लंबी चौड़ी अर्थव्यवस्था, दुनिया के कोने कोने में कारोबार और जीवन के कई क्षेत्रों में विकास ने चीन में लोकतंत्र की उम्मीद भी दे दी थी. शी जिनपिंग ने सत्ता अनिश्चितकाल के लिए अपने हाथ में लेकर सब धराशायी कर दिया.
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लंबे से समय चीन के विशेषज्ञ रहे ओरविल शेल की 1975 में पहली चीन यात्रा की कई यादें हैं. चीन में तब सांस्कृतिक क्रांति का दौर था और बागडोर माओ त्से तुंग के हाथ में थी. चीनी लोगों को राजनीतिक गलतियों के लिए बेइज्जत करना, पीटना यहां तक कि जान से मार देना आम बात थी.
चार साल बाद जब ओरविल वापस लौटे, तब हालात काफी बदल चुके थे. माओ की मौत हो चुकी थी और देश तेंग शियाओपिंग के नेतृत्व में सुधारों के रास्ते पर बढ़ चला था. सुधार का डंका इतने जोरों से बज रहा था कि बीजिंग में कई लोगों ने तो बकायदा अपने घरों की दीवार पर पिछले दौर की ज्यादतियों की आलोचना करने और लोकतंत्र का समर्थन करने वाले बड़े पोस्टर लगा रखे थे.
न्यू यॉर्क की एशिया सोसायटी में सेंटर ऑन यूएस चाइना रिलेशंस के निदेशक शेल कहते हैं, "चीन अचानक संपर्कों से दूर रहने वाले दुश्मन से बदल कर काफी खुला और बातचीत करने वाले देश बन गया." इस खुलेपन और तेंग के बाजार वाले अंदाज में आर्थिक सुधारों ने ऐसी अटकलों को जन्म दिया कि चीन आखिरकार एक लोकतंत्र बन जाएगा.
जब शी जिनपिंग के पिता को जेल में डाला गया था..
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विचारधारा अब चीन में पार्टी संविधान का हिस्सा है. माओ के बाद चीन के सबसे ताकतवर नेता बताये जा रहे शी जिनपिंग ने यहां तक पहुंचने के लिए लंबा सफर किया है. डालते एक नजर.
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परिवार
जन्म 1953 में हुआ. उनके पिता शी चोंगशुन कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थे. वह करिश्माई नेता माओ त्सेतुंग के करीबी थे और चीन के उप प्रधानमंत्री भी रहे.
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राजकुमार
इस तरह, शी जिनपिंग को एक "राजकुमार" की तरह देखा जाता है जिनका संबंध एक जाने माने परिवार से है और वे चीनी सत्ता के शिखर तक पहुंचे. लेकिन उनके लिए सब कुछ इतना आसान भी नहीं था.
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पिता को जेल
शी के परिवार को 1962 में उस वक्त नाटकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जब सांस्कृतिक क्रांति से पहले पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में उनके पिता को पद से हटाकर जेल में डाल दिया गया.
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सांस्कृतिक क्रांति
एक दशक लंबी सांस्कृतिक क्रांति के तहत सरकार, शिक्षा और मीडिया में पूंजीवादी प्रभावों और बुर्जुआ सोच को खत्म करने की मांग की गयी. बहुत से पार्टी नेताओं को काम करने खेतों और कारखानों में भेज दिया गया.
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सात साल की मेहनत
15 साल की उम्र में शी जिनपिंग को "फिर से शिक्षित होने" के लिए देहाती इलाके में भेजा गया. एक गांव में उन्होंने सात साल तक कड़ी मेहनत की. इस अनुभव ने उनकी राजनीति सोच को आकार दिया.
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पार्टी ने किया खारिज
शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ जाने की बजाय उसे अपना लिया. उन्होंने कई बार पार्टी में शामिल होने की कोशिश की, लेकिन उनके पिता की वजह उन्हें खारिज किया गया.
आखिरकार 1974 में वह समय आया जब पार्टी ने उनके लिए अपने दरवाजे खोले. सबसे पहले वह हुबेई प्रांत में पार्टी के स्थानीय सचिव बने. उन्होंने कड़ी मेहनत की. इसी का नतीजा है कि उन्हें बाद में शंघाई का पार्टी मुखिया बनाया गया.
