लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर सेना की भारी तैनाती कर दी गई है. भारतीय वायु सेना ने भी कुछ विमान महत्वपूर्ण ठिकानों पर तैनात कर दिए हैं. नौसेना को भी हिन्द महासागर के इलाके में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए कहा गया है.
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भारतीय सेना के 20 सिपाहियों के मारे जाने पर देश के राजनीतिक नेतृत्व की तीखी प्रतिक्रिया के बाद अब भारत में सेना को उच्च स्तर पर सतर्क कर दिया गया है. लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर सिपाहियों, हथियारों, सेना के वाहनों और अन्य उपकरणों की भारी तैनाती कर दी गई है. बुधवार को कई तस्वीरें जारी की गईं जिनमें भारतीय सेना के ट्रकों को कश्मीर से गुजरते हुए लद्दाख की तरफ जाने वाले राज्यमार्ग पर बढ़ते हुए देखा गया.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार, भारत-चीन सीमा के तीनों सेक्टरों में सेना की टुकड़ियों को वास्तविक नियंत्रण रेखा के और पास मई में ही भेजा जा चुका था. खबर है कि अब वायु सेना ने भी अपने कुछ विमान महत्वपूर्ण ठिकानों पर तैनात कर दिए हैं. नौसेना को भी हिन्द महासागर के इलाके में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए कहा गया है. सीमा पर स्थानीय सैन्य कमांडरों को किसी भी संभावना की लिए तैयार रहने को कहा गया है.
चीन की तरफ से भी चीनी सेना के आगे बढ़ने की खबर है. कुछ पत्रकारों का दावा है कि गलवान-श्योक नदियों के संगम और दौलत बेग ओल्डी इलाके के बीच डेपसांग समतल क्षेत्र में चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण के पार भारत के इलाके में कई किलोमीटर तक अंदर चली गई है. हालांकि इस पर सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.
कई मीडिया रिपोर्टों में ऐसी खबरें हैं कि भारत चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिक्रिया की तैयारी कर रहा है, जिसके तहत संभव है कि कुछ महत्वपूर्ण सरकारी कार्यों के टेंडरों में चीनी कंपनियों को भागीदारी की इजाजत ना मिले. कुछ भारतीय कंपनियों में चीनी कंपनियों के निवेश की समीक्षा की भी संभावना है. बुधवार को कई जगहों पर चीनी सामान को बहिष्कार करने के नारे लगे और प्रदर्शन भी हुए, जिनमें चीनी सामान को, चीनी झंडे को और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तस्वीरों और पुतलों को जलाया गया.
इस बीच, गलवान घाटी की हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों की सेनाओं के बीच बने हुए तनाव को कम करने के लिए सीमा पर दोनों तरफ के मेजर जनरलों के बीच हुई पहले दौर की बातचीत बेनतीजा रही. बताया जा रहा है कि दूसरे दौर की बातचीत गुरूवार को होगी. कूटनीतिक स्तर पर दोनों देश अपने अपने बयानों और अपनी अपनी स्थिति पर अड़े हुए हैं. चीन के गलवान घाटी के स्वामित्व के दावे पर बुधवार देर रात विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया आई. चीन के दावे को खारिज करते हुए मंत्रालय ने कहा कि चीन को "अतिशयोक्तिपूर्ण" और "असमर्थनीय" दावे नहीं करने चाहिए.
बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि "जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा" और "भारत शांति चाहता है, लेकिन भारत उकसाने पर यथोचित जवाब देने में सक्षम है". विदेश-मंत्री एस जयशंकर ने चीन के विदेश-मंत्री वांग यी से भी बातचीत के दौरान दो-टूक कहा था कि गलवान घाटी में जो भी हुआ उसके लिए चीन "सीधे तौर पर जिम्मेदार" है और यह "पहले से सोची-समझी और नियोजित कार्यवाई" थी. दोनों नेताओं ने जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी स्थिति का न्यायपूर्ण ढंग से समाधान निकालने और गतिरोध की तीव्रता को कम करने पर सहमति जताई.
अमेरिका: मध्यस्थता की कोई योजना नहीं
उधर अमेरिका ने कहा है कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की भारत और चीन के बीच मध्यस्थता की अभी कोई औपचारिक योजना नहीं है. यह बात मीडिया द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में व्हाइट हाउस प्रेस सचिव ने कही. उन्होंने भारतीय सैनिकों के मारे जाने पर शोक भी व्यक्त किया. उन्होंने यह भी कहा कि इस विषय पर राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी की आखिरी बार बातचीत दो जून को हुई थी.
