राहुल गांधी ने गरीब परिवारों के लिए न्यूतनम आय का वादा कर राजनीतिक हलचल मचा दी है. सरकार किसी की बने लेकिन ऐसी ही किसी योजना के अमल में आने की संभावना बहुत बढ़ गई है.
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश के सबसे गरीब परिवारों के न्यूनतम आमदनी सुनिश्चित करने के लिए सोमवार को जिस न्याय योजना की घोषणा की है, उसे केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली अमल किए जाने के काबिल नहीं मानते जबकि राहुल गांधी का दावा है कि जाने-माने अर्थशास्त्रियों से सलाह-मशविरे के बाद ही इसे तैयार किया गया है. इस महत्वाकांक्षी योजना पर अमल हो पाएगा या नहीं और इसके लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन जुट पाएंगे या नहीं, यह बहस तो चलती रहेगी लेकिन इस समय सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस घोषणा का लोकसभा चुनाव के नतीजों पर क्या असर पड़ सकता है? क्या यह "गेम चेंजर" यानी समूची चुनावी बिसात को पलटने वाला दांव सिद्ध हो सकता है? क्या इससे भारतीय मतदाता के बहुत अधिक प्रभावित होने की संभावना बनती है?
इस सवाल का अंतिम जवाब तो चुनाव के नतीजे ही देंगे, लेकिन फिलहाल तो यही लगता है कि इस घोषणा का व्यापक असर होने वाला है, विशेषकर इसलिए क्योंकि इसी के साथ राहुल गांधी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर यह कटाक्ष भी जुड़ा है कि उसने देश के पंद्रह-बीस सबसे धनी उद्योगपतियों के तीन लाख करोड़ रुपये से भी अधिक के कर्ज माफ कर दिए जबकि गरीब किसानों के कर्ज माफ नहीं किए गए. दूसरी ओर कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार बनाने के दस दिन के भीतर ही किसानों के कर्ज माफी के अपने चुनावी वादे को पूरा कर दिखाया. भारतीय मतदाता भूला नहीं है कि पिछले लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार करते समय प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने विदेशों से काला धन लाकर हरेक की जेब में पंद्रह लाख रुपये डालने का वादा किया था जिसे बाद में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने "चुनावी जुमला" बता कर हंसी में टाल दिया था. युवा मतदाता मोदी की ओर इसीलिए आकृष्ट हुआ था क्योंकि उन्होंने हर साल दो करोड़ नए रोजगार पैदा करने का वादा किया था. इसके उलट बेरोजगारी बढ़ी है और सरकार में इतनी हिम्मत भी नहीं कि वह रोजगार सम्बंधी आंकड़े भी सार्वजनिक कर सके. ऐसी स्थिति में जब नए रोजगार पैदा करने की संभावना बहुत क्षीण हो, न्याय जैसी न्यूनतम आमदनी योजना यूं भी बेहद आवश्यक हो जाती है.
बहुत कुछ कांग्रेस के चुनाव अभियान पर भी निर्भर है कि वह न्याय योजना और इससे होने वाले फायदों को कितनी सफलता के साथ मतदाताओं को समझा पाती है क्योंकि तीन राज्यों में किसानों के कर्ज माफ करके उसने विश्वसनीयता अर्जित की है, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि गरीब मतदाता उसकी घोषणा पर भरोसा करे और उसके आधार पर वोट डाले. भाजपा का उग्र राष्ट्रवाद इस समय केवल शहरी मध्यवर्ग पर ही असर डाल पर रहा है. गाव का किसान और शहरी गरीब भी अपनी रोजमर्रा की जद्दोजहद में इतना जूझ रहा है कि अब उसके पास भावनात्मक मुद्दों पर बहकने की ताकत नहीं बची है.
न्याय जैसी योजना के कारण क्षेत्रीय असमानता को दूर करने में भी मदद मिलेगी. चौदहवें वित्त आयोग द्वारा इकट्ठा की गई जानकारी के अनुसार देश के अधिक समृद्ध राज्यों को ही सरकारी निवेश और रियायतों आदि का सबसे अधिक लाभ मिलता है. लेकिन न्यूनतम आमदनी योजना का लाभ सभी राज्यों को समान रूप से मिलेगा.
यदि कांग्रेस सरकार नहीं भी बना पाती है और भाजपा फिर से केंद्र में सरकार बना पाने में सफल हो जाती है, तब भी अगली सरकार के लिए न्याय योजना की अनदेखी करना संभव नहीं होगा. यूं भी स्वयं प्रधानमंत्री मोदी की सरकार को कांग्रेस की उन योजनाओं को अपनाने में कोई गुरेज नहीं हुआ जिनका पहले भाजपा ने जम कर विरोध किया था. इसलिए लगता है कि कांग्रेस चाहे सत्ता में आए या ना आए, न्याय योजना आने वाले दिनों में लागू होकर ही रहेगी, क्योंकि उसने एकाएक राजनीतिक विमर्श का मिजाज बदल दिया है.
