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चुनाव के बाद ट्यूनीशिया की नई वास्तविकता

२६ अक्टूबर २०११

ट्यूनीशिया में इस्लामी इनाहदा पार्टी की जीत के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या अरब वसंत इस्लामी कट्टरपंथ की ओर जा रहा है. समीक्षक अलेक्जांडर गोएबेल का कहना है कि नई वास्तविकता का सम्मान होना चाहिए.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

धर्म के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? इस प्रसिद्ध यक्ष प्रश्न पर ट्यूनीशिया के ऐतिहासिक चुनावों के बाद अस्मिता और संस्कृति का संघर्ष शुरू हो गया है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं, खासकर इस तथ्य की रोशनी में कि सबसे ताकतवर राजनीतिक शक्ति इनाहदा पार्टी बहुत विवादित है और किसी को ठीक से पता नहीं कि भेड़ की खाल में भेड़िये तो नहीं हैं. घबराई हुई फेसबुक कम्युनिटी सवाल पूछ रही है कि पार्टी शराब पर प्रतिबंध लगाएगी या सभी महिलाओं से बुरका पहनने को कहेगी.

नहीं, इनाहदा नेतृत्व कहता है, ट्यूनीशियाई नागरिकों और खासकर महिलाओं के अधिकारों के साथ छेड़छाड़ नहीं होगी. चुनाव में पार्टी ने खुद को नरमपंथी दिखाया है, तुर्की की सत्ताधारी एकेपी की तर्ज पर. धर्म दिशा निर्देशक होगा, एक तरह की नैतिक सत्ता, जिसे भावी शिक्षा मंत्रालय के जरिए लागू करने का इरादा है. धर्म और राज्य को अलग रखने के समर्थक चिंतित हैं. लेकिन वे एक बात नजरअंदाज कर रहे हैं, ट्यूनीशिया अरब इलाके में पहला सच्चा लोकतंत्र बनने की कोशिश में है, अपनी तरह से और यह सरकारी टेबल पर धर्म को बिठाए बिना संभव नहीं है. यदि इस्लाम को अलग थलग किया जाता है, तो तुरंत पूर्व तानाशाह बेन अली का काल वापस लौट आएगा जो इस्लामी कट्टरपंथियों को जेल में रखते थे और उत्पीड़न करवाते थे.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

नहीं, ट्यूनीशिया खलीफा नहीं बनेगा. हालांकि इस्लाम समर्थक चुनाव में सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं, लेकिन वे अकेले शासन नहीं करेंगे. उन्हें मध्यमार्गी और वामपंथी पार्टियों के साथ गठबंधन बनाना होगा. मेरी राय में, जब लोग इस्लामी पार्टी को चुनते हैं तो यह एक हकीकत है जिसे हमें स्वीकार करना होगा.लेकिन हम ध्रुवीकरण में विश्वास करते हैं, खासकर पश्चिम में. इस्लाम समर्थक बनाम प्रगति समर्थक, यह है हमारा पसंदीदा खेल. लेकिन हम भूल जाते हैं कि लोग थे, जिन्होंने इनाहदा को चुना है.

मुझे लगता है कि हम पश्चिम के लोग पाखंडी लगेंगे, यदि हम लोकतंत्र की मांग करें, लेकिन इस्लामी पार्टी के जीतते ही उसे छोड़ दें. हम बहुत जल्द इस नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि इस्लाम और लोकतंत्र साथ नहीं चल सकते. क्योंकि हम हर चीज एक ही बर्तन में डाल देते हैं, क्योंकि हर जगह उथल पुथल मची है. इस्लामवादी, हमारे लिए स्वाभाविक रूप से कंटरपंथी हैं. तालिबान, मुस्लिम ब्रदरहुड या सोमालिया में कट्टरपंथी आतंकवादी अल शबाब. हमारा विश्वास है, और विश्वास इस धार्मिक परिपेक्ष्य में सही शब्द है, कि इस्लामवाद का अस्तित्व नहीं होना चाहिए. स्वाभाविक रूप से चुनाव के दौरान इनाहदा के तरीके आलोचना योग्य थे.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

स्वाभाविक रूप से ट्यूनीशिया में भी कट्टरपंथ की समस्या है, सलाफियों की, जो अल्पसंख्यक होते हुए भी अक्सर उपद्रव फैलाते हैं. लेकिन यह सब इस बात को झुठला नहीं सकता कि ट्यूनीशिया के नागरिक अपनी नई व्यवस्था में राजनैतिक इस्लाम को जगह देना चाहते हैं. एक राजनैतिक इस्लाम, जो वास्तविकता होगी. एक राजनैतिक इस्लाम जिसे जिम्मेदारी लेनी होगी. हमारे लिए सिर्फ एक बात बचती है कि इस विकास का सम्मान करें. भविष्य ही बताएगा कि इनाहदा इस्लामी कट्टरपंथी है, नरमपंथी इस्लामवादी है, रूढ़िवादी है या बस दक्षिणपंथी, और यह एक राजनीतिक बिसात पर जहां ट्यूनीशिया के धर्मनिरपेक्षता समर्थक वामपंथी हैं.

मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान यह है कि आजादी की चाहत किसी चमत्कार की तरह और स्वाभाविक रूप से धर्मनिरपेक्षता की ओर नहीं ले जाती. भले ही हम पश्चिम में ऐसा चाहते हों. लोकतंत्र समर्थक के रूप में हम इस, पर अफसोस कर सकते हैं, लेकिन लोकतंत्र समर्थक के रूप में हमें इसे स्वीकार करना चाहिए.

समीक्षा: अलेक्जांडर गोएबेल, रबात (मझा)

संपादन: ए जमाल

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