गुजरात के एक गांव में कुछ कारीगर अपने कुशल हाथों से लकड़ी के टुकड़ों पर चित्र और सूचनाओं से भरे रंगीन कागज चिपका रहे हैं. देखते ही देखते उनका ये प्रयास एक छोटे से घर में तब्दील हो जाता है.
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गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर नानी देवती गांव में बने रहे इन खिलौनेनुमा घरों पर संक्षेप में भारत का संविधान उपलब्ध हैं. इस कलाकृति के पीछे 61 साल के दलित कार्यकर्ता मार्टिन मैकवान की सोच है. वह कहते हैं कि हर कोई संविधान को बचाने की बात कर रहा है लेकिन संविधान असल में क्या कहता है इसके बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है.
इन दिनों हिन्दुस्तान में राजनीतिक उबाल है. नए नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिज़नशिप (एनआरसी) जैसे मुद्दों को लेकर लोग सड़कों पर हैं. जगह जगह प्रदर्शन हो रहे हैं.
इस घर के द्वार में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का फलसफा है जो भारत के संविधान की बुनियाद तैयार करता है. खिड़कियों पर मौलिक अधिकार से लेकर संविधान की तमाम धाराओं के बारे में जानकारी लिखी है. घर की छत पर राष्ट्रगान के साथ गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर दिखते हैं तो वहीं नागरिकों के मूल कर्तव्यों के बारे में भी बताया गया है. दीवारों पर सभी धर्मों के नागरिकों की तस्वीरें भी हैं और अधिकृत भाषाओं की लिस्ट भी टंगी है.
मार्टिन महज 100 ग्राम के इस खिलौने को हाथ में लेकर हमारे सामने कुछ मिनटों में ही संविधान का पूरा खाका खींच देते हैं जिसे जानने के लिए कई साल तक भारी भरकम कानूनी पुस्तकों का सहारा लेना पड़ता है.
मार्टिन बताते हैं, "हमने इसे घर का रूप दे दिया है कि जैसे पूरे परिवार का एक अपना घर होता है वैसे ही हमारा संविधान पूरे देश का घर है. आज हर कोई नारा लगा रहा है कि संविधान बचाओ. लेकिन इस संविधान में क्या है जिसे बचाना है. असल में संविधान की पुस्तक इतनी भारी भरकम है और कई बार कानूनी शब्दावली से भरी होती है कि लोग उसे पढ़ नहीं पाते लेकिन इस घर को दिखाकर आप किसी बच्चे को भी संविधान सिखा सकते हो.” उन्होंने गणतंत्र दिवस के मौके पर यह प्रयोग किया है.
भारत में कुछ कानून मधुमक्खी का छत्ता बन चुके हैं. उन पर बात करना बवाल खड़ा कर देता है. ऐसे कौन से कानून हैं जिन पर खूब विवाद होता है.
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धारा 375, सेक्शन 2
धारा 375 रेप की परिभाषा देती है लेकिन इसमें एक अपवाद बताया गया है. पति-पत्नी के बीच यौन संबंधों को किसी भी सूरत में रेप नहीं माना जाएगा, अगर पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक है. यानी पति अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती कर सकता है. इस पर कोर्ट में केस चल रहा है.
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धारा 370
भारतीय संविधान की धारा 370 के मुताबिक जम्मू और कश्मीर राज्य को बाकी राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार दिए गए हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत कई दक्षिणपंथी संगठन और विचारक इस कानून का विरोध करते हैं और इसे खत्म करने की मांग करते हैं.
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सैन्य बल विशेषाधिकार कानून
अंग्रेजी में AFSPA के नाम से मशहूर यह कानून अशांत इलाकों में सेना को विशेष अधिकार देता है. सेना किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है, कहीं भी छापे मार सकती है. लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इसका बहुत बेजा इस्तेमाल होता है.
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धारा 499
संविधान की धारा 499 के अनुसार किसी व्यक्ति, व्यापार, उत्पाद, समूह, सरकार, धर्म या राष्ट्र की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने वाला असत्य कथन मानहानि कहलाता है. राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और सुब्रमण्यन स्वामी ने तो सुप्रीम कोर्ट में अपील की कि इस कानून को खत्म किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, नहीं.
