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चीन की प्रतिस्पर्धा से कहीं बड़ी है आसियान- अमेरिका की दोस्ती

राहुल मिश्र
६ अगस्त २०२१

कोविड महामारी ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मायने भी बदल दिए हैं अब वैक्सीन भी कूटनीति का हिस्सा है. आसियान के साथ अमेरिका के संबंधों का नया खाका क्या चीन से प्रतिद्वंद्विता के कारण है या कुछ और बात है?

Indonesien Präsident Joko Widodo
तस्वीर: Indonesian Presidential Palace/AFP

अगस्त का महीना दक्षिण पूर्व एशियाई देशों और उनके साझा क्षेत्रीय संगठन आसियान (एसोसिएशन ऑफ साऊथ ईस्ट एशियन नेशंस) के लिए गहमा-गहमी और व्यस्तता से भरा होता है. इसी महीने आसियान की महत्वपूर्ण सालाना आतंरिक बैठकें होती हैं और इसके डायलॉग पार्टनर देशों के साथ विदेश मंत्री स्तर की बैठकों का भी यही वक्त है. 

दूसरे डायलॉग पार्टनर्स की तरह अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने भी अलग-अलग सेट-अप में आसियान और उसके सदस्य देशों के साथ मुलाकातें और बातें की, हालांकी दक्षिण पूर्व एशिया में कोविड महामारी के प्रकोप के चलते यह सब ऑनलाइन ही हो सका.

2 से 6 अगस्त के बीच कुल मिलाकर ब्लिंकेन ने आसियान देशों के मंत्रियों के साथ 5 महत्वपूर्ण बैठकें की. इन बैठकों में ईस्ट एशिया समिट की मंत्री-स्तरीय वार्ता, आसियान रीजनल फोरम, अमेरिका-आसियान द्विपक्षीय बैठक के अलावा फ्रेंड्स आफ मेकांग और मेकांग-अमेरिका सहयोग संबंधी अहम बैठकें हुईं.

अमरीकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने आसियान देशों के साथ सालाना बैठक में 3 अगस्त को शिरकत की. इस बैठक में आसियान के महासचिव भी मौजूद थे.

"आसियान सेंट्रलिटी" और आसियान के इंडो-पैसिफिक आउटलुक को अमेरिकी समर्थन

तस्वीर: Manuel Balce Ceneta/REUTERS

आसियान और अमेरिका के बीच हुई इस मंत्रीस्तरीय वार्ता में अमेरिकी पक्ष को स्पष्ट करते हुए विदेशमंत्री ब्लिंकेन ने कहा कि अमेरिका आसियान के इंडो-पैसिफिक आउटलुक का समर्थन करता है. यह समर्थन इस वजह से भी है कि अमेरिका की इंडो-पैसिफिक नीति के साथ भी आसियान के इंडो-पैसिफिक आउटलुक का तारतम्य है.

महाशक्तियों के आपसी टकराव और उनके बीच रस्साकशी आसियान देशों के लिए हमेशा से एक चिंता का विषय रहा है. महाशक्तियों के बीच संतुलन साधने की इसी कवायद की उपज है आसियान का "आसियान सेंट्रलिटी' सिद्धांत.

आसियान का कहना है कि दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र और आसियान से जुड़े मसलों में आसियान देशों की केंद्रीय भूमिका हो. बढ़ते चीन-अमेरिका विवाद के बीच कहीं न कहीं आसियान देशों में यह डर घर कर रहा है कि इस क्षेत्र में उसकी केंद्रीय भूमिका तो जाएगी ही, साथ ही कहीं उसके हितों का भी नुकसान ना हो जाय. लगता है कि इन अटकलों को विराम देने के उद्देश्य से ही  ब्लिंकेन ने अपने बयान में आसियान सेंट्रलिटी को पूरा सम्मान देने और उसका पालन करने की वचनबद्धता दोहराई.

कोविड से निपटने में बढ़ता सहयोग

ब्लिंकेन की आसियान नेताओं के साथ बातचीत में कोविड महामारी का मुद्दा भी छाया रहा. बीते दिनों में अमेरिका ने बढ़-चढ़ कर आसियान देशों की मदद की है. यह मदद खास तौर पर वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के क्षेत्र में रही है. कोविड-19 महामारी के शुरूआती दौर में खुद मुंह की खाने के बाद अब जब अमेरिका फिर उठ खड़ा हुआ है तो छोटे और मझोले देशों की मदद को भी उसने अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया है.

इसी कोशिश के तहत वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया समेत कई मित्र देशों की सहायता करने में अमेरिका लगा हुआ है. 50 करोड़ वैक्सीन की खुराकों के अलावा अब तक 2 बिलियन डालर की आर्थिक सहयोग राशि भी अमेरिका ने ग्लोबल वैक्सीन इनिशिएटिव को दी है.

तस्वीर: Jonathan Ernst/Pool Photo/AP/picture alliance

अमेरिकी मदद के दावों का अंदाजा इस बात से और साफ हो जाता है कि कोविड से लड़ाई में अमेरिका वैक्सीन बांटने में मदद के लिए सबसे बड़ा योगदान कर चुका है.

यह मदद आसियान देशों को भी पहुंची है क्योंकि सूत्रों की मानें तो अकेले आसियान क्षेत्र को ही अमेरिका ने 2.3 करोड़ वैक्सीन खुराक और 16 करोड़ डॉलर की आर्थिक सहायता पहुंचाई है. ब्लिंकेन ने यह भी वादा किया कि अमेरिका आसियान कोविड-19 रिस्पॉन्स फंड को भी 5 लाख डालर की सहायता देगा.

