भारत और चीन के आर्थिक रिश्तों पर असर डालने वाले भारत सरकार के हाल में उठाए गए कुछ कदमों को चीन ने दोनों अर्थव्यवस्थाओं को "जबरन अलग करने" का प्रयास बताया है.
विज्ञापन
यह बात भारत में चीन के राजदूत सुन वेडोंग ने नई दिल्ली में एक निजी संस्थान द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में दिए गए अपने भाषण में कही. वेडोंग ने कहा कि "भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे में गुथी हुईं और एक दूसरे पर आश्रित हैं" और इन दोनों को "जबरन अलग करने से सबका नुकसान ही होगा." उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि भारत ने हाल ही में चीन से आने वाले गाड़ियों के पुर्जों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिए थे लेकिन अब इस वजह से भारत में जर्मन ऑटो कंपनियों के उत्पादन पर असर पड़ा है.
उन्होंने कहा कि ये पूरी तरह से दर्शाता है कि इस तरह के कदम ना सिर्फ बाजार संबंधी कानून और डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन करते हैं बल्कि ये इस तरह के कदम उठाने वालों के लिए, दूसरों के लिए और सारी दुनिया के लिए हानिकारक होते हैं. वेडोंग ने यह भी कहा कि दोनों देशों के रिश्ते एक तराशे हुए शीशे के टुकड़े की तरह हैं और मौजूदा हालात में थोड़ी सी भी लापरवाही की वजह से यह शीशा टूट सकता है.
दोनों देशों के ऐतिहासिक रिश्तों पर जोर देते हुए, चीनी राजदूत ने यह भी कहा कि चीन भारत के लिए "सामरिक खतरा" नहीं है और "हम दोनों देश एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते, इस ढांचे में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है." पिछले कुछ दिनों में भारत ने विदेशी कंपनियों के भारत में कारोबार से संबंधित ऐसे कई कदम उठाए हैं जिनका असर भारत और चीन के आर्थिक रिश्तों पर पड़ा है.
इनमें से अधिकतर कदम 15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुई मुठभेड़ के बाद उठाए गए थे, जिसमें भारतीय सेना के एक कर्नल सहित 20 सिपाही मारे गए थे. उसके एक महीने पहले से चीनी सेना के वास्तविक नियंत्रण रेखा पार कर कई जगहों पर भारत के इलाके में घुस आने की खबरें आ रही थी. गलवान प्रकरण के बाद भारत ने भी इलाके में भारी संख्या में सैनिक और सैन्य उपकरण तैनात कर दिए. आज भी दोनों सेनाएं एक दूसरे के सामने तनी हुई हैं.
दोनों सेनाओं के बीच वार्ता के कई दौर भी हो चुके हैं लेकिन अभी तक स्थिति का निराकरण नहीं हुआ है. चीन ने हाल ही में कहा था कि दोनों सेनाएं एक दूसरे से अलग हो गई हैं, लेकिन भारत का कहना है कि ऐसा अभी नहीं हुआ है और इस मामले में अभी सिर्फ थोड़ी सी तरक्की हासिल हुई है.
गलवान घाटी की घटना के बाद भारत में एक बार फिर चीन के उत्पादों के बहिष्कार की मांगें उठ रही हैं. क्या भारत चीन का आर्थिक बहिष्कार कर सकता है? इसका जवाब जानने के लिए दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों की तरफ देखना पड़ेगा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta
निवेश
मांग उठ रही है कि भारत में चीनी कंपनियों द्वारा निवेश को रोका जाए. भारत सरकार के अनुसार, 2019 में भारत में चीनी निवेश का मूल्य मात्र 19 करोड़ डॉलर था. हालांकि 100 से भी ज्यादा चीनी कंपनियां भारत में अपने दफ्तर खोल चुकी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/A.Wong
टेक्नोलॉजी क्षेत्र
एक अनुमान के मुताबिक 2019-20 में चीनी तकनीकी कंपनियों ने दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में ही निवेश किया. भारत में एक अरब डॉलर के मूल्य वाली 'यूनिकॉर्न' कही जाने वाली स्टार्टअप कंपनियों में से दो-तिहाई में भारी चीनी निवेश है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Aung Thu
व्यापार घाटा
जानकार कहते हैं कि निवेश से ज्यादा चीन भारत पर व्यापार के जरिए हावी है. चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार पार्टनर है. भारत सरकार के अनुसार 2019 में दोनों देशों के बीच 84 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. लेकिन इस व्यापार का तराजू चीन के पक्ष में भारी रूप से झुका हुआ है. 2019 में भारत ने चीन से 68 अरब डॉलर का सामान खरीदा और चीन ने भारत से सिर्फ 16.32 अरब डॉलर का सामान खरीदा.
तस्वीर: picture alliance/dpa
बिजली उपकरण
भारत चीन से सबसे ज्यादा बिजली की मशीनें और उपकरण खरीदता है. उद्योग संस्था पीएचडी चैम्बर्स के अनुसार 2016 में भारत ने चीन से 20.87 अरब डॉलर की कीमत के बिजली के उपकरण, मशीनें, पुर्जे, साउंड रिकॉर्डर, टेलीविजन इत्यादि खरीदे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Kakade
भारी मशीनें
2016 में ही भारत ने चीन से 10.73 अरब डॉलर मूल्य की भारी मशीनें, यंत्र, परमाणु रिएक्टर, बॉयलर और इनके पुर्जे खरीदे.
इसी अवधि में भारत ने चीन से 5.59 अरब डॉलर के ऑरगैनिक केमिकल खरीदे. इनमें बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक और दवाएं बनाने की केमिकल सामग्री शामिल हैं.
तस्वीर: imago/Science Photo Library
प्लास्टिक
2016 में भारत ने चीन से 1.84 अरब डॉलर का प्लास्टिक का सामान खरीदा. इसमें वो सब छोटे छोटे सामान आते हैं जो आप बड़े सुपरमार्केट से लेकर खुली सड़क पर लगने वाली हाटों से खरीद कर घर लाते हैं.
तस्वीर: AP
जहाज और नाव
भारत नाव, जहाज और अन्य तैरने वाले ढांचे भी बड़ी मात्रा में चीन से ही लेता है. 2016 में भारत ने चीन से 1.78 अरब डॉलर के नाव, जहाज इत्यादि खरीदे.
तस्वीर: Reuters
लोहा और स्टील
इस श्रेणी में भी भारत चीन से बहुत सामान खरीदता है. 2016 में 1.65 अरब डॉलर मूल्य का लोहे और स्टील का सामान खरीदा गया था.