चीन को एशिया में अरबों डॉलर खर्च करने का कितना फायदा मिला?
१० दिसम्बर २०१९
एशिया में अपना दबदबा मजबूत करने के लिए चीन ने अरबों डॉलर खर्च किए हैं, कई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं. लेकिन इतना सब करने के बावजूद क्या चीन उन देशों में रहने वाले लोगों का दिल जीत पाया है, पढ़िए.
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एक ताजा अध्ययन से यह जानकारी सामने आई है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने छह साल में चीन के विदेश मंत्रालय का बजट 30 अरब युआन से बढ़ाकर 60 अरब युआन (8.5 अरब डॉलर) कर दिया. इसका मकसद वैश्विक स्तर पर चीन की कूटनीति को मजबूत करना है. अमेरिका के वर्जीनिया में कॉलेज ऑफ विलियम एंड मेरी की एडडाटा रिसर्च लैब का अध्ययन कहता है, "संभावित खतरों को खत्म करने, अंदरूनी नुकसानों से निपटने और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों को मात देने के लिए चीन जिन हथियारों का इस्तेमाल करता है उनमें सार्वजनिक कूटनीति की बहुत अहम भूमिका है."
इसके अलावा भारी निवेश, सरकारी कंपनियों की कारोबारी गतिविधियों, सैन्य कूटनीति और चीनी भाषा और चीनी संस्कृति का प्रचार प्रसार करने के लिए स्थापित कंफ्यूशियस इंस्टीट्यूट्स को भी इस्तेमाल किया जाता है.
रिपोर्ट के मुताबिक चीन कूटनीतिक उद्देश्य के लिए जितनी भी राशि खर्च कर रहा है, उसमें से 95 प्रतिशत इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना पर लगाई जा रही है जबकि पांच फीसदी राशि मानवीय सहायता या फिर कर्ज राहत के लिए दी जा रही है.
चीन के बढ़ते दबदबे के कारण ऐसे कम ही देश हैं जिनके ताइवान के साथ कूटनीतिक रिश्ते हैं. चीन की वन चाइना नीति के तहत कोई देश चीन और ताइवान में से एक से ही राजनयिक रिश्ते रख सकता है. बस इन देशों में ताइवान के दूतावास हैं.
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निकारागुआ
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पैराग्वे
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स्वाजीलैंड
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होली सी
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नाउरू
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पालाऊ
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सोलोमन आइलैंड
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तुवालु
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एशिया में चीन के निवेश का आधे से ज्यादा हिस्सा सिर्फ दो देशों में लगा है, पाकिस्तान और कजाखस्तान. ये दोनों ही देश चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अरबों डॉलर लागत वाली वन बेल्ट वन रोड परियोजना में शामिल हैं. इसके अलावा चीन सरकार ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों, छात्रों के लिए स्कॉलरशिप और एक्सचेंज कार्यक्रमों पर भी खूब पैसा खर्च किया है. दक्षिण और मध्य एशिया के लगभग हर देश के लिए चीन के सरकारी मीडिया की तरफ से टीवी, रेडियो या प्रिंट मीडिया में से कोई ना कोई एक सर्विस मुहैया कराई गई है.
इतना ही नहीं, चीन ने 2004 से 2017 के बीच दक्षिण और मध्य एशियाई देशों के पत्रकारों के लिए अपने यहां 61 यात्राएं आयोजित की हैं. रिपोर्ट कहती है कि चीन की सरकार अपनी प्रसारण गतिविधियां बढ़ाने के साथ साथ उन देशों के पत्रकारों के साथ भी एक रिश्ता कायम करना चाहती है ताकि चीन समर्थक कवरेज को बढ़ावा दिया जा सके और 'नकारात्मक आलोचना को दबाया जा सके'.
रिपोर्ट लेकिन यह भी कहती है कि इतना पैसा बहाने के बावजूद चीन ज्यादातर एशियाई देशों में सब लोगों का दिल नहीं जीत पाया है. कजाखस्तान चीन की बेल्ट और रोड परियोजना में बेहद अहम है लेकिन उसके संभ्रात तबके में 'चीन को लेकर डर' बढ़ता जा रहा है. वहीं राजनीतिक नेताओं ने कजाखस्तान में उइगुर मुसलमानों के संगठनों को बर्दाश्त किया है जबकि चीन के साथ उनका समझौता हुआ है कि वे अलगवावाद को रोकने में मदद करेंगे.
चीन में इस्लामी चरमपंथ और अलगाववाद से निपटने के लिए मुसलमानों को इस्लाम के रास्ते से हटाकर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढ़ाया जा रहा है. जानिए क्या होता है ऐसे शिविरों में.