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सत्ता के शिखर पर
लगातार बढ़ते राजनीतिक कद ने उन्हें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में जगह दिलायी और फिर 2012 में वह कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने और 2013 में चीन के राष्ट्रपति.
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फर्स्ट कपल
सिंगहुआ यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले शी जिनपिंग की पत्नी पेंग लीयुआन एक जानी मानी गायिका हैं. दोनों की तस्वीरें चीनी मीडिया में खूब छपती हैं. इससे पहले के राष्ट्रपतियों की पत्नियां बहुत ही कम सार्वजनिक तौर पर दिखती थीं.
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एक बेटी
शी जिनपिंग को चीन में बेहद लोकप्रिय बनाया जाता है. उनकी एक बेटी है जिसका नाम शी मिंगत्से है. उनके बारे में ज्यादा जानकारी तो नहीं है लेकिन इतना जरूर बताया जाता है कि वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ी हैं.
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सख्त प्रशासक
बतौर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की छवि एक सख्त प्रशासक की है जिसे भ्रष्टाचार बिल्कुल मंजूर नहीं है. उनके दौर में अहम पदों पर बैठे कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में कड़ी कार्रवाई हुई है.
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विरोध की जगह नहीं
अपने विरोधियों से भी वह सख्ती से निपटने के लिए जाने जाते हैं. उनके दौर में जहां इंटरनेट पर सेंसरशिप लगातार सख्त हो रही है, वहीं चीन के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाया जा रहा है.
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कार्रवाई
कई आलोचक उन्हें "चेयरमैन माओ के बाद सबसे अधिनायकवादी नेता" मानते हैं. उनके कार्यकाल में कई विद्रोहियों और मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
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सुपरवापर चीन
शी जिनपिंग चीन को दुनिया का सबसे अग्रणी देश बनाना चाहते हैं. वन बेल्ट वन रोड जैसी महत्वकांक्षी परियोजनाओं के जरिए चीन दुनिया तक अपनी पहुंच और प्रभाव कायम करने में जुटा है.
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बढ़ता प्रभाव
चीन की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक ताकत सुपरवापर बनने के सपने को साकार करने में मदद कर रही है. चीन दुनिया भर में निवेश परियोजनाओं के जरिए अपने पांव पसार रहा है.
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संविधान में शी
शी की विचारधारा को चीनी संविधान का हिस्सा बना दिया गया है. इससे पहले सिर्फ माओ और चीन में आर्थिक सुधारों का रास्ता खोलने वाले देंग शियाओपिंग की विचारधारा को संविधान में जगह मिली है.
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शी जिनपिंग के अनिश्चित काल तक सत्ता अपनी मुट्ठी में कर लेने के बाद अब सब कुछ बदल गया है, पश्चिम के ज्यादातर विश्लेषक अब यही मान रहे हैं. शेल का कहना है, "पहले दोनों पक्षों ने यही माना था कि चीन ज्यादा लोकतांत्रिक होने की कोशिश कर रहा है. शी ने साफतौर से यह तय कर दिया है कि अब ऐसा कोई दावा नहीं है... कि चीन ज्यादा लोकतांत्रिक और खुला बनेगा."
तेंग के शासन में सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने छोटे स्तर पर मुक्त उद्यमों को अनुमति दी और उन पर से नियंत्रण को हल्का किया. पार्टी का अस्तित्व बनाए रखने के लिए नेताओं ने 1990 में एक बड़ा कदम उठाया और सत्ता के उत्तराधिकार के लिए एक औपचारिक परिपाटी बना दी. इसमें सत्ता के लिए नेताओं के चुनाव में तो आम लोगों की अब भी कोई भागीदारी नहीं थी लेकिन इसके तहत नेताओं के लिए एक निश्चित समय के बाद सत्ता छोड़ना जरूरी हो गया. शी के शासनकाल में अब उसे भी खत्म कर दिया गया है. शी अब देश की सत्ता पर जब तक जी चाहें, बने रह सकते हैं और इस तरह से वे माओ के बाद सबसे शक्तिशाली नेता बन गए हैं. राष्ट्रपति के कार्यकाल की सीमा को खत्म करने से देश में एक इंसान का शासन लौट आया है जिसे तेंग ने 1982 में आजीवन कार्यकाल को खत्म कर मिटाने की कोशिश की थी.
