भीड़ के लिहाज से कोलकाता पुस्तक मेला दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तक मेला है. आयतन के हिसाब से फ्रैंकफर्ट और लंदन पुस्तक मेले के बाद यह तीसरे नंबर पर है. एशिया का यह सबसे बड़ा पुस्तक मेला है.
विज्ञापन
कोलकाता के प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली सुमित्रा चटर्जी का कहना है, "डिजिटल तकनीक चाहे कितनी भी विकसित हो जाए, किताबों की अहमियत अपनी जगह जस की तस है. हाथों में पुस्तक लेकर पढ़ने से उसके प्रति जो लगाव महसूस होता है वह अहसास स्मार्टफोन, लैपटाप या टैब में पढ़ते हुए नहीं हो सकता." उनकी यह टिप्पणी किताबों की अहमियत बताती है. दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मेला कहा जाने वाला कोलकाता अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला 28 जनवरी से शुरू हो गया है और इसमें खरीददारों की भीड़ भी उमड़ने लगी है. सोमवार को मेले का उद्घाटन करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी लगभग यही बातें कहीं. साल-दर-साल बढ़ता मेले का टर्नओवर भी इसकी पुष्टि करता है. किताबों के कारोबार से जुड़े लोगों लोगों का मानना है कि डिजिटल क्रांति के बाद प्रकाशन उद्योग की चुनौतियां तो बढ़ी हैं. लेकिन साथ ही इससे गुणवत्ता बेहतर हुई है और कारोबार भी बढ़ा है.
44वां कोलकातापुस्तकमेला
कोलकाता पुस्तक मेला इस साल तय दिन से एक दिन पहले 28 जनवरी को ही शुरू हो गया. ऐसा इसलिए क्योंकि 29 जनवरी को राज्य में सरस्वती पूजा मनाई जानी थी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, "इंटरनेट के मौजूदा दौर में भी पुस्तकों की काफी मांग है और यह हमेशा बनी रहेगी.” इस दौरान भारत में रूस के राजदूत कुदाशेव निकोलाए रिशातोविच भी उपस्थित थे. पुस्तक मेला आगामी नौ फरवरी तक चलेगा.
रूस इस वर्ष पुस्तक मेले का थीम देश है. इसके अलावा संयुक्त राज्य, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, जापान, वियतनाम, फ्रांस, अर्जेंटीना, ग्वाटेमाला, मैक्सिको, पेरु, आस्ट्रेलिया, बांग्लादेश समेत 11 लैटिन अमेरिकी देश मेले में शिरकत कर रहे हैं. पुस्तक मेले के दौरान भारत व रूस में साहित्यिक आदान-प्रदान देखने को मिलेगा. मेले में रूस के कई जाने-माने साहित्यकार शामिल होंगे. कोलकाता में रूस के कौंसुल जनरल एलेक्सी इडामकिन कहते हैं, "रूस सबसे ज्यादा पढ़ने वाला देश है और बंगाल सर्वाधिक पढ़ने वाला राज्य. पुस्तक मेले में लगे हमारे स्टाल के जरिए कोलकाता के लोग रूसी साहित्य से वाकिफ होंगे.”
नौ फरवरी तक चलने वाले इस मेले में लगभग छह सौ स्टाल लगाए गए हैं. भीड़ के लिहाज से यह दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तक मेला है. आयतन के हिसाब से फ्रैंकफर्ट और लंदन पुस्तक मेले के बाद यह तीसरे नंबर पर है. लेकिन यह एशिया का सबसे बड़ा पुस्तक मेला तो है ही. पुस्तक मेला परिसर में सातवें कोलकाता लिटरेचर उत्सव का भी आयोजन किया जाएगा. इसमें जाने-माने लेखक, निदेशक, इतिहासकार, रंगमंच, फिल्म, संगीत व खेल से जुड़ी हस्तियां शिरकत करेंगी.
