चीन में उईगुर मुसलमानों के इलाके शिनजियांग में कई तरीकों से हलाल चीजों पर रोक लगाने की कोशिश हो रही है. उरमुकी शहर में कम्युनिस्ट पार्टी के एक नेता ने अधिकारियों से शपथ लेने को कहा है कि वो किसी धर्म को नहीं रहने देंगे सिवाय मार्क्सवादी विचारधारा के. इस इलाके में सरकार का निगरानी तंत्र बहुत मजबूत है और वी चैट की एक पोस्ट के मुताबिक इस नेता ने अधिकारियों से यह भी कहा है कि सार्वजनिक रूप से वो सिर्फ मंदारिन में बात करें.
लियु मिंग ने उरमुकी के अभियोजन विभाग के अधिकारियों से आग्रह किया है कि वो अपने वीचैट अकाउंट पर हलाल के खिलाफ लड़ने का संदेश छापें. वी चैट एक व्हाट्सऐप जैसी मैसेंजर सेवा है जो चीन में बहुत लोकप्रिय है.
चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने बुधवार को लेख में दूध, टूथपेस्ट और टिश्यू जैसी चीजों में हलाल का लेबल लगाने की आलोचना की थी. अखबार ने विशेषज्ञों के हवाले से लिखा था, "हलाल के पीछे की प्रवृत्ति ने धर्म और धर्ननिरपेक्ष जीवन के बीच की रेखा धुंधली कर दी है, ऐसे में धार्मिक चरमपंथ के दलदल में गिरना बहुत आसान हो गया है."
चीन में रहने वाले उइगुर मुसलमान न तो दाढ़ी रख सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं. चीन सरकार के नए नियमों के मुताबिक उन पर कई बंदिशें लगाई गई हैं. चलिए जानते हैं कौन हैं उइगुर लोग.
तस्वीर: Reuters/T. Peterउइगुर चीन में रहने वाला एक जातीय अल्पसंख्यक समुदाय है. ये लोग सांस्कृतिक रूप से खुद को चीन के मुकाबले मध्य एशियाई देशों के ज्यादा करीब पाते हैं. मुख्यतः चीन के शिनचियांग प्रांत में रहने वाले उइगुर लोग न तो सार्वजनिक रूप से नमाज पढ़ सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं.
तस्वीर: Reuters/T. Peterनए सरकारी नियमों के मुताबिक मस्जिद में जाने के लिए व्यक्ति को कम से 18 साल का होना चाहिए. इसके अलावा अगर कोई सार्वजनिक जगह पर धार्मिक उपदेश देता दिखा तो पुलिस उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी. इसके अलावा धार्मिक रीति रिवाज से शादी और अंतिम संस्कार को भी धार्मिक कट्टरपंथ से जोड़कर देखा जा रहा है.
तस्वीर: Reuters/T. Peterउइगुर लोग शिनचियांग में सदियों से रह रहे हैं. 20वीं सदी की शुरुआत में उन्होंने अपने इलाके को पूर्वी तुर्केस्तान नाम देते हुए आजादी की घोषणा की थी. लेकिन 1949 में माओ त्सेतुंग ने ताकत के साथ वहां चीनी शासन लागू कर दिया. उसके बाद से चीन और उइगुर लोगों के संबंध संदेह और अविश्वास का शिकार हैं.
तस्वीर: Reuters/T. Peterशिनचियांग पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए चीन की सरकार ने देश के अन्य हिस्सों से हान चीनियों को वहां ले जाकर बसाया है. 1949 में शिनचियांग में हान आबादी सिर्फ छह प्रतिशत थी जो 2010 में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई. शिनचियांग के उत्तरी हिस्से में उइगुर लोग अल्पसंख्यक हो गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. W. Youngचीन में उइगुर अकेला मुस्लिम समुदाय नहीं है. हुई मुस्लिम समुदाय को भाषा और सांस्कृतिक लिहाज से हान चीनियों के ज्यादा नजदीक माना जाता है. उन्हें अधिकार भी ज्यादा मिले हुए हैं. अपनी मस्जिदें और मदरसे बनाने के लिए उन्हें चीन की सरकार से मदद भी मिलती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Wongशिनचियांग की आजादी के लिए लड़ने वाले गुटों में सबसे अहम नाम ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूवमेंट का है. इसके अलावा तुर्केस्तान इस्लामिक पार्टी भी है जिस पर अल कायदा से संबंध रखने के आरोप लगते हैं. इस गुट को शिनचियांग में हुए कई धमाकों के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है.
तस्वीर: Getty Imagesशिनचियांग क्षेत्रफल के हिसाब से चीन का सबसे बड़ा प्रांत हैं और यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल है. कभी सिल्क रूट का हिस्सा रहे इस इलाके में चीन बड़ा निवेश कर रहा है. लेकिन उइगुर लोग चीन की चमक दमक और समृद्धि के दायरे से बाहर दिखाई देते हैं.
तस्वीर: Reuters/T. Peterहाल के बरसों में शिनचियांग में उइगुर और हान चीनियों के बीच असमानता बढ़ी है. वहां हो रहे तेज विकास के कारण चीन भर से शिक्षित और योग्य हान चीनी पहुंच रहे हैं. उन्हें अच्छी नौकरियां और अच्छे वेतन मिल रहे हैं. वहीं उइगुर लोगों के लिए उतने मौके उलब्ध नहीं हैं.
(रिपोर्ट: रिज्की नुग्रहा/एके)
तस्वीर: Getty Images शिनजियांग प्रांत में चीन की सरकार लोगों की धार्मिक और निजी आजादी पर हमले कर रही है. यह प्रांत एक करोड़ से ज्यादा तुर्क भाषा बोलने वाले उईगुर मुसलमान अल्पसंख्यकों का घर है. गैर सरकारी संगठनों और मीडिया की खबरों से पता चलता है कि करीब 10 लाख उईगुर मुसलमानों को शिविरों में ले जाकर रखा गया है जहां उन्हें कम्युनिस्ट प्रचार का पाठ पढ़ाया जा रहा है. इसके साथ ही उन्हें उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को भी छोड़ने के लिए कहा जा रहा है.
इसी साल अगस्त में संयुक्त राष्ट्र ने चीन से मांग की कि अगर इन लोगों को कानूनी तौर पर हिरासत में नहीं लिया गया है तो उन्हें मुक्त कर दिया जाए. संयुक्त राष्ट्र ने इन शिविरों को "गैर अधिकार क्षेत्र" कहा. चीन की सरकार ऐसे शिविर होने की बात से इनकार करती है और उसका कहना है कि उसके उठाए कदमों का मकसद "चरमपंथ" को हतोत्साहित कर "सामाजिक स्थिरता" सुनिश्चित करना है. सरकार का यह भी कहना है कि जिन शिविरों की बात की जा रही है वो वोकेशनल ट्रेनिंग के लिए शुरू किए गए हैं.
इस बीच चीन सरकार के इन विवादित शिविरों में नए नियम लागू किए जा रहे हैं. मंगलवार को स्थानीय सरकार ने इन नियमों को मंजूरी दी जिसके मुताबिक इन शिविरों में मंदारिन भाषा, कानून और वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाएगी. क्षेत्रीय सरकार की वेबसाइट पर नए नियमों की एक सूची जारी की गई है. इससे पहले मार्च 2017 में नए नियम लागू किए गए थे. उन नियमों में लंबी दाढ़ी रखने और पर्दा करने पर रोक लगाई गई थी.
एनआर/ओएसजे (डीपीए, एएफपी)