11 साल की रिद्धिमा पाण्डेय उन 16 युवाओं में शामिल है जिन्होंने यूएन में शिकायत दर्ज कराकर दुनिया भर के देशों पर जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए कुछ ना करने का आरोप लगाया है. मिलिए छोटी उम्र में बड़ा काम कर रही इस बच्ची से.
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रिद्धिमा काफी समय से पर्यावरण के लिए सक्रिय है. उसने 2017 में भारत के नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) में एक याचिका दायर कर कहा था कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं. पर्यावरण से जुड़े मामलों को देखने वाली संस्था एनजीटी ने रिद्धिमा की याचिका को खारिज कर दिया. लेकिन फिर रिद्धिमा इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गई.
रिद्धिमा ने स्वीडन की ग्रेटा थुनबर्ग और अन्य युवा कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर जर्मनी, फ्रांस, ब्राजील, अर्जेंटीना और तुर्की की आलाचोना की है. उनका कहना है कि ये देश बच्चों के अधिकारों से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की संधि के तहत युवाओं के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नहीं निभा रहे हैं.
रिद्धिमा ने न्यूयॉर्क से स्वदेश लौटने पर कहा, "हम इस मुद्दे को विश्व स्तर पर ले जाएंगे. मुझे लगता है कि विश्व नेता हमारी अनदेखी नहीं कर पाएंगे." रिद्धिमा ने बताया कि न्यूयॉर्क में लोग उससे अकसर कहते थे कि तुम एक कार्यकर्ता बनने के लिए अभी बहुत छोटी हो. लेकिन रिद्धिमा को ऐसा नहीं लगता क्योंकि बाकी देशों में दूसरे बच्चे भी ऐसा कर रहे हैं.
वह कहती है कि उसकी यात्रा की सबसे अच्छी बात रही शिकायत दर्ज कराना और फिर शुक्रवार को ग्लोबल क्लाइमेट स्ट्राइक में हिस्सा लेना. उस दिन नई दिल्ली, मंबई और कोलकाता जैसे भारत के कई शहरों में भी प्रदर्शन हुए.
रिद्धिमा हरिद्वार से हैं, जो एक बड़ा तीर्थस्थल है. हालांकि वहां से गुजरने वाली गंगा प्रदूषण की मार झेल रही है. रिद्धिमा कहती है, "सरकार कहती है कि उन्होंने गंगा को साफ किया है, लेकिन यह सच नहीं है. हम गंगा को अपनी मां कहते हैं, गंगा को देवी कहते हैं, और फिर हम उसे प्रदूषित करते हैं." उसका कहना है कि गंगा किनारे उसे अकसर मूर्तियां, कपड़े और प्लास्टिक की थैलियां मिलती हैं.
जलवायु परिवर्तन हमारी जिंदगी को आश्चर्य से भर देगा. न केवल पर्यावरण पर इसका असर होगा बल्कि यह इंसानों के मस्तिष्क को भी प्रभावित करेगा. बिजली कड़केगी, ज्वालामुखी फटेगा और हो सकता है कि रेगिस्तान की मिट्टी भी उड़ जाये.
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आकाश में बढ़ेगी हलचल
ब्रिटेन की एक स्टडी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का असर विमानों की उड़ान पर भी होगा. विमानों को आकाश में अधिक हलचल (टर्ब्युलेंस) का सामना करना होगा. इसमें तकरीबन 149 फीसदी की वृद्धि होगी.
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जहाजों के रास्ते होंगे बाधित
विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते बड़े ग्लेशियर टूट सकते हैं, जो समुद्री यातायात प्रभावित करेंगे. असर कितना होगा, इस पर मोटा-मोटी कुछ कहना फिलहाल मुश्किल है.
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बिजली की कड़कड़ाहट बढ़ेगी
ताप ऊर्जा, तूफानी बादलों के लिये ईंधन का काम करती है. आशंका है कि अगर तापमान बढ़ता रहा तो आकाश में बिजलियों की कड़कड़ाहट बढ़ जायेगी, जिसके चलते जंगली आग एक समस्या बन सकती है.
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ज्वालामुखी होंगे सक्रिय
निष्क्रिय अवस्था में पड़े ज्वालामुखी सक्रिय हो सकते हैं. ग्लेशियर पिघलने से पृथ्वी की भीतरी परत पर पड़ने वाला दबाव घटेगा, जिसका असर मैग्मा चेंबर पर पड़ेगा और ज्वालामुखियों की गतिविधियों में वृद्धि होगी.
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आपका गुस्सा बढ़ेगा
हमारा मूड भी बहुत हद तक मौसम पर निर्भर करता है. शोधकर्ताओं के मुताबिक जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी लोगों में गुस्सा बढ़ेगा. यहां तक कि हिंसा की प्रवृत्ति में भी इजाफा होगा.
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समुद्रों में बढ़ेगा अंधेरा
कयास हैं कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर समंदरों में दिखेगा. तापमान बढ़ने से जलस्तर बढ़ेगा साथ ही इनका अंधेरा और भी गहरा होगा. कई इलाकों में वार्षिक वर्षा के स्तर में भी वृद्धि होगी.
