चीन में कोविड टीकाकरण की रफ्तार इतनी धीमी क्यों
१४ अप्रैल २०२१दुनिया भर के तमाम देश जहां कोरोना वायरस के संक्रमण की दूसरी लहर को रोकने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक कोरोना वैक्सीन को पहुंचाने की कोशिश में लगे हैं वहीं चीन में टीकाकरण की दर को बढ़ाने के लिए पुरस्कार और दंड का सहारा लेना पड़ रहा है. 11 अप्रैल तक चीन में टीके की सिर्फ 16.73 करोड़ खुराक ही लोगों को दी जा सकी थी जो कि लक्ष्य से बहुत पीछे है. चीन में सरकार का लक्ष्य है कि जून महीने के अंत तक 56 करोड़ लोगों यानी करीब 40 फीसद आबादी का टीकाकरण कर दिया जाए.
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अलग-अलग शहर और अलग-अलग संस्थाएं अलग-अलग तरीके अपना रही हैं. मसलन, कहीं-कहीं टीका लगवाने वालों को उपहार दिए जा रहे हैं तो कुछ जगहों पर अध्यापकों से कहा जा रहा है कि वो छात्रों के अभिभावकों से पूछें कि उनका टीकाकरण हुआ है या नहीं. यही नहीं, कुछ निजी कंपनियां तो अपने कर्मचारियों पर दबाव डाल रही हैं कि वो टीका लगवाएं अन्यथा उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा.
देश के दक्षिणी हिस्से में स्थित औद्योगिक केंद्र शेनजेन में जगह जगह बैनर लगे हैं जिन पर लोगों को टीका लगवाने की सलाह देने वाले नारे लिखे हुए हैं और एक जगह एक अध्यापक वी चैट ग्रुप में अभिभावकों को अपने टीकाकरण का विवरण देने के लिए दबाव बना रहा है. ली सरनेम वाली एक महिला ने डीडब्ल्यू को बताया, "जब तक किसी व्यक्ति के साथ स्वास्थ्य संबंधी कोई विशेष दिक्कत न हो, तो हर व्यक्ति को टीका लगवाना जरूरी कर दिया गया है.”
शेनजेंग के एक सार्वजनिक अस्पताल में काम करने वाली ली बताती हैं कि उनके तमाम सहयोगियों को यह नहीं बताया गया है कि उन्हें कौन सी वैक्सीन दी गई है. ली कहती हैं कि टीका लगवाने से वो इसलिए बच गईं क्योंकि उन्होंने अपनी ऐसी शारीरिक समस्या का प्रमाण दे दिया था जिसमें टीका लगवाने से दिक्कत हो सकती थी. हालांकि वो ये भी कहती हैं कि तमाम निजी संस्थाओं में इसके बावजूद टीका लगवाना पड़ रहा है क्योंकि वहां कर्मचारियों को टीका न लगवाने पर नौकरी से निकालने की धमकी दी जा रही है.
टीकाकरण प्रोत्साहन के लिए धमकी दी जा रही है
ली कहती हैं, "मेरी एक दोस्त की कंपनी ने पिछले महीने कहा कि यदि वह टीका नहीं लगवाती है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा. जबकि मेरी दोस्त उस समय अपने नवजात शिशु को स्तनपान करा रही थी. तमाम लोग जो पहले चाइनीज वैक्सीन लगवाने से बच गए थे, अब सरकार के दबाव और तमाम धमकियों की वजह से उन्हें भी लगवाना पड़ रहा है.” डीडब्ल्यू के स्रोतों के मुताबिक, कोरोना वायरस संक्रमण के शुरुआती केंद्र रहे वुहान शहर में पिछले कुछ हफ्तों से वहां के नागरिकों को टीकाकरण के लिए तैयार किया जा रहा है. हालांकि तमाम लोग अपने आप भी टीका लगवा रहे हैं, लेकिन बहुत से लोगों का कहना है कि टीकाकरण के बारे में सूचनाएं छिपाई जा रही हैं और लोगों के पास ये जानने के बहुत कम स्रोत हैं कि जिन देशों में चीन में बने टीके लगाए गए हैं, वहां अब क्या स्थिति है.
लिन सरनेम वाले एक व्यक्ति का कहना था, "वुहान में बहुत से लोग सिर्फ यह जानते हैं कि कुछ देश चीन से टीका आयात कर रहे हैं लेकिन वो ये नहीं जानते कि टीकाकरण शुरू होने के बाद इन टीकों की वजह से पॉजिटिव मामलों में कमी आई है या नहीं. वुहान में हर व्यक्ति को सिनोफार्म नाम की वैक्सीन दी जा रही है लेकिन पड़ोसी शहरों में कुछ लोगों को सिनोवैट नाम की वैक्सीन दी जा रही है.”
