चीन में राजधानी बीजिंग के पास एक प्रांत में सख्त में लॉकडाउन लगाया गया है. वहां कोरोना वायरस के ताजा मामलों के बीच अधिकारियों ने कहा है कि खतरा अभी टला नहीं है.
विज्ञापन
चीन के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा है कि बीजिंग से लगभग 150 किलोमीटर दूर एक्शिन काउंटी को पूरी तरह से "सील और नियंत्रित" किया जाएगा. वहां वैसे ही कदम उठाए जा रहे है जैसे इस साल की शुरुआत में वुहान में उठाए गए थे. वुहान से ही यह बीमारी दुनिया भर में फैली.
चीन में महामारी रोकथाम टास्क फोर्स ने एक बयान में कहा है कि एक्शिन काउंटी में हर परिवार के सिर्फ एक आदमी को ही एक दिन में घर से बाहर जाने की अनुमति होगी, ताकि वह दवाई और खाना खरीद सके.
बीजिंग में भी बीते 24 घंटे में कोरोना के 14 नए मामले सामने आए हैं. इसके बाद दो करोड़ की आबादी वाले बीजिंग में कोरोना वायरस के कुल 311 मामले हो गए हैं. चीन में कोरोना महामारी को आम तौर पर काबू कर लिया गया है, लेकिन हाल के हफ्तों में बीजिंग में सैकड़ों नए मामलों के अलावा हुबेई प्रांत के आसपास के इलाकों में भी नए मामले सामने आए हैं.
ये भी पढ़िए: कोरोना के इलाज का दावा करने वाली दवाएं
कोरोना के इलाज का दावा करने वाली दवाएं
कोविड-19 से फैली महामारी से छुटकारा दिलाने वाले टीके या सटीक दवा का इंतजार हर किसी को है. लेकिन इस बीच कुछ ऐसी नई और पुरानी दवाएं पेश की गई हैं जो कोरोना वायरस से लोगों की जान बचा सकती हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Narinder Naru
कोरोनील
पतंजलि योगपीठ के संस्थापक बाबा रामदेव कोविड-19 के लिए देश की पहली आयुर्वेदिक दवा 'दिव्य कोरोनील टैबलेट' ले आए हैं. इसे गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, श्वसारि रस और अणु तेल का मिश्रण बताया जा रहा है. निर्माताओं का दावा है कि इससे 14 के अंदर कोरोना ठीक हो जाएगा. ट्रायल के दौरान करीब सत्तर फीसदी लोगों के केवल तीन दिन में ही ठीक होने का दावा किया गया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Narinder Naru
फेबीफ्लू
ग्लेनमार्क फार्मा की दवा फेवीपीरावीर गोली के रूप में खाई जा सकने वाली एंटी-वायरल दवा है. इसे कोविड-19 के हल्के या मध्यम दर्जे के संक्रमण वाले मामलों में दिया जा सकता है. करीब सौ रूपये प्रति गोली के दाम पर यह गोली भारतीय बाजार में फेबीफ्लू के नाम से मिलेगी. विश्व भर में इसके टेस्ट से अच्छे नतीजे मिले हैं. मरीजों में वायरल लोड कम हुआ और वे जल्दी ठीक हो पाए.
तस्वीर: Manjunath Kiran/AFP/GettyImages
डेक्सामेथासोन
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 के लिए स्टीरॉयड ‘डेक्सामेथासोन’ का बड़े स्तर पर निर्माण करने की अपील की है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने इसका परीक्षण करीब 2,000 बेहद गंभीर रूप से बीमार मरीजों पर किया. इसके इस्तेमाल से सांस के लिए पूरी तरह वेंटिलेटर पर निर्भर मरीजों की मौत को 35 फीसदी तक कम किया जा सका. यह बाजार में 60 साल पहले आई थी.
तस्वीर: Getty Images/M. Horwood
कोविफोर
भारत के हैदराबाद की हीटेरो लैब ‘कोविफोर’ दवा ला रही है. यह असल में एंटीवायरस दवा ‘रेमडेसिविर’ ही है जिसे नए नाम से पेश किया जा रहा है. कंपनी ने इसे बनाने और बेचने के लिए भारतीय ड्रग रेगुलेटर संस्था से अनुमति हासिल कर ली है.