जसकीतसहैकिताबोंकीअहमियत
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हों या रूस के राजदूत कुदाशेव निकोलाए रिशातोविच या फिर मेले में उमड़ने वाली खासकर युवाओं की भीड़, एक बात पर इन लोगों में आम राय है कि इंटरनेट की अहमियत और पहुंच तेजी से बढ़ने के बावजूद किताबों का मह्तव कम नहीं हुआ है. मेले के आयोजक पब्लिशर्स एंड बुक सेलर्स गिल्ड के अध्यक्ष त्रिदिब कुमार चटर्जी बताते हैं, "कोलकाता पुस्तक मेले में साल-दर-साल बढ़ती बिक्री से साफ है कि किताबों की अहमियत कम नहीं हुई है. मेले में युवा तबके के लोगों की भीड़ ही सबसे ज्यादा है.” वह कहते हैं कि हर साल इस मेले का आकार, यहां आने वाली भीड़ और बिक्री का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है. मेले में रोजाना औसतन ढाई करोड़ रुपए की किताबें बिक रही हैं. उनका कहना है कि यह आंकड़े हकीकत बयान करते हैं. चटर्जी ने बताया कि वर्ष 2019 में लगभग 22 करोड़ की पुस्तकें बिकी थीं. इस साल यह आंकड़ा 25 करोड़ के पार जाने की उम्मीद है.
हालांकि ऐसा नहीं है कि डिजिटल तकनीक के प्रसार की वजह से पुस्तक प्रकाशन उद्योग को चुनौतियों से नहीं जूझना पड़ा हो. कोलकाता के जाने-माने प्रकाशक देज पब्लिशिंग के सुधांशु शेखर दे कहते हैं, "हमें शुरुआत में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. मन में डर भी था कि कहीं डिजिटल हमले की वजह से यह उद्योग खत्म तो नहीं हो जाएगा. लेकिन उन चुनौतियों से निपटने के लिए उद्योग ने तकनीक और गुणवत्ता बेहतर की. नतीजा सामने है. पुस्तकों की बिक्री पहले के मुकाबले ज्यादा हो रही है.”
खतरे में नहीं हैं किताबें
बांग्ला के मशहूर प्रकाशक आनंद पब्लिशर्स के प्रबंध निदेशक सुबीर मित्र कहते हैं, "इंटरनेट से छपी हुई पुस्तकों को कोई खतरा नहीं है. हमारी बिक्री के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं.” वह कहते हैं कि इंटरनेट की बढ़ती पहुंच छपी हुई पुस्तकों के लिए वरदान साबित हुई है. इसके सहारे लोग घर बैठे आनलाइन पुस्तकें मंगा रहे हैं. लेकिन आखिर इसकी वजह क्या है? जब पुस्तकें इंटरनेट पर मुफ्त में मौजूद हैं तो लोग उनके लिए जेब क्यों हल्की करेंगे? इसका जवाब देती हैं कोलकाता विश्वविद्यालय की छात्रा सुरभि चटर्जी. वह कहती हैं, "छपी हुई हाथ में पुस्तक लेकर पढ़ने पर जो अहसास होता है वैसा ई-बुक्स पढ़ते समय नहीं होता.” महानगर के एक कालेज में पढ़ाने वाले प्रोफेसर धीरेन गांगुली भी इसकी पुष्टि करते हैं. वह कहते हैं, "छपी हुई पुस्तकों की लाइब्रेरी तो अब हर घर का हिस्सा बन चुकी है. जब जी चाहा, बुकशेल्फ से मनपसंद पुस्तक निकाल ली.”
भारत में सर्वेक्षण करने वाली संस्था नीलसन ने वर्ष 2018 में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत दुनिया में किताबों का दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया है. यहां अंग्रेजी भाषा में ही नौ हजार से अधिक प्रकाशक हैं जो साल भर में 90 हजार से ज्यादा किताबें छापते हैं. वर्ष 2018 में ही अमेरिकी जर्नल ‘इलेक्ट्रॉनिक मार्केट्स' में छपे एक अन्य सर्वेक्षण में कहा गया था कि युवा पीढ़ी भी ई-रीडर्स के बजाय छपी हुई किताबों को ज्यादा तवज्जो देती है और उनमें किताबों के प्रति लगाव अधिक उम्र के लोगों के मुकाबले ज्यादा है.
