छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र सरकार के सहयोग से बने कोवैक्सिन के टीके का इस्तेमाल करने से मना कर दिया है. राज्य का कहना है कि जब तक कोवैक्सिन का तीसरे चरण का परीक्षण पूरा नहीं हो जाता तब तक इसका इस्तेमाल करना ठीक नहीं है.
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कोवैक्सिन शुरू से विवादों में रही है. उसे बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक और सहयोग देने वाली केंद्र सरकार की संस्था आईसीएमआर खुद मानती हैं कि टीके का परीक्षण अभी चल ही रहा है और इसके प्रभावी और सुरक्षित होने से संबंधित पूरी जानकारी अभी सामने नहीं है. कई जानकार इस तरह के टीके के टीकाकरण अभियान में इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं.
भारत में अभी तक 70 लाख से भी ज्यादा अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को टीका लग चुका है. कई राज्य पहले से ही अपने टीकाकरण कार्यक्रम के तहत कोवैक्सिन की जगह सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड का प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ आधिकारिक रूप से इसे ठुकरा देने वाला पहला राज्य बन गया है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने केंद्र सरकार से कहा है कि उनके राज्य में कोवैक्सिन ना भेजी जाए.
छत्तीसगढ़ में कोविशील्ड की 5,88,000 खुराकें भेजी जा चुकी हैं जिनसे राज्य अपने टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत कर चुका है. देव ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन को एक चिट्ठी लिख कर कहा है कि उन्हें पता चला है कि अब उनके राज्य में कोवैक्सिन भेजी जाएगी. उन्होंने अनुरोध किया है कि ऐसा ना किया जाए. इस अनुरोध के पीछे देव ने दो कारण गिनाए हैं.
पहला, टीके का तीसरे चरण का परीक्षण अभी पूरा नहीं हुआ है जिसकी वजह से उसके इस्तेमाल को लेकर सामान्य रूप से लोगों में झिझक है और चिंताएं हैं. दूसरा, उन्होंने बताया है कि कोवैक्सिन की शीशी पर कोई एक्सपायरी तारीख नहीं लिखी होती है. इन बातों के मद्देनजर, उन्होंने केंद्र से अनुरोध किया है कि परीक्षण पूरा हो जाने और उसके नतीजे सामने आ जाने के बाद ही इस टीके को छत्तीसगढ़ भेजा जाए.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने देव द्वारा कही गई बातों का खंडन किया है और कहा है कि दोनों टीकों को तय प्रक्रिया के तहत मूल्यांकन करने के बाद ही इस्तेमाल की अनुमति दी गई है. उन्होंने देव से यह भी कहा कि शीशी पर एक्सपायरी की तारीख ना होने का उनका दावा आधारहीन है और यह साबित करने के लिए उन्होंने कोवैक्सिन के एक शीशी के लेबल की तस्वीर भी दिखाई.
भारत बायोटेक ने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है. कुछ महीनों पहले जब उसके टीके को लेकर ऐसा ही विवाद उठा था तब कंपनी ने दावा किया था कि टीका पूरी तरह से सुरक्षित और उपयोगी है और इसकी जांच सभी नियामक संस्थाएं कर चुकी हैं. कंपनी जल्द ही टीको को ब्राजील और संयुक्त अरब अमीरात निर्यात करने की योजना भी बना रही है.
भारत सरकार अभी तक कोवैक्सिन की एक करोड़ खुराकों और कोविशील्ड की 2.1 करोड़ खुराकों का ऑर्डर दे चुकी है. कोविशील्ड ब्रिटेन-स्वीडन की कंपनी ऐस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का टीका है. सीरम इंस्टीट्यूट के पास इसे भारत में बनाने और बेचने का लाइसेंस है.
वैक्सीन को मंजूरी और कंपनियों के बीच "जुबानी जंग"!
भारत सरकार के ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी डीसीजीआई ने 3 जनवरी 2021 को दो टीकों के आपात इस्तेमाल को मंजूरी दी थी. भारत में बनी कोवैक्सीन और कोविशील्ड को मंजूरी के साथ ही कंपनियों के बीच बयानबाजी शुरू हो गई.
