अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप चीनी आयात पर और भारी शुल्क लगाने जा रहे हैं. इस समय चीन से करीब 200 अरब डॉलर का आयात हो रहा है.
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राष्ट्रपति ट्रंप के एक ट्वीट ने वैश्विक बाजारों को हिला दिया है. जल्द ही चीनी दल वॉशिंगटन में अमेरिका के साथ व्यापारिक मुद्दों पर दूसरे दौर की बातचीत करने वाला है. उसके पहले ही ट्रंप ने कह दिया कि वे चीनी वस्तुओं पर शुल्क और बढ़ा सकते हैं. चीन और अमेरिका की कारोबारी जंग पहले ही निवेशकों को हिला चुकी है और इसकी काली छाया दुनिया की अर्थव्यवस्था पर नजर आ रही है. ट्रंप की इस धमकी पर चीन सरकार से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
इस समय अमेरिका को चीन से करीब 200 अरब डॉलर की चीजों का आयात होता है. इस पर 10 फीसदी शुल्क लगता है, जिसे बढ़ाकर 25 फीसदी करने की बात ट्रंप ने कही है. वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कुछ अज्ञात स्रोतों के हवाले से लिखा है कि चीन अपनी आगामी बातचीत रद्द करने की सोच रहा है. इसके पहले भी अमेरिकी धमकियों के जवाब में चीन ने यही रुख बनाए रखा है कि वे दबाव में कोई वार्ता नहीं करने वाले.
चीन के साथ अमेरिका को एक नए व्यापार समझौते पर सहमति बनानी है. समझौते की अंतिम समय सीमा को ट्रंप ने पहले जनवरी और फिर मार्च में और आगे खिसका दिया. सहमति पर पहुंचने के लिए उन्हें और समय चाहिए था. हालांकि खुद को "टैरिफ मैन" कहने वाले ट्रंप ने अब अपना संयम खत्म होने की बात कही है. ट्रंप ने ट्वीट में लिखा है, "चीन के साथ ट्रेड डील आगे बढ़ तो रही है, लेकिन बहुत धीमे. अब वे फिर से बातचीत करने की कोशिश कर रहे हैं."
आगे की ट्वीट में ट्रंप ने चीन की ओर से अमेरिका को होने वाले 325 अरब डॉलर के दूसरे आयातों पर भी शुल्क लागने की धमकी दी. इस पर भी शुल्क लग गया तो चीन से अमेरिका को भेजे जाने वाला सारा सामान टैरिफ के दायरे में आ जाएगा.
सोने से भरी इन देशों की तिजोरियां
सोना दुनिया भर में पसंद किया जाता है. फोर्ब्स पत्रिका ने वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के हवाले से बताया है कि दुनिया के इन 10 देशों के पास सोने के सबसे बड़े रिजर्व हैं.
अमेरिका आरोप लगाता रहा है कि चीन साइबर चोरी और विदेशी कंपनियां खरीद कर उनकी तकनीकी खूबियां अपने नाम करने की रणनीति अपनाता है. चीन रोबोटिक्स और इलेक्ट्रिक वाहनों की दुनिया में वैश्विक सुपरपावर बनने की कोशिश कर रहा है, जो कि अमेरिका को पसंद नहीं. एक हफ्ते पहले ही अमेरिकी वित्त मंत्री स्टीवन म्नुचिन ने कहा कि अमेरिका तब तक आगे नहीं बढ़ेगा जब तक उसे अपनी पसंद की डील नहीं मिलती.
विशेषज्ञों का मानना है कि एक अच्छी डील तभी हो सकती है जब चीन कई सारे नए बदलावों के लिए तैयार हो. इन बदलावों में चीन की घरेलू कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी कम करने या हटाने के अलावा उसे चीन में सक्रिय विदेशी कंपनियों पर से ट्रेड सीक्रेट शेयर करने का दबाव हटाने की जरूरत होगी. इसके अलावा इन विदेशी कंपनियों को चीनी बाजार में और फैलने की अनुमति भी देनी होगी.
ट्रंप ने अमेरिकी ट्रेड पॉलिसी को बदलने को अपनी वरीयता बताया है. जब वे राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे थे तब से चीन की कथित 'नमकहरामी' के विरुद्ध बोलते आए थे. ट्रंप ने इसके लिए पिछली अमेरिकी सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए चीन के खोखले वादों पर भरोसा करने और उन्हें एकतरफा फायदे वाली नीतियों के साथ आगे बढ़ने देने का आरोप लगाया है. ट्रंप ने सबूत के तौर पर कई बार चीन के साथ अमेरिका के बड़े व्यापार घाटे की ओर इशारा किया है. 2018 में यह 379 अरब डॉलर रहा, जो कि दुनिया के किसी भी अन्य देश के मौजूदा व्यापार घाटे से कहीं ज्यादा है.