हैरी पॉटर से लेकर डिक्शनरी तक यहां उन किताबों को देखिये जो बहुत मशहूर हुईं लेकिन साथ ही उन पर पाबंदियों की बेड़ियां भी लगाई गईं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/PA I. Nicholson
हैरी पॉटर
जे के रॉलिंग की लिखी इस किताब ने 2000 से 2009 तक दुनिया को अपने जादू से अभिभूत किये रखा लेकिन धार्मिक गुटों ने इस पर पाबंदी की मांग भी की. अमेरिका में कई ईसाई पाठकों ने इसे शैतानी कहा और इसकी प्रतियां जलाईं गईं. संयुक्त अरब अमीरात के स्कूलो ने तो इन पर बकायदा पाबंदी ही लगा दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpa-Film Warner
द ब्रदर ग्रिम्स फेरी टेल्स
क्या कोई परियों की कहानियां भी प्रतिबंधों में जकड़ सकता है, सुन कर हैरानी होती है लेकिन दुनिया में बच्चों की किताबों पर बड़ी बंदिशें हैं. ग्रिम बंधुओँ की कहानियां भी इससे अछूती नहीं. 1989 में कैलिफोर्निया के एक स्कूल ने इसे पढ़ने पर रोक लगा दी क्योंकि इस किताब में एक जगह लिखा था दादी मां की लाई वाइन ने उसे अच्छा महसूस कराया.
तस्वीर: Imago/United Archives
जेम्स एंड द जायंट पीच
1961 में छपे एक बच्चे के जादुई रोमांच की कहानियों को भी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा. इस कहानी में तंबाकू, व्हिस्की और कुछ दूसरे शब्दों को लेकर 1990 में आपत्ति जताई गई. इसके अलावा ओहायो के एक किताब विक्रेता ने यह भी दावा किया कि यह किताब कम्युनिज्म की वकालत करती है.
लज्जा
1992 में भारत के अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराये जाने के बाद पड़ोसी देशों में भी दंगे शुरू हो गये. बांग्लादेश की मुस्लिम लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इसी पर एक किताब लिखी लज्जा जिसे लेकर भारी विवाद हुआ और इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इस किताब के कारण तस्लीमा नसरीन को जान बचाने क लिए अपना देश छोड़ना पड़ा. कई सालों तक पश्चिमी देशों में रहने के बाद अब वे भारत के कोलकाता में रहती हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Gautreau
वेयर द वाइल्ड थिंग्स आर, मौरिस सेंडेक
युवा मैक्स बुरा बर्ताव करता है और उसे बिना भोजन के ही सोने के लिए भेज दिया जाता है. भूखा बच्चा अपने कमरे को एक रहस्यमय जंगल में बदलते देखता है. 1963 में छपी सेंडक की इस तस्वीरों वाली किताब में केवल 338 शब्द हैं तो भी इसे किताब को इसकी विषयवस्तु के कारण प्रतिबंधित किया गया. यहां तक कि इसे 3-4 साल के बच्चों के लिए मनोवैज्ञानिक नुकसान वाला बताया गया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Newscom
द वंडरफुल विजार्ड ऑफ ओज, एल फ्रांक बाउम
पहली बार साल 1900 में छपे एल फ्रांक बाउम के इस उपन्यासों की सीरीज ने अमेरिका में कई मुश्किलों का सामना किया. 1928 में इसे शिकागो के सार्वजनिक पुस्तकालयों में रखने पर रोक लगी. आरोप लगा "महिलाओँ को मजबूत नेतृत्व की भूमिका में दिखाने का." फिर 1957 में भी इन्हीं आरोपों पर डेट्रॉयट में इसे प्रतिबंधित किया गया. अब भी कई गुट यह दावा करते हैं कि ये किताब जादू टोने को बढ़ावा देती है.
मेफिस्टो, क्लाउस मान
यह एक महत्वाकांछी अभिनेता हेंड्रिक हॉफगेन की कहानी है जो नाजियों के सत्ता में आने पर उनके साथ मिल गया. मेफिस्टो पहली बार नीदरलैंड्स में 1936 में छपा और जर्मनी में 1956 तक नहीं आया. 60 और 70 के दशक में याचिका दायर की गई कि यह उपन्यास वाइमार रिपब्लिक के अत्यंत प्रभावशाली अभिनेता गुस्ताफ ग्रुंडगेन्स के जीवन की सत्य घटनाओं पर आधारित है.
हार्ट ऑफ डार्कनेस, जोसेफ कोनराड
पोलैंड में जन्मे ब्रिटिश लेखक जोसेफ कोनराड की 1902 में आई यह किताब कॉन्गो को बेल्जियम का उपनिवेश बनाने की तस्वीर बयान करती है. यह किताब आत्मकथ्यात्मक शैली में है और लेखक की जीवनी भी साथ साथ चलती है. रंगभेद और साम्राज्यवाद का जिक्र करती इस किताब को अमेरिका के कई स्कूलों में हिंसक विषयवस्तु के नाम पर प्रतिबंधित किया गया.