तस्वीर: picture-alliance/AP/Gilead Sciences
एविफाविर
इस दवा को रूस में इस्तेमाल करने की अनुमति मिल गई है. ट्रायल के दौरान इंफ्लुएंजा की इस दवा से कोविड-19 के मरीजों में हालत में जल्दी सुधार आता देखा गया है. यही कारण है कि रूस ने ट्रायल पूरा होने से पहले ही देश के सभी अस्पतालों में इसका इस्तेमाल करने को कहा है.
तस्वीर: AFP/U. Perrey
सिप्ला की सिप्रेमी
सिप्ला कंपनी भी वही जेनेरिक एंटीवायरस दवा ‘रेमडेसिविर’ अपने ब्रांड सिप्रेमी के नाम पर लाई है. अमेरिका की ड्रग्स रेगुलेटर बॉडी, यूएस एफडीए ने कोविड के मरीजों में इमरजेंसी की हालत में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है.
तस्वीर: imago Images/Science Photo Library
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन
मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली यह दवा भारत में ही विकसित हुई थी. पहले उम्मीद की जा रही थी कि इससे कोविड-19 मरीजों को भी मदद मिल सकती है और अमेरिका ने भारत से इसकी बड़ी खेप भी मंगाई थी. लेकिन इससे खास फायदा नहीं होने के कारण फिलहाल कोरोना में इसे प्रभावी नहीं माना जा रहा है. ब्रिटेन और अमेरिका में इसका ट्रायल भी बंद हो गया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Julien
7 तस्वीरें1 | 7
चीन में कोरोना वायरस के इस नए फैलाव का पता जून के मध्य में चला. बताया जाता है कि यह वायरस शहर के शिनफादी थोक बाजार से फैलना शुरू हुआ, जो बीजिंग में खाने की आपूर्ति का एक बड़ा जरिया है. इससे खाद्य श्रृंखला की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
नए मामलों में से एक तिहाई मामलों को मार्केट से बीफ और मटन सेक्शन से जोड़कर देखा जा रहा है. वहां काम करने वाले लोगों को एक महीने के लिए क्ववांटरीन किया जा रहा है. सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक एक्शिन काउंटी से शिनफादी बाजार में ताजे पानी की मछलियां सप्लाई की जाती हैं.
नया फैलाव
बीजिंग में कोरोना वायरस के नए मामले सामने आने के बाद संक्रमण की नई लहर का खतरा मंडरा रहा है. शहर प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया, "राजधानी में महामारी की स्थिति गंभीर और जटिल है." उन्होंने चेतावनी दी कि शहर के प्रशासन को लगातार पता लगाना होगा कि महामारी कहां से फैल रही है.
पिछले दो हफ्तों में राजधानी के थोक बाजार और रेस्त्रां में काम करने वाले लोगों के साथ साथ मध्यम और ज्यादा जोखिम वाले इलाकों में रहने वाले लोगों का बड़े पैमाने पर टेस्ट किया गया है.
ये भी पढ़िए: कौन से ब्लड ग्रुप को है कोरोना का ज्यादा खतरा
कौन से ब्लड ग्रुप को है कोरोना का ज्यादा खतरा
यह तो आप जानते ही हैं कि एक ही परिवार के सदस्यों का ब्लड ग्रुप अलग-अलग हो सकता है. लेकिन क्या आपको पता है कि किस ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना वायरस से ज्यादा खतरा हो सकता है और किसे कम.
तस्वीर: picture-alliance/Zuma/Sopa/R. Utrecht
कितने तरह के ब्लड ग्रुप
कुल चार तरह के ब्लड ग्रुप होते हैं. किसी व्यक्ति की लाल रक्त कोशिकाओं में पाए जाने वाले प्रोटीन कंपाउंड ’ए’ और ‘बी’ एंटीजेन के आधार पर इनका नामकरण किया जाता है. जिनमें केवल ए या बी पाया जाता है उनका ब्लड ग्रुप ‘ए’ या ‘बी’ कहलाता है. इसी तरह जिनमें दोनों पाए जाते हैं उन्हें ‘एबी’ और जिसमें दोनों नहीं पाए जाते हैं, उन्हें ‘ओ’ कहा जाता है.