दो जून को प्रधानमंत्री मोदी के कार्यालय ने एक वकतव्य में कहा था की दोनों नेताओं के बीच कई विषयों पर चर्चा हुई, जिनमें भारत-चीन सीमा पर स्थिति भी शामिल थी. इस वक्तव्य को महत्वपूर्ण माना जा रहा तहत कि क्योंकि ये दर्शाता है कि भारत ने चीन के साथ सीमा पर गतिरोध के समाधान के लिए दूसरे देशों से बातचीत शुरू कर दी थी. उसके कुछ ही दिनों पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद ही प्रस्ताव दिया था कि वो भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को "सुलझाने और उसमें मध्यस्थता करने के लिए तैयार और सक्षम हैं."
अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो ने भी कहा थे कि चीन ने अपने सैनिकों को वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास उत्तरी भारत के अंदर भेज दिया है और ये इस तरह का कदम है जिसे कोई तानाशाह ही उठाएगा. उसके बाद अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ रेप्रेजेन्टेटिव्स की विदेशी मामलों की समिति ने कहा कि वो भारत के खिलाफ चीन के आक्रामक रवैये को लेकर बहुत चिंतित है और वो चीन से बातचीत के जरिए इस गतिरोध का समाधान खोजने की अपील करती है.
समिति के अध्यक्ष एलियट एंगेल ने कहा, "मैं बहुत चिंतित हूं...चीन एक बार फिर दिखा रहा है कि वो मतभेदों को अंतर्राष्ट्रीय कानून से सुलझाने की जगह अपने पड़ोसी देशों को धौंस दिखाने में विश्वास रखता है."
कैसे अमेरिका को चुनौती देने वाली महाशक्ति बन गया चीन
सोवियत संघ के विघटन के बाद से अमेरिका अब तक दुनिया की अकेली महाशक्ति बना रहा. लेकिन अब चीन इस दबदबे को चुनौती दे रहा है. एक नजर बीते 20 साल में चीन के इस सफर पर.
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मील का पत्थर, 2008
2008 में जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी से खस्ताहाल हो रही थी, तभी चीन अपने यहां भव्य तरीके ओलंपिक खेलों का आयोजन कर रहा था. ओलंपिक के जरिए बीजिंग ने दुनिया को दिखा दिया कि वह अपने बलबूते क्या क्या कर सकता है.
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मंदी के बाद की दुनिया
आर्थिक मंदी के बाद चीन और भारत जैसे देशों से वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की उम्मीद की जाने लगी. चीन ने इस मौके को बखूबी भुनाया. उसके आर्थिक विकास और सरकारी बैंकों ने मंदी को संभाल लिया.
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ग्लोबल ब्रांड “मेड इन चाइना”
लोकतांत्रिक अधिकारों से चिढ़ने वाले चीन ने कई दशकों तक बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में खूब संसाधन झोंके. इन योजनाओं की बदौलत बीजिंग ने खुद को दुनिया का प्रोडक्शन हाउस साबित कर दिया. प्रोडक्शन स्टैंडर्ड के नाम पर वह पश्चिमी उत्पादों को टक्कर देने लगा.
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मध्य वर्ग की ताकत
बीते दशकों में जहां, दुनिया के समृद्ध देशों में अमीरी और गरीबी के बीच खाई बढ़ती गई, वहीं चीन अपने मध्य वर्ग को लगातार बढ़ाता गया. अमीर होते नागरिकों ने चीन को ऐसा बाजार बना दिया जिसकी जरूरत दुनिया के हर देश को पड़ने लगी.
चीन के आर्थिक विकास का फायदा उठाने के लिए सारे देशों में होड़ सी छिड़ गई. अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और ब्रिटेन समेत तमाम अमीर देशों को चीन में अपने लिए संभावनाएं दिखने लगीं. वहीं चीन के लिए यह अपने राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को विश्वव्यापी बनाने का अच्छा मौका था.
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पश्चिम के दोहरे मापदंड
एक अरसे तक पश्चिमी देश मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चीन की आलोचना करते रहे. लेकिन चीनी बाजार में उनकी कंपनियों के निवेश, चीन से आने वाली मांग और बीजिंग के दबाव ने इन आलोचनाओं को दबा दिया.
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शी का चाइनीज ड्रीम
आर्थिक रूप से बेहद ताकतवर हो चुके चीन से बाकी दुनिया को कोई परेशानी नहीं थी. लेकिन 2013 में शी जिनपिंग के चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद नजारा बिल्कुल बदल गया. शी जिनपिंग ने पहली बार चीनी स्वप्न को साकार करने का आह्वान किया.
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शुरू हुई चीन से चुभन
आर्थिक विकास के कारण बेहद मजबूत हुई चीनी सेना अब तक अपनी सीमा के बाहर विवादों में उलझने से बचती थी. लेकिन शी के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन ने सेना के जरिए अपने पड़ोसी देशों को आँखें दिखाना शुरू कर दिया. इसकी शुरुआत दक्षिण चीन सागर विवाद से हुई.