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एलर्जी की समस्या
आपको न सिर्फ जल्दी गुस्सा आयेगा बल्कि इंसानों में एलर्जी की शिकायत भी बढ़ेगी. तापमान बढ़ने से मौसमी क्रियायें बदलेगी, पर्यावरण का रुख बदलेगा और बदले माहौल में ढलना इंसानों के लिये आसान नहीं होगा.
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पशुओं का आकार घटेगा
तापमान का एक असर स्तनपायी जीवों के आकार पर दिखेगा. एक अध्ययन के मुताबिक लगभग 5 करोड़ साल पहले जब तापमान बढ़ा था तब स्तनपायी जीवों का आकार घटा था, जो भविष्य में भी नजर आ सकता है.
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रेगिस्तान में रेत होगी कम
रेगिस्तान में कुछ ऐसे बैक्टरीया होते हैं जो मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिये बायोक्रस्ट जैसी मजबूत परत का निर्माण करते हैं लेकिन तापमान बढ़ने से इनका आवास स्थान प्रभावित होगा और मिट्टी का क्षरण बढ़ेगा.
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चींटियों का व्यवहार बदलेगा
चींटियां पारिस्थितिकी के संतुलन में अहम भूमिका अदा करती है. अध्ययन बताते हैं कि चींटियां खेतों में कीड़े-मकौड़ों का सफाया करती हैं और मिट्टी के पोषक तत्वों को बनाये रखने में मददगार साबित होती है.
रिपोर्ट- इनेके म्यूल्स
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रिद्धिमा ने 2013 में जलवायु में रुचि लेनी शुरू की. यह वह साल था जब उत्तराखंड में भयानक बाढ़ आई थी. पेशे से वन्यजीव संरक्षक रिद्धिमा के पिता ने उसे ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी चीजों से बारे में बताना शुरू किया क्योंकि वह प्राकृतिक संकटों के बारे में लगातार सवाल पूछा करती थी.
अपनी बेटी के साथ न्यूयॉर्क जाने वाले दिनेश पाण्डेय कहते हैं, "हम बड़े लोग बातें बहुत करते हैं. यह सही नहीं है. वे लोग आने वाली पीढ़ियों के साथ विश्वासघात कर रहे हैं. मैं यहां अपनी बेटी के साथ खड़ा हूं. मुझे इस बात पर गर्व है कि मेरी बेटी विश्व स्तर पर इस मिशन में सबके साथ खड़ी है."
वहीं रिद्धिमा का कहना है, "मुझे नहीं लगता कि हमारी सरकार पेरिस समझौते से जुड़ी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर रही है." रिद्धिमा का इशारा जीवाश्म ईंधन पर भारत की लगातार निर्भरता की तरफ है. वह कहती है, "मुझे बहुत गुस्सा आता है. उन्हें सिर्फ विकास पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए. अगर हमारे पास भविष्य ही नहीं होगा तो फिर इस विकास का हम क्या करेंगे."
वह कहती है कि आम भारतीय लोग सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद कर बड़ा बदलाव ला सकते हैं. उसके मुताबिक, "अगर आप मदद करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमारी मुहिम का समर्थन कीजिए. और दूसरी बात, प्लास्टिक के उत्पादों का इस्तेमाल बंद कर दीजिए. अगर हम उन्हें इस्तेमाल नहीं करेंगे, तो फिर कंपनी ऐसे उत्पाद बनाएंगी ही नहीं."
पृथ्वी के सबसे बड़े हिस्से पर सागर है और यह जलवायु को नियंत्रित करता है. धरती के मौसम से लेकर रंग तक सब इस पर निर्भर है. जलवायु परिवर्तन का असर सागरों पर भी है लेकिन यह कितना है इसे वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए हैं.
हमारा नीला ग्रह
पृथ्वी को नीला ग्रह यूं ही नहीं कहा जाता. हमारी धरती की सतह का 71 फीसदी और जीवमंडल का 90 फीसदी हिस्सा समुद्र है. यह जीवन के लिए जरूरी है और पृथ्वी पर मौजूद ऑक्सीजन का 50 से 80 फीसदी यहीं से आता है. कार्बन चक्र के लिए यह बेहद जरूरी है. पृथ्वी पर सागर कब बने यह अब भी नहीं पता है, लेकिन समझा जाता है कि यह करीब 4.4 अरब वर्ष पहले बने थे और शुरुआती जीवन में इन्होंने उत्प्रेरक की भूमिका निभाई थी.
तस्वीर: NASA
गहराई के रहस्य
विशाल आकार के बावजूद हम सागर के बारे में बहुत कम जानते हैं. वास्तव में अभी पानी के नीचे छिपी दुनिया का 80 फीसदी से ज्यादा ऐसा है जिसकी पड़ताल नहीं की गई है. वैज्ञानिक गहराई में छिपे रहस्यों को ढूंढने पर काम कर रहे हैं जिनसे शायद हमें पर्यावरण के परिवर्तनों को समझने में ज्यादा मदद मिलेगी. यह भी पता चल सकेगा कि जलवायु परिवर्तन के दौर में सागर के संसाधन का प्रबंधन कैसे किया जाए.
