छात्रों की असली परीक्षा तो दिल्ली में रहने की है
१४ अगस्त २०१८छात्रों की इस समस्या की चर्चा महज आपसी वार्तालाप और गपशप के विषय तक सीमित रही, कभी गंभीर बहस का मुद्दा नहीं बन सकी. दिल्ली के मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर इलाकों में हर साल हज़ारों की संख्या में छात्र संघ लोक सेवा आयोग और राज्यों की लोक सेवा आयोग की तैयारी के लिए आते हैं. इनमें से ज्यादातर यूपी और बिहार के होते हैं, हालांकि अन्य राज्यों से भी छात्र आते हैं. यही स्थिति उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद और लखनऊ की है तो पटना, जयपुर, इंदौर, भोपाल, हैदराबाद भी छोटे-मोटे केंद्र हैं.
बात दिल्ली और इलाहाबाद की की जाए तो लाखों की संख्या में छात्र यहां इन्हीं परीक्षाओं की तैयारी के लिए ही आते हैं और तब तक रहते हैं जब तक कि या तो चयन नहीं हो जाता या फिर ओवरएज नहीं हो जाते. कुछ यही हाल इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी के लिए मशहूर राजस्थान के कोटा शहर का है.
इन शहरों के जिन इलाकों में छात्र रहते हैं, वहां की अर्थव्यवस्था का आधार यही छात्र होते हैं. लेकिन दूसरी ओर, ये छात्र हर तरफ से शोषण के भी शिकार बनते हैं. चाहे मोटी फीस लेकर तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थान हों, किराये पर कमरा देने वाले मकान मालिक हों या फिर कमरा दिलाने वाले प्रॉपर्टी डीलर और तमाम तरह के दुकानदार. छात्रों से हर कोई मोटी रकम वसूल लेना चाहता है.
छात्रों का शोषण
यहां रह रहे ज्यादातर छात्र अपने खर्च के लिए अपने मां-बाप और घर वालों पर ही निर्भर होते हैं. दिल्ली के नेहरू विहार, गांधी विहार, मुखर्जी नगर, राजेंद्र नगर जैसे इलाकों में रहने वाले हर छात्र का खर्च कम से कम दस हजार रुपये महीना आता है. इस दस हजार रुपये का बड़ा हिस्सा कमरे के किराये के रूप में चला जाता है और बाकी खाने-पीने और किताब-कॉपी-स्टेशनरी इत्यादि पर.
इतना महंगा कमरा होने के बावजूद यदि इन कमरों को देखा जाए तो मुश्किल से 30-35 गज के कमरों में दो या तीन छात्र या कभी चार भी एक साथ रहते हैं. किराये का आलम ये है कि छात्रों से एक कमरे का नहीं बल्कि एक बेड का किराया लिया जाता है और एक कमरे में कई छात्रों को ठूंस दिया जाता है, जहां सुविधा के नाम पर सिर्फ़ एक पंखा, कुर्सी-मेज, एक बिस्तर और एक आलमारी दी जाती है. कई बार तो इनका इंतजाम भी छात्रों को खुद ही करना पड़ता है. लड़कियों के साथ भी ऐसा ही होता है.
ये सारी समस्याएं तो अपनी जगह हैं लेकिन जिस तरीके से नेहरू विहार की घटना सामने आई और उससे जो सूत्र खुले, उसने इन छात्रों की समस्याओं का अपेक्षाकृत और कठोर सच सामने लाने का काम किया. घर से दूरी, महंगी पढ़ाई और परीक्षा के दबाव के अलावा ये छात्र-छात्राएं अपने साथ कई स्तर पर हो रही बदसलूकी से भी संघर्ष कर रहे हैं.
नेहरू विहार में सिविल सेवा की तैयारी कर रहे छात्र दिनेश कुमार बताते हैं, "हमारे पैसों पर ही आजीविका चला रहे ये मकान मालिक और प्रॉपर्टी डीलर आए दिन छात्रों पर रौब गांठते रहते हैं. यही नहीं, छात्रों के साथ अक्सर मार-पीट भी करते हैं. छात्र चूंकि अपनी पढ़ाई पर फोकस रहते हैं इसलिए वो इसे तूल देना नहीं चाहते और जब कभी हम शिकायत लेकर पुलिस के पास पहुंचते भी हैं तो हमारी सुनी नहीं जाती.”