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लुक्का छिप्पी की रणनीति
एक तरफ शी और दूसरी तरफ अमेरिका में बराक ओबामा. इस दौरान प्रभुत्व को लेकर दोनों के विवाद खुलकर सामने नहीं आए. दक्षिण चीन सागर में सैन्य अड्डे को लेकर अमेरिकी नौसेना और चीन एक दूसरे चेतावनी देते रहे. लेकिन व्यापारिक सहयोग के कारण विवाद ज्यादा नहीं भड़के.
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कमजोर पड़ता अमेरिका
इराक और अफगानिस्तान युद्ध और फिर आर्थिक मंदी, अमेरिका आर्थिक रूप से कमजोर पड़ चुका था. चीन पर आर्थिक निर्भरता ने ओबामा प्रशासन के पैरों में बेड़ियों का काम किया. चीन के बढ़ते आक्रामक रुख के बावजूद वॉशिंगटन कई बार पैर पीछे खींचता दिखा.
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संघर्ष में पश्चिम और एकाग्र चीन
एक तरफ जहां चीन दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा था, वहीं यूरोप में रूस और यूरोपीय संघ बार बार टकरा रहे थे. 2014 में रूस ने क्रीमिया को अलग कर दिया. इसके बाद अमेरिका और उसके यूरोपीय साझेदार रूस के साथ उलझ गए. चीन इस दौरान अफ्रीका में अपना विस्तार करता गया.
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इस्लामिक स्टेट का उदय
2011-12 के अरब वसंत के कुछ साल बाद अरब देशों में इस्लामिक स्टेट नाम के नए आतंकवादी गुट का उदय हुआ. अरब जगत के राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष ने पश्चिम को सैन्य और मानवीय मोर्चे पर उलझा दिया. पश्चिम को आईएस और रिफ्यूजी संकट से दो चार होना पड़ा.
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वन बेल्ट, वन रोड
2016 चीन ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना शुरू की. जिन गरीब देशों को अपने आर्थिक विकास के लिए विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कड़ी शर्तों के साथ कर्ज लेना पड़ता था, चीन ने उन्हें रिझाया. चीन ने लीज के बदले उन्हें अरबों डॉलर दिए और अपने विशेषज्ञ भी.
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हर जगह चीन ही चीन
चीन बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट सहारे अफ्रीका, दक्षिण अमेरका, पूर्वी एशिया और खाड़ी के देशों तक पहुचना चाहता है. इससे उसकी सीधी पहुंच पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक भी होगी और अफ्रीका में हिंद और अटलांटिक महासागर के तटों पर भी.
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सीन में ट्रंप की एंट्री
जनवरी 2017 में अरबपति कारोबारी डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति का पद संभाला. दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाले ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया. ट्रंप ने लुक्का छिप्पी की रणनीति छोड़ते हुए सीधे चीन टकराने की नीति अपनाई. ट्रंप ने आते ही चीन के साथ कारोबारी युद्ध छेड़ दिया.
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पड़ोसी मुश्किल में
जिन जिन पड़ोसी देशों या स्वायत्त इलाकों से चीन का विवाद है, चीन ने वहाँ तक तेजी से सेना पहुंचाने के लिए पूरा ढांचा बैठा दिया. विएतनाम, ताइवान और जापान देशों के लिए वह दक्षिण चीन सागर में है. और भारत के लिए नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
सहयोगियों में खट पट
चीन की बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए ट्रंप को अपने यूरोपीय सहयोगियों से मदद की उम्मीद थी, लेकिन रक्षा के नाम पर अमेरिका पर निर्भर यूरोप से ट्रंप को निराशा हाथ लगी. नाटो के फंड और कारोबारियों नीतियों को लेकर मतभेद बढ़ने लगे.
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दूर बसे साझेदार
अब वॉशिंगटन के पास चीन के खिलाफ भारत, ब्रेक्जिट के बाद का ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे साझेदार हैं. अब अमेरिका और चीन इन देशों को लेकर एक दूसरे से टकराव की राह पर हैं.
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कोरोना का असर
चीन के वुहान शहर ने निकले कोरोना वायरस ने दुनिया भर में जान माल को भारी नुकसान पहुंचाया. कोरोना ने अर्थव्यवस्थाओं को भी चौपट कर दिया है. अब इसकी जिम्मेदारी को लेकर विवाद हो रहा है. यह विवाद जल्द थमने वाला नहीं है.
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चीन पर निर्भरता कम करने की शुरुआत
अमेरिका समेत कई देश यह जान चुके हैं कि चीन को शक्ति अपनी अर्थव्यवस्था से मिल रही है. इसके साथ ही कोरोना वायरस ने दिखा दिया है कि चीन ऐसी निर्भरता के क्या परिणाम हो सकते हैं. अब कई देश प्रोडक्शन के मामले में दूसरे पर निर्भरता कम करने की राह पर हैं.