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छोटी-छोटी मगर बड़ी बातें

१० जुलाई २००९

अक्सर लोग छोटी-छोटी बातों को नज़र अंदाज कर जाते है. यह समझ कर की इससे उनका कोई नुकसान नहीं, लेकिन शायद उनको ये नहीं पता कि एक छोटा छेद बड़े से बड़े जहाज को डूबो देता है. इसका एक उदाहरण हमारे एक श्रोता ने हमें लिख भेजा है

अंतरा के नए अंक को पसंद किया कईं श्रोताओं ने.तस्वीर: ullstein bild - Stary

एक महिला अपने पति को पत्र लिखते समय पू्र्णविराम का चिन्ह लगाना भूल गई, बाद में उसने जहां तहां जल्दी जल्दी चिन्ह लगाया जिसका परिणाम ये हुआ कि पूरे पत्र का मतलब बदल गया. देखे क्या लिखती हैं :

"प्यारे पतिदेव प्रणाम आपके चरणों में दस हजार रूपये। नौकर लेकर भाग गया मेरी सहेली को। नौकरी मिल गयी गया को। बछड़ा हुआ है दादा जी को। शराब की लत लग गयी हमें। तुम्हारा एक भी खत नहीं आया स्वीटी के बच्चे। भेड़िया खा गया दो महीने की चीनी। मेरी सहेली ले गयी हेमा मालिनी। इस वक्त टी.वी. पर गा रही है हमारी बकरी। बेच दी गयी तुम्हारी मां। तुम्हें याद करती है एक पडोसन। मुझे तंग करती है तुम्हारी बहन। सिर दर्द से बिस्तर पर लेटी है हमारी स्वीटी। पागल हो गयी मकान को। बदलने का इरादा है तुमको। मेरा प्रणाम तुम्हारी स्वीटी" ।

दान सिहं वर्मा, शांति डीएकेस क्लब, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश

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अंतरा कायर्क्रम की नवीनतम कड़ी 09.07.09 पर हमारे श्रोता लिखते हैं-

लेबनानी महिला सुमायरा सुवायदान द्वारा हासिल की गई जीत निश्चित रूप से खामोश लड़ाई की एक जिंदा मिसाल है इस सन्दर्भ में उनकी वकील सुहा इस्माइल का योगदान भी प्रशंनीय व काबिल-ए-तारीफ़ है जिनकी बदौलत सुमायरा इस जंग को जीत सकीं. अपने हक़ के लिए दुनिया भर में संघर्ष करने वाली महिलाओं के लिए सुमायरा की ये हिम्मत किसी 'टानिक' से कम नहीं है. इस बारे में लीना हबीब की रिसर्च रिपोर्ट भी गौर तलब है. वास्तव में ये मुद्दा धर्म और राजनीति के बीच उलझ जाता है और ऐसी महिलाओं की संख्या कम है जो आवाज़ बुलंद कर सकें. कुल मिलाकर सरोकार का अंक बेहद उत्साहवर्धक रहा, इस लड़ाई ने लेबनानी कानून व वहां के आकाओं को तो सोचने पर मज़बूर कर दिया लेकिन ऐसे तमाम मुल्क हैं जहां कि महिलाएं अभी भी इस दर्द और त्रासदी को झेल रही हैं बात तब बनेगी जब ये रौशनी वहां भी पहुंचेगी. डॉयचे वेले भी धन्यवाद का पात्र है जो इस तरह की सामाजिक बदलाव वाली ख़बरों को तरजीह देकर महिलाओं का हौसला अफ़जाई कर रहा है.

रवि श्रीवास्तव,इन्टरनेशन्ल फ़्रेन्डस क्लब, इलाहाबाद

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मुझे "महिला मुक्ति की रौशनी" लेख पढ़ कर अच्छा लगा. आप मानवीय सरोकारो के रचनात्मक पहलुओं को अपनी पैनी नज़र से जाने नहीं देते हैं. इस प्रकार की घटनाओं को उज्जागर कर आप लोगों में जागरूकता पैदा करने का कार्य कर रहे है. जब से प्रियाजी डॉयचे वेले से जुडी हैं, महिलाओं से जुडी तमाम रचनात्मक खबरों को बड़ी शिद्दत से उठाती रही हैं. मैं उनके प्रयास की भूरी भूरी प्रशंसा करता हूं. उनकी कार्य शैली ने भी मुझे काफी प्रभावित किया है.

प्रमोद महेश्वरी, फतेहपुर-शेखावती

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लेबनान में लाखों महिलाओं के लिए सरकार और कानून के खिलाफ भारी जीत हासिल करने वाली सुमायरा की कहानी काफी अभिनंदनीय लगी. लेबनान के कानून में महिलाओं का जिक्र न होना और सुमायरा के मुक्दमे के लिए वह फायदेमंद साबित होना यह काफी सौभाग्य की बात रही जिसके कारण लाखो महिलाओं ने कानून के खिलाफ जीत हासिल की.

सविता जावले, मारकोनी डीएक्स क्लब, महाराष्ट्र

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