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चीन भारत रिश्तों में बांधों की चुभन

२५ अप्रैल २०१३

चीन में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने के फैसला भारत के लिए सरदर्द बनता जा रहा है. नई दिल्ली की सरकार इस पर चीन सरकार से विरोध जता चुकी है, अब इसके खिलाफ पूर्वोत्तर भारत में एक बार फिर आंदोलन गरमा रहा है.

तस्वीर: China Photos/Getty Images

पर्यावरणविदों का कहना है कि उन बांधों का काम पूरा होने के बाद पूर्वोत्तर में पीने और सिंचाई का पानी नहीं मिलेगा. भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले दिनों डरबन में चीनी राष्ट्रपति के समक्ष यह मुद्दा उठाया था. लेकिन चीन ने इस पर कोई सकारात्मक टिप्पणी नहीं की है. वैसे, केंद्र सरकार ने उन बांधों की वजह से होने वाले नुकसान की खबरों को निराधार बताया है. लेकिन यह मामला लगातार गरमा रहा है.

ब्रह्मपुत्र का विस्तार

एशिया की सबसे बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र 2,906 किलोमीटर लंबी है. इसे तिब्बत में सांग्पो, अरुणाचल में सियांग और असम में ब्रह्मपुत्र के मान से जाना जाता है. असम से यह बांग्लादेश की सीमा में प्रवेश करती है. तिब्बत में इस नदी की लंबाई 1,625 किमी है और भारत में 918 किमी. बाकी 363 किमी हिस्सा बांग्लादेश में है. अरुणाचल और असम की आबादी में से लगभग अस्सी फीसदी लोग अपनी आजीविका के लिए इसी नदी पर निर्भर हैं. यह नदी असम के जनमानस में गहरे रची-बसी है. जाने-माने गीतकार भूपेन हजारिका ने इस लोहित नदी पर ना जाने कितने अमर गीत रचे और गाए हैं. असम और अरुणाचल की लोककथाओं में इस नदी का जिक्र होता है.

तस्वीर: China Photos/Getty Images

चीन में बनते बांध

इस बात की जानकारी तो पहले से ही थी कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर एक विशाल बांध बना कर उसके पानी को कोबी द्वीप की ओर मोड़ने का प्रयास कर रहा है. लेकिन अब इलाके में तीन नए बांध बनाने की उसकी योजना के खुलासे ने पूर्वोत्तर भारत के लोगों की चिंता बढ़ा दी है. जांग्मू में 510 मेगावाट की पनबिजली परियोजना के अलावा चीन तिब्बत के डागू, जियाचा और जेक्सू में तीन बांध बना रहा है. इस सप्ताह सीमा पर हुए अतिक्रमण के बाद अब ब्रह्मपुत्र के पानी के सवाल पर दोनों देशों में नया बवाल मच सकता है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चीनी राष्ट्रपति के समक्ष इन बांधों की निगरानी के लिए एक साझा तंत्र विकसित करने का प्रस्ताव रखा था. लेकिन चीन ने इससे इंकार करते हुए दावा किया है कि इन बांधों से पानी का बहाव प्रभावित नहीं होगा.

पर्यावरणविदों की चिंता

पर्यावरणविदों का कहना है कि अरुणाचल और असम के लोग अपनी रोजी-रोटी और परिवहन के लिए मुख्य तौर पर इसी नदी पर निर्भर हैं. जाने-माने पर्यावरणविद नरेन गोहाईं कहते हैं, "यह सही है कि ब्रह्मपुत्र हर साल बरसात के सीजन में इस इलाके में कहर ढाती है. लेकिन उसकी वजह यह है कि बाढ़-नियंत्रक उपायों को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा सका है." वह कहते हैं कि इस नदी से खेती के अलावा मछली मारने और परिवहन में भी सहायता मिलती है. एक अन्य पर्यावरणविद एन खोंगम कहते हैं, "चीन ने अगर उन तीनों बांधों का निर्माण कार्य पूरा कर लिया तो ब्रह्मपुत्र महज एक बरसाती नदी बन कर रह जाएगी." वह कहते हैं कि भारत सरकार को चीन के साथ यह मुद्दा गंभीरता से उठाना चाहिए. इलाके के आम लोग भी इससे चिंतित हैं. अरुणाचल में ब्रह्मपुत्र पर बन रही पनबिजली परियोजनाओं का पहले से ही इलाके में भारी विरोध हो रहा है. अब ताजा मामले ने आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया है. ब्रह्मपुत्र में बसे दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली में रहने वाले जितेन गोस्वामी कहते हैं, यह नदी हमारी जीवनरेखा है. हम अपनी रोजी-रोटी और परिवहन के लिए इसी पर निर्भर हैं. अगर यही सूख गई तो हमारा पूरा जीवन ही सूख जाएगा.

सरकार का रुख

केंद्र सरकार ने इस मामले को चीन के साथ सर्वोच्च स्तर पर उठाने का भरोसा दिया है. लेकिन साथ ही उसकी दलील है कि इन बांधों से नदी के बहाव पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा. केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत का कहना है कि ब्रह्मपुत्र में ज्यादातर पानी अरुणाचल और दूसरी जगहों से आता है. इसलिए उन बांधों से नदी के बहाव पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा. सरकार का कहना है कि जब तक ब्रह्मपुत्र में 79 अरब घनमीटर का मौजूदा बहाव कायम रहता है तब तक चिंता की कोई बात नहीं है. लेकिन क्या वह बहाव उन बांधों के बनने के बाद भी जस का तस रहेगा, इस लाख टके के सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है.

राज्य सरकारें चिंतित

चीन में प्रस्तावित बांधों की खबरें आने के बाद अरुणाचल प्रदेश व असम सरकारों ने केंद्र को पत्र लिख कर इस मामले पर गहरी चिंता जताई है. अरुणाचल के जल संसाधन विकास मंत्री नेवलाई तिंगखातरा कहते हैं, "हमें चीन के बांध बनाने पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन उनकी वजह से यहां सदियों से इस नदी के पानी पर निर्भर लोगों के जीवन पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ना चाहिए." असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र भेजा है. गोगई कहते हैं, "यह नदी दोनों राज्यों की जीवनरेखा है. इसके पानी के बहाव में आने वाली कमी से लाखों लोगों का जीवन प्रभावित होगा."

विशेषज्ञों का कहना है कि चीन में बनने वाले बांधों का इन दोनों राज्यों पर काफी प्रतिकूल असर पड़ेगा. नदी विशेषज्ञ वीरेन कलिता कहते हैं, "ब्रह्मपुत्र पर बनने वाले बांध उसके पानी के बहाव को सोख लेंगे. चीन का यह दावा भी निराधार है कि उन बांधों से इलाके में बाढ़ की समस्या पर अंकुश लगाया जा सकता है." दरअसल, भारत और चीन के बीच पानी के बंटवारे पर कोई समझौता नहीं होना इस समस्या को सुलझाने की राह में सबसे बड़ी अड़चन साबित हो रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को समय रहते ठोस कदम उठाना चाहिए. एक बार बांध बन जाने के बाद कुछ करना मुश्किल है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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