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छोटे शहर के एथलीटों ने नई बुलंदियों को छुआ

२७ दिसम्बर २०१०

एथलेटिक्स में भारत को बड़ी क्या छोटी ताकत भी नहीं माना जाता लेकिन कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में कई भारतीय एथलीटों ने सफलता के नए मुकाम तय कर बदलाव के संकेत दिए. सफलता पाने वाले एथलीट बेहद साधारण परिवारों से आते हैं.

तस्वीर: AP

दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में एथलेटिक्स स्पर्धाओं में भारत ने 12 मेडल जीते और ग्वांगजो एशियाड में भारतीय एथलीटों ने अपना जादू बरकरार रखते हुए पांच स्वर्ण, दो रजत और पांच कांस्य पदक अपने नाम किए. ट्रैक स्पर्धाओं में अश्विनी अकुंजी और जोसेफ अब्राहम भारत के लिए नई उम्मीदें बनकर उभरे हैं. दोनों ने एशियन गेम्स में पुरुष और महिला 400 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीता.

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अश्विनी कर्नाटक के सिद्दापुरा गांव में एक बेहद साधारण किसान परिवार में पैदा हुई और संघर्ष का लंबा सफर तय कर दो गोल्ड मेडल जीतने के मुकाम तक पहुंची. दूसरा गोल्ड उन्होंने 400 मीटर की रिले रेस में जीता. इस साल मई में ही उन्होंने 400 मीटर की बाधा दौड़ को गंभीरता से लेना शुरू किया क्योंकि उनके कोच ने सलाह दी थी कि उनके लंबे डग उन्हें बाधा दौड़ में मदद करेंगे.

केरल की प्रीजा श्रीधरन ने ग्वांगजो एशियाड में 10 हजार मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल जीता और 5 हजार मीटर में उन्होंने रजत पदक अपने नाम किया. बचपन में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया था. प्रीजा की मां और भाई ने बड़ी मुश्किलों से चार सदस्यों के परिवार को पाला. एशियाड में 3 हजार मीटर स्टीपलचेज में स्वर्ण जीतने वालीं रायबरेली की सुधा सिंह को भी अपने करियर में पैसे की कमी से जूझना पड़ा. देश के लिए नाम कमाने के बावजूद उन्हें उत्तर प्रदेश के एक मंत्री से मैराथन रेस के दौरान अपमान भी झेलना पड़ा. यह घटना मैराथन दौड़ के लिए झंडा दिखाते समय हुई.

कॉमनवेल्थ गेम्स में भी भारत की सफलता की इबारत लिखने वाले एथलीट बेहद साधारण परिवारों से आए लेकिन उन्होंने लोगों को अपने प्रदर्शन से चकित कर दिया. कविता राउत महाराष्ट्र के नाशिक जिले के सबपड्डा गांव की रहने वाली हैं और उन्होंने 10 हजार मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता. कविता ने बताया कि उन्होंने एथलेटिक्स इसलिए चुना क्योंकि वह नंगे पांव भी अभ्यास कर सकती हैं. जाहिर है शुरुआती दिनों में उनके पास जूते खरीदने के पैसे भी नहीं थे.

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पंजाब में एक किसान के बेटे हरमिंदर सिंह ने 20 किलोमीटर पैदल दौड़ में कांस्य पदक जीतकर सबको हैरान कर दिया. केरल के एक गरीब परिवार से आने वाले एमए प्राजुषा ने महिलाओं की लंबी कूद में रजत पदक जीता. बड़े एथलीटों से सामना करने से ज्यादा मुश्किल प्राजुषा को अपने लिए स्पाइक्स वाले जूते खरीदना लगा क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे.

जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में 4X400 मीटर दौड़ में मंजीत कौर, सिनी जोस, अश्विनी अंकुजी और मंदीप कौर की चौकड़ी ने लंबे लंबे डग भरते हुए बाकी टीमों को पीछे छोड़ा तो स्टेडियम में मौजूद 50 हजार दर्शकों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

लेकिन भारत के लिए इतिहास बनाया कृष्णा पूनिया ने जिन्होंने महिला डिस्कस थ्रो में डिस्कस इतना दूर फेंका कि गोल्ड मेडल उनके पास आ गया. हरवंत कौर और सीमा अंतिल ने रजत और कांस्य पदक जीता. एथलेटिक्स में भारत ने 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स से कोई गोल्ड मेडल नहीं जीता था.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ओ सिंह

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