हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन हो या फिर पश्चिमोत्तर चीन में उइगुर मुसलमानों के साथ हो रहा बर्ताव, चीन में मानवाधिकारों के हनन पर जर्मनी की चुप्पी सवालों में हैं. आखिर इसकी क्या वजह है?
विज्ञापन
हांगकांग में इसी साल जून में सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए. प्रदर्शन करने वाले तभी से अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने में जुटे हैं. इसके अलावा पश्चिमोत्तर चीन में उइगुर मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को तथाकथित रिएजुकेशन कैंप में रखे जाने को लेकर भी चीन में मानवाधिकारों के हनन के मामले में अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई की मांगें तेज हो रही हैं.
अब, कई मानवाधिकार कार्यकर्ता और राजनेता जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से अपील कर रहे हैं कि वे मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के खिलाफ "सख्त रुख" अपनाएं.
पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने मानवाधिकारों से जुड़े एक कानून पर हस्ताक्षर किए, जिसमें हांगकांग के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन की हिमायत की गई है. इसके बाद अमेरिकी कांग्रेस में उइगुर ह्यूमन राइट्स पॉलिसी एक्ट पारित किया गया, जिसमें चीन सरकार के अधिकारियों पर "लक्षित प्रतिबंध" लगाने की अपील की गई है.
दूसरी तरफ, हांगकांग में छह महीने से चल रहे आंदोलन और शिनचियांग में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के दमन की खबरों के बीच, चांसलर मैर्केल ने बड़ी सावधानी के साथ ना तो लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का स्पष्ट रूप से समर्थन किया है और ना ही शिनचियांग के कैंपों में लाखों लोगों को रखने की निंदा की है.
जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेसटाग की मानवाधिकार समिति की प्रमुख गीडे येंसेन का कहना है, "अब समय आ गया है कि अंगेला मैर्केल आने वाली यूरोपीय परिषद की बैठक के एजेंडे में इसे (शिनचियांग को) रखें. साथ ही प्रतिबंध लगाने के विषय पर कोई साझा यूरोपीय रुख की बात होनी चाहिए. "
हांगकांग में चल रहे विरोध प्रदर्शन दुनियाभर की मीडिया में छाए हुए हैं. हांगकांग में प्रदर्शनकारी चीन से अधिक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं. हांगकांग में हो रहे प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि क्या है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Fischer
अंग्रेजों का हांगकांग में आना
हांगकांग पहले एक किसानों और मछुआरों का द्वीप हुआ करता था. यहां पर चीन के क्विंग साम्राज्य का राज चलता था. 1841 में पहली बार ब्रिटिश सेनाओं और क्विंग साम्राज्य के बीच ओपिअम का प्रथम युद्ध हुआ. इसमें ब्रिटिश सेनाओं की जीत हुई और पहली बार हांगकांग के कुछ हिस्से पर ब्रिटेन का शासन शुरू हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Kin Cheung
हांगकांग पर ब्रिटिश शासन
इसके बाद क्विंग साम्राज्य कमजोर होता गया. ब्रिटिश और मजबूत होते गए. क्विंग और ब्रिटिशों के बाद युद्ध और संधियां चलती रहीं. ब्रिटेन ने हांगकांग के अलग-अलग हिस्से जीत लिए. 1898 में हुई एक संधि के बाद वर्तमान हांगकांग को ब्रिटेन को 99 साल के लिए लीज पर दे दिया गया. हांगकांग पूरी तरह ब्रिटेन के अधिकार में आ गया.
तस्वीर: Getty Images/D. Berehulak
हांगकांग की विकास यात्रा
ब्रिटेन का राज शुरू होने के बाद हांगकांग में विकास के काम भी होने लगे. 1911 में हांगकांग यूनिवर्सिटी, 1924 में एयरपोर्ट बनने के बाद हांगकांग ने तेजी से विकास किया. हांगकांग जल्दी ही दुनिया की तेजी से विकसित हो रही जगहों में शामिल हो गया. 1949 में चीन में नई व्यवस्था लागू हो गई लेकिन हांगकांग पर ब्रिटिश शासन चलता रहा. हांगकांग में ब्रिटेन एक गवर्नर नियुक्त कर शासन चलाता था.
