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चोर के भेस में जादूगर

१५ अप्रैल २०१३

राज कपूर ने श्री 420 में एक गरीब बेघर इनसान का किरदार निभाया. गाना गाते हुए लोगों के बीच नाचते गाते दिखे, भूखे प्यासे लोगों की तरह वह भी भूखे प्यासे थे, गरीबी की मजबूरी और बेबसी अकसर उनसे जेल के चक्कर कटवाती.

तस्वीर: picture-alliance/Mary Evans Picture Library

"हाय करूं क्या सूरत ऐसी,

गांठ के पूरे चोर के जैसी

चलता फिरता जान के एक दिन

बिन देखे पहचान के एक दिन

बांध के ले गया पुलिसवाला."

राज कपूर की फिल्मों की सफलता का शायद रही राज था. फिल्म विश्लेषक और सलाम बॉलीवुड की लेखक भावना सोमैया कहती हैं कि राज कपूर का जादू उनके इसी अंदाज में था, "दिल से राज कपूर एक आम आदमी थे और उन्होंने आम आदमी के दिल को छुआ."

चार्ली चैपलिन से प्रेरित

राज कपूर ने जान बूझ कर अपनी कलाकारी ऐसे विकसित की जिससे कि उनके किरदारों में गरीब इंसान की सरलता दिखे. उन्होंने चार्ली चैपलिन के तरीके का इस्तेमाल किया, बेवकूफ की हद तक ईमानदार व्यक्ति, जो अपनी गरीबी का शिकार बन गया है. इस व्यक्ति के अजीबोगरीब करतूत कानून को भी खटकते और वह खुद को जेल में पाता.

तस्वीर: picture-alliance/Mary Evans Picture Library

गरीब होने के बावजूद अमीरी से उसका कोई न कोई नाता था. मिसाल के तौर पर आवारा में वह एक अमीर जज का बेटा है जिसके पिता उसकी मां पर शक करते हैं और उसे घर से निकाल देते हैं. श्री 420 में वह एक गरीब व्यक्ति का किरदार निभाते हैं जो नौकरी की तलाश में बंबई आता है लेकिन जालसाजी और धोखाधड़ी से अमीर हो जाता है.

एक आम आदमी

सोमैया का मानना है कि इन किरदारों में कुछ बहुत बड़ी खामियां थीं जिससे आम लोग इनके और करीब आ गए, "वह कभी ऐसे हीरो नहीं थे जिनके पीछे महिलाएं भागती थीं. और वह गलतियां भी करते थे. वे कमजोर थे और अपनी कमजोरियों का शिकार भी बनते थे. कभी चोर थे और बेईमान भी, लेकिन उनका किरदार फिल्म के अंत में हमेशा इन खामियों से ऊपर उठने में सफल रहा."

वह कहती हैं कि "फिल्मकार की हैसियत से राज कपूर का अंदाज बहुत लुभाने वाला था. रूस और पूर्वी यूरोप में एशिया और खास कर भारत के प्रति लगाव बनने लगा था. और राज कपूर की फिल्में रंग बिरंगी थीं, उनके किरदार इस तरह के थे कि सब को पसंद आ गए. रूस और पूर्वी यूरोप में लोगों को राज कपूर की फिल्मों का संगीत भी बहुत पसंद आया और खास तौर से वह गाने बहुत पसंद आए जिनमें राज कपूर खुद शामिल थे."

आवारा हूं से "आवारामू"

तस्वीर: picture-alliance/Mary Evans Picture Library

आवारा हूं गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि उसका तुर्की भाषा में भी रूपांतर है और आवारामू के नाम से यूट्यूब पर देखा जा सकता है. इंटरनेट पर ऐसे वीडियो की भरमार है, कहीं रूसी सैनिक आवारा हूं पर नाच रहे हैं और हिन्दी में गा रहे हैं, तो कहीं विदेश में लड़कियां साड़ी पहने गायक के पीछे नाचते हुए भारत का माहौल बना रही हैं.

1967 में उन्हें रूस की टीवी पर आने का भी मौका मिला. उस वक्त उनकी फिल्म तीसरी कसम फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा रही थी. रूस में उन्होंने खास तौर पर लोगों को संबोधित किया और फिल्म का गाना सजन रे झूठ मत बोलो पेश किया. राज कपूर और भारत का खुमार उस वक्त से ही अजरबैजान में इतना छा गया कि आज भी लोग आवारा हूं के धुन गाते हैं. भारत के नाम पर सबसे पहले राज कपूर को याद करते हैं और नरगिस के वहां जाने के बाद कई लोगों ने अपनी बेटियों का नाम नरगिस रखना शुरू किया.

साम्यवाद और समाजवाद

रूस और पूर्वी यूरोप में राज कपूर की फिल्मों की सफलता अकसर भारत में समाजवादी प्रणाली और भारत के साम्यवादी देशों से करीबी रिश्ते से जोड़ी जाती है. रूस और पूर्वी यूरोप में भी जनता गरीब थी और सरकार के नुमाइंदे अमीर थे या कम से कम उनकी हालत आम लोगों से बेहतर थी. को क्या राज कपूर की फिल्में उस वक्त साम्यवादी प्रणाली की आलोचना कर रही थीं.

आइडियोलॉजी ऑफ द हिन्दी फिल्म नाम की किताब लिखने वाले और हैदराबाद में अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं की यूनिवर्सिटी के डॉक्टर एम माधव प्रसाद कहते हैं कि आजादी के बाद नेहरू समाजवाद भारत सरकार की नीतियों को तय कर रही थी. नेहरू जिस तरह के समाजवाद की वकालत कर रहे थे उसमें एक तरफ भारत की वर्तमान स्थिति की आलोचना शामिल थी लेकिन दूसरी तरफ एक नई सुबह यानी भारत के लिए एक उज्ज्वल भविष्य का भी सपना था. राज कपूर अपनी तरह से भारत की नीतियों का समर्थन कर रहे थे.

लेकिन भावना सोमैया कहती हैं कि शायद राज कपूर की फिल्में इसीलिए पूर्वी यूरोप और रूस में सफल हुईं, "राज कपूर की फिल्मों में गरीबों के हक के लिए लड़ा जाता था." सबसे बड़ी बात थी कि गरीबों को उम्मीद दिलाना और उन्हें आश्वासन देना कि एक दिन हालात बेहतर होंगे. "यह सिद्धांत नेहरू का था कि आज हो सकता है कि हमें कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़े लेकिन आने वाला कल जबरदस्त होगा, जिस तरह आज कल ओबामा कहते हैं."

रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः अनवर जे अशरफ

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