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चीन जापान के बीच सागर गर्म

२५ नवम्बर २०१३

चीन और जापान के आपसी विवादों की गर्मी एक बार फिर बढ़ गई है. चीन के एयर डिफेंस जोन के एलान को जापान ने 'पूरी तरह खतरनाक' कहा है और दोनों देशों ने एक दूसरे के राजदूतों को तलब किया है.

तस्वीर: AP

दोनों देशों के बीच कूटनीतिक विवाद अमेरिका के ये कहने के बाद शुरू हुआ कि सेंकाकू द्वीपों पर किसी सैन्य झड़प की स्थिति में वह जापान की मदद करेगा. चीन इन द्वीपों को दियाओयूस कह कर अपना हक जताता है. सप्ताहांत में चीन ने इन द्वीपों के लिए एयर डिफेंस जोन का एलान कर दिया. इसके बाद से दक्षिण कोरिया और ताइवान ने भी अपनी चुप्पी तोड़ी है. जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने संसद में कहा, "मैं बहुत चिंतित हूं क्योंकि यह बहुत खतरनाक कदम है और इसके कई नतीजे हो सकते हैं. जापान चीन से कहेगा कि वह खुद को इससे दूर रखे इस बीच हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सहयोग जारी रखेंगे."

शनिवार को चीन ने एलान किया कि उसने एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन स्थापित कर दिया है. इसका मतलब है कि पूर्वी चीन सागर के इलाकों में उड़ने वाले सभी विमानों को उसका आदेश मानना होगा. इस इलाके में जापान के नियंत्रण वाले सेंकाकू द्वीप भी हैं. वहां पहले से ही चीन और जापान के विमान और पानी के जहाज एक दूसरे की तरफ नजरें टेढ़ी किए हुए गुजरते हैं. उनके बीच टकराव की आशंका बनी रहती है. अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने कहा है कि अमेरिका इससे बहुत चिंतित है. जॉन केरी ने कहा, "यह एकतरफा कार्रवाई पूर्वी चीन सागर की यथास्थिति को बदलने की कोशिश है."

2012 में भी बढ़ा था विवादतस्वीर: Reuters

जापान ने चीन के राजदूत को बुलाकर इस कदम को वापस लेने के लिए कहा है. हालांकि खबर आ रही है कि चीनी राजदूत चेंग योंगहुआ ने कहा है कि जापान को अपनी 'अनुचित मांग' वापस लेनी चाहिए. उधर चीन ने भी जापान के राजदूत को बुला कर कहा है कि टोक्यो को एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन के बारे में 'गैरजिम्मेदाराना बयान' नहीं देना चाहिए.

चीनी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि नियम के मुताबिक इलाके से गुजरने वाले विमानों को अपनी उड़ान की योजना, राष्ट्रीयता का साफ निशान और दोतरफा रेडियो संचार बनाए रखना होगा जिससे कि पहचान के बारे में चीनी अधिकारियों के सवालों के "जवाब समय से और सही तरीके से" दिए जा सकें. इस इलाके में सागर का वो हिस्सा भी शामिल है जिस पर दक्षिण कोरिया और ताइवान दावा करते हैं.

चीन के इस कदम से इन दोनों देशों में भी नाराजगी है. चीनी एयर डिफेंस जोन दक्षिण कोरियाई एयर डिफेंस जोन के कुछ हिस्से के पार चला जाता है और दक्षिण कोरिया के नियंत्रण वाले चट्टानी हिस्से लियोडो को भी कवर करता है. लियोडो काफी लंबे समय से चीन और दक्षिण कोरिया के बीच कूटनीतिक तनाव की वजह रहा है. दक्षिण कोरियाई रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता, किम मिन सिओक ने सोमनार को कहा, "मैं एक बार फिर कहना चाहूंगा कि लियोडो पर हमारा क्षेत्रीय नियंत्रण अपरिवर्तनीय है." उधर ताइवान की सरकार ने भी "आर्किपेलागो पर अपनी संप्रभुता की रक्षा करने" की शपथ ली है. जापान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह चीन की खींची उस सीमा रेखा को नहीं मानेगा "जिसकी जापान में अब तक मान्यता नहीं रही है."

चीन अपने आस पास के इलाके में कई जगहों पर सीमा विवादों में घिरा है. इसमें कई विवाद दक्षिण चीन सागर में हैं. हालांकि इन सब में सबसे गंभीर मतभेद जापान के साथ आर्किपेलागो पर है जो पूर्वी चीन सागर में है. इस मामले में दोनों देशों की असहमति कई दशकों से चली आ रही है लेकिन सितंबर 2012 में जापान ने जब इनमें से तीन द्वीपों का राष्ट्रीयकरण कर दिया तो मामला बढ़ गया. चीन ने इस पर बहुत तीखी प्रतिक्रिया जताई. दोनों देश इलाके में चूहे बिल्ली का खेल खेल रहे हैं और यह आशंका लगातार बनी हुई है कि कभी भी कोई घटना हो जाएगी और फिर अमेरिकी सेना का दखल इसे और विस्फोटक बना देगा. टोक्यो की हितोतुसुबाशी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर टेट्सुरो काटो का कहना है कि चीन के इस कदम की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि अब तक किसी ने यह नहीं परखा है कि वह कितना दबाव बना सकता है. उनका कहना है, "चीन कोशिश कर रहा है कि जापान क्षेत्रीय विवाद की सच्चाई को मान ले. वह कोशिश कर रहा है कि जापान राष्ट्रीयकरण से पहले की स्थिति वापस लाए." 1970 के दशक के मध्य में दोनों देशों इस मुद्दे पर कभी बात न करने के लिए रजामंद हुए थे.

एनआर/ओएसजे (एएफपी)

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