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अब मंदिरों का रुख कर रही है सीपीएम

प्रभाकर मणि तिवारी
२१ फ़रवरी २०२०

सीपीएम की एक आंतरिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि आरएसएस मंदिरों और धर्मस्थलों का इस्तेमाल अपने एजंडे और हिंदुत्ववाद के प्रचार के लिए करता है.

Diwali Festival Indien
तस्वीर: picture alliance/abaca/J. Sultan

कभी पश्चिम बंगाल को लेफ्ट का सबसे अजेय लालकिला माना जाता था. लेकिन 2011 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी के पैरों तले की जमीन यहां लगातार खिसक रही है. बीते लोकसभा चुनावों में तो उसका खाता तक नहीं खुल सका था. लेफ्टफ्रंट शुरू से ही धर्म से दूरी बना कर चलता रहा है. लेकिन अब उसके इस नजरिए में बदलाव आ रहा है. सीपीएम की एक आंतरिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि धर्म को आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों के भरोसे छोड़ने से काम नहीं चलेगा. रिपोर्ट में धार्मिक स्थलों के पास बुक स्टॉल खोलने के अलावा चिकित्सा सेवाएं और पीने के पानी की सुविधा मुहैया कराने की सिफारिश की गई है. कहा गया है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले इन उपायों पर अमल करना जरूरी है.

क्या क्या लिखा है रिपोर्ट में?

सीपीएम ने बीते साल लोकसभा चुनावों और उसके बाद होने वाले उपचुनावों में पार्टी की हार की वजहों की समीक्षा की थी. इसके अलावा पार्टी के प्लेनम यानी विशेष अधिवेशन के दौरान लिए गए फैसलों को लागू करने के मुद्दे पर महीनों चले मंथन के बाद पार्टी ने इस महीने एक आंतरिक रिपोर्ट तैयार कर सभी सदस्यों और शाखा संगठनों को भेजा है. इसमें कहा गया है कि पार्टी मंदिरों व दूसरे धर्मस्थलों को आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों के रहमोकरम पर नहीं छोड़ सकती. इस मामले में हस्तक्षेप के लिए समुचित कदम उठाए जाने चाहिए. पार्टी का कहना है कि मंदिरों का प्रबंधन ऐसे लोगों के हाथों में होना चाहिए जो धर्मनिरपेक्ष और आस्थावान हों.

रिपोर्ट में कहा गया है कि आरएसएस मंदिरों और धर्मस्थलों का इस्तेमाल अपने एजंडे और हिंदुत्ववाद के प्रचार के लिए करता है. वैसे सीपीएम के नेता मूर्तिपूजा से दूरी बरतते रहे हैं. लेकिन धार्मिक त्योहारों के मौके पर वह मेडिकल कैंप और बुक स्टॉल खोल कर आम लोगों से रिश्ते मजबूत करने की कवायद करता रहा है. लेकिन यह पहला मौका है जब पार्टी ने हिंदुत्व के मुकाबले के लिए मंदिर परिसरों में स्थानीय बुक स्टॉल, मेडिकल सेंटर और पेय जल की व्यवस्था की बात कही है.

रिपोर्ट में सांप्रदायिक ताकतों से मुकाबले के लिए आदर्शों की लड़ाई तेज करने की बात भी कही गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि शैक्षणिक संस्थानों में सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ आदर्शों की लड़ाई को मजबूत करने के लिए बुद्धिजीवियों, इतिहासकारों और संस्कृति के विद्वानों को अपने पाले में करने का प्रयास किया जाना चाहिए.

पार्टी की इस आंतरिक रिपोर्ट ने सीपीएम के आदर्शों में बदलाव पर सवाल उठाया है. लेकिन पार्टी के नेता इन प्रस्तावों को तार्किक ठहराते हैं. उनकी दलील है कि धार्मिक उत्सव और धर्मस्थल आम लोगों के मिलने-जुलने का अवसर है. पार्टी आम लोगों से संबंध मजबूत करने के लिए इनका पहले से बेहतर इस्तेमाल कर सकती है. पश्चिम बंगाल विधानसभा में सीपीएम विधायक दल के नेता सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, "हम लोगों से जुड़ने के नए-नए तरीके तलाश रहे हैं. इसमें हमारा कोई धार्मिक एजंडा नहीं है. विभाजनकारी और सांप्रदायिक ताकतों से निपटने के प्रयासों के तहत हम मंदिर समितियों में धर्मनिरपेक्ष लोगों की तादाद बढ़ाने पर जोर देंगे.”