3 जनवरी को भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने दो टीकों कोविशील्ड और कोवैक्सीन के सीमित आपात इस्तेमाल को मंजूरी दी थी. इसी के साथ ही भारत एक साथ दो वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया था. कोविशील्ड को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर देश में तैयार किया है. वहीं कोवैक्सीन पूरी तरह से स्वदेशी है और इसको भारत बायोटेक ने तैयार किया है.
तस्वीर: Amit Dave/REUTERS
वैक्सीन पर बयानबाजी
भारत बायोटेक के चैयरमैन डॉ. कृष्णा एल्ला ने कहा है कि वैक्सीन पर राजनीति हो रही है और ऐसा नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य किसी भी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़ा है. उन्होंने दावा किया कि कौवैक्सीन 200 फीसदी तक सुरक्षित है.
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"पानी जैसी वैक्सीन"
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था अब तक सिर्फ तीन ही वैक्सीन की प्रभावशीलता साबित हुई है. उन्होंने कहा था फाइजर, मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड-एक्स्ट्राजेनेका ही प्रभावशाली है बाकी सभी वैक्सीन सिर्फ "पानी की तरह सुरक्षित" हैं.
तस्वीर: Subhash Sharma/ZUMA Wire/imago images
कोवैक्सीन का बचाव
भारत बायोटेक के चैयरमैन डॉ. कृष्णा एल्ला का कहना है कि कंपनी के पास वैक्सीन बनाने का अनुभव है और लोग ट्रायल पर सवाल ना उठाएं. उन्होंने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा, "हम सिर्फ भारत में ही क्लीनिकल ट्रायल नहीं कर रहे हैं. हमने ब्रिटेन समेत 12 से ज्यादा देशों में ट्रायल किए हैं."
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क्यों उठ रहे हैं सवाल?
कोवैक्सीन पर हेल्थ एक्सपर्ट सवाल उठा रहे हैं, उनका कहना है कि क्लीनिकल ट्रायल मध्य नवंबर तक शुरू नहीं हुआ था. जानकारों का कहना है कि कोविड वैक्सीन शॉट्स को लेकर डाटा का अध्ययन करना और उसे नियामक के पास जमा करना नामुमकिन है. भारत बायोटेक ने अपने बयान में कहा है कि उसने तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल के लिए अब तक 23,000 प्रतिभागियों का सफलतापूर्वक पंजीकरण कर लिया है.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP/picture alliance
कोवैक्सीन बैकअप!
भारत बायोटेक ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के साथ मिलकर कोवैक्सीन को विकसित किया है. भारत बायोटेक का कहना है कि टीका सुरक्षित और प्रभावी है. वहीं एम्स दिल्ली के निदेशक के मुताबिक कोवैक्सीन के टीके का इस्तेमाल बैकअप के रूप में हो सकता है. इसपर एल्ला कहते हैं, "यह एक वैक्सीन है, ना कि बैकअप, लोगों को इस तरह के बयान से पहले सोच लेना चाहिए." उन्होंने एम्स के निदेशक का नाम नहीं लिया.
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"मिलकर करेंगे काम"
भारत की वैक्सीन कंपनियों ने विवाद के बाद 5 जनवरी को एक साझा बयान जारी कर कहा है कि वे देश और दुनिया तक वैक्सीन पहुंचाने का प्रण लेती हैं. बयान में कहा गया, "हमारे सामने अधिक महत्वपूर्ण काम देश और दुनिया की आबादी और आजीविका को बचाना है."
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सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान
भारत दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू करने की तैयारी में जुटा है. टीकाकरण को लेकर पिछले दिनों ड्राई रन भी किया गया था. टीकाकरण के पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों समेत कोरोना महामारी से अग्रिम मोर्चे पर जूझ रहे लोगों और मृत्यु दर के उच्च जोखिम वाले लोगों का टीकाकरण होना है.