चीन भौगोलकि रूप से आर्कटिक क्षेत्र से सीधे-सीधे नहीं जुड़ा है लेकिन आर्कटिक क्षेत्र में इसकी सक्रियता लंबे समय से नजर आती रही है. अब चीन ने भविष्य की अपनी आर्कटिक नीति पर एक श्वेत पत्र जारी किया है.
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आधिकारिक रूप से आर्कटिक नीति पर जारी किए गए अपने श्वेत पत्र में चीन ने कहा है कि वह इस क्षेत्र में उद्यमों के विकास को प्रोत्साहित करेगा. साथ ही बुनियादी ढांचे और कारोबारी आवाजाही को बढ़ाने के लिए काम करेगा जो भविष्य में आर्कटिक शिपिंग मार्ग के लिए रास्ता तैयार करेगा. इसे चीन ने "पोलर सिल्क रोड" नाम दिया है.
चीन के स्टेट काउंसिल इंफॉरमेशन ऑफिस ने जारी इस पत्र में कहा, "चीन को उम्मीद है कि सभी दल पोलर सिल्क रोड को तैयार करने और आर्कटिक शिपिंग रूटों को विकसित करने पर काम करेंगे." हालांकि चीन आर्कटिक क्षेत्र में आने वाला देश नहीं है लेकिन ध्रुवीय क्षेत्र में यह बेहद ही सक्रिय है. साल 2013 में चीन आर्कटिक काउंसिल का पर्यवेक्षक सदस्य बना था. श्वेत पत्र में कहा गया है, "आर्थिक भूमंडलीकरण के दौर में दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं में विज्ञान व तकनीक, पर्यावरण, जहाजरानी और संसाधनों में आर्कटिक का मूल्य निरंतर बढ़ रहा है. आर्कटिक मामले आर्कटिक क्षेत्र के बाहर के देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समग्र हितों से जुड़े हैं, जिस का वैश्विक प्रभाव और महत्व है."
क्या है चीन का "वन बेल्ट, वन रोड" प्रोजेक्ट
900 अरब डॉलर की लागत से चीन कई नए अंतरराष्ट्रीय रूट बनाना चाहता है. वन बेल्ट, वन रोड नाम के अभियान के तहत बीजिंग ये सब करेगा.
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चीन-मंगोलिया-रूस
जून 2016 में इस प्रोजेक्ट पर चीन, मंगोलिया और रूस ने हस्ताक्षर किये. जिनइंग से शुरू होने वाला यह हाइवे मध्य पूर्वी मंगोलिया को पार करता हुआ मध्य रूस पहुंचेगा.
न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज
इस योजना के तहत चीन यूरोप से रेल के जरिये जुड़ चुका है. लेकिन सड़क मार्ग की संभावनाएं भी बेहतर की जाएंगी. 10,000 किलोमीटर से लंबा रास्ता कजाखस्तान और रूस से होता हुआ यूरोप तक पहुंचेगा.
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चाइना-पाकिस्तान कॉरिडोर
56 अरब डॉलर वाला यह प्रोजेक्ट चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत को कश्मीर और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा.
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चाइना-सेंट्रल एंड वेस्ट एशिया कॉरिडोर
सदियों पुराने असली सिल्क रूट वाले इस रास्ते को अब रेल और सड़क मार्ग में तब्दील करने की योजना है. कॉरिडोर कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान, ईरान, सऊदी अरब और तुर्की को जो़ड़ेगा.
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दक्षिण पूर्वी एशियाई कॉरिडोर
इस कॉरिडोर के तहत चीन की परियोजना म्यांमार, वियतनाम, लाओस, थाइलैंड से गुजरती हुई इंडोनेशिया तक पहुंचेगी.
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चाइना-बांग्लादेश-इंडिया-म्यांमार कॉरिडोर
इस परियोजना के तहत इन चार देशों को सड़क के जरिये जोड़ा जाना था. लेकिन भारत की आपत्तियों को चलते यह ठंडे बस्ते में जा चुकी है. अब चीन बांग्लादेश और म्यांमार को जोड़ेगा.
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चाइना-नेपाल-इंडिया कॉरिडोर
म्यांमार के अलावा चीन नेपाल के रास्ते भी भारत से संपर्क जोड़ना चाहता है. इसी को ध्यान में रखते हुए चीन ने नेपाल को भी वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में शामिल किया है.
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प्रोजेक्ट का मकसद
वन बेल्ट, वन रूट जैसी योजनाओं की बदौलत चीन करीब 60 देशों तक सीधी पहुंच बनाना चाहता है. परियोजना के तहत पुल, सुरंग और आधारभूत ढांचे पर तेजी से काम किया जा रहा है. निर्यात पर निर्भर चीन को नए बाजार चाहिए. बीजिंग को लगता है कि ये सड़कें उसकी अर्थव्यवस्था के लिए जीवनधारा बनेंगी.
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अमेरिका नहीं, चीन
डॉनल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के चलते दुनिया भर के देशों को अमेरिका से मोहभंग हो रहा है. चीन इस स्थिति का फायदा उठाना चाहता है. बीजिंग खुद को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की धुरी बनाने का सपना देख रहा है. इसी वजह से इन परियोजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है.
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चीन के एक अखबार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस क्षेत्र में चीन के हित, रूस के साथ चल रही उसकी प्राकृतिक गैस परियोजना के चलते भी बढ़े हैं. रूस की यमल प्राकृतिक गैस परियोजना के तहत चीन को सालाना 40 लाख टन प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की जाएगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरी समुद्री मार्ग के इस्तेमाल में आने से 20 दिन की बचत होगी. हालांकि चीन का इस क्षेत्र में बढ़ता रणनीतिक प्रभाव आर्कटिक क्षेत्र के देशों की चिंताए बढ़ा रहा है. चीन ने कहा कि कुछ लोग आर्कटिक को लेकर हमारे इरादों पर शक जता रहे हैं लेकिन यह सभी चिंताएं बेवजह हैं. आर्कटिक काउंसिल में कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन, अमेरिका शामिल हैं.
चीन की इस योजना का मकसद, चीन को यूरोप और मध्य पूर्व समेत तमाम अन्य देशों से जोड़ना है. चीन की यह नीति देश के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मंशाओं को दर्शाती है, जो देश को वैश्विक नेतृत्व की भूमिका में लाना चाहते हैं.