तस्वीर: Imago Images/Science Photo Library
इम्युनिटी में होता है अंतर
इम्युनिटी यानि बीमारियों से लड़ने की क्षमता किसी ब्लड ग्रुप में दूसरों से कम या ज्यादा हो सकती है. रिसर्चर बताते हैं कि खून चढ़ाने पर कुछ ब्लड ग्रुप दूसरों के मुकाबले ज्यादा कड़ी प्रतिक्रिया भी दे सकते हैं. इसके अलावा एक और कारक होता है जिसे ‘रीसेस फैक्टर’ कहते हैं - जो कि कुछ लोगों में पाया जाता है जबकि कुछ में नहीं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Hoppe
कोविड-19 से कैसा संबंध
कुछ लोगों में कोरोना का संक्रमण होने पर बहुत गंभीर प्रतिक्रिया होती है तो वहीं कुछ लोगों को पता तक नहीं चलता, जिन्हें एसिम्टमैटिक कहा जा रहा है. नई रिसर्च दिखा रही है कि लोगों के ब्लड ग्रुप का इस तरह की प्रतिक्रिया से संबंध हो सकता है. इससे तय होता है कि किसी व्यक्ति की इम्यून प्रतिक्रिया कितनी कमजोर या मजबूत होगी.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/V. Sanovri
ब्लड ग्रुप और कोरोना पर शोध
जर्मनी और नॉर्वे के रिसर्चरों ने कोरोना के साथ अलग अलग रक्त समूहों के संबंध का अध्ययन किया. इनकी खोज को ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया. उन्होंने इटली और स्पेन के 1,610 मरीजों का अध्ययन किया, जिनमें कोविड-19 के कारण सांस लेने का तंत्र फेल हो गया था. ये गंभीर मामले से थे जिनमें से कई की जान चली गई.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/J. Karita
ब्लड ग्रुप ‘ए’ सबसे आगे
पता चला है कि ‘ए’ ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना से गंभीर रूप से प्रभावित होने का खतरा सबसे ज्यादा है. कोविड-19 से संक्रमित होने पर इनको ऑक्सीजन देने या वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत पड़ने की संभावना ‘ओ’ ग्रुप वाले से दोगुनी होती है. जर्मनी में 43 प्रतिशत लोगों का ब्लड ग्रुप ए है जबकि ‘ओ’ ग्रुप वाले 41 प्रतिशत लोग हैं.
तस्वीर: AFP/S. Avila
क्या ‘ओ’ वाले कोरोना से सुरक्षित हैं
अब तक सामने आए मामलों को देखकर कहा जा सकता है कि ओ वाले काफी खुशकिस्मत हैं. ऐसा नहीं है कि वे कोरोना पॉजिटिव नहीं होंगे लेकिन स्टडी से पता चलता है कि संक्रमण होने के बावजूद उनमें इसके गंभीर लक्षण नहीं दिखे. ओ ग्रुप वाले यूनिवर्सल डोनर भी होते हैं यानि जरूरत पड़ने पर उनका खून किसी को भी चढ़ाया जा सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/Zuma/Sopa/R. Utrecht
‘बी’ और ‘एबी’ को कितना खतरा
इन दोनों ब्लड ग्रुप के लोग अपेक्षाकृत कम ही होते हैं. इनमें कोरोना होने पर हालत गंभीर होने का खतरा भी मध्यम रेंज में ही होता है. मलेरिया जैसी बीमारी का भी ब्लड ग्रुप के साथ संबंध स्थापित किया जा चुका है. कोरोना की ही तरह ‘ओ’ वालों को मलेरिया से बहुत खतरा नहीं होता. ‘ए’ ग्रुप वालों को प्लेग का खतरा भी कम होता है.
तस्वीर: picture-alliance/Eibner/D. Fleig
7 तस्वीरें1 | 7
बीजिंग के अधिकारियों ने स्कूलों को फिर से बंद कर दिया है और कई इलाकों में लॉकडाउन लगा दिया है. बीजिंग से बाहर जाने वाले व्यक्ति को कोरोना निगेटिव रिपोर्ट पेश करनी होगी और टेस्ट सात दिन से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए.
शनिवार को खत्म होने वाले तीन दिन के ड्रैगन बोट फेस्टिवल में करोड़ों लोगों ने यात्राएं की थीं. हालांकि तुरंत इससे जुड़े नए संक्रमण का पता नहीं चला है. चीन में कोविड-19 के कुल मामलों की संख्या 84,743 है जिनमें से 4,641 लोगों की मौत हुई है. इस बीमारी से संक्रमित 79,591 लोग ठीक हो गए हैं.