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पृथ्वी का जलवायु नियंत्रक
हम यह जानते हैं कि पृथ्वी के जलवायु के नियंत्रण में सागर बड़ी भूमिका निभाते हैं. अब यह चाहे सौर विकिरण को अवशोषित करना हो, तापमान का वितरण हो या फिर मौसम के चक्र को चलाना हो. हालांकि जलवायु परिवर्तन ने इस संतुलन को बिगाड़ना पहले ही शुरू कर दिया है. इससे सागर के इकोसिस्टम से जुड़े कामों की क्षमता पर असर पड़ रहा है जैसे कि कार्बन का भंडारण और ऑक्सीजन का निर्माण.
सागर में जीवन
सागर में कम से कम 230,000 ज्ञात जीव रहते हैं. कोरल रीफ जैसे समुद्र तल केकड़ों, स्टारफिश, घोंघे के साथ ही रंग बिरंगी रीफ मछलियों को पनाह देते हैं. छिछली गहराइयों में कई तरह की वनस्पतियों का गुजर बसर होता है. ज्यादा गहराई वाले इलाकों में शार्क, व्हेल और डॉल्फिन अठखेलियां करती हैं. यानी सागर के पग पग पर जीवन है.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel
अनोखे और शानदार जीव
वैज्ञानिकों के इस दावे पर कोई हैरानी नहीं होती कि दो तिहाई से ज्यादा सागर के जीवों की अब तक खोज नहीं हुई है. हालांकि रिसर्चरों को हर साल कुछ नए जीव मिल रहे हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया. अब इस स्क्वीडवर्म को ही देखिए. इसे 2007 में सेलिब्स सी में खोजा गया. अभी और क्या सामने आना है इसके बारे में हर कोई कयास लगा सकता है.
तस्वीर: Laurence Madin, WHOI
खतरे का संकेत
इतनी विशालता के बावजूद सागर दबाव में है. इसका सबसे सहज उदाहण है दुनिया भर में कोरल रीफ की सफाई की बढ़ती घटनाएं. बढ़ते तापमान और प्रदूषण के कारण कोरल पर तबाव बढ़ रहा है और वहां से खास किस्म का शैवाल बाहर जा रहा है. यह शैवाल ही उन्हें बढ़ने और प्रजनन करने देता है. ऐसे में पीछे बस डरावने कंकाल ही बच जा रहे हैं. कुछ कोरल इससे उबर सकते हैं लेकिन लगातार दबाव बना रहा तो उनकी मौत का खतरा बढ़ जाएगा.
तस्वीर: XL Catlin Seaview Survey
कोई आसरा नहीं
जलवायु परिवर्तन का असर समुद्री जीवों पर भी हो रहा है. हाल की एक रिसर्च दिखाती है कि मछली, घोंघा और केकड़ों की स्थानीय आबादी धरती पर लुप्त हो रहे जीवों की तुलना में दोगुनी तेजी से गायब हो रही है. इसका मुख्य कारण है अधिकतम तापमान का बढ़ना. सागर में गर्मी बढ़े तो बचने के लिए कोई कहां जाए. दुखद यह है कि ज्यादातर समुद्री जीव खुद को इतना नहीं ढाल पाएंगे कि बदलती परिस्थितियों का सामना कर सकें.
भारी पिघलन
पृथ्वी का वह हिस्सा जो ठोस पानी यानी हिम और बर्फ से ढंका है वह गर्मी के कारण पिघल रहा है. कहीं बर्फ पिघल रही है तो कहीं ग्लेशियर. मौजूदा पिघलन से ही दुनिया भर में समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है और समुद्रों की अम्लीयता भी बढ़ रही है. इसकी वजह है आर्कटिक सागर के तल के पर्माफ्रॉस्ट से निकलने वाली मीथेन गैस.
तस्वीर: Getty Images/M. Tama
टूटती जीवनरेखा
मनुष्य बहुत गहराई से समुद्र से जुड़ा हुआ है. हजारों सालों से मानव समुदाय सागर किनारों पर बसते आए हैं. वो भोजन और रोजगार के लिए उस पर निर्भर हैं. आज करीब एक अरब से ज्यादा की आबादी निचले तटवर्ती इलाकों में रहती है जो समुद्र के जलस्तर के बढ़ने की वजह से खतरे में आने वाला है.
तस्वीर: imago
खत्म होते बियाबान
हालांकि इंसानों से संपर्क की कीमत सागरों ने चुकाई है. दुनिया के सागर क्षेत्र का महज 13 फीसदी इलाका ही ऐसा है जहां इंसानी गतिविधियां नहीं चल रही हैं. तटवर्ती इलाकों से लगते क्षेत्र में तो अब कोई बियाबान बचा ही नहीं. तकनीकी रूप से आगे बढ़ने का मतलब यह है कि आर्कटिक महासागर के सुदूर इलाके भी अब अनछुए नहीं रह गए हैं. बाकी बचे बियाबानों को बचा पाना आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.