किसी का ध्यान नहीं
मुखर्जी नगर में रहने वाले एक अन्य छात्र मुजतबा का कहना है कि पिछले कई दिन से हजारों की संख्या में छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन हमारी सुनने वाला कोई नहीं है- न पुलिस, न प्रशासन, न नेता और न ही मीडिया.
छात्रों को सबसे ज्यादा उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है मकान मालिकों और उनके साथ अघोषित गठबंधन करके अपना हित साधने वाले प्रॉपर्टी डीलरों का. मुखर्जी नगर में प्रॉपर्टी डीलर का ही काम करने वाले एक सज्जन, नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "प्रॉपर्टी डीलर तो सच में छात्रों का शोषण करते हैं. हालांकि सब ऐसे नहीं हैं लेकिन ज्यादातर हैं. मकान मालिकों से सांठ-गांठ करके पहले तो ये कमरों का किराया आसमान पर चढ़ा देते हैं और फिर तीन-चार महीनों में ही छोड़ने का दबाव बनाते हैं ताकि दूसरे को ये और महंगे रेट पर उठा सकें.”
ऐसी शिकायत छात्रों की आम है. छात्र यदि इसका विरोध करते हैं तो वो इन लोगों के कोपभाजन का शिकार होते हैं. दिनेश कुमार कहते हैं, "अब छात्रों का कोई संगठन तो है नहीं. दूसरे हम लोग यहां नेतागिरी करने तो आए नहीं है. इसी का फ़ायदा ये लोग उठाते हैं. इन्हें पता है कि लाखों की संख्या में छात्र यहां भले ही रह रहे हों लेकिन एक साथ आकर ये लड़ाई या आंदोलन कर नहीं सकते हैं.”
समस्या की जड़ कहीं और
लेकिन दूसरी ओर, कुछ मकान मालिक और प्रॉपर्टी डीलर कई छात्रों को भी विवाद के लिए दोषी ठहराते हैं. गांधी विहार में बग्गा प्रॉपर्टी के नाम से प्रॉपर्टी डीलिंग करने वाले सरबजीत कहते हैं, "सारे छात्र यहां पढ़ने ही नहीं आते. जो पढ़ने आते हैं वो थोड़ी-बहुत परेशानी भी सह लेते हैं. कुछ तो यहां मौज-मस्ती और पैसा बहाने ही आते हैं. यही छात्र दूसरों के लिए भी मुसीबत खड़ी करते हैं.”
यही हाल, दूसरे शहरों का भी है लेकिन कुछ कम. इलाहाबाद में रहने वाले छात्रों को इस समस्या से थोड़ा कम रूबरू होना पड़ता है क्योंकि वहां प्रॉपर्टी डीलर वाला कल्चर अभी विकसित नहीं हुआ है. इलाहाबाद से पढ़कर इस समय सिविल सेवा में पदस्थ एक अधिकारी राकेश मिश्र कहते हैं, "इलाहाबाद में छात्रों के बीच एक पारिवारिक रिश्ता होता है. शहर में नया आने वाला छात्र पहले से रह रहे छात्रों के लिए छोटे भाई बहन जैसे होते हैं. इसलिए इन बड़े भाइयों और बहनों पर उनकी सुविधाओं का खयाल रखना उनकी नैतिक जिम्मेदारी होती है. यही वजह है कि दिल्ली और अन्य शहरों वाला प्रोफेशनलिज्म यहां हावी नहीं है.”
दिलचस्प बात ये है कि लाखों की संख्या में घर से दूर, परेशानी सहते हुए छात्र जिन परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, नियुक्तियों की संख्या हर साल महज कुछ हजार में होती है. यूपीएससी हर साल प्रशासनिक सेवाओं में करीब एक हजार तो अन्य सेवाओं के लिए भी लगभग इतनी ही रिक्तियां निकालती है, जबकि राज्य लोक सेवा आयोगों में ये संख्या और भी कम है. लेकिन इन नौकरियों का आकर्षण इतना ज्यादा है कि लाख परेशानी के बावजूद युवा इन्हें पाने के लिए डटे रहते हैं.