आरपी/एनआर (एपी, रॉयटर्स)
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मंडराते सात संकट
क्या वैश्विक अर्थव्यवस्था एक बार फिर संकट में घिर सकती है, क्या फिर से दुनिया वैश्विक मंदी की चपेट में आ सकती है. मौजूदा उतार चढ़ाव ऐसा सोचने के लिए दुनिया को मजबूर कर रहे हैं. जानिए क्या हैं जोखिम.
2008 के बाद से अब तक दुनिया में ऋण का स्तर 60 फीसदी तक बढ़ गया है. विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं में "बैड लोन" एक बड़ी समस्या बन कर उभरा है. तकरीबन 1,82,000 करोड़ डॉलर सरकारी और निजी क्षेत्रों में ऋण के तौर पर फंसे हुए हैं. अब सवाल उठने लगा है कि अगर अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है तो क्या हमारे पास कर्ज की भरपाई करने के लिए पूंजी होगी.
ग्लोबल अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा उभरते बाजारों से आता है, लेकिन इनमें जोखिम का खतरा काफी है. अधिकतर ऐसे बाजारों में विदेशी मुद्रा और डॉलर का दबदबा रहता है. ऐसी स्थिति में जब अमेरिका ब्याज दर बढ़ाता है, सिस्टम से पैसा बाहर जाने लगता है और बाजार कमजोर पड़ जाते हैं. हाल में अर्जेंटीना और तुर्की में कुछ ऐसा ही देखने को मिला.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कर रियायतें और कारोबारी नियमन कर अब भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी बनाए रखने में सफल रहे हैं. इसके बावजूद बड़ी कंपनियां इस अनिश्चितता भरे माहौल में बड़ा निवेश करने से कतरा रहीं हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएम) का मानना है कि साल 2018 में आर्थिक विकास शिखर को छूने के बाद धीमा धीमा पड़ जाएगा.
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4. कारोबारी विवाद
अमेरिका और चीन एक दूसरे के उत्पादों पर शुल्क लगा रहे हैं. चीन ने अमेरिकी मांस और सब्जियों पर तो वहीं अमेरिका ने चीन से आने वाले स्टील, टैक्सटाइल्स और तकनीक पर शुल्क बढ़ा दिया है. दोनों देश का यह विवाद करीब 360 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. आईएमएफ के अनुमान मुताबिक ये कारोबारी जंग अमेरिका की जीडीपी को 0.9 फीसदी तो वहीं चीन की जीडीपी को 0.6 फीसदी तक प्रभावित करेगी.
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5. चरमराती बैंकिंग व्यवस्था
व्यवस्थित बैंकिग सेक्टर के अलावा अब कई वित्तीय संस्थाएं भी लेनदेन में सक्रिय हो गए हैं. यूरोपियन सेंट्रल बैंक के मुतबिक यूरोपीय संघ में ऐसे शेडो बैंक करीब 40 फीसदी वित्तीय लेनदेन के लिए जिम्मेदार हैं. यही नहीं, बहुत से वित्तीय संस्थाओं के पास भी जोखिमों से निपटने के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं है.
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6. ब्रेक्जिट का असर
मार्च 2019 में ब्रिटेन, यूरोपीय संघ से पूरी तरह अलग हो जाएगा. समय तेजी से निकल रहा है लेकिन अब तक यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने की योजना पूरी तरह से तैयार नहीं हो सकी है. अगर मुक्त व्यापार समझौता नहीं हो पाता है तो सिर्फ जर्मन कंपनियों को ही सालाना 3 अरब यूरो का टैरिफ चुकाना होगा.
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7. इटली की नीतियां
लोकलुभावन नीतियों का वादा करने वाले इटली के राजनीतिक दल देश में समान आय और रिटायरमेंट की उम्र कम करने के पक्ष में हैं. वहीं इटली 240 खरब डॉलर के ऋण के साथ यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा कर्जदार भी है. इसके साथ ही डूबते कर्जों के मामले में इटली का दुनिया में पहला स्थान है. (पाउल क्रिस्टियान ब्रिट्ज/एए)