अमेरिकी नीतियों के जवाब में चीन ने भी 3 अरब डॉलर के अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त टैक्स लगाना शुरू किया. चीन के अधिकारी के मुताबिक, "हम कारोबारी युद्ध नहीं चाहते हैं, लेकिन हम इससे बिल्कुल नहीं डरते हैं."
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चीन ने एलान किया है कि वह अमेरिकी से आने वाले मांस, फलों, मेवे और अन्य प्रोडक्ट्स पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाएगा. इस तरह करीब 3 अरब डॉलर के अमेरिकी प्रोडक्ट्स चीन में मंहगे हो जाएंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने व्यापार असंतुलन के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए चीन के कुछ प्रोडक्ट्स पर शुल्क बढ़ाया था. ट्रंप ने नई नीतियों के तहत 23 मार्च से विदेशी स्टील पर 25 फीसदी और एल्युमिनियम पर 10 फीसदी टैक्स बढ़ाया था. यूरोपीय संघ समेत कई देशों को नए टैक्स से छूट दी गई, लेकिन चीन के प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति ने कोई नरमी नहीं दिखाई.
चीन ने चेतावनी देते हुए कहा था कि वह अमेरिका के खिलाफ भी ऐसे ही कदम उठाएगा. अब चीन ने कार्रवाई शुरू कर दी. चीन की कस्टम टैरिफ कमीशन 128 अमेरिकी उत्पादों को निशाना बनाने जा रहा है. चीन सूअर के मांस समेत आठ अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर 25 फीसदी अतिरिक्त टैक्स लगाएगा. फलों और मेवों समेत बाकी 120 प्रोडक्ट्स पर 15 फीसदी ज्यादा शुल्क लगाया जाएगा. यानि अब ये अमेरिकी प्रोडक्ट्स चीन में महंगे हो जाएंगे. बहुत मुमकिन है कि महंगे प्रोडक्ट्स चीन में न बिकें, इससे अमेरिकी कंपनियों को नुकसान होगा, जिसकी मार अमेरिकी किसानों और कर्मचारियों पर भी पड़ेगी.
टॉप 10 अर्थव्यवस्थाएं
2025 तक दुनिया का आर्थिक नक्शा बदल जाएगा. चीन, जापान और भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्थाओं के चलते वह विकास की धुरी बन जाएगा. जानिए इस वक्त कौन सा देश कहां खड़ा है और बाद में कहां होगा.
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1. अमेरिका
18,100 अरब डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वाला अमेरिका आर्थिक रूप से दुनिया की महाशक्ति है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 22.4 फीसदी है. अगले एक दशक तक अमेरिका के चोटी पर बने रहने का अनुमान है.
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2. चीन
11,200 अरब डॉलर जीडीपी वाला चीन दुनिया की दूसरी और एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. 1970 के दशक में औद्योगिकीकरण की शुरुआत के बाद चीन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. चीनी अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी 45 फीसदी है.
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3. जापान
एशिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था जापान का सकल घरेलू उत्पाद 4,200 अरब डॉलर है. लेकिन 2008 की वैश्विक मंदी के बाद से जापान की अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है. इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रो मैकेनिकल प्रोडक्ट्स के लिए विख्यात जापान को अमेरिका और दक्षिण कोरिया से कड़ी टक्कर मिल रही है.
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4. जर्मनी
मशीन, वाहन, घरेलू मशीनरी और केमिकल उद्योग में धाक जमाने वाला जर्मनी चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था है. जर्मनी की जीडीपी 3,400 अरब डॉलर है. जर्मनी के पास कुशल कामगार हैं लेकिन देश युवाओं की कमी से जूझ रहा है. 2022 तक जर्मनी के फिसलकर छठे नंबर पर आने का अनुमान है.
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5. फ्रांस
फ्रांस दुनिया की पांचवीं और यूरोप की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है. फ्रांस की जीडीपी 2,900 अरब डॉलर है. अनुमान है कि 2022 तक फ्रांस नौवें नबंर पर आ जाएगा. टैक्स नीति और यूरो संकट भी इसके लिए जिम्मेदार होंगे.
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6. ग्रेट ब्रिटेन
2,850 अरब डॉलर जीडीपी वाला ग्रेट ब्रिटेन छठी बड़ी अर्थव्यवस्था है. सर्विस और बैंकिंग सेक्टर ब्रिटिश अर्थव्यवस्था का मजबूत हिस्सा है. लेकिन अगले 10 साल में दूसरे देश ब्रिटेन से आगे निकल जाएंगे. देश आठवें नंबर पर होगा.
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7. भारत
2,300 अरब डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद वाला भारत दुनिया की सातवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है. 7.5 फीसदी विकास दर के साथ भारत इस वक्त दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है. 2022 तक भारत ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी को पीछे छोड़कर चौथे नंबर पर आ सकता है.
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8. ब्राजील
कुछ साल पहले तक ब्रिटेन से आगे रहने वाला ब्राजील आंतरिक परेशानियों और धीमी विकास दर से जूझ रहा है. ब्राजील की जीडीपी 1,900 अरब डॉलर है. फिलहाल ब्राजील का आर्थिक विकास ठंडा पड़ा है.
