खुद को विश्व महाशक्ति की तरह पेश करता चीन छोटी छोटी बातों से डरता है. तिब्बती भाषा को बचाने की कोशिश करते एक शख्स की गिरफ्तारी से भी यह बात साबित हो रही है.
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चीन में तिब्बती भाषा कैसे बचाया जाए? ताशी वांगचुक इसी जद्दोजेहद में जुटे थे. पूर्वोत्तर चीन के तिब्बती इलाके से आने वाले ताशी अपनी मातृभाषा को बचाने पर काम करने लगे. वह अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की डॉक्यूमेंट्री का हिस्सा बने. डॉक्यूमेंट्री टीम के साथ ताशी अपने प्रांत किंघाई से बीजिंग तक गए.
न्यूयॉर्क टाइम्स में खबर छपने और डॉक्यूमेंट्री प्रसारित होने के ही कुछ समय बाद जनवरी 2016 में ताशी को हिरासत में ले लिया गया. अब दो साल बाद उनका कोर्ट ट्रायल शुरू हुआ है.
अभियोजन पक्ष ने ताशी पर अलगाववाद भड़काने का आरोप लगाया है. अपने ही शहर युशु की अदालत में शुरू हुए मुकदमे में अगर ताशी दोषी साबित हुए तो उन्हें कम से कम पांच साल तक की जेल हो सकती है. ताशी के वकील लियांग शियाओजून के मुताबिक अभियोजन पक्ष ताशी को पांच साल से भी ज्यादा की जेल करवाना चाहता है.
चीन के पांच सिर दर्द
पूरी दुनिया में चीन का रुतबा बढ़ रहा है. वह आर्थिक और सैन्य तौर पर महाशक्ति बनने की तरफ अग्रसर है. लेकिन कई अंदरूनी संकट उसे लगातार परेशान करते रहे हैं.
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शिनचियांग
चीन का पश्चिमी प्रांत शिनचियांग अक्सर सुर्खियों में रहता है. चीन पर आरोप लगते हैं कि वह इस इलाके में रहने वाले अल्पसंख्यक उइगुर मुसलमानों पर कई तरह की पाबंदियां लगता है. इन लोगों का कहना है कि चीन उन्हें धार्मिक और राजनीतिक तौर पर प्रताड़ित करता है. हालांकि चीन ऐसे आरोपों से इनकार करता है.
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तिब्बत
चीन का कहना है कि इस इलाके पर सदियों से उसकी संप्रभुता रही है. लेकिन इस इलाके में रहने वाले बहुत से लोग निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को अपना नेता मानते हैं. दलाई लामा को उनके अनुयायी जीवित भगवान का दर्जा देते हैं. लेकिन चीन उन्हें एक अलगाववादी मानता है.
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सिछुआन
चीन का सिछुआन प्रांत हाल के सालों में कई बार तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं के आत्मदाहों को लेकर सुर्खियों में रहा है. चीनी शासन के विरोध में 2011 के बाद से वहां 100 से ज्यादा लोग आत्मदाह कर चुके हैं. ऐसे लोग अधिक धार्मिक आजादी के साथ साथ दलाई लामा की वापसी की भी मांग करते हैं. दलाई लामा अपने लाखों समर्थकों के साथ भारत में शरण लिए हुए हैं.
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हांगकांग
लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के कारण हांगकांग अकसर सुर्खियों में रहता है. 1997 तक ब्रिटेन के अधीन रहने वाले हांगकांग में "एक देश एक व्यवस्था" के तहत शासन हो रहा है. लेकिन अक्सर इसके खिलाफ आवाजें उठती रहती हैं. 1997 में ब्रिटेन से हुए समझौते के तहत चीन इस बात पर सहमत हुआ था कि वह 50 साल तक हांगकांग के सामाजिक और आर्थिक ताने बाने में बदलाव नहीं करेगा. हांगकांग की अपनी अलग मुद्रा और अलग झंडा है.
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ताइवान
ताइवान 1950 से पूरी तरह एक स्वतंत्र द्वीपीय देश बना हुआ है, लेकिन चीन उसे अपना एक अलग हुआ हिस्सा मानता है और उसके मुताबिक ताइवान को एक दिन चीन का हिस्सा बन जाना है. चीन इसके लिए ताकत का इस्तेमाल करने की बात कहने से भी नहीं हिचकता है. लेकिन अमेरिका ताइवान का अहम दोस्त और रक्षक है.
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ताशी ने अदालत में अलगाववाद भड़काने के आरोपों को खारिज किया है. उनके वकील लियांग कहते हैं, "वह अलगाववाद भड़काने पर विश्वास नहीं करते हैं. वह सिर्फ तिब्बती भाषा की पढ़ाई को मजबूत करना चाहते हैं."
