महाशक्ति बनने का सपना देखने वाले चीन ने अपने रक्षा बजट को बढ़ाकर 209 अरब डॉलर कर दिया है. चीन अपनी सैन्य क्षमता को लगातार धारदार बनाने में जुटा है. लेकिन इससे भारत और जापान जैसे चीन के पड़ोसियों की चिंता बढ़ सकती है.
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किसी भी देश का रक्षा बजट उसकी सेनाओं और सुरक्षा एजेंसियों के लिए बहुत मायने रखता है. इससे ना सिर्फ सेनाओं के रख-रखाव की नीतियों और हथियारों की खरीद के मसूबों का संकेत मिलता है बल्कि इससे देशों की सुरक्षा चिंताओं और भविष्य में लिए जाने वाले सामरिक निर्णयों की भनक भी लगती है. यही वजह है कि देशों के रक्षा बजट पर हर किसी की पैनी नजर होती है.
इस सिलसिले में चीन का हाल ही में सार्वजनिक किया गया 2021 रक्षा बजट महत्वपूर्ण स्थान रखता है. पिछले कई वर्षों से चीन के रक्षा बजट में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. और इस साल भी इसमें इजाफा ही हुआ है. 5 मार्च को चीन की नेशनल पीपल्स कांग्रेस की सालाना बैठक में रक्षा बजट के मसौदे पर चर्चा हुई और ऐलान किया गया कि इस साल रक्षा क्षेत्र में 209 अरब डालर खर्च किए जाएंगे. यह राशि पिछले साल के 196 अरब डालर से लगभग 7 फीसदी ज्यादा है. आंकड़ों के मायाजाल से परे हट कर अगर इसे देखा जाय तो साफ है कि बजट में 13 अरब डालर की बढ़ोत्तरी हुई है.
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चीनी सेना कहां से कहां पहुंच गयी
चीन ने जो सैन्य ताकत हासिल की है, उससे किसी को भी रश्क हो सकता है. आइए एक नजर डालते हैं चीनी सेना के अतीत और वर्तमान पर.
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कब हुआ गठन?
चीन में 1 अगस्त 1927 को गृह युद्ध छिड़ा और यही दिन चीन की मौजूदा सेना का स्थापना दिवस माना जाता है. इस गृह युद्ध में एक तरफ चीन की राष्ट्रवादी ताकतें थीं तो दूसरी तरफ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी. गृह युद्ध में आखिरकार कम्युनिस्टों की जीत हुई और चीन पर उनका नियंत्रण हो गया. वहीं राष्ट्रवादियों को भागकर ताइवान जाना पड़ा.
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1989, बीजिंग
1949 में आधुनिक चीन की स्थापना के बाद चीनी सेना कई ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह बनी जिनमें कोरियाई युद्ध, चीनी सांस्कृतिक क्रांति और चीन-वियतनाम युद्ध शामिल रहे. लेकिन 1989 में कुछ चीनी युवा अपनी ही व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़े हुए. चीन की सेना ने जिस बर्बरता से इस लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचला, उसकी अब तक आलोचना होती है.
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भारत-चीन युद्ध
अपनी आजादी के 15 साल बाद ही भारत को 1962 में चीन के साथ युद्ध लड़ना पड़ा. एक महीने तक चले इस युद्ध में भारत को हार का कड़वा घूंट पीना पड़ा. युद्ध का मुख्य कारण सीमा विवाद था लेकिन इसके लिए कई वजहें भी जिम्मेदार थीं. इनमें एक कारण तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को उनके अनुयायी के साथ भारत में शरण दिया जाना भी था.
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चीन और अमेरिका का टकराव
बीते 20 साल में चीन का किसी देश से कोई युद्ध तो नहीं हुआ है, लेकिन चीनी सेना लगातार सुर्खियों में रही है. 1 अप्रैल 2001 को चीन और अमेरिका के विमान एक दूसरे से टकरा गये. चीन ने इस घटना के लिए अमेरिका को जिम्मेदार करार दिया और इसे लेकर दोनों देशों के रिश्ते खासे तनावपूर्ण हो गये थे.
