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चीन में अधिकारों के लिए जूझती महिलाएं

१२ फ़रवरी २०१०

चीन अब एक महाशक्ति के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन इस कम्युनिस्ट देश के भीतर क्या चल रहा है इसके बारे में कम ही जानकारी है. बढ़ती ताक़त के बीच विरोध के स्वर दबाए जा रहे हैं, जिनमें कई महिलाओं की आवाज़ें भी शामिल हैं.

तस्वीर: AP

एक तरफ चीन राजनीतिक और आर्थिक ताक़त है, तो दूसरी तरफ़ चीन की सरकार हर तरह के विपक्ष को दबाने की कोशिश कर रही है. लेकिन धीरे धीरे आवाज़ें उठ रही हैं जो चीनी समाज में हकीक़त को स्पष्ट करने की कोशिश कर रही हैं. वे दिखा रही हैं कि चीन का सामाज रूढ़िवादी और आधुनिक ख़्यालों के बीच कितना विभाजित है. इनमें कई महिलाओं की आवाज़ें भी शामिल हैं.

जागरुकता की ज़रूरत

फ़्रांसीसी नारीवादी और दार्शनिक सिमोन द बोवोआर के सम्मान में 2008 से फ़्रांस की राजधानी पैरिस में महिला अधिकारों के लिए लड़ रही महिलाओं को एक पुरस्कार दिया जाता है. इस साल यह पुरस्कार चीन की दो महिला कार्यकर्ताओं को मिला, आई शिआओमिंग और गुओ जिआनमे को. गुओ जिआनमे 1989 से वकील हैं और ख़ासकर महिला अधिकारों के उल्लंघनों के मामले लेती हैं. वह पहली महिला हैं जिन्होंने चीन में 1995 में महिलों के लिए एक ग़ैर सरकारी संगठन स्थापित किया. इसका नाम विमन्स लॉ स्टडीज़ ऐंड लीगल एड सेंटर है. पिछले 15 सालों में गुओ जिआनमाई ने 2000 महिलाओं के लिए केस लड़े है.

तस्वीर: AP

गुओ जिआनमाई कहतीं हैं, "चीन के क़ानूनों में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा तो की गई है, लेकिन रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इन क़ानूनों का पालन नहीं किया जाता. हर दिन महिला अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है. मैं कहूंगी कि सबसे ज़रूरी यह है कि महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताया जाए. और उनको समझ में आए कि इन अधिकारों की वे मांग कर सकतीं हैं. हमें कई तरह का संघर्ष करना है. एक तरफ़ घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़, दूसरी तरफ़ नौकरी पर भेदभाव के ख़िलाफ़. साथ ही महिलाओं को राजनीति में जगह नहीं मिल पाती है. चीनी पीपल्स कांग्रेस में सिर्फ़ 20 प्रतिशत महिलाएं हैं. साथ ही दूर दराज़ के इलाक़ों में महिलाओँ को अब तक ज़मीन ख़रीदने का अधिकार नहीं है."

भेदभाव की शिकार

मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने 2006 में चीन में महिलाओं की स्थिति पर रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट में सबसे चिंताजनक बात यह रही कि ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही महिलाओं के बीच सबसे ज़्यादा आत्महत्या के मामले सामने आए हैं. देश में 23 करोड़ घुमंतू मज़दूर हैं, जो खेतों पर या खदानों में काम करते हैं. इन में से एक तिहाई महिलाएं हैं. अकसर उन्हे हफ़्ते में 90 घंटे तक काम करना पडता है और वे यौन शोषण का भी शिकार बनती हैं. 40 साल की उम्र में ही उनसे कहा जाता है कि वह काम करने के लिए फ़िट नहीं हैं और इसलिए उन पर ग़रीबी की भी मार पड़ती है. ऐसा पुरूषों के बीच नहीं देखा गया है.

तस्वीर: AP

महिला कार्यकर्ता गुओ जिआनमे कहतीं हैं कि चीन उन देशों में से एक था जिन्होंने 1980 में ही महिलाओं को भेदभाव से बचाने के संयक्त राष्ट्र के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. लेकिन तब भी नारी रक्षा क़ानूनों को लागू नहीं किया गया है. चीन का महिला आंदोलन अभी ज़्यादा पुराना नहीं हैं. जो बातें नारिवादी यूरोप में 19वीं सदी से कह रहीं हैं, उन्हें कहने की हिम्मत चीनी महिला कार्यकर्ता अब कर रहीं हैं. वकील गुओ जिआनमाई कहती हैं, "सीमोन द बोवोआर के ख़्यालों का दुनिया के महिला आंदोलन पर काफ़ी असर रहा है. उन्होंने नारी समानता, आज़ादी और उनके हक़ को बढ़ावा दिया. ये ऐसी चीज़ें हैं, जो हम चीनी महिलाओं के लिए भी बहुत अहम हैं."

कड़ा संघर्ष

सीमोन द बोवोआर जैसी नारीवादी महिलाओं के ख़्यालों का समर्थन करना कितना मुश्किल और ख़तरनाक हो सकता है यह ख़ुद महसूस किया है आई शिआओमिंग को चीनी सरकार ने पुरस्कार समारोह मे जाने की अनुमति नहीं दी. वह चीनी साहित्य और चीनी भाषाओँ की प्रोफ़ेसर है और अपने अध्ययनों में महिलाओं पर ज़ोर देती आई हैं. साथ ही वह 2003 से फ़िल्म भी बनातीं हैं और दुनियाभर के नारीवादी नाटकों को भी अनुवाद के ज़रिए रंगमंच पर लातीं हैं. इस सब को देखते हुए चीनी सरकार ने 5 साल तक उनके देश छोड़ने पर रोक लगा दी है.

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चीनी मामलों के विशेषज्ञ जिल गुईहोए कहते हैं, "यूरोप में हम इस वक़्त सिर्फ़ इन दो महिला कार्यकर्ताओ को देखते हैं. लेकिन उनके पीछे कई संगठन हैं, जो राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर सामान्य अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. महिलाओं ने संगठनों में सक्रिय होने की शुरूआत की है और उन्होने अपने अधिकारों के लिए लडना शुरू किया. यह सिर्फ़ एक सबूत है कि चीनी समाज में किस तरह की उथल पुथल चल रही है."

रिपोर्टः प्रिया एसेलबोर्न

संपादनः ए कुमार

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