तस्वीर: Reuters/C. McGrath
चीन के हवाले हांगकांग
ब्रिटेन ने हांगकांग को 99 साल की लीज पर लिया था. ये लीज 1997 में खत्म होने वाली थी. ऐसे में 1979 में पहली बार हांगकांग के गवर्नर मूरे मैकलेहोसे ने 1997 के बाद इसके भविष्य के बारे में सवाल उठाया. 1984 में ब्रिटेन और चीन के बीच समझौता हुआ कि 1 जुलाई 1997 को ब्रिटेन हांगकांग को चीन के अधिकार में सौंप देगा. लेकिन हांगकांग को कुछ विशेषाधिकार दिए जाएंगे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Infantes
एक देश, दो व्यवस्था
तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति डेंग जियाओपिंग ने हांगकांग को स्वायत्तता देने के लिए एक देश, दो व्यवस्था की मांग स्वीकार की. ये व्यवस्था जुलाई, 2047 तक के लिए मान्य है. हांगकांग बेसिक लॉ नाम से अलग कानून बनाया गया. इसके मुताबिक हांगकांग में स्वतंत्र मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा. यहां अलग संसद होगी जिसका निष्पक्ष चुनाव होगा. चीन की साम्यवादी व्यवस्था और नीतियां यहां लागू नहीं होती.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/E. Contini
जिनपिंग का एलान
2017 में हांगकांग की यात्रा पर गए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एलान किया कि 50 साल पूरे होने यानी जुलाई 2047 के बाद भी एक देश, दो व्यवस्था का कानून चलता रहेगा. हांगकांग की संसद के पूर्व राष्ट्रपति जास्पर त्सांग योक सिंग का मानना है कि हांगकांग बेसिक लॉ 2047 के बाद भी नहीं बदलेगा और यह व्यवस्था ऐसे ही चलती रहेगी.
तस्वीर: Reuters/B. Yip
हांगकांग के नागरिकों को भरोसा नहीं
जिनपिंग के खुले एलान के बाद भी हांगकांग के निवासियों को इस बात पर भरोसा नहीं है. उनका मानना है कि 2047 के बाद हांगकांग में भी चीन जैसी व्यवस्था लागू हो जाएगी. ऐसे में उनकी स्वतंत्रता का अधिकार भी छिन जाएगा. हांगकांग में फिलहाल कैरी लाम की सरकार है जो चीन की समर्थक मानी जाती हैं. यही वजह है कि हांगकांग के लोगों का चीन पर शक बढ़ रहा है.
तस्वीर: Reuters/W. Kurniawan
प्रत्यर्पण कानून का विरोध
लाम ने हांगकांग की संसद में एक बिल पेश किया जिसके मुताबिक हांगकांग के लोग जो चीन में अगर कोई अपराध करेंगे तो उनका चीन को प्रत्यर्पण किया जा सकेगा. तब तक ऐसा नहीं था. इस बिल का हांगकांग में काफी विरोध हुआ. लाम ने इस बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इसे पूरी तरह खत्म करने की मांग की.
तस्वीर: Reuters/A. Wang
प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई से भड़का आक्रोश
प्रत्यर्पण कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने बल प्रयोग किया. उन पर आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियों का प्रयोग किया गया. कुछ लोग इसमें घायल हो गए. इससे प्रदर्शनकारी और भड़क गए. प्रदर्शनकारियों ने लाम के इस्तीफे और बल प्रयोग की जांच को लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिया. पुलिस पर आरोप है कि लोगों को घायल करने के लिए बल प्रयोग किया गया.
तस्वीर: Imago Images/C. Spicker
चुनाव से लेकर अलगाववाद तक
हांगकांग में कई प्रदर्शनकारी चीन से आजादी की मांग कर रहे हैं. हालांकि वहां की सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसे प्रदर्शनकारियों से दूरी बना रही हैं. बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी हांगकांग में निष्पक्ष चुनावों की मांग कर रहे हैं. अब तक हांगकांग के नेता को एक चीन समर्थक समिति और चीन की सरकार द्वारा चुना जाता है. लाम भी इस तरीके से हांगकांग की नेता चुनी गई हैं.
तस्वीर: Imago Images/C. Spicker
वर्तमान चुनाव का तरीका चीन के पक्ष में
हांगकांग की संसद में 70 सीटें हैं. इनमें से आधी सीटों पर चुनाव से प्रतिनिधि चुने जाते हैं. बची हुई आधी सीटों को फंक्शनल संसदीय क्षेत्र मानकर उन पर प्रतिनिधि मनोनीत किए जाते हैं. फिलहाल 43 सांसद चीन समर्थक हैं. ऐसे में इनका ही बहुमत है. हांगकांग बेसिक लॉ के मुताबिक संसद और उसका नेता स्वतंत्र रूप से चुना जाना चाहिए लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है.