तस्वीर: picture-alliance / KPA Honorar & Belege
सैटनिक वर्सेज
सलमान रुश्दी की इस किताब पर भारत में प्रतिबंध लगाया गया. लेखक सलमान रुश्दी के खिलाफ कई देशों में भारी प्रदर्शन हुए और उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गयी. कई सालों के बाद उनके भारत के एक कार्यक्रम में आने को लेकर भी बड़ा विवाद हुआ.
तस्वीर: Random House
एनिमल फॉर्म, जॉर्ज ऑरवेल
1945 में ऑरवेल के इस राजनीतिक व्यंग्य में रूसी क्रांति और सोवियत इतिहास का चर्चा है. आश्चर्य नहीं कि इस पर रूस में प्रतिबंध है और सीआईए ने शीत युद्ध के दौरान इसका खूब प्रचार किया. इस उपन्यास को अब कई फीचर और एनिमेशन फिल्मों में ढाल दिया गया है इसके साथ ही कई नाटक और रेडियो कार्यक्रम भी बनाये गये हैं. अमेरिका के कई स्कूलों में इसे अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाता है.
द अलकेमिस्ट, पाउलो कोएल्हो
दुनिया की यह विख्यात किताब ईरान में भी मशहूर है जबकि इस किताब के साथ ही पाउलो कोएल्हो की हर रचना पर ईरान में प्रतिबंध है. कोई आधिकारिक कारण तो नहीं बताया गया लेकिन 2009 में दिखे एक वीडियो को इसकी वजह बताया जाता है. इसमें कोएल्हो के ईरानी संपादक अराश जेजाजी को एक युवा महिला की जान बचाते देखा गया जिसकी तेहरान में चुनाव के बाद हुए प्रदर्शनों के दौरान गोली लगने से मौत हुई थी.
द डायरी ऑफ यंग गर्ल, एन फ्रैंक
दुनिया की सबसे विख्यात किताबों में से एक है द डायरी ऑफ यंग गर्ल. यह उस जर्मन लड़की की डायरी है जो बर्गेन बेल्सेन के यातना शिविर में मर गयी. 2010 में वर्जीनिया में किताब के कई सैक्सुअल पैराग्राफ को लेकर चिंता जताई गयी, इसी तरह की शिकायतें 2014 में मिशिगन से भी आई थीं.
तस्वीर: Internationales Auschwitz Komitee
लोलिता, व्लादीमिर नाबोकोव
एक अधेड़ उम्र के प्रोफेसर के मन में 12 साल की लड़की से दीवानगी की हद तक चाहत ने दुनिया भर में हंगामा मचाया. लोलिता पर ना सिर्फ फ्रांस में प्रतिबंध लगा जहां यह 1955 में छपी थी बल्कि ऑस्ट्रेलिया में भी रोक लगी. इसकी विषयवस्तु ने ब्रिटिश रूढ़िवादी नेता निगेल निकोल्सन का करियर भी खत्म कर दिया. निकोल्सन के प्रकाशन संस्थान ने ही इस किताब को ब्रिटेन में जारी किया था.
फ्रांकेस्टाइन, मैरी शेले
ब्रिटिश लेखिका मैरी शेले का यह मशहूर उपन्यास डॉ विक्टर फ्रांकेस्टाइन की कहानी है. फ्रांकेस्टाइन वैज्ञानिक थे और उन्होंने एक ऐसी रचना की जिसने धार्मिक नेताओं को विभाजित कर दिया. इस किताब ने अमेरिका के धार्मिक समुदायों के बीच जबर्दस्त बवाल मचाया और आखिरकार 1955 में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया.
द डिक्शनरी
प्रतिबंधित किताबों की इस सूची में मशहूर ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी भी शामिल है. अंग्रेजी भाषा की इस मशहूर डिक्शनरी के 10वें संस्करण को कैलिफोर्निया के कई स्कूलों से 2010 में हटा दिया गया. अभिभावकों ने शिकायत की थी कि यह इस किताब में लोगों के यौन व्यवहारों की का विस्तृत ब्यौरा है जिसे बच्चों के लिए उचित नहीं है.