छात्राओं के जीवन को बदल देने के लिए महाराष्ट्र के रंजीत सिंह डिसाले ने इस साल का 10 लाख डॉलर का वैश्विक शिक्षक पुरस्कार जीत लिया है. डिसाले ने धनराशि को प्रतियोगिता के सभी 10 फाइनलिस्ट के साथ बांटने का फैसला किया है.
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2009 में जब रंजीत सिंह डिसाले महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में परितवादी गांव के जिला परिषद स्कूल में पहुंचे तो उन्हें एक जीर्ण-शीर्ण इमारत मिली, जिसके एक तरफ एक भंडार-घर था और दूसरी तरफ तबेला. स्कूल में बच्चों की हाजिरी काफी कम थी और इलाके में किशोरावस्था में लड़कियों की शादी का चलन आम था.
उन्होंने धीरे-धीरे उस स्कूल की तस्वीर बदलनी शुरू की और उनकी कई तरह की पहलों के बाद आज उनका स्कूल 100 प्रतिशत हाजिरी और विशेष रूप से छात्राओं की जिंदगी बदल देने के लिए जाना जाता है. इनमें से अधिकतर लड़कियां गरीब आदिवासी परिवारों से आती हैं.
जिस स्कूल में बच्चे आते ही नहीं थे और छात्राओं की छोटी उम्र में शादी कर दी जाती थे, आज उसी स्कूल की एक छात्रा विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त कर चुकी है. डिसाले ने वैश्विक शिक्षक पुरस्कार जीतने के तुरंत बाद कहा कि वो 10 लाख डॉलर (लगभग 7.4 रुपए) की इनामी धनराशि को प्रतियोगिता के फाइनल तक पहुंचने वाले नौ अन्य शिक्षकों के साथ बांट लेंगे.
इसका मतलब है उनकी बदौलत फाइनल में पहुंचने वाले हर प्रतियोगी को 55,000 डॉलर मिलेंगे. पुरस्कार की स्थापना वर्की फाउंडेशन ने की थी और इसे यूनेस्को के साथ साझेदारी में दिया जाता है. पुरस्कार की घोषणा अभिनेता और लेखक स्टीफन फ्राई ने लंदन के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय से प्रसारित हुए एक वर्चुअल समारोह में किया.
डिसाले ने समारोह में भारत में अपने घर से अपने परिवार के बीच बैठे बैठे भाग लिया. जब पहली बार वो स्कूल आए थे तब वहां का पाठ्यक्रम भी छात्राओं की मुख्य भाषा कन्नड़ में नहीं था. डिसाले ने गांव में ही रहना शुरू कर दिया, कन्नड़ सीखी और किताबों का कन्नड़ में अनुवाद किया.
वो किताबों में क्यूआर कोड जैसे पढ़ाई के डिजिटल तरीकों को भी लेकर आए और हर विद्यार्थी के लिए उसके हिसाब से बनाए गए कार्यक्रमों को लागू किया. आज वैसी ही क्यूआर कोड वाली किताबें पूरे देश में इस्तेमाल की जा रही हैं. सूखा-ग्रस्त इलाके के इस स्कूल में डिसाले ने पर्यावरण से जुड़े प्रोजेक्ट भी शुरू किए.
उन्होंने "आओ करें सीमाएं पार" नाम का भी एक प्रोजेक्ट शुरू किया जो विश्व शांति के लिए भारत-पाकिस्तान, फिलिस्तीन-इस्राएल, इराक-ईरान और अमेरिका-उत्तरी कोरिया देशों के युवाओं के बीच संपर्क स्थापित करता है.
देखिए कोरोना के कारण स्कूलों में क्या क्या हो रहा है
कोरोना वायरस ने सब कुछ बदल दिया. भारत जैसे कई देश अब तक संक्रमण की पहली लहर से ही जूझ रहे हैं तो कई जगह दूसरी लहर दस्तक दे रही है. ऐसे में दुनिया भर के स्कूलों में बच्चों को कैसे पढ़ाया जा रहा है देखिए.
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थाईलैंड: बॉक्स में क्लास
थाई राजधानी बैंकॉक के वाट ख्लोंग टेयो स्कूल में आने वाले लगभग 250 बच्चे इस तरह क्लास में बनाए गए बॉक्स में बैठकर पढ़ रहे हैं. क्लास के बाहर सिंक और साबुन भी है. सुबह स्कूल आने पर बच्चों का टेम्परेचर चेक होता है. इसका असर भी हो रहा है. जुलाई से इस स्कूल में कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया है.