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धारा 498-ए
इस कानून के मुताबिक पत्नी पर क्रूरता करता हुआ पति या पति का रिश्तेदार यानी ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो कि किसी महिला का पति या पति का संबंधी हो, यदि महिला के साथ क्रूरता करता है तो उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है. इस कानून का विरोध करने वालों का कहना है कि महिलाएं कई बार इसका इस्तेमाल बेजा तरीके से करती हैं.
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भूमि अधिग्रहण कानून
मोटे मोटे शब्दों में कहें तो यह कानून सरकार को किसानों से जमीन लेने का अधिकार देता है. 1894 में बनाए गए इस कानून में 2014 में कुछ सुधार हुए थे. लेकिन सरकार का जमीन लेने का अधिकार बना हुआ है. किसानों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोग इस कानून में और बदलाव चाहते हैं.
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इस घर में संविधान की तमाम धाराओं के साथ याद दिलाया गया है कि महिलाओं के सम्मान के साथ छुआछूत जैसी प्रथाओं का विरोध और वैज्ञानिक सोच का विकास करना हमारी जिम्मेदारी है. एक महत्वपूर्ण बात इस घर के बाहर बाबा साहेब अंबेडकर के चित्र के साथ छपी वह टिप्पणी भी है जो संविधान सभा में दिए गए उनके आखिरी भाषण का हिस्सा है.
संविधान कितना भी अच्छा हो, लेकिन उसका अमल करने वाले लोग अच्छे नहीं होंगे तो संविधान खराब साबित होगा और संविधान कितना भी खराब होगा, लेकिन उसका अमल करने वाले लोग अच्छे होंगे तो संविधान अच्छा साबित होगा.
डॉ अंबेडकर की यह टिप्पणी हिन्दुस्तान में आज के हालात पर खरी है. शायद इसीलिए नानी देवती गांव में मार्टिन के कारीगर साथियों ने ऐसे सैकड़ों घर बना दिए हैं जिन्हें आसान भाषा में संविधान की सीख देने के लिये देश में जगह-जगह भेजा जा रहा है. मार्टिन कहते हैं कि गुजरात के अलावा मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, उड़ीसा और पंजाब समेत कई राज्यों से संविधान की इस कलाकृति की मांग हो रही है. इसके अलावा उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी यह नमूने भेजे जाएंगे.
वह कहते हैं, "हम देश की 22 (अधिकृत) भाषाओं और कुछ आदिवासी बोलियों (डायलेक्ट) में भी ये घर तैयार कर रहे हैं. हमने गुजराती भाषा में काम शुरू किया लेकिन देश के हर हिस्से से लोग हमें ये खिलौने भेजने का ऑर्डर दे रहे हैं. अधिक से अधिक लोगों तक संविधान की जानकारी पहुंचाना ज़रूरी है. जो सीख लोग भारी भरकम, उबाऊ और क़ानूनी भाषा-शैली वाली पुस्तक से नहीं ले सकते उसके लिये यह प्रयोग काफी कारगर रहेगा.”
ऐसा कहते हुए मार्टिन के चेहरे पर संतोष की झलक दिखती है जिसमें उनके साथियों का यह नायाब सम्मिलित प्रयास झलकता है.
जर्मनी में संविधान को ग्रुंडगेजेत्स या "बेसिक लॉ" के नाम से जाना जाता है. 23 मई 2019 को इसे बने 70 साल हो गए. जंग और नाजी काल के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए इस संविधान पर जर्मन लोगों को आज भी पूरा भरोसा है.
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"मानव गरिमा अलंघनीय है"
हिटलर के दौर में मानव गरिमा की कोई अहमियत नहीं थी. जो भी नाजी विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखता था, उस पर यातना शिविर में ले जा कर मार दिए जाने का खतरा मंडराता रहता था. जब बेसिक लॉ बनाया गया तो उसमें मानव गरिमा को सबसे अहम जगह दी गई. यह इतिहास से ली गई सीख थी.
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जन्म की घड़ी
23 मई 1949 को कॉनराड आडेनावर ने संसदीय परिषद के अध्यक्ष के रूप में बेसिक लॉ पर हस्ताक्षर किए. इसी साल सितंबर में वे पश्चिमी जर्मनी के पहले चांसलर चुने गए. संसदीय परिषद सितंबर 1948 से ही जर्मनी के लिए एक लोकतांत्रिक संविधान का मसौदा तैयार कर रही थी. इसे संविधान ना कह कर "बेसिक लॉ" नाम दिया गया क्योंकि जर्मनी के विभाजित होने के कारण इसे अस्थायी रूप से बनाया गया था.