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हादसा
अप्रैल 2003 में चीनी नौसेना को एक बड़ी दुर्घटना का सामना करना पड़ा जिसमें उसके 70 अफसर मारे गये थे. ये लोग चीनी पनडुब्बी 361 में सवार थे. पानी के नीचे उनकी ट्रेनिंग हो रही थी कि तभी पनडुब्बी का सिस्टम फेल गया. सरकारी मीडिया के मुताबिक पनडु्ब्बी के डीजल इंजन ने सारी ऑक्सीजन इस्तेमाल कर ली जिसके चलते यह हादसा हुआ.
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सेना में भ्रष्टाचार
हाल के सालों में भ्रष्टाचार चीन की सेना के लिए एक बड़ी समस्या रही है. लेकिन जब से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सत्ता संभाली है, तब से देश में भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चल रही है. इसी तहत सेना में उच्च पदों पर रह चुके शु सायहोऊ और कुओ बॉक्सीओंग के खिलाफ कार्रवाई हुई.
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नो बिजनेस
चीन की सेना में 1990 के दशक में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार देखने को मिला. 1985 में खर्चों में कटौती के लिए चीनी सेना को आर्थिक गतिविधियां चलाने की अनुमति दे दी गयी. लेकिन कुछ समय बाद इस फैसले के चलते न सिर्फ सेना की क्षमता प्रभावित हुई बल्कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी हुआ. इसीलिए 1998 में चीन ने सेना की आर्थिक गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी.
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नए हथियार
तौर पर चीन के बड़ी ताकत बनने के साथ ही उसके रक्षा खर्च में भी बेतहाशा इजाफा हुआ. सेना का आधुनिकीकरण किया गया और उसे नये नये हथियारों से लैस किया गया. उसके जखीरे में अब तेज तर्रार लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत, टोही विमान, पनडुब्बियां और परमाणु मिसाइलों समेत हर तरह के हथियार हैं.
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गहराते मतभेद
चीन की ताकत बढ़ने के साथ ही पड़ोसी देशों से उसके विवाद भी गहराये हैं. जापान से जहां उसकी पारंपरिक प्रतिद्ंवद्विता है, वहीं जल सीमा को लेकर वियतनाम, फिलीफींस, इंडोनेशिया, मलेशिया, ताइवान और ब्रूनेई जैसे देशों उसके मतभेद गहरे हुए हैं. इसके अलावा भारत के साथ सैकड़ों किलोमीटर लंबी सीमा का विवाद भी अनसुलझा है.
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ताइवान से तनातनी
छह विमानवर्षक शियान एच-6 विमानों को जुलाई में ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन के पास उड़ता हुआ पाया गया. इससे ताइवान की सेना सतर्क हो गयी. चीन ताइवान को अपना एक अलग हुआ हिस्सा बताता है जिसे उसके मुताबिक एक दिन चीन में ही मिल जाना है. जबकि ताइवान खुद को एक अलग देश समझता है.
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विदेश में सैन्य अड्डा
चीन की सेना अब देश की सीमाओं से परे भी अपने पांव पसार रही है. अफ्रीकी देश जिबूती में चीन ने अपना पहला विदेशी सैन्य बेस बनाया है. रणनीतिक रूप से बेहद अहम लोकेशन वाले जिबूती में अमेरिका, जापान और फ्रांस के भी सैन्य अड्डे मौजूद हैं. चीन अफ्रीका में भारी पैमाने पर निवेश भी कर रहा है.
चीन की सेना दुनिया की कई बड़ी सेनाओं के साथ सैन्य अभ्यास करती है और इस दौरान वह अपने दमखम का परिचय देती है. जुलाई 2017 में रूस के साथ बाल्टिक सागर में सैन्य अभ्यास के लिए उसने तीन पोत भेजे. पहली बार चीन ने अपने पोत यूरोप भेजे हैं. बहुत से नाटो देश इस पर नजदीक से नजर बनाये हुए थे.