(भारत की कौन सी पार्टी कितनी अमीर है)
भारत की कौन सी पार्टी कितनी अमीर है
भारत की सात राष्ट्रीय पार्टियों को 2016-2017 में कुल 1,559 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है. 1,034.27 करोड़ रुपये की आमदनी के साथ बीजेपी इनमें सबसे ऊपर है. जानते हैं कि इस बारे में एडीआर की रिपोर्ट और क्या कहती है.
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भारतीय जनता पार्टी
दिल्ली स्थित एक थिंकटैंक एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी को एक साल के भीतर एक हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की आमदनी हुई जबकि इस दौरान उसका खर्च 710 करोड़ रुपये बताया गया है. 2015-16 और 2016-17 के बीच बीजेपी की आदमनी में 81.1 फीसदी का उछाल आया है.
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कांग्रेस
राजनीतिक प्रभाव के साथ साथ आमदनी के मामले भी कांग्रेस बीजेपी से बहुत पीछे है. पार्टी को 2016-17 में 225 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने खर्च किए 321 करोड़ रुपये. यानी खर्चा आमदनी से 96 करोड़ रुपये ज्यादा. एक साल पहले के मुकाबले पार्टी की आमदनी 14 फीसदी घटी है.
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बहुजन समाज पार्टी
मायावती की बहुजन समाज पार्टी को एक साल के भीतर 173.58 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्चा 51.83 करोड़ रुपये हुआ. 2016-17 के दौरान बीएसपी की आमदनी में 173.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. पार्टी को हाल के सालों में काफी सियासी नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन उसकी आमदनी बढ़ रही है.
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नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
शरद पवार की एनसीपी पार्टी की आमदनी 2016-17 के दौरान 88.63 प्रतिशत बढ़ी. पार्टी को 2015-16 में जहां 9.13 करोड़ की आमदनी हुई, वहीं 2016-17 में यह बढ़ कर 17.23 करोड़ हो गई. एनसीपी मुख्यतः महाराष्ट्र की पार्टी है, लेकिन कई अन्य राज्यों में मौजूदगी के साथ वह राष्ट्रीय पार्टी है.
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तृणमूल कांग्रेस
आंकड़े बताते हैं कि 2015-16 और 2016-17 के बीच ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की आमदनी में 81.52 प्रतिशत की गिरावट हुई है. पार्टी की आमदनी 6.39 करोड़ और खर्च 24.26 करोड़ रहा. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली तृणमूल 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है और लोकसभा में उसके 34 सदस्य हैं.
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सीपीएम
सीताराम युचुरी के नेतृत्व वाली सीपीएम की आमदनी में 2015-16 और 2016-17 के बीच 6.72 प्रतिशत की कमी आई. पार्टी को 2016-17 के दौरान 100 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने 94 करोड़ रुपये खर्च किए. सीपीएम का राजनीतिक आधार हाल के सालों में काफी सिमटा है.
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सीपीआई
राष्ट्रीय पार्टियों में सबसे कम आमदनी सीपीआई की रही. पार्टी को 2016-17 में 2.079 करोड़ की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 1.4 करोड़ रुपये रहा. लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी का एक एक सांसद है जबकि केरल में उसके 19 विधायक और पश्चिम बंगाल में एक विधायक है.
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समाजवादी पार्टी
2016-17 में 82.76 करोड़ की आमदनी के साथ अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सबसे अमीर क्षेत्रीय पार्टी है. इस अवधि के दौरान पार्टी के खर्च की बात करें तो वह 147.1 करोड़ के आसपास बैठता है. यानी पार्टी ने अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च किया है.
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तेलुगु देशम पार्टी
आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी तेलुगुदेशम पार्टी को 2016-17 के दौरान 72.92 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि 24.34 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. पार्टी की कमान चंद्रबाबू के हाथ में है जो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं.
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एआईएडीएमके और डीएमके
तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके को 2016-17 में 48.88 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 86.77 करोड़ रुपये रहा. वहीं एआईएडीएमके की प्रतिद्वंद्वी डीएमके ने 2016-17 के बीच सिर्फ 3.78 करोड़ रुपये की आमदनी दिखाई है जबकि खर्च 85.66 करोड़ रुपया बताया है.
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एआईएमआईएम
बचत के हिसाब से देखें तो असदउद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम सबसे आगे नजर आती है. पार्टी को 2016-17 में 7.42 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसके खर्च किए सिर्फ 50 लाख. यानी पार्टी ने 93 प्रतिशत आमदनी को हाथ ही नहीं लगाया. (स्रोत: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म)