सबसे ज्यादा चिंता सुरक्षा को लेकर है
कई चीनी नागरिकों ने टीका न लगवाने के पीछे सुरक्षा की चिंता और टीके की क्षमता को वजह बताया है. 11 अप्रैल को चीन में रोग नियंत्रण विभाग के एक बड़े अधिकारी ने कहा कि चीन में मौजूदा टीकों ने निम्न स्तर की सुरक्षा प्रदान की है और ऐसा माना जा रहा है कि इनकी क्षमता को बढ़ाने के लिए विभिन्न टीकों का मिश्रण बनाने की रणनीति अपनाई जा रही है. चीन में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के डायरेक्टर गाओ फू कहते हैं, "टीकों की बहुत उच्च सुरक्षा दर न होने की समस्या को हम जल्द ही सुलझा लेंगे. अब यह औपचारिक विचार के तहत हो रहा है कि क्या हमें टीकाकरण प्रक्रिया में विभिन्न तकनीक वाले अलग-अलग टीकों का प्रयोग करना चाहिए या नहीं.” बाद में चीन के एक सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स से बातचीत में गाओ कहते हैं, कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उनकी टिप्पणियों की बिल्कुल गलत व्याख्या की.
अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर पॉलिसी, आउटकम्स एंड प्रिवेंशन के डायरेक्टर जैसन वांग ने डीडब्ल्यू को बताया कि चीन ज्यादा से ज्यादा लोगों के टीकाकरण के लिए "दंड और पुरस्कार” की रणनीति अपना रहा है. हालांकि उनका मानना है कि टीकाकरण में तेजी लाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि टीके को लेकर लोगों की गलतफहमियों को दूर किया जाए. डीडब्ल्यू से बातचीत में वांग कहते हैं, "लोगों को वैक्सीन लेने के लिए प्रेरित करने का एक तरीका यह है कि उन्हें प्रोत्साहन दिया जाए और हर सरकार यह कर सकती है. यदि लोगों को कोई ऐसी चीज लेने के लिए दबाव डाला जाए जिसे वो अपने लिए नुकसानदेह समझ रहे हैं तो इससे लोगों का सरकार पर भरोसा कम हो जाएगा.”
दूसरी ओर, चीन ने पिछले कुछ महीनों में एक आक्रामक "वैक्सीन कूटनीति” कार्यक्रम की शुरूआत की है जिसके तहत दुनिया के कई देशों को वो लाखों टीकों का निर्यात कर रहा है. हालांकि चिली जैसे कई देश चीनी टीकों से देश की बड़ी जनसंख्या का टीकाकरण करने के बावजूद कोविड की एक नई लहर से जूझ रहे हैं.
चीन का टीकों का उत्पादन बढ़ाने पर जोर
कुछ चीनी नागरिक सुरक्षा कारणों से वैक्सीन लेने से हिचक रहे हैं जबकि कई अन्य लोगों को कहना है कि चीन में बनी कोरोनावायरस वैक्सीन की अपेक्षाकृत कमजोर क्षमता कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. कुछ लोग जो टीका लगवाने में दिलचस्पी ले रहे हैं, उसके पीछे मुख्य कारण ये लगता है कि देश के एक बड़े हिस्से में पिछले कुछ महीनों में एक भी पॉजिटिव केस नहीं मिला है. बीजिंग में ल्यू सरनेम वाली एक महिला ने डीडब्ल्यू को बताया, "मुझे लगता है कि चीन का ज्यादातर हिस्सा अब वायरस मुक्त हो चुका है. मैं बचाव के तरीकों को शुरू से ही अपना रही हूं इसलिए अब मैं संक्रमित होने से नहीं डर रही हूं. मेरे आस-पास तमाम लोगों ने स्वेच्छा से टीका लगवा लिया है और कुछ लोग इस डर से लगवा रहे हैं कि ऐसा न करने पर कहीं भविष्य में उन्हें अन्य देशों की यात्रा करने से रोक दिया जाए.”
चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिनहुआ के मुताबिक, देश में ज्यादातर वैक्सीन निर्माताओं ने उत्पादन क्षमता को बढ़ा दिया है और गाओ फू कहते हैं कि चीन का लक्ष्य है कि इस साल के अंत और अगले साल के मध्य तक देश की 70-80 फीसद जनसंख्या को टीका लग जाए. लेकिन जानकारों का कहना है कि इससे तब तक कोई मदद नहीं मिलेगी जब तक ज्यादातर देश भी अपनी अधिकांश आबादी का टीकाकरण नहीं कर लेते. वांग कहते हैं, "अन्यथा, जब सीमा खुल जाएगी और लोग एक-दूसरे देश में आवागमन करने लगेंगे, तो उन देशों के लोग फिर संक्रमित करना शुरू कर देंगे जहां पूरी तरह से टीकाकरण नहीं हुआ होगा.”
(चीन में वैक्सीन का मुद्दा एक संवेदनशील मामला है इसलिए कुछ लोगों के पूरे नाम नहीं लिखे गए हैं.)