तस्वीर: picture-alliance/AP/Vincent Thian
चीन से क्या क्या अलग है हांगकांग में
चीन के पास हांगकांग के रक्षा और विदेश मामलों के ऊपर कानून बनाने का अधिकार है. इनके अलावा सभी मुद्दों पर हांगकांग के पास अपने कानून बनाने का अधिकार है. इसलिए हांगकांग को स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव जोन कहा जाता है. हांगकांग की मुद्रा भी चीन से अलग है. चीन की मुद्रा युआन और हांगकांग की मुद्रा हांगकांग डॉलर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/V. Yu
चीन की सेना हांगकांग में नहीं आ सकती
चीन हांगकांग के रक्षा संबंधी मामलों पर कानून बनाने का अधिकार रखता है. हांगकांग बेसिक लॉ के अनुच्छेद 14 के मुताबिक चीन की सेना हांगकांग पर बाहरी हमले की स्थिति में रक्षा करेगी. चीन की सेना हांगकांग के आंतरिक मामलों में दखल नहीं दे सकती है. हाल में चल रहे प्रदर्शनों में चीन की सेना चीन सरकार के आदेश पर कानूनी रूप से दखल नहीं दे सकती है. हालांकि अगर हांगकांग सरकार मदद मांगे तो ऐसा हो सकता है.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
30 जून 2047 के बाद क्या होगा
हांगकांग का समाधान एक राजनीतिक समाधान हो सकता है. लेकिन यह समाधान चीन और हांगकांग दोनों को मान्य हो तभी संभव है. अगर दोनों तरफ के लोग किसी राजनीतिक समाधान पर राजी होते हैं तो 2047 के बाद भी वर्तमान व्यवस्था लागू रह सकती है. लेकिन हांगकांग में मौजूद चीन समर्थित सरकार कोई चीन समर्थक फैसला लेती है तो भविष्य अलग भी हो सकता है.
तस्वीर: Reuters/T. Siu
14 तस्वीरें1 | 14
पिछले महीने एसोसिएशन ऑफ जर्मन चैंबर्स ऑफ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स की बैठक में अपने भाषण में मैर्केल ने कहा कि जर्मनी और यूरोप को वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, "एक तरफ अमेरिका है जहां पूरी तरह से आजादी है और दूसरी तरफ चीन की व्यवस्था है, जो बिल्कुल ही अलग तरीके से सामाजिक रूप से व्यवस्थित है, जो पूरी तरह सरकारी है और कभी कभी दमनकारी भी हो जाती है."
पिछले महीने ही मैर्केल ने जर्मन संसद में कहा कि जब उइगुर कैंपों की रिपोर्टें आती हैं तो "निश्चित तौर पर जर्मनी को आलोचना करनी होगी". उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ के रुख का समर्थन करती हैं. वह इस बात के भी हक में हैं कि संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार अधिकारियों को शिनचियांग में जाने की इजाजत दी जानी चाहिए.
हांगकांग के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि सिटी डिस्ट्रिक्ट के चुनाव शांतिपूर्वक होना "अच्छा संकेत " है और जनमत की स्वतंत्र अभिव्यक्ति "एक देश, दो व्यवस्थाओं " का एक अच्छा उदाहरण है.
हांगकांग के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन की मांग है कि जनता को चुनाव के जरिए हांगकांग के चीफ एग्जीक्यूटिव को चुनने का अधिकार होना चाहिए जबकि चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी अपनी पसंद के व्यक्ति को चीफ एग्जीक्यूटिव नियुक्त कर वहां अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहती है.
सितंबर में चांसलर मैर्केल के चीन दौरे के बाद हांगकांग के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के नेता जोशुआ वांग ने कहा कि वह इस बात से निराश हैं कि जर्मन चांसलर ने "स्पष्ट तौर पर हांगकांग में स्वतंत्र चुनाव कराने की अपील तक नहीं की. "
जर्मनी की एरलांगेन-नूरेमबर्ग यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नीति की प्रोफेसर कातरिन किनसेलबाख का कहना है कि जर्मन सरकार को हांगकांग के मुद्दे पर "स्पष्ट रुख" अपनाना चाहिए.