अभियोजन पक्ष ने डॉक्यूमेंट्री को ताशी के खिलाफ कोर्ट में अहम सबूत के तौर पर पेश किया है. डॉक्यूमेंट्री में एक बार ताशी यह कहते दिख रहे हैं कि, "योजनाबद्ध तरीके से हमारी संस्कृति का संहार किया जा रहा है. राजनीति में यह कहा जाता है कि अगर एक देश, दूसरे देश को खत्म करना चाहता है तो सबसे पहले उसकी बोली और लिखी जाने वाली भाषा को खत्म करना पड़ता है."
अमेरिकी अखबार से बातचीत के दौरान ताशी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तारीफ की. उन्होंने कहा कि वह चीनी कानून के दायरे में रहते हुए तिब्बती भाषा को बचाने पर काम करेंगे. अभियोजन पक्ष इस बयान को नजरअंदाज करना चाहता है.
असल में तिब्बत के मुद्दे पर चीन हमेशा बेहद संवेदनशील हो जाता है. चीन कहता है कि उसने 1951 में "शांतिपूर्वक" तिब्बत को आजाद कराया. और अब वह इस पिछड़े इलाके का विकास कर रहा है. वहीं कई तिब्बती लोग चीन पर तिब्बत को तबाह करने का आरोप लगाते हैं. बीजिंग पर तिब्बत में चीन के बहुसंख्यक हान समुदाय को योजनाबद्ध तरीके से बसाने के आरोप लगते हैं. मानवाधिकार गुटों का आरोप है कि हानों को तिब्बत में बड़ी संख्या में बसाकर चीन स्थानीय संस्कृति और बौद्ध धर्म के तिब्बती स्वरूप को खत्म करने में लगा है.
चीन के संविधान में बोलने की आजादी है, लेकिन जैसे ही कोई सरकार की नीतियों को चुनौती देता है, वैसे ही मुश्किल शुरू हो जाती है. मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासन में ऐसा दमन तेज हुआ है.
अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ताशी वांगचुक के मुकदमे कड़ी आलोचना की है. एमनेस्टी की पूर्वी एशिया के रिसर्च डायरेक्टर रोसेआन रिफे के मुताबिक, "ये साफ तौर पर चालाकी भरे आरोप हैं और उन्हें तुरंत बिना किसी शर्त के रिहा किया जाना चाहिए."
चीन में मानवाधिकारों का व्यवस्थित हनन
चीन ने सरकार विरोधियों का मुकदमा लड़ने वाले वकील जियांग तियानयोंग को दो साल की कैद की सजा सुनाई है. चीन का मानवाधिकारों का रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है.
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यातना
हालांकि चीन में यातना प्रतिबंधित है लेकिन चीनी अधिकारी अपराधियों से अपराध कबूल कराने के लिए बड़े पैमाने पर यातना का इस्तेमाल करते हैं. राजनीतिक बंदियों को भी बख्शा नहीं जाता.
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वकील का अपराध
चीन में एक अदालत ने मानवाधिकार वकील जियांग तियानयोंग को राजद्रोह के समर्थन के लिए दो साल कैद की सजा दी है. उनकी पत्नी का कहना है कि अपराध दबाव डालकर कबूल कराया गया है.
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अंगों की चोरी
चीन में हर साल हजारों अंग प्रत्यारोपण होते हैं, अंग कहां से आये इसका पता नहीं चलता. चूंकि सराकर जानकारी देने से मना करती है मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि चीन कैदियों के अंगों का कारोबार करता है.
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लाओगाइ यानि जबरी काम
लाओगाइ का अर्थ है काम के जरिये सुधार. चीन में लाओगाइ कॉम्प्लेक्स में करीब 1000 जेल हैं जहां बंदियों के जबरन काम लिया जाता है. अनुमान है कि करीब 40 लाख लोगों से यहां उन्हें सुधारने के नाम पर कड़ी मेहनत करवायी जाती है.
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धर्म के लिए यातना
चीन की कम्युनिस्ट सरकार के दमन का शिकार होने वाले दलों में तिब्बती, ईसाई, उइगुर और नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले शामिल है. धार्मिक संप्रदाय फालुन गोंग के सदस्य भी दमन का शिकार हैं.
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एक बच्चा नीति
मानवाधिकार संगठन चीन की एक बच्चा नीति को भी मानवाधिकारों का हनन मानते रहे हैं. परिवार नियोजन के लिए महिलाओं पर गर्भपात के लिए दबाव डाला जाता है. परंपरागत रूप से चीनी भी बेटियों के बदले बेटे चाहते हैं. अब इस नीति को खत्म कर दिया गया है.