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न्यूजीलैंड: सबकी किस्मत कहां ऐसी
राजधानी वेलिंग्टन के ये स्टूडेंट खुश हैं कि फिर से स्कूल जा पा रहे हैं. लेकिन ऑकलैंड में रहने वाले स्कूली बच्चे इतने खुशकिस्मत नहीं हैं. तीन महीने से न्यूजीलैंड में कोरोना का कोई मामला नहीं देखा गया था. लेकिन 11 अगस्त को देश के सबसे बड़े शहर ऑकलैंड में चार नए मामले सामने आए. इसके बाद शहर प्रशासन ने स्कूल और अन्य गैर जरूरी प्रतिष्ठान बंद कर लोगों से घर पर ही रहने को कहा है.
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स्वीडन: कोई विशेष उपाय नहीं
स्वीडन में स्कूली बच्चों की अभी गर्मी की छुट्टियां ही चल रही हैं. लेकिन यह तस्वीर छुट्टियों से पहले की है, जो कोरोना महामारी को लेकर स्वीडन के अलग नजरिए को दिखाती है. पूरी दुनिया से उलट स्वीडन में सरकार ने कभी लोगों से मास्क पहनने को नहीं कहा. वहां व्यापारिक प्रतिष्ठान, बार, रेस्तरां और स्कूल, सभी खुले रहे.
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जर्मनी: फिर से स्कूल, लेकिन पर्याप्त दूरी
ये बच्चे जर्मनी में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के डॉर्टमुंड शहर के एक स्कूल के हैं. राज्य के सभी स्कूलों में बच्चों को मास्क पहनना जरूरी है. उन्हें क्लास में भी मास्क पहने रहना है. हालांकि देश के बाकी 15 राज्यों में क्लास में मास्क पहनना जरूरी नहीं है. यह कहना जल्दबाजी होगा कि इसका कितना असर हो रहा है. नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में 12 अगस्त से स्कूल खुल गए.
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वेस्ट बैंक: पांच महीने बाद खुले स्कूल
येरुशलम से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित हेब्रोन में भी स्कूल खुल गए हैं. यहां भी बच्चों के लिए क्लास में मास्क पहनना जरूरी है, कुछ स्कूल तो बच्चों से ग्लव्स पहनने को भी कह रहे हैं. मास्क के बावजूद टीचर का उत्साह साफ दिख रहा है. फिलीस्तीनी इलाकों में मार्च में स्कूल बंद किए गए थे. सबसे ज्यादा कोरोना के मामले हेब्रोन में ही सामने आए थे.
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ट्यूनीशिया: मई से मास्क में
ट्यूनिशिया की राजधानी ट्यूनिस के स्कूलों में मई से ही बच्चों ने मास्क पहनना शुरू कर दिया गया था. आने वाले हफ्तों में वहां फिर स्कूल खुलेंगे. मार्च में कोरोना के कारण ट्यूनिशिया में स्कूलों को कई हफ्तों तक बंद रखा गया. तब माता-पिता को ही अपने बच्चों को घर पर पढ़ाना पड़ा. स्कूल खुलने तक उन्हें ऑनलाइन क्लासों का ही सहारा था.
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भारत: लाउडस्पीकर से पढ़ाई
यह फोटो भारत के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र के शहर डंडवा के एक स्कूल की है. जिन बच्चों के पास इंटरने की सुविधा नहीं है, यहां उनके लिए खास प्रबंध किया गया है. उन्हें यहां क्लास की रिकॉर्डिंग लाउडस्पीकर पर सुनाई जा रही है ताकि वे अपना स्कूल का छूटा हुआ काम पूरा कर सकें. महाराष्ट्र भारत में सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों में शामिल है.
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कांगो: टेम्परेचर टेस्ट जरूरी
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की राजधानी किंगशासा के पास लिंगवाला इलाके के इस स्कूल में कोरोना के खतरे को बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है. स्कूल आने वाले हर छात्र का टेम्परेचर टेस्ट करने के बाद ही उसे अंदर आने दिया जाता है. स्कूल में मास्क पहनना भी जरूरी है.
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अमेरिका: कोरोना के बीच पढ़ाई
अमेरिका के स्कूलों में भी बच्चों का रोज टेम्परेचर चेक किया जाता है ताकि कोरोना के संभावित मामलों का पता लगाया जा सके. यह बहुत जरूरी है क्योंकि अमेरिका में कोरोना वायरस के मामले अब भी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार देश में कोरोना के मामले 54 लाख से ज्यादा हो गए हैं जबकि अब तक लगभग 1.70 लाख लोग मारे गए हैं.
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ब्राजील: ग्लव्स और गले मिलना
मौरा सिल्वा (बाएं) पश्चिमी रियो दे जेनेरो में एक बड़ी झुग्गी बस्ती के स्कूल में टीचर हैं. वह अपने छात्रों के घर जा रही हैं और अपने साथ "हग किट" लेकर जाती हैं. अपने छात्रों को गले लगाने से पहले सिल्वा और उनके छात्र मास्क पहनते हैं और वह उन्हें ग्लव्स पहनने में भी मदद करती हैं.