96 साल के सिडनी रिटेनबर्ग उन दुर्लभ अमेरिकी लोगों में हैं जो माओ को निजी रूप से जानते हैं. सिडनी का कहना है, "जनता की राय पर जो नियंत्रण माओ के दौर में था उससे तो फिलहाल बहुत हल्का है लेकिन तेंग शियाओपिंग के दौर की तुलना में यह बहुत ज्यादा कठोर है." हालांकि इसके बाद भी उनका कहना है कि चीन पुराने समय के अकेला पड़ने वाले दौर में नहीं जाएगा. क्योंकि फिलहाल उसकी अर्थव्यवस्था दुनिया के खुलेपन पर निर्भर है. उन्होंने कहा, "केवल संविधान बदलने भर से वक्त को पीछे ले जाना आसान नहीं है."
रिटेनबर्ग के मुताबिक चीन का शासक बनने के बाद माओ के व्यक्तित्व में काफी बदलाव आया. माओ ने इस बदलाव को दर्द के साथ झेला. माओ पर एक विदेशी जासूसी संस्था संगठन का हिस्सा होने का आरोप लगा. उन्हें 16 साल कैद में बिताने पड़े और इसका ज्यादातर हिस्सा काल कोठरी में बीता.
बहुत से लोगों को डर है कि इतिहास अपने को दोहरा रहा है. चीन के सरकारी अखबार चाइना यूथ डेली के पूर्व संपादक लि दातोंग कहते हैं, "मेरी पीढ़ी ने तो माओ का दौर देखा है. वह युग खत्म हो चुका है. आखिर हम एक बार फिर पीछे कैसे जा सकते हैं?"
आज का चीन भी माओ के दौर की उठापटक से काफी दूर है. 1989 में हुए छात्रों के विरोध प्रदर्शन जैसी कोई बात भी देखने सुनने में नहीं आ रही. तब बीजिंग के तियानमेन चौराहे पर भ्रष्टाचार और दमघोंटू राजनीति के खिलाफ आवाज बुलंद हुई थी. तेंग ने उसे बेरहमी से कुचलने का आदेश दिया. इसके नतीजे में सैकड़ों या शायद हजारों लोग मारे गए. इसके बावजूद पार्टी ने अपना नियंत्रण बनाए रखा और अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ी. सुधारवादियों को उम्मीद थी कि शायद राजनीतिक उदारवाद भी आएगा. 2008 में बीजिंग ओलिंपिक के आयोजन ने इन उम्मीदों को और हवा दी. आयोजन को पार्टी ने आधुनिक और भरोसेमंद चीन का नतीजा माना. उम्मीद थी कि जब चीन के लोग और नेता चीन से बाहर की चीजों और तौर तरीकों को उतना डरावना या खतरनाक नहीं मानेंगे. लेकिन उस साल की वैश्विक मंदी ने चीन के नेतृत्व को यह सोचने पर विवश कर दिया कि वह बाहरी दुनिया के लिए कितना खुले.
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को आप कितना जानते हैं?
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पांच साल में होने वाली कांग्रेस बीजिंग में हो रही है. 19वीं कांग्रेस के जरिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की सत्ता पर अपनी पकड़ को और मजबूत किया है. एक नजर पार्टी की अहम कांग्रेसों पर.
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चीन की ताकत
आम तौर पर गोपनीयता के लबादे में लिपटी पार्टी कांग्रेस एक अहम आयोजन होता है. चीन पर 68 साल से राज कर रही कम्युनिस्ट पार्टी ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं, लेकिन इसकी ताकत में लगातार इजाफा होता रहा है. पार्टी कांग्रेस में क्या क्या होता है, इसकी पक्की जानकारी आज भी मिल पाना मुश्किल है.
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पहली कांग्रेस
कांग्रेस 1921 में बेहद गोपनीय तरीके से शंघाई के आसपास हुई थी. इसी कांग्रेस में औपचारिक तौर पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्य और चार्टर को तैयार किया गया था. इस कांग्रेस में कम्युनिस्ट नेता माओ त्सेतुंग भी मौजूद थे, हालांकि उस वक्त वह बहुत युवा थे.
