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चुनाव व त्योहार की आहट ने घटाया कोरोना का खौफ

मनीष कुमार, पटना
१ अक्टूबर २०२०

अक्टूबर-नवंबर में त्योहारों का मौसम होता है. इस बार चुनाव भी हो रहे हैं. चुनाव और त्योहारों की आहट ने बिहार में कोविड-19 का खौफ कम कर दिया है. बेरौनक हुए बाजारों में चहल-पहल बढ़ गई है और सड़कों पर लंबी कतारें दिखने लगीं.

Indien Hohes Verkehrsaufkommen vor dem Markt in Patna
तस्वीर: Manish Kumar/DW

कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लंबे लॉकडाउन के कारण आमलोगों में हताशा-निराशा ने घर कर लिया था. इस दौरान कई तरह की आर्थिक व व्यावहारिक परेशानियां सामने आईं. अनलॉक का क्रम शुरू होने से प्रतिबंध हटे और व्यावसायिक हलचल बढ़ी. लोग धीरे-धीरे घर से बाहर निकलने लगे. इसी दौरान तमाम जद्दोजहद के बीच बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई. राजनीतिक गतिविधियां तेज हुईं और इस वजह से स्वत: स्फूर्त गतिशीलता बढ़ी. सभी 243 विधानसभा क्षेत्र से नेताओं-कार्यकर्ताओं व उनके समर्थकों ने राजधानी पटना का रुख किया. चौक-चौराहे पर चर्चा का बाजार गर्म हुआ. छोटे-बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों, होटलों-दुकानों ने राहत की सांस ली.

शहरों में बढ़ी रौनक

सभी राजनीतिक दलों के दफ्तरों के बाहर पहले की ही तरह टिकटार्थियों की भीड़ दिखने लगी. कोई टिकट के लिए कई दिनों से चक्कर लगा रहा तो कोई किसी का टिकट काटने के लिए विरोध प्रकट करने आया है. माननीय बनने की चाह में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं. समस्तीपुर से पटना आईं गायत्री देवी कहतीं हैं, "चुनाव की घोषणा हो गई है. कोरोना को लेकर सतर्कता भी बरतनी है लेकिन घर बैठने से तो काम चलेगा नहीं. जब इतने दिनों तक क्षेत्र में परिश्रम किया है तो उसका फल पाने के लिए पार्टी के मुखिया से मिलकर दावेदारी पेश करनी ही पड़ेगी." राबड़ी देवी के आवास 10, सर्कुलर रोड के बाहर खड़े औरंगाबाद से आए अजय कुमार कहते हैं, "अब कोरोना के साथ ही जीना है. तभी तो आयोग ने चुनाव की घोषणा की. हमारे गांव के मुखिया इस बार टिकट के प्रबल दावेदार हैं. उन्हीं के साथ आए हैं." यहीं चाट-पकौड़े का ठेला लगाने वाले रतन कहते हैं, "भला हो सरकार का कि चुनाव कराया जा रहा है. कोरोना का भय नहीं होता तो स्थिति कुछ और ही होती. बड़े दिनों के बाद जितना सामान लाया था, सब बिक गया."

वाकई चाय-चाट-पकौड़े, आइसक्रीम, बोतलबंद पेयजल, पॉपकॉर्न व भूजा-सत्तू आदि की दुकान चलाने वाले इन छोटे दुकानदारों की तो लॉकडाउन ने कमर ही तोड़ दी है. ये तो यही चाह रहे हैं कि चुनाव जितना लंबा चले वही अच्छा है क्योंकि सवाल दो वक्त की रोटी के जुगाड़ का है. शहर की सड़कों पर पार्टियों के झंडे लगे वाहन यह बताने को काफी हैं कि चुनाव आ गया है. मुख्य सड़कों पर तो कई बार जाम की स्थिति बन जा रही है. हालांकि फूल दुकानदार अभी भी मायूस हैं. महावीर मंदिर के पास फूल का कारोबार करने वाले रामाशंकर कहते हैं, "बाजार तो सजा हुआ ही है लेकिन ग्राहक गायब हैं." इनकी मानें तो चुनावी मौसम में फूल बाजार में करोड़ों का कारोबार होता था किंतु इस बार कोरोना की वजह से बिक्री पर आफत ही रहेगी. कारण नामांकन के दौरान न भीड़ होगी और न ही कोई जनसभा या रैली.

सड़कों पर कोरोना से पहले जैसी भीड़तस्वीर: Manish Kumar/DW

चुनाव के आसपास त्योहार भी

इधर, 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो रहा है और 25 अक्टूबर को दशहरा है. इसके बाद 14 नवंबर को दीपावली व 20-21 को छठ महापर्व है. जिसका बिहार में विशेष महत्व है. लेकिन नवरात्र के मौके पर न तो पूजा-पंडाल बनेंगे और न ही दशहरा के अवसर पर रावण दहन होगा. इसी बीच प्रदेश में 28 अक्टूबर को विधानसभा की 71 सीट, 3 नवंबर को 94 सीट व 7 नवंबर को 78 सीटों पर चुनाव होना है. जबकि पहले चरण के लिए एक अक्टूबर से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. जाहिर है त्योहारों के इस मौसम में लोकतंत्र का महापर्व भी मनाया जाएगा. राजधानी के कंकड़बाग स्थित रेडिमेड कपड़ों के व्यवसायी अशोक अग्रवाल कहते हैं, "सड़क पर गाड़ियां तो दिख रहीं हैं किंतु किसी भी दुकान पर पहले की तरह कस्टमर नहीं आ रहे. लोग जरूरत की चीजें लेने पर ही ध्यान दे रहे हैं."