वह कहते हैं कि इसका मतलब इन समितियों में सीपीएम के लोगों को शामिल करना नहीं है. सीपीएम नेता चक्रवर्ती कहते हैं कि पार्टी मंदिर परिसरों में पहले भी बुक स्टॉल और मेडिकल सेंटर खोलती रही है. इसी तरह दुर्गापूजा और कालीपूजा के दौरान भी पंडालों के आस-पास स्टॉल लगाए जाते रहे हैं. सामाजिक तौर पर आम लोगों से जुड़ने का इससे बेहतर कोई मौका नहीं हो सकता. वह कहते हैं, "अंतर यही है कि अब हम अस्थायी की जगह मंदिरों के नजदीक स्थायी स्टॉल बनाना चाहते हैं.”

रिपोर्ट में पार्टी के काडरों को खासकर बंगाल के ग्रामीण इलाकों में आरएसएस के बढ़ते असर पर अंकुश लगाने के लिए आदिवासी इलाकों के शैक्षणिक संस्थानों में अपनी गतिविधियां तेज करने और मौजूदगी बढ़ाने की सलाह दी गई है. ध्यान रहे कि इन इलाकों में आरएसएस की मजबूत उपस्थिति से ही बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी को भारी कामयाबी मिली थी.

विपक्ष की आलोचना

दूसरी ओर राजनीतिक दल इसे सीपीएम के चेहरे और चरित्र में बदलाव के तौर पर देख रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत राय मानते हैं कि यह वामपंथियों के आदर्शों में बदलाव का संकेत है. वह कहते हैं, "सीपीएम अब क्षेत्रीय ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है. इसलिए वह राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए नए-नए तरीके तलाश रही है.” राय कहते हैं कि सीपीएम पहले भी बंगाल में धार्मिक त्योहारों का सियासी इस्तेमाल करती रही है. अब शायद वह समझ गई है कि धर्म और धार्मिक मूल्यों से नाता तोड़ कर आम लोगों से नहीं जुड़ा जा सकता.

कांग्रेस ने भी इसे सीपीएम के आदर्शों में बदलाव करार दिया है. कांग्रेस सांसद अधीर चौधरी कहते हैं, "सीपीएम अब आम लोगों और उनकी धार्मिक भावनाओं से खुद को जोड़ने का प्रयास कर रही है. अपने पैरों तले की खिसकती जमीन को बचाने के लिए उसे लोगों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना होगा. वामपंथी पार्टी भारत में धर्म की अनदेखी कर राजनीति नहीं कर सकती.”

उधर बीजेपी इस बदलाव को देश में सीपीएम के खात्मे का संकेत मानती है. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, "अपने आदर्शों से दूर हटने वाली पार्टी का अंत तय है. खुद को नास्तिक कहने वाले वामपंथी अब मंदिर में शरण लेकर अपने एजंडे को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं.” वह कहते हैं कि आम लोग इस बदलाव को स्वीकार नहीं करेंगे. सीपीएम पूरे देश में राजनीति के हाशिए पर है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "सीपीएम चाहे कुछ भी कर ले, उसकी चुनावी किस्मत में बदलाव संभव नहीं है. आम लोगों ने उसे नकार दिया है.”

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी के रुख में यह बदलाव अपनी जमीन मजबूत करने का प्रयास है. राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर समरेश सान्याल कहते हैं, "सीपीएम के आदर्शों व नीतियों में प्रस्तावित बदलाव को आम लोग कितना स्वीकार करेंगे और इससे पार्टी को कितना फायदा होगा, यह तो भविष्य ही बताएगा. लेकिन फिलहाल इस मुद्दे पर पार्टी को आतंरिक मतभेद और विरोध से भी जूझना होगा.”

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