा बजट का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा सिर्फ हथियारों की खरीद और उन्हें अपग्रेड करने पर लगाता है. शायद इस बार उस पर और अधिक खर्च की भी योजना हो लेकिन फिलहाल इन विवरणों को चीन ने सार्वजनिक नहीं किया है. दुनिया के तमाम देशों के विपरीत, चीन ना अपने बजट के एक-एक पैसे का हिसाब सार्वजनिक करता है और न ही सुरक्षा से जुड़ी हर चीनी एजेंसी रक्षा बजट के अंदर आती है. इसलिए चीन से पारदर्शिता की उम्मीद करना बेमानी है.

चीन ने अपनी 14वीं पंचवर्षीय योजना में नई तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमी कंडक्टर चिपों, गहन समुद्र, गहन आकाश और पोलर एक्सप्लोरेशन पर खास ध्यान देने की योजना बनाई है. 2021 से 2025 तक चले वाली इस पंचवर्षीय योजना का भी रक्षा बजट पर व्यापक असर होने की संभावना है.

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तकनीक का सहारा

वैसे पिछले कई वर्षों से चीन अपनी सेनाओं को क्षमतावान और टेक्नोलोजी से लैस लेकिन हल्की-फुल्की बनाने में लगा है लेकिन अब उसने अत्याधुनिक उन्नत तकनीकों पर खास जोर देना शुरू कर दिया है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक पर चीन ने पिछले कुछ समय में खास पकड़ बनाई है और दक्षिण चीन सागर में स्वार्म और ड्रोन तकनीक का प्रभावशाली इस्तेमाल भी बढ़ाया है.

चीन इस सदी के मध्य तक पीपल्स लिबरेशन आर्मी को दुनिया की सर्वोत्कृष्ट और अत्याधुनिक सेना बनाने के प्रयास में लगा हुआ है. लेकिन साथ ही उसकी यह भी कोशिश रही है कि दुनिया को इस बात की भनक भी न लगे कि इन प्रयासों में वह कितना पैसा, समय और ऊर्जा लगा रहा है. लेकिन जहां आग है वहां कभी ना कभी धुआं तो उठेगा ही. ऐसा ही हो रहा है दक्षिण चीन और पूर्वी सागर में.

पिछले कुछ सालों में चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों के निर्माण और उन द्वीपों पर सैन्य साजोसामान तैनात करने में काफी तकनीक और पैसा लगाया है. इस सबके पीछे उसका सबसे बड़ा उद्देश रहा है कि वह ऐसी क्षमता विकसित कर सके जिसके तहत वह अपने प्रतिद्वंदद्वी को जब चाहे किसी खास क्षेत्र में प्रवेश या कुछ खास गतिविधियां करने से रोक सके.

राहुल मिश्र अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैंतस्वीर: Privat

टकराव के आसार

एंटी एक्सेस/एंटी डिनायल (ए.2/एडी) जैसी क्षमता विकसित करने की चाह के पीछे सबसे बड़ा कारण है अमेरिका के साथ चीन की बढ़ती अनबन. चीन अमेरिका की किसी भी सैन्य गतिविधि को अपने खिलाफ उठाया गया अमेरिकी कदम समझता है. हालांकि अमेरिका की दक्षिणपूर्व और पूर्व एशिया में उपस्थिति कोई नई बात नहीं है है लेकिन अपनी ताकत और रुतबा बढ़ने के साथ ही चीन अब अमेरिका को रास्ते का रोड़ा समझने लगा है. यह वही चीन है जिसने अपने निहित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अमेरिका से शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के खिलाफ हाथ मिला लिए थे.

उधर चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और आक्रामक रवैया जापान और भारत जैसे इसके कई पड़ोसियों के गले की फांस बन गया है. इस समस्या से कूटनीतिक ढंग से निपटने और अगर जरूरत पड़े तो सैन्य सहयोग से पीछे ना हटने के उद्देश्य से ही भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया से बीच पहला शिखर सम्मेलन हो रहा है. वैसे तो चीन पर शायद सार्वजनिक स्तर पर बयानबाजी के आसार कम हैं लेकिन यह सब को मालूम है कि  इन चारों देशों के साझा प्रयास- क्वाड के पीछे चीन सबसे बड़ी और मुखर वजह चीन ही है.

सारा दारोमदार इस बात पर है कि क्वाड के देश चीन की तेजी से आधुनिक बन रही पीपल्स लिबरेशन आर्मी से निपटने पर भी कोई साझा कदम उठाने की योजना बनाते हैं या हर बार की तरह अमेरिका पर ही यह जिम्मेदारी टाल दी जाती है.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं)

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