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बुरी यादें
चीन में मुसलमानों का ब्रेशवॉश करने के शिविरों में ओमिर बेकाली ने जो झेला, उसकी बुरी यादें अब तक उनके दिमाग से नहीं निकलतीं. इस्लामी चरमपंथ से निपटने के नाम पर चल रहे इन शिविरों में रखे लोगों की सोच को पूरी तरह बदलने की कोशिश हो रही है.
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यातनाएं
सालों पहले चीन से जाकर कजाखस्तान में बसे बेकाली अपने परिवार से मिलने 2017 में चीन के शिनचियांग गए थे कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर ऐसे शिविर में डाल दिया. बेकाली बताते हैं कि कैसे कलाइयों के जरिए उन्हें लटकाया गया और यातनाएं दी गईं.
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आत्महत्या का इरादा
बेकाली बताते हैं कि पकड़े जाने के एक हफ्ते बाद उन्हें एक कालकोठरी में भेज दिया गया और 24 घंटे तक खाना नहीं दिया गया. शिविर में पहुंचने के 20 दिन के भीतर जो कुछ सहा, उसके बाद वह आत्महत्या करना चाहते थे.
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क्या होता है
बेकाली बताते हैं कि इन शिविरों में रखे गए लोगों को अपनी खुद की आलोचना करनी होती है, अपने धार्मिक विचारों को त्यागना होता है, अपने समुदाय को छोड़ना होता है. चीनी मुसलमानों के अलावा इन शिविरों में कुछ विदेशी भी रखे गए हैं.
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इस्लाम के 'खतरे'
बेकाली बताते हैं कि शिविरों में इंस्ट्रक्टर लोगों को इस्लाम के 'खतरों' के बारे में बताते थे. कैदियों के लिए क्विज रखी गई थीं, जिनका सभी जवाब न देने वाले व्यक्ति को घंटों तक दीवार पर खड़ा रहना पड़ता था.
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कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ
यहां लोग सवेरे सवेरे उठते हैं, चीनी राष्ट्रगान गाते थे और साढ़े सात बजे चीनी ध्वज फहराते थे. वे ऐसे गीते गाते थे जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ की गई हो. इसके अलावा उन्हें चीनी भाषा और इतिहास भी पढ़ाया जाता था.
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धन्यवाद शी जिनपिंग
जब इन लोगों को सब्जियों का सूप और डबल रोटी खाने को दी जाती थी तो उससे पहले उन्हें "धन्यवाद पार्टी! धन्यवाद मातृभूमि! धन्यवाद राष्ट्रपति शी!" कहना पड़ता था. कुल मिलाकर उन्हें चीनी राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई जाती है.
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नई पहचान
चीन के पश्चिमी शिनचियांग इलाके में चल रहे इन शिविरों का मकसद वहां रखे गए लोगों की राजनीतिक सोच को तब्दील करना, उनके धार्मिक विचारों को मिटाना और उनकी पहचान को नए सिरे से आकार देना है.
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लाखों कैदी
रिपोर्टों के मुताबिक इन शिविरों में हजारों लोगों को रखा गया है. कहीं कहीं उनकी संख्या दस लाख तक बताई जाती है. एक अमेरिकी आयोग ने इन शिविरों को दुनिया में "अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा कैदखाना" बताया है.
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गोपनीय कार्यक्रम
यह कार्यक्रम बेहद गोपनीय तरीके से चल रहा है लेकिन कुछ चीनी अधिकारी कहते हैं कि अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए "वैचारिक परिवर्तन बहुत जरूरी" है. चीन में हाल के सालों में उइगुर चरमपंथियों के हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.
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खोने को कुछ नहीं
बेकाली तो अब वापस कजाखस्तान पहुंच गए हैं लेकिन वह कहते हैं कि चीन में अधिकारियों ने उनके माता पिता और बहन को पकड़ रखा है. उन्होंने अपनी कहानी दुनिया को बताई, क्योंकि "अब मेरे पास खोने को कुछ" नहीं है.
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चीन में दस लाख से ज्यादा अल्पसंख्यक मुसलमानों को तथाकथित रीएजुकेशन कैंपों में रखा गया है. इसमें कजाख लोग भी शामिल हैं. इस क्षेत्र में रहने वाले 75 प्रतिशत उइगुर कजाखस्तान में ही रहते हैं. कई स्थानीय कार्यकर्ता पूर्व कैदियों और चीन के शिनचियांग में रहने वाले उइगुर मुसलमानों के परिजनों को अपनी बात कहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
रिपोर्ट कहती है, "अगर चीन को अपने यहां पर स्थिरता बनाए रखनी है तो उसे ना सिर्फ कजाखस्तान के संभ्रात तबके को बल्कि आम लोगों का भरोसा भी जीतना होगा, जो चीन के शिनचियांग में अपने उइगुर भाइयों का साथ देना चाहते हैं."