उनका कहना है, "डिस्ट्रिक्ट चुनाव के नतीजे बताते हैं कि हांगकांग के लोग नहीं चाहते कि उन पर प्रत्यक्ष रूप से बीजिंग का शासन हो. जर्मन सरकार को अपने सार्वजनिक बयानों में इस संदेश को समर्थन देना चाहिए."
वैसे जर्मनी उन 22 देशों में शामिल है जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में एक आधिकारिक बयान पर हस्ताक्षर कर शिनचियांग के उइगुर कैंपों की निंदा की है. अभी तक जर्मनी और यूरोपीय संघ ने ऐसा कोई साझा रुख तय नहीं किया है कि कदम क्या उठाए जाने चाहिए. मैर्केल की इस बात की आलोचना हो रही है कि उन्होंने बहुत ही नरम लहजे में इन कैंपों की आलोचना की है.
मानवाधिकार नीति और मानवीय सहायता पर जर्मनी की आयुक्त बारबैल कोफलर ने कहा, "चीन के शिनचियांग में दस लाख से ज्यादा लोगों को कैंपों में रखने की खबरें भयानक हैं. चीन को शिनचियांग में मानवाधिकारों की स्थिति सुधारने के लिए स्पष्ट तौर पर कदम उठाने ही होंगे."
चीन में इस्लामी चरमपंथ और अलगाववाद से निपटने के लिए मुसलमानों को इस्लाम के रास्ते से हटाकर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढ़ाया जा रहा है. जानिए क्या होता है ऐसे शिविरों में.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
बुरी यादें
चीन में मुसलमानों का ब्रेशवॉश करने के शिविरों में ओमिर बेकाली ने जो झेला, उसकी बुरी यादें अब तक उनके दिमाग से नहीं निकलतीं. इस्लामी चरमपंथ से निपटने के नाम पर चल रहे इन शिविरों में रखे लोगों की सोच को पूरी तरह बदलने की कोशिश हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
यातनाएं
सालों पहले चीन से जाकर कजाखस्तान में बसे बेकाली अपने परिवार से मिलने 2017 में चीन के शिनचियांग गए थे कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर ऐसे शिविर में डाल दिया. बेकाली बताते हैं कि कैसे कलाइयों के जरिए उन्हें लटकाया गया और यातनाएं दी गईं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
आत्महत्या का इरादा
बेकाली बताते हैं कि पकड़े जाने के एक हफ्ते बाद उन्हें एक कालकोठरी में भेज दिया गया और 24 घंटे तक खाना नहीं दिया गया. शिविर में पहुंचने के 20 दिन के भीतर जो कुछ सहा, उसके बाद वह आत्महत्या करना चाहते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
क्या होता है
बेकाली बताते हैं कि इन शिविरों में रखे गए लोगों को अपनी खुद की आलोचना करनी होती है, अपने धार्मिक विचारों को त्यागना होता है, अपने समुदाय को छोड़ना होता है. चीनी मुसलमानों के अलावा इन शिविरों में कुछ विदेशी भी रखे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
इस्लाम के 'खतरे'
बेकाली बताते हैं कि शिविरों में इंस्ट्रक्टर लोगों को इस्लाम के 'खतरों' के बारे में बताते थे. कैदियों के लिए क्विज रखी गई थीं, जिनका सभी जवाब न देने वाले व्यक्ति को घंटों तक दीवार पर खड़ा रहना पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ
यहां लोग सवेरे सवेरे उठते हैं, चीनी राष्ट्रगान गाते थे और साढ़े सात बजे चीनी ध्वज फहराते थे. वे ऐसे गीते गाते थे जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ की गई हो. इसके अलावा उन्हें चीनी भाषा और इतिहास भी पढ़ाया जाता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/How Hwee Young
धन्यवाद शी जिनपिंग
जब इन लोगों को सब्जियों का सूप और डबल रोटी खाने को दी जाती थी तो उससे पहले उन्हें "धन्यवाद पार्टी! धन्यवाद मातृभूमि! धन्यवाद राष्ट्रपति शी!" कहना पड़ता था. कुल मिलाकर उन्हें चीनी राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई जाती है.