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9. इटली
1,800 अरब डॉलर की जीडीपी वाले इटली के लिए बीते 10 साल बेहद दुश्वार रहे हैं. वित्तीय संकट के चलते इटली काफी नीचे आया है.
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10. कनाडा
कनाडा की अर्थव्यवस्था 1,600 अरब डॉलर की है. पेट्रोलियम और खनिजों के लिए मशहूर कनाडा निवेशकों को नहीं लुभा पा रहा है.
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शुल्क बढ़ाने का एलान करते समय चीन ने बयान भी जारी किया. बयान में चीन ने अमेरिका पर विश्व व्यापार संगठन के सिद्धांतों को "गंभीर उल्लंघन" करते हुए चीनी हितों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया. अमेरिका चीन से आने वाले 50 अरब डॉलर के माल पर भी ज्यादा टैक्स लगाने की धमकी दे चुका है. ट्रंप ने चीन पर बौद्धिक संपदा चुराने का आरोप लगाते हुए ड्यूटी बढ़ाने की चेतावनी दी है.
दुनिया भर में सूअर के मांस की सबसे ज्यादा खपत चीन में है. माना जा रहा है कि चीन में लगाए गए शुल्क का असर अमेरिकी पोर्क उद्योग पर पड़ेगा. चीन में मांग गिरने से अमेरिकी निर्यातक पहले दी दबाव में हैं. अमेरिका ने 2017 में चीन को 1.1 अरब डॉलर के पोर्क प्रोडक्ट्स बेचे थे.
2016 में अमेरिका और चीन के बीच सालाना कारोबार 578.2 अरब डॉलर का था. इस दौरान अमेरिका ने 115.6 अरब डॉलर का निर्यात किया था और चीन से 462.6 अरब डॉलर का सामान खरीदा था. अमेरिका ने 347.0 अरब डॉलर का व्यापार घाटा उठाया. अमेरिका दुनिया में चीन के सामान का सबसे बड़ा बाजार है.
अर्थशास्त्र को ऐसे समझिये
अर्थव्यवस्था से जुड़ी खबरों में कुछ ऐसे शब्द होते हैं जिन्हें समझे बिना कुछ पता नहीं चलता. चलिये समझते हैं इन शब्दों को.
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सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)
एक वित्तीय वर्ष के दौरान किसी देश में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है.
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राजस्व घाटा
जब सरकार का खर्च, उसके राजस्व से ज्यादा हो तो ऐसी स्थिति को राजस्व घाटा कहते हैं. अच्छा अर्थशास्त्री इस घाटे को कम से कम करने की कोशिश करता है.
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राजकोषीय घाटा
जब सरकार का कुल खर्च, आय और गैर ऋण पूंजियों से हुई आदमनी से ज्यादा हो जाए तो उसे राजकोषीय घाटा कहा जाता है. इसमें सरकार द्वारा लिये गये कर्जे भी शामिल होते हैं.
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सब्सिडी या रियायत
अक्सर सरकारें जरूरी महंगी चीजों को लोगों के लिए सस्ता रखती हैं. महंगी खरीद के बावजूद सरकारें अपनी जेब से कुछ पैसा देकर सेवाओं के मूल्य में कमी बनाए रखती हैं. इस रियायत को ही सब्सिडी कहा जाता है.
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व्यापार घाटा
जब आयात, निर्यात से ज्यादा होता है तो विदेशी मुद्रा देश से बाहर जाती है. अंतरराष्ट्रीय कारोबार में आमदमी से ज्यादा खर्चे को व्यापार घाटा या ट्रेड डेफिसिट कहा जाता है. यह रकम करंट अकाउंट डेफिसिट में जाती है.
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डायरेक्ट टैक्स
आय के स्रोत पर वसूले जाने वाले प्रत्यक्ष कर को डायरेक्ट टैक्स कहा जाता है. कॉरपोरेट, इनकम और कैपिटल गेन टैक्स इसी के तहत आते हैं.
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इनडायरेक्ट टैक्स
दूसरे शब्दों में, अप्रत्यक्ष कर. यह एक छुपा हुआ टैक्स है जो सेवाओं और सामान पर लगाया जाता है, जैसे सर्विस चार्ज, एक्साइज, वैट, सेल्स टैक्स आदि. विदेश से लाने वाले सामान पर यह कस्टम शुल्क के तौर पर लगाया जाता है.
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मुद्रास्फीति
नई मुद्रा जारी करने से बाजार में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती हैं. ऐसे में सेवाओं और उत्पादों का मूल्य बढ़ जाता है. इसे मुद्रास्फीति कहते हैं. एक अच्छी अर्थव्यस्था में 5-8 फीसदी की मुद्रास्फीति अच्छी मानी जाती है.
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महंगाई
मुद्रास्फीति और महंगाई में फर्क है. कई बार नई मुद्रा जारी किये बिना भी बाजार में वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य बढ़ जाता है. इसे महंगाई कहा जाता है. महंगाई को आम तौर पर मांग और आपूर्ति व भंडारण प्रभावित करते हैं.