चीन ने पानी के नीचे अपनी निगरानी का जाल बिछाया है, जिससे उसकी नौसेना को सही ढंग से जहाज का पता लगाने में मदद मिलेगी. इस तरह चीन हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में अग्रणी की भूमिका में अपनी पकड़ बानए रख पाएगा.
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जानकारों का मानना है कि विवादित दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में चीन को प्रौद्योगिकी से 'गुप्त सूचना' ग्रहण करने में मदद मिलेगी. हिंद महासागर व दक्षिण चीन सागर में इस समय भारत का 'दबदबा' है.
हांगकांग के दक्षिण सागर मार्निग पोस्ट के मुताबिक, इस तंत्र से पानी के भीतर की सूचना एकत्र की जाती है, जिसमें खासतौर से पानी का तापमान और लवणता संबंधी सूचना जिसका उपयोग करके नौसेना को जहाज के बारे में सही जानाकारी मिल सकती है. इस तरह नौवहन में सहायता मिलती है.
चीन दुनिया के सागरों में अपना दबदबा बना रहा है और दुनिया के व्यस्ततम जलमार्ग का दावा ठोकते हुए विदेशों में नौसेना का अड्डा बना रहा है.
हालांकि चीन की नौसेना अमेरिकी नौसेना के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता, लेकिन दुनिया के जलमार्गो पर इसके बढ़ते वर्चस्व से वाशिंगटन, टोकियो, कैनबरा और नई दिल्ली की चिंता बढ़ गई है.
नौसैनिक ताकत का अखाड़ा बना साउथ चाइना सी
साउथ चाइना सी में विवाद के मद्देनजर उसके आसपास के देश अपने नौसेनाओं को अत्याधुनिक बनाने पर खूब पैसा झोंक रहे हैं. इस मामले में बेशक चीन सबसे आगे है, लेकिन इलाके के अन्य देश भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.
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चीन का गौरव
चीन का पहला युद्धपोत लियाओनिंग मूल रूप से एक सोवियत मॉडल था जो 1986 में बना था. 1998 में यूक्रेन ने इस विशालकाय पोत को चीन को बेचा. पूर्वोत्तर चीन में डायलियान शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री कंपनी ने फिर से इसे तैयार किया. 2012 में यह काम पूरा हुआ और यह 2016 से किसी भी तरह के अभियान के लिए तैयार है.
तस्वीर: imago/Xinhua
वियतनाम का ब्लैकहोल
हाल के सालों में वियतनाम ने छह रूसी किलो-क्लास पनडुब्बियां खरीदी हैं. इनमें से दो 2017 में उसे सौंप दी गयीं. अमेरिकी नौसेना इन पनडुब्बियों को "ब्लैक होल" कहती है क्योंकि ये बहुत खामोशी से दौड़ सकती हैं और उनका पता लगाना भी मुश्किल होता है. छिछले पानी में अभियान के लिए इन्हें खास तौर से बनाया गया है और दुश्मन के युद्धपोत और पनडुब्बी से ये बखूबी रक्षा करती हैं.
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फिलीपींस का दम
बीआरपी ग्रोगोरियो दे पिलर फिलीपींस की नौसेना का अग्रणी पोत है. यह उन तीन पूर्व अमेरिकी तट रक्षक पोतों में से एक है जिन्हें फिलीपींस ने खरीदा है. इस पोत को सबसे पहले 1967 में समंदर में उतारा गया और 2011 में इसका आधुनिकीकरण हुआ. 2012 में यह चीन के साथ एक विवाद में शामिल भी रहा.
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यूरोप के शिपयार्ड से
इंडोनेशिया भी नये पोत खरीदने और अपनी नौसेना को आधुनिक बनाने में जुटा है. तस्वीर में केआरआई सुल्तान हसनुद्दीन नाम के युद्धपोत को देखा जा सकता है. इसे 2007 में नीदरलैंड्स में बनाया गया था. जर्मनी भी इस क्षेत्र के देशों को युद्धपोत सप्लाई करता है. मलेशिया के कस्तुरी क्लास पोत और ब्रूनेई की दारुसलमान गश्ती नौकाएं जर्मनी के शिपयार्ड से ही गयी हैं.
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हाई टेक सिंगापुर
उच्च तकनीक के मामले में सिंगापुर का इस क्षेत्र में कोई सानी नहीं है. दुनिया के सबसे छोटे देशों में शामिल सिंगापुर के पास 2007 से फॉरमिडेबल क्लास के छह युद्धपोत हैं. इन सभी का निर्माण फ्रांस में हुआ है. यह सिंगापुर की नौसेना की बड़ी ताकत हैं.
तस्वीर: Imago/China Foto Press
अमेरिका का दबदबा
असल मायनों में अमेरिकी नौसेना ही इस क्षेत्र में ग्लोबल पावर है. उसका सातवां बेड़ा प्रशांत महासागर में तैनात है. इसमें 50 से 60 पोत, 350 विमान और 60 हजार सैनिक शामिल है. अमेरिका से बाहर सिर्फ इस क्षेत्र में उसने विमान वाहक पोत तैनात किया है. उनका यूएसएस रोनाल्ड रीगन पोत जापान के याकोसुका में मौजूद है.
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यह परियोजना चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के तहत साउथ चाइना सी इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोलोजी की अगुवाई में चल रही है, जो दुनिया के महासागरों में अमेरिका को चुनौती देने की दिशा में बीजिंग के इरादे से प्रेरित अभूतर्व सैन्य प्रसार का हिस्सा है.
चीन के अंडरवाटर सर्विलेंस नेटवर्क का प्रबंधन करने वाले विशेषज्ञों के पैनल के सदस्य यू योगकियांग ने कहा कि बीजिंग को दक्षिण चीन सागर में जहां भारत से से चुनौती मिल रही है, तटीय क्षेत्र में विरोधी देशों से बात करनी होगी.
उन्होंने कहा, "हमारे तंत्र से इस क्षेत्र में चीन को अपने पक्ष में संतुलन बनाने में मदद मिलेगी."
बीजिंग ऊर्जा के मामले में समृद्ध दक्षिण चीन सागर के 90 फीसदी हिस्से पर अपना दावा करता है, जिससे होकर 5,000 अरब डॉलर का सालाना व्यापार होता है. इसके दावे का विरोध ब्रुनेई, मलेशिया, ताइवान, फिलीपींस और वियतनाम की ओर से किया जा रहा है.
चीन दूसरे बड़े जलमार्ग हिंद महासागर में भारत को चुनौती दे रहा है. पिछले साल बीजिंग ने हॉर्न ऑफ अफ्रीका के डजीबाउती में अपने विदेशी नौसेना अड्डे की स्थापना की थी.