तस्वीर: Getty Images/K. Frayer
नई पहचान
चीन के पश्चिमी शिनचियांग इलाके में चल रहे इन शिविरों का मकसद वहां रखे गए लोगों की राजनीतिक सोच को तब्दील करना, उनके धार्मिक विचारों को मिटाना और उनकी पहचान को नए सिरे से आकार देना है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Wong
लाखों कैदी
रिपोर्टों के मुताबिक इन शिविरों में हजारों लोगों को रखा गया है. कहीं कहीं उनकी संख्या दस लाख तक बताई जाती है. एक अमेरिकी आयोग ने इन शिविरों को दुनिया में "अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा कैदखाना" बताया है.
तस्वीर: J. Duez
गोपनीय कार्यक्रम
यह कार्यक्रम बेहद गोपनीय तरीके से चल रहा है लेकिन कुछ चीनी अधिकारी कहते हैं कि अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए "वैचारिक परिवर्तन बहुत जरूरी" है. चीन में हाल के सालों में उइगुर चरमपंथियों के हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. W. Young
खोने को कुछ नहीं
बेकाली तो अब वापस कजाखस्तान पहुंच गए हैं लेकिन वह कहते हैं कि चीन में अधिकारियों ने उनके माता पिता और बहन को पकड़ रखा है. उन्होंने अपनी कहानी दुनिया को बताई, क्योंकि "अब मेरे पास खोने को कुछ" नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
11 तस्वीरें1 | 11
सितंबर में मैर्केल के चीन दौरे के बाद, जर्मनी की दिग्गज कंपनी सीमेंस के प्रमुख यो कायजर ने जर्मनी को चेतावनी दी कि चीन की बहुत ज्यादा आलोचना ना की जाए और उन्होंने चीन के प्रति "समझदारी और सम्मान से भरा" नजरिया रखने को भी कहा. जर्मन अखबार 'डी वेल्ट' के साथ इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "अगर जर्मनी में नौकरियां इस बात पर निर्भर करती हैं कि हम विवादित मुद्दों से कैसे निपटते हैं, तो फिर हमें गुस्से को बढ़ाने वाले कदम नहीं उठाने चाहिए, बल्कि सभी बातों और कदमों पर सावधानी से विचार करना चाहिए."
सीमेंस के अलावा बीएएसएफ और फोल्क्सवागेन की शिनचियांग में फैक्ट्रियां हैं.
अमेरिकी कदमों के बाद जोशुआ वांग को उम्मीद थी कि जर्मन सरकार भी ऐसे ही कदम उठाएगी और चीन के खिलाफ प्रतिबंधों का कोई तंत्र विकसित करेगी. हालांकि चीन के साथ अमेरिका का पहले से ही कारोबारी युद्ध चल रहा है और उसका प्रभाव भी कहीं ज्यादा है. वहीं जर्मनी चीन के साथ संबंधों में बेहद सावधानी से काम ले रहा है. चीन जर्मनी के सबसे अहम व्यापारिक साझीदारों में से एक है. दोनों देशों के बीच 2018 में 199.3 अरब यूरो कारोबार हुआ.
किनसेलबाख का कहना है, "हांगकांग में गंभीर स्थिति को देखते हुए, यह सही होगा कि निर्यात के मौजूदा नियमों की समीक्षा की जाए." उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों के हनन को देखते हुए जो कदम उठाए जा सकते हैं उनमें हथियार की बिक्री पर रोक और कुछ चुनिंदा अधिकारियों की आवाजाही पर रोक और उनके खातों को सील करना शामिल हो सकता है.
उन्होंने कहा, "यूरोप को आंसू गैस और गोला बारूद हांगकांग को निर्यात नहीं करना चाहिए. जिस जिले की पुलिस बहुत ज्यादा बल प्रयोग करती है, उसे परिणामों का डर होना चाहिए."
दूसरी तरफ, यह बात भी सही है कि चीन के खिलाफ मानवाधिकारों के हनन को लेकर जो भी प्रतिबंध लगाए जाएंगे, वे यूरोपीय संघ के ढांचागत दायरे में तय होंगे. यह खासा जटिल काम है क्योंकि चीन के मुद्दे पर यूरोपीय संघ के देशों की राय अलग अलग है.
किनसेलबाख कहती हैं, "इस दिशा में कदम उठाने के लिए यूरोपीय संघ में जर्मनी अहम भूमिका निभा सकता है, लेकिन दुर्भाग्य से यूरोप चीन के साथ एक सुर में बात नहीं करता." चांसलर मैर्केल ने नवंबर में कहा था कि अगर यूरोपीय संघ का हर देश अपनी चीन नीति बनाए तो यह "खतरनाक" होगा. लेकिन जर्मन संसद की मानवाधिकार समिति की प्रमुख येंसेन कहती हैं, "दीर्घकालीन नजरिए से, लोकतंत्र और मानविधकारों को आर्थिक फायदे से ज्यादा प्राथमिकता देनी होगी, क्योंकि हम जानते हैं कि चीन एक तानाशाही है और आप यह कभी नहीं जान पाएंगे कि तानाशाही में आर्थिक विकास कैसे होता है."