म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली के मुद्दे पर अमेरिका के सख्त होते रवैये के बीच अब आसियान ने म्यांमार मसले के समाधान के लिए एक संयुक्त प्रतिनिधि का चयन भी कर दिया है. उम्मीद की जाती है कि अमेरिका और आसियान के देश आपसी तारतम्य और सहयोग बना कर म्यांमार की सत्तारूढ़ सेना को लोकतंत्र की तरफ जाने की ओर प्रेरित कर सकेंगे.

मेकांग भी महत्वपूर्ण

मेकांग क्षेत्र भी आसियान और अमेरिका के लिए खासा महत्व रखता है. इस सन्दर्भ में फ्रेंड्स आफ मेकांग की बैठक भी अहम थी. 5 अगस्त को हुई इस बैठक में आसियान सचिवालय के प्रतिनिधियों के अलावा भारत और ब्रिटेन ने भी शिरकत की.

गौरतलब है कि इस साल की आसियान मंत्री-स्तरीय वार्ताओं के बाद आसियान ने ब्रिटेन को भी डायलॉग पार्टनर का दर्जा दे दिया है. यह आसियान और ब्रिटेन दोनों के लिए मील का पत्थर है. जैव विविधता से परिपूर्ण मेकांग क्षेत्र संसाधनों के मामले में जितना समृद्ध है, उनके सतत विकास और रख-रखाव के मामलों में उतना ही कमजोर.

तस्वीर: Laily Rachev

इन्हीं चुनौतियों से मिलकर निपटने के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, न्यू-जीलैंड, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, और वर्ल्ड बैंक ने मेकांग देशों का साथ देने का कदम उठाया है. इस समूह में लाओस, थाईलैंड, वियतनाम, म्यांमार, और कंबोडिया, और साथ ही है मेकांग  रिवर  कमीशन  सचिवालय.

बहुपक्षीय मंच देता है आसियान

आसियान की यह सालाना बैठकें महत्वपूर्ण हैं. जहां ईस्ट एशिया समिट में आसियान के दस देशों के साथ-साथ आसियान के अन्य डायलॉग पार्टनर देशों - भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया, न्यू जीलैंड, रूस के मंत्रियों की भी उपस्थिति होती है तो वहीं आसियान रीजनल फोरम 27 देशों की भागीदारी और उनके बीच वाद-संवाद बनाए रखता है.

यह आसियान रीजनल फोरम की एक बड़ी उपलब्धि ही है कि उत्तर कोरिया, जिसका हुक्का-पानी दुनिया ने बंद कर रखा है, उसे भी आसियान रीजनल फोरम में शिरकत करने की और अपनी बात रखने की आजादी है, और इस बार उत्तर कोरिया ने ऐसा किया भी.

साफ है कि आसियान अपनी "कांस्ट्रक्टिव इंगेजमेंट” की नीति के जरिये ना सिर्फ आसियान देशों को बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था से मेल ना बैठा पाने वाले दूसरे सहयोगियों को भी जोड़े रखता है. कहीं न कहीं आसियान इस मूल मन्त्र को समझ चुका है कि जंग तो खुद ही एक मसला है, जंग क्या मसलों का हल देगी.

नजदीकियां बढ़ाने में लगा अमेरिका

बीते कुछ महीनों में अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक के बड़े देशों और दक्षिण पूर्व एशिया के आसियान सदस्य देशों से नजदीकियां बढ़ाने पर खासी मेहनत की है.

विदेशमंत्री ब्लिंकेन का भारत दौरा, उप विदेशमंत्री वेंडी शेर्मन की पूर्वी एशिया यात्रा (और उससे पहले जून में इंडोनेशिया, कम्बोडिया, थाईलैंड की मई-जून में यात्रा) महत्वपूर्ण रहीं हैं. रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने भी अमेरिका के महत्वपूर्ण सामरिक सहयोगी मित्र देशों वियतनाम और सिंगापुर का दौरा किया, तो वहीं उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भी इसी महीने सिंगापुर और वियतनाम में दिखेंगी.

जाहिर है, कूटनीतिक मोर्चा हो, वैक्सीन की आपूर्ति में मदद, या रक्षा और सामरिक मैदान, अमेरिका तेजी से अपनी प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता बढ़ाने में लगा है. इस बात में दो राय नहीं है कि इन सभी कदमों के पीछे कहीं न कहीं चीन से प्रतिस्पर्धा एक बड़ी वजह है.

आसियान देशों और अमेरिका दोनों के लिए यह बैठकें कई मामलों में महत्वपूर्ण रहीं. अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता ने आसियान देशों को बेचैन कर रखा है. उन्हें लगातार यह डर सता रहा है कि कहीं इन दोनों महाशक्तियों के बीच विवाद बढ़ते-बढ़ते एक दिन शीत युद्ध या युद्ध जैसी भयानक त्रासदी में ना बदल जाय.

लेकिन इन सभी कदमों को चीनी उकसावे के रंग में रंग देना सही नहीं होगा. जब चीन दक्षिण पूर्व एशिया और आसियान में कहीं नहीं दिखता था, तब भी अमेरिका की मजबूत उपस्थिति थी. यही वजह है कि दक्षिण पूर्व एशिया के इक्का-दुक्का देशों को छोड़ दें तो इस बात में एक आम राय है कि अमेरिका की मजबूत उपस्थिति आसियान की बेहतरी के लिए ही है.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)

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