उम्मीद की जा रही है कि दशहरा तक स्थिति में और सुधार होगा तब दुकानों में भी ग्राहक दिखने लगेंगे. मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स के आगे खड़े व सड़कों पर दौड़ रहे वाहन कोविड के पूर्व के दिनों की याद ताजा कर रहे हैं. कमोबेश राज्य के सभी छोटे-बड़े शहरों की यही स्थिति है. अनलॉक ने राहत दी और लोगों की गतिविधियां बढ़ीं. कोविड स्पेशल के रूप में चलाई जा रही लोकल मेमू ट्रेनों में उमड़ रही भीड़ यह बताने को काफी है कि कोरोना का खौफ अब खत्म हो चुका है. भागलपुर में तो एक मेमू ट्रेन में बीते दिन चार हजार लोग सवार हो गए जबकि इसकी अधिकतम क्षमता 2700 लोगों की है. इस अफरातफरी में ट्रेन से गिरने से दो लोगों की मौत भी हो गई.

तेजी से गिरा कोरोना का ग्राफ

वहीं सरकारी आंकड़ों की मानें तो बिहार में कोरोना का ग्राफ तेजी से गिरा है. हालांकि अनलॉक के पहले चरण के दौरान कोरोना के मामले तेजी से बढ़े. लेकिन लोगों ने जल्द ही समझ लिया कि उनकी लापरवाही इस महामारी के फैलने का कारण है. बीमारी घर की दहलीज पर पहुंच गई तो लोगों ने एहतियात बरतने में भी कोताही नहीं की. समझ में आने लगा कि वायरस की चेन तोड़ना ज्यादा जरूरी है. वैसे यह सुकून की बात है कि कोरोना जांच के मामले में उत्तर प्रदेश व तामिलनाडु के बाद बिहार तीसरे नंबर पर है.

एयरपोर्ट पर भी लंबी कतारें हैंतस्वीर: Manish Kumar/DW

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार बीते छह महीने से कुछ अधिक समय में बिहार में कोरोना के 71 लाख से ज्यादा जांच किए जा चुके हैं. राज्य में कोविड-19 के संक्रमितों की संख्या 181471 है जबकि बीते 24 घंटे में 1702 लोग स्वस्थ भी हुए हैं. रिकवरी दर 92.52 प्रतिशत है तो वहीं कोरोना संक्रमण की वृद्धि दर 0.8 फीसद के करीब है. पटना, पूर्णिया, मुजफ्फरपुर, सुपौल और अररिया ही सर्वाधिक संक्रमित जिले हैं. वैसे देशभर में 15 सितंबर से कोरोना के सक्रिय मामलों में लगातार गिरावट आ रही है.

कोरोना प्रोटोकॉल का अनुपालन जरूरी

चुनाव आयोग ने भी कोरोना के मद्देनजर ही चुनाव के संबंध में निर्देश जारी किए हैं. आयोग की गाइडलाइन में यह साफ है कि हर कीमत पर संक्रमण को फैलने नहीं देना है. इसके लिए तमाम एहतियात बरतने को कहा गया है. एक बार फिर चुनाव आयोग की टीम मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के नेतृत्व में 29 सितंबर को बिहार आई और प्रदेशभर के आला अधिकारियों के साथ बैठक करके तैयारियों का जायजा लिया. कोरोना से परेशान लोग त्योहारों का इंतजार कर रहे हैं. "पत्रकार रजनीश रंजन कहते हैं, "चुनाव भी महापर्व है और अगर यह कोरोना प्रोटोकॉल व आयोग के गाइडलाइन के अनुपालन के साथ संपन्न हो गया तो निश्चय ही त्योहार का आनंद बढ़ जाएगा."

राजनीतिक दलों की गतिविधियों के दौरान यह देखने को मिल रहा है कि मास्क पहनने व सोशल डिस्टेंशिंग जैसे निर्देशों का पालन करने में घोर कोताही की जा रही है. अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने व आमलोगों के सुचारू जीवन के लिए सभी स्तर पर गतिविधियां बढ़ाने का कोई विकल्प नहीं है. लेकिन कोरोना संक्रमण को रोकने लिए सावधानी जरूरी है. चुनाव हो या फिर दैनिक गतिविधि, कार्यस्थल हो या सार्वजनिक स्थल कोरोना से बचने के लिए साफ सफाई और दूरी के नियमों का पालन की जिम्मेदारी सभी लोगों की है. अन्यथा घर की दहलीज पर खड़ी इस बीमारी को पुन: महामारी में परिणत हो तेजी से पांव पसारने में देर नहीं लगेगी.

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