चीन में रहने वाले उइगुर मुसलमान न तो दाढ़ी रख सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं. चीन सरकार के नए नियमों के मुताबिक उन पर कई बंदिशें लगाई गई हैं. चलिए जानते हैं कौन हैं उइगुर लोग.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
नए नियम, नयी बंदिशें
उइगुर चीन में रहने वाला एक जातीय अल्पसंख्यक समुदाय है. ये लोग सांस्कृतिक रूप से खुद को चीन के मुकाबले मध्य एशियाई देशों के ज्यादा करीब पाते हैं. मुख्यतः चीन के शिनचियांग प्रांत में रहने वाले उइगुर लोग न तो सार्वजनिक रूप से नमाज पढ़ सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
धार्मिक कट्टरपंथ
नए सरकारी नियमों के मुताबिक मस्जिद में जाने के लिए व्यक्ति को कम से 18 साल का होना चाहिए. इसके अलावा अगर कोई सार्वजनिक जगह पर धार्मिक उपदेश देता दिखा तो पुलिस उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी. इसके अलावा धार्मिक रीति रिवाज से शादी और अंतिम संस्कार को भी धार्मिक कट्टरपंथ से जोड़कर देखा जा रहा है.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
शक और संदेह
उइगुर लोग शिनचियांग में सदियों से रह रहे हैं. 20वीं सदी की शुरुआत में उन्होंने अपने इलाके को पूर्वी तुर्केस्तान नाम देते हुए आजादी की घोषणा की थी. लेकिन 1949 में माओ त्सेतुंग ने ताकत के साथ वहां चीनी शासन लागू कर दिया. उसके बाद से चीन और उइगुर लोगों के संबंध संदेह और अविश्वास का शिकार हैं.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
बदल गया समीकरण
शिनचियांग पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए चीन की सरकार ने देश के अन्य हिस्सों से हान चीनियों को वहां ले जाकर बसाया है. 1949 में शिनचियांग में हान आबादी सिर्फ छह प्रतिशत थी जो 2010 में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई. शिनचियांग के उत्तरी हिस्से में उइगुर लोग अल्पसंख्यक हो गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. W. Young
'अच्छे' मुसलमान
चीन में उइगुर अकेला मुस्लिम समुदाय नहीं है. हुई मुस्लिम समुदाय को भाषा और सांस्कृतिक लिहाज से हान चीनियों के ज्यादा नजदीक माना जाता है. उन्हें अधिकार भी ज्यादा मिले हुए हैं. अपनी मस्जिदें और मदरसे बनाने के लिए उन्हें चीन की सरकार से मदद भी मिलती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Wong
आतंकवाद और अलगाववाद
शिनचियांग की आजादी के लिए लड़ने वाले गुटों में सबसे अहम नाम ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूवमेंट का है. इसके अलावा तुर्केस्तान इस्लामिक पार्टी भी है जिस पर अल कायदा से संबंध रखने के आरोप लगते हैं. इस गुट को शिनचियांग में हुए कई धमाकों के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है.
तस्वीर: Getty Images
समृद्धि का दायरा
शिनचियांग क्षेत्रफल के हिसाब से चीन का सबसे बड़ा प्रांत हैं और यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल है. कभी सिल्क रूट का हिस्सा रहे इस इलाके में चीन बड़ा निवेश कर रहा है. लेकिन उइगुर लोग चीन की चमक दमक और समृद्धि के दायरे से बाहर दिखाई देते हैं.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
असमानता
हाल के बरसों में शिनचियांग में उइगुर और हान चीनियों के बीच असमानता बढ़ी है. वहां हो रहे तेज विकास के कारण चीन भर से शिक्षित और योग्य हान चीनी पहुंच रहे हैं. उन्हें अच्छी नौकरियां और अच्छे वेतन मिल रहे हैं. वहीं उइगुर लोगों के लिए उतने मौके उलब्ध नहीं हैं.
(रिपोर्ट: रिज्की नुग्रहा/एके)