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चीन की प्राथमिकता
जाहिर है, चीन के इस कदम से पड़ोसी देशों में हलचल मच गई है. इसमें खास तौर पर जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया, भारत और ताइवान जैसे देश आते हैं जिनके साथ चीन की सीमा विवाद और अन्य मुद्दों को लेकर अनबन है. चीन का कुल रक्षा बजट इन तमाम देशों के कुल जमा बजट से भी ज्यादा है.
चीन के भारत समेत लगातार एक के बाद एक कई देश के साथ बढ़ते तनाव के बीच यह तय ही था कि चीन अपने रक्षा बजट को और बढ़ाएगा. जानकारों के बीच अटकलें सिर्फ इस बात को लेकर थीं कि यह राशि कितनी होगी. दूसरे देशों के मुकाबले कोविड महमारी के कठिन समय में भी चीन की अर्थव्यवस्था में बढ़ोत्तरी हुई है. इसका फायदा भी चीन को उठाना लाजमी ही था.
आम तौर पर चीन अपने रक्षा बजट का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा सिर्फ हथियारों की खरीद और उन्हें अपग्रेड करने पर लगाता है. शायद इस बार उस पर और अधिक खर्च की भी योजना हो लेकिन फिलहाल इन विवरणों को चीन ने सार्वजनिक नहीं किया है. दुनिया के तमाम देशों के विपरीत, चीन ना अपने बजट के एक-एक पैसे का हिसाब सार्वजनिक करता है और न ही सुरक्षा से जुड़ी हर चीनी एजेंसी रक्षा बजट के अंदर आती है. इसलिए चीन से पारदर्शिता की उम्मीद करना बेमानी है.
चीन ने अपनी 14वीं पंचवर्षीय योजना में नई तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमी कंडक्टर चिपों, गहन समुद्र, गहन आकाश और पोलर एक्सप्लोरेशन पर खास ध्यान देने की योजना बनाई है. 2021 से 2025 तक चले वाली इस पंचवर्षीय योजना का भी रक्षा बजट पर व्यापक असर होने की संभावना है.
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भारत से कितना डरते हैं चीनी
चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' के सर्वे से पता चला है कि चीनी लोगों को भारत की सैन्य या आर्थिक कार्रवाई से कितना डर लगता है. देखिए चीन के दस बड़े शहरों के लगभग 2,000 लोगों की सोच के आधार पर क्या सामने आया.
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क्या चीन पर आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा निर्भर है भारत?
सर्वे में शामिल लगभग आधे लोगों को लगता है कि भारत की चीन पर बहुत अधिक आर्थिक निर्भरता है. वहीं 27 फीसदी को लगता है कि ऐसा नहीं है.
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क्या भारतीय सेना चीन के लिए खतरा पैदा कर सकती है?
एक तिहाई से भी कम लोगों को लगता है कि भारतीय सेना चीन के लिए खतरा बन सकती है. वहीं 57 फीसदी से भी अधिक का मानना है कि कोई खतरा नहीं.
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क्या जरूरत से ज्यादा चीन-विरोधी भावनाएं फैली हैं?
लगभग 71 फीसदी चीनी लोगों का मानना है कि भारत में फिलहाल चीन को लेकर कुछ ज्यादा ही विरोध है. वहीं 15 फीसदी ऐसे हैं जिन्हें यह ठीक लगता है.
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चीनी उत्पादों के बहिष्कार वाले अभियान को कैसे देखते हैं?
35 फीसदी से अधिक चीनी इस पर बहुत गुस्सा हुए. वहीं लगभग 30 फीसदी को लगा कि भारत इसे लेकर गंभीर नहीं है और इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए.
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चीन और भारत के संबंधों में सबसे बड़ी रुकावट क्या है?
30 फीसदी का मानना है कि ऐसा देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर है. वहीं लगभग एक चौथाई का मानना है कि भारत अमेरिका के असर में आकर ऐसा कर रहा है.
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अगर फिर से भारत के साथ सीमा विवाद छिड़े तो?
लगभग 90 फीसदी लोग आत्मरक्षा में चीनी सेना की भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का समर्थन करते हैं. 7 फीसदी से भी कम लोग बलप्रयोग के खिलाफ हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Z. Zhengju
भविष्य में किस तरफ जा सकते हैं चीन-भारत संबंध?