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जब माओ बने नेता
पार्टी की सांतवी कांग्रेस 1945 में उस समय बुलायी गयी जब चीन-जापान युद्ध खत्म होने ही वाला था. शांक्शी प्रांत में कम्युनिस्ट पार्टी के गढ़ यानान में यह बैठक हुई जिसमें माओ सुप्रीम लीडर के तौर पर उभरे. इसी कांग्रेस में माओ के "विचारों" को पार्टी की विचारधारा का आधार बनाया गया.
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सांस्कृतिक क्रांति का दौर
पार्टी की नौवीं कांग्रेस 1969 में हुई. यह वह दौर था जब चीन में सांस्कृतिक क्रांति अपने चरम पर थी. सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए माओ ने इस क्रांति का इस्तेमाल किया जिससे देश में दस साल तक भारी अव्यवस्था रही और लगभग गृह युद्ध जैसे हालात हो गये थे.
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चीनी चरित्र वाला समाजवाद
1982 में 12वीं कांग्रेस में चीनी नेता तंग शियाओफिंग ने "चीनी चरित्र वाले समाजवाद" का प्रस्ताव रखा, जिससे चीन में आर्थिक सुधारों का रास्ता तैयार हुआ और देश विशुद्ध कम्युनिस्ट विचारधारा से पूंजीवाद की तरफ बढ़ा. यही वजह है कि आज चीन की चकाचौंध सबको हैरान करती है.
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पूंजीपतियों को जगह
2002 में पार्टी की 16वीं कांग्रेस हुई जिसमें औपचारिक रूप से निजी उद्यमियों को पार्टी का सदस्य बनने की अनुमति दी गयी. यह अहम घटनाक्रम था क्योंकि आर्थिक सुधारों की बातें चीन में 1970 के दशक के आखिरी सालों में ही शुरू हो गयी थीं लेकिन पूंजीपतियों को लेकर फिर भी पार्टी में लोगों की त्यौरियां चढ़ी रहती थीं.
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अचानक उदय
2007 में हुई 17वीं पार्टी कांग्रेस शी जिनपिंग और ली कचियांग को सीधे नौ सदस्यों वाली पोलित ब्यूरो की एलिट स्थायी समिति का सदस्य बनाया गया जबकि उस समय वह पार्टी के 25 सदस्यों वाले पोलित ब्यूरो के सदस्य नहीं थे. इस तरह ये दोनों नेताओं की पांचवी पीढ़ी के सितारे बन गये.
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नाम में क्या रखा है
शी से पहले चीन के दो राष्ट्रपतियों हू जिनताओ और जियांग जेमिन ने 2002 और 2007 की पार्टी कांग्रेस के दौरान अपने विचारों को चीन के संविधान का हिस्सा बनाया, लेकिन सीधे सीधे अपने नाम का उल्लेख नहीं कराया. वहीं इससे पहले माओ और तंग के नाम भी आपको संविधान में दिखेंगे.
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लोकतंत्र के विदेशी समर्थकों ने उम्मीद लगाई कि इंटरनेट, मोबाइल और दूसरी उभरती तकनीकें पार्टी के नियंत्रण को तोड़ देंगी. इसकी बजाय चीन के नेताओं ने वेब फिल्टर को विकसित करने पर भारी निवेश कर इंटरनेट और वीडियो सर्विलेंस का इस्तेमाल लोगों को अपनी निगरानी में रखने पर किया.
2012 में पार्टी का नेतृत्व संभालने के बाद शी जिनपिंग ने सिविल सोसायटी को और कमजोर किया. लेखकों, कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार वकीलों को या तो कैद कर लिया गया या फिर उन्हें चुप करा दिया गया. कार्यकाल की सीमा पर ऑनलाइन चर्चा को पूरी तरह से सेंसर किया गया.
चीन लंबे समय से यह दलील देता रहा है कि पश्चिमी शैली वाला लोकतंत्र चीन के लिए उचित नहीं है. वह अमेरिका और दूसरे देशों में राजनीतिक और कूटनीतिक अड़चनों का हवाला देता है और मार्क्सवादी लेनिनवादी अपनी सत्ता को लोकतंत्र से ऊपर बताता है. विशेषज्ञों का कहना है कि देश इतिहास के उसी दौर में पहुंच गया है जहां से उसने आगे चलना शुरू किया था.