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चीन बनाएगा पनामा जैसी नहर

२४ जून २०१३

चीन लातिन अमेरिकी देश निकारागुआ में एक नहर बनाने में निवेश कर रहा है जो अमेरिका की बनाई गई पनामा कनाल को टक्कर देगा. हमने लातिन अमेरिका के विशेषज्ञ से इस बारे में जानने की कोशिश की.

तस्वीर: Elmer Martinez /AFP/Getty Images

डॉयचे वेले: निकारागुआ इस नहर को बनाने की कोशिश क्यों कर रहा है?

कार्ल डीटर होफमन: इसके पीछे ज्यादातर आर्थिक कारण हैं. निकारागुआ लातिन अमेरिका के सबसे गरीब देशों में से एक है. शुरुआत में प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं मिली थी क्योंकि इसमें बहुत खर्च आएगा. लेकिन अब लगता है कि निकारागुआ के राष्ट्रपति ऑर्टेगा को वांग जिंग के रूप में एक रईस निवेशक मिल गया है जिसे चीन सरकार का समर्थन हासिल है. इसी कारण वह निकारागुआ के संसद से भी प्रोजेक्ट को पारित करा करा पाए.

सरकार को उम्मीद है कि इस नहर से जो आमदनी होगी उस से सरकार की पूंजी भी बढ़ेगी. सरकार का कहना है कि तब वह देश में जीवन स्तर को बेहतर बनाने और सुधार करने की बेहतर स्थिति में होगी. और मुझे लगता है कि यह अनुचित नहीं है. पिछले एक दशक में जब से अमेरिका ने पनामा का नियंत्रण सौंपा है, तब से पनामा लातिन अमेरिका में सबसे ज्यादा आर्थिक विकास देख रहा है. देश की जीडीपी पिछले साल की तुलना में 10 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ गई और हजारों लोगों को नौकरियां मिली हैं.

चीन को इस प्रोजेक्ट से क्या फायदा मिलेगा?

इस वक्त चीन पनामा का इस्तेमाल करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है और यह उपयोग बढ़ रहा है क्योंकि एशिया और पश्चिमी देशों के बीच कारोबार में बढ़ोतरी हो रही है. मुझे लगता है कि निकारागुआ में बीजिंग की रुचि केवल आर्थिक की नहीं, बल्कि राजनैतिक भी है. चीन फिलहाल अन्य किसी भी देश की तुलना में लातिन अमेरिका में अधिक निवेश कर रहा है. अब तो उसने अमेरिका और यूरोप को भी पीछे छोड़ दिया है.

तस्वीर: DW

तो ऐसा लगता है कि चीन मध्य अमेरिका से आर्थिक संपर्क बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, वहां अब भी ऐसे देश हैं जो बीजिंग के साथ नहीं, तेइपेई के साथ कूटनीतिक संबंध रखते हैं. ताइवान की सरकार ने इस इलाके में मूलभूत संरचना बनाने और सुधारों के काम में बहुत बड़ा निवेश किया है. लेकिन हो सकता है कि बीजिंग का असर कुछ ऐसा हो कि यह बदल जाए. ऐसा ही निकारागुआ के पड़ोसी कोस्टारिका के साथ भी हुआ था.

वैश्विक व्यापार पर इसका क्या असर पड़ेगा?

इस प्रोजेक्ट की व्यावहारिकता इस बात पर निर्भर करेगी कि अगले कुछ सालों में समुद्री परिवहन किस तरह से विकास करता है. दुनिया भर में आर्थिक तंगी को देखते हुए यह नई नहर पनामा को कड़ी टक्कर दे सकती है. इसका असर चीन के निवेश पर भी पड़ेगा. दूसरी तरफ निकारागुआ की नहर का सीधा असर यातायात के दूसरे माध्यमों पर भी पड़ेगा, जैसे कि रेल सेवा और हो सकता है कि कई कंपनियां यहां से जाने के बारे में सोचें.

Dr. Karl-Dieter Hoffmannतस्वीर: Karl-Dieter Hoffmann

इस से किस तरह के जोखिम जुड़े हुए हैं?

इस प्रोजेक्ट के साथ तो हर तरह के जोखिम जुड़े हैं. पहली बात तो यही है कि अब तक किसी भी तरह के शोध सामने नहीं आए हैं, ना ही नहर की व्यावहारिकता पर और ना ही पर्यावरण पर होने वाले इसके असर पर. मिसाल के तौर पर इस बात के कोई आंकड़े मौजूद नहीं हैं कि निर्माण का पानी की सप्लाई पर क्या असर होगा.

लेकिन इसके राजनैतिक परिणाम भी हो सकते हैं. इस नहर को बनाने के लिए इंजीनियर निकारागुआ झील का भी इस्तेमाल करेंगे, लेकिन सान जुआन नदी के साथ छेड़ छाड़ से कोस्टारिका के साथ संबंध बिगड़ सकते हैं. निकारागुआ के सरकार जिस तरह से काम कर रही है वह एक पारदर्शी तरीका नहीं है.

पनामा कनाल अमेरिका ने पूरी की थी. चीन की बनाई कनाल दुनिया को क्या संदेश दे सकती है?

कुछ दिन पहले ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग लातिन अमेरिका का दौरा कर के गए हैं, लेकिन नहर के निर्माण पर एक शब्द भी सार्वजनिक नहीं किया गया है. अब तक अमेरिका की ओर से भी कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं की गयी है. लेकिन मुझे लगता है कि रिपब्लिकन पार्टी के लोग इस बात से काफी परेशान होंगे की चीन अमेरिका की धरती के इतने करीब एक नाला बना रहा है. शायद इस से अमेरिका की इस क्षेत्र में रुचि पर भी असर पड़े. इतिहास में पहली बार ऐसा होगा कि अमेरिका का प्रतिद्वंदी ठीक उसके दरवाजे पर ही खड़ा होगा.

इंटरव्यू: गाब्रिएल डोमिनगेज /आईबी

संपादन: आभा मोंढे

कार्ल डीटर हॉफमन इंगोलश्टाट की कैथोलिक यूनिवर्सिटी के लैटिन अमेरिकन स्टडीज इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष हैं.

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