25 फीसदी को लगता है कि कभी अच्छे तो कभी बुरे दौर आएंगे. वहीं 25 फीसदी का मानना है कि लंबे समय में सुधार दिखेगा. 20 फीसदी को जल्दी सुधार की उम्मीद नहीं है.
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तकनीक का सहारा
वैसे पिछले कई वर्षों से चीन अपनी सेनाओं को क्षमतावान और टेक्नोलोजी से लैस लेकिन हल्की-फुल्की बनाने में लगा है लेकिन अब उसने अत्याधुनिक उन्नत तकनीकों पर खास जोर देना शुरू कर दिया है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक पर चीन ने पिछले कुछ समय में खास पकड़ बनाई है और दक्षिण चीन सागर में स्वार्म और ड्रोन तकनीक का प्रभावशाली इस्तेमाल भी बढ़ाया है.
चीन इस सदी के मध्य तक पीपल्स लिबरेशन आर्मी को दुनिया की सर्वोत्कृष्ट और अत्याधुनिक सेना बनाने के प्रयास में लगा हुआ है. लेकिन साथ ही उसकी यह भी कोशिश रही है कि दुनिया को इस बात की भनक भी न लगे कि इन प्रयासों में वह कितना पैसा, समय और ऊर्जा लगा रहा है. लेकिन जहां आग है वहां कभी ना कभी धुआं तो उठेगा ही. ऐसा ही हो रहा है दक्षिण चीन और पूर्वी सागर में.
पिछले कुछ सालों में चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों के निर्माण और उन द्वीपों पर सैन्य साजोसामान तैनात करने में काफी तकनीक और पैसा लगाया है. इस सबके पीछे उसका सबसे बड़ा उद्देश रहा है कि वह ऐसी क्षमता विकसित कर सके जिसके तहत वह अपने प्रतिद्वंदद्वी को जब चाहे किसी खास क्षेत्र में प्रवेश या कुछ खास गतिविधियां करने से रोक सके.
टकराव के आसार
एंटी एक्सेस/एंटी डिनायल (ए.2/एडी) जैसी क्षमता विकसित करने की चाह के पीछे सबसे बड़ा कारण है अमेरिका के साथ चीन की बढ़ती अनबन. चीन अमेरिका की किसी भी सैन्य गतिविधि को अपने खिलाफ उठाया गया अमेरिकी कदम समझता है. हालांकि अमेरिका की दक्षिणपूर्व और पूर्व एशिया में उपस्थिति कोई नई बात नहीं है है लेकिन अपनी ताकत और रुतबा बढ़ने के साथ ही चीन अब अमेरिका को रास्ते का रोड़ा समझने लगा है. यह वही चीन है जिसने अपने निहित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अमेरिका से शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के खिलाफ हाथ मिला लिए थे.
उधर चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और आक्रामक रवैया जापान और भारत जैसे इसके कई पड़ोसियों के गले की फांस बन गया है. इस समस्या से कूटनीतिक ढंग से निपटने और अगर जरूरत पड़े तो सैन्य सहयोग से पीछे ना हटने के उद्देश्य से ही भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया से बीच पहला शिखर सम्मेलन हो रहा है. वैसे तो चीन पर शायद सार्वजनिक स्तर पर बयानबाजी के आसार कम हैं लेकिन यह सब को मालूम है कि इन चारों देशों के साझा प्रयास- क्वाड के पीछे चीन सबसे बड़ी और मुखर वजह चीन ही है.
सारा दारोमदार इस बात पर है कि क्वाड के देश चीन की तेजी से आधुनिक बन रही पीपल्स लिबरेशन आर्मी से निपटने पर भी कोई साझा कदम उठाने की योजना बनाते हैं या हर बार की तरह अमेरिका पर ही यह जिम्मेदारी टाल दी जाती है.
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भारत और चीन की सेना में कितना अंतर है?
चीन और भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेनाएं हैं, इन दोनों ने आपस में एक युद्ध भी लड़ा है. अकसर इनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता में यह सवाल भी उठता है कि इन देशों की सैन्य ताकत में कितना फर्क है. देखिये फर्क इन तस्वीरों में.