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इनकी अगुआई में
दूसरे विश्व युद्ध में हारने के बाद जर्मनी पर सोवियत संघ, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने कब्जा कर लिया था. संविधान का मसौदा पश्चिमी मित्र सेनाओं की निगरानी में तैयार किया गया. मसौदे को फ्रांस के जनरल पियर किंग, ब्रिटेन के जनरल सर ब्रायन रॉबर्टसन और अमेरिका के जनरल लूशियस क्ले की मंजूरी मिलना जरूरी था.
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समान अधिकार
संसदीय परिषद के 61 पुरुष सदस्यों को महिलाओं के अधिकारों का ख्याल नहीं आया. लेकिन परिषद में चार महिला सदस्य भी थीं जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि संविधान के मसौदे में महिलाओं को पुरुषों के ही बराबर अधिकार की बात भी शामिल की जाए. इसमें एसपीडी पार्टी की नेता एलिजाबेथ जेलबर्ट की अहम भूमिका रही.
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आपातकालीन कानूनों के खिलाफ
1968 में आपातकालीन कानूनों के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. इनमें विशेष रूप से छात्रों ने हिस्सा लिया. महागठबंधन ने आपातकाल से निपटने के लिए दो तिहाई बहुमत के साथ बेसिक लॉ को बदल दिया था. आलोचकों ने इसकी तुलना वाइमार संविधान के आपातकालीन अनुच्छेद 48 से की जिसे हिटलर के सत्ता में आने का कारण माना जाता है.
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"सभी जर्मन जन"
1990 तक बेसिक लॉ की भूमिका में लिखा था, "सभी जर्मन जन को स्वतंत्र रूप से दृढ संकल्प के साथ जर्मनी की एकता और स्वतंत्रता को संपूर्ण बनाने के लिए आमंत्रित किया जाता है." एकीकरण के बाद पूरी तरह नया संविधान लिखने का मौका था. लेकिन पूर्वी जर्मनी जीडीआर ने बेसिक लॉ के आधार पर ही पश्चिम जर्मनी में शामिल होने का फैसला किया. बदला तो सिर्फ भूमिका लेख और उसमें भी "सभी जर्मन जन" का जिक्र बरकरार रहा.
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शरण लेने का अधिकार
चांसलर हेल्मुट कोल के अपने कार्यकाल में संविधान के अनुच्छेद 16 में बदलाव किए. यह अनुच्छेद जर्मनी में शरण लेने के अधिकार के बारे में है. 1993 के बाद से यदि कोई व्यक्ति यूरोपीय संघ के किसी और देश से होता हुआ जर्मनी आता है, तो उसे जर्मनी में राजनीतिक रूप से शरण लेने का अधिकार नहीं है. जबकि 1993 से पहले तक ऐसा नहीं था.
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बदलाव की मांग
जर्मनी के बड़े शहरों में मकानों की कमी के मद्देनजर वामपंथी दल के नेताओं का ध्यान अनुच्छेद 15 पर है. यह अनुच्छेद निजी संपत्ति को जब्त कर उसे सार्वजनिक संपत्ति में बदलने की संभावना देता है. वामपंथी केविन कुइनर्ट इसकी ओर लोगों का ध्यान खींच रहे हैं, तो एफडीपी पार्टी इसे पूरी तरह खत्म कर देना चाहती है.
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संविधान के रखवाले
कार्ल्सरूहे स्थित देश की सर्वोच्च अदालत संघीय संवैधानिक न्यायालय है. इसके न्यायाधीश इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि कानून संविधान के अनुरूप हों और हर सरकार उन कानूनों का पालन करे. अन्य राष्ट्रीय प्रतिष्ठानों की तुलना में जर्मन लोगों को सबसे ज्यादा भरोसा अपने संविधान पर है.
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पत्थर की कृति
बेसिक लॉ वक्त के साथ बदलता रहा है. पिछले 70 सालों में उसे 60 बार बदला जा चुका है. लेकिन हर अनुच्छेद बदलाव की संभावना नहीं देता है. कुछ ऐसे हैं जिन्हें संसद में बड़े से बड़े बहुमत के बावजूद हटाया या बदला नहीं जा सकता. जैसे कि जनता के मौलिक अधिकारों की व्याख्या करने वाले अनुच्छेद.