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समाज

शिक्षक ने जीता 10 लाख डॉलर का पुरस्कार

४ दिसम्बर २०२०

छात्राओं के जीवन को बदल देने के लिए महाराष्ट्र के रंजीत सिंह डिसाले ने इस साल का 10 लाख डॉलर का वैश्विक शिक्षक पुरस्कार जीत लिया है. डिसाले ने धनराशि को प्रतियोगिता के सभी 10 फाइनलिस्ट के साथ बांटने का फैसला किया है.

Ranjitsinh Disale Global Teacher Prize 2020
तस्वीर: Varkey Foundation/REUTERS

2009 में जब रंजीत सिंह डिसाले महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में परितवादी गांव के जिला परिषद स्कूल में पहुंचे तो उन्हें एक जीर्ण-शीर्ण इमारत मिली, जिसके एक तरफ एक भंडार-घर था और दूसरी तरफ तबेला. स्कूल में बच्चों की हाजिरी काफी कम थी और इलाके में किशोरावस्था में लड़कियों की शादी का चलन आम था.

उन्होंने धीरे-धीरे उस स्कूल की तस्वीर बदलनी शुरू की और उनकी कई तरह की पहलों के बाद आज उनका स्कूल 100 प्रतिशत हाजिरी और विशेष रूप से छात्राओं की जिंदगी बदल देने के लिए जाना जाता है. इनमें से अधिकतर लड़कियां गरीब आदिवासी परिवारों से आती हैं.

जिस स्कूल में बच्चे आते ही नहीं थे और छात्राओं की छोटी उम्र में शादी कर दी जाती थे, आज उसी स्कूल की एक छात्रा विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त कर चुकी है.  डिसाले ने वैश्विक शिक्षक पुरस्कार जीतने के तुरंत बाद कहा कि वो 10 लाख डॉलर (लगभग 7.4 रुपए) की इनामी धनराशि को प्रतियोगिता के फाइनल तक पहुंचने वाले नौ अन्य शिक्षकों के साथ बांट लेंगे.

डिसाले किताबों में क्यूआर कोड जैसे पढ़ाई के डिजिटल तरीकों को भी लेकर आए और हर विद्यार्थी के लिए उसके हिसाब से बनाए गए कार्यक्रमों को लागू किया.तस्वीर: Varkey Foundation/REUTERS

इसका मतलब है उनकी बदौलत फाइनल में पहुंचने वाले हर प्रतियोगी को 55,000 डॉलर मिलेंगे. पुरस्कार की स्थापना वर्की फाउंडेशन ने की थी और इसे यूनेस्को के साथ साझेदारी में दिया जाता है. पुरस्कार की घोषणा अभिनेता और लेखक स्टीफन फ्राई ने लंदन के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय से प्रसारित हुए एक वर्चुअल समारोह में किया.

डिसाले ने समारोह में भारत में अपने घर से अपने परिवार के बीच बैठे बैठे भाग लिया. जब पहली बार वो स्कूल आए थे तब वहां का पाठ्यक्रम भी छात्राओं की मुख्य भाषा कन्नड़ में नहीं था. डिसाले ने गांव में ही रहना शुरू कर दिया, कन्नड़ सीखी और किताबों का कन्नड़ में अनुवाद किया.

वो किताबों में क्यूआर कोड जैसे पढ़ाई के डिजिटल तरीकों को भी लेकर आए और हर विद्यार्थी के लिए उसके हिसाब से बनाए गए कार्यक्रमों को लागू किया. आज वैसी ही क्यूआर कोड वाली किताबें पूरे देश में इस्तेमाल की जा रही हैं. सूखा-ग्रस्त इलाके के इस स्कूल में डिसाले ने पर्यावरण से जुड़े प्रोजेक्ट भी शुरू किए.

उन्होंने "आओ करें सीमाएं पार" नाम का भी एक प्रोजेक्ट शुरू किया जो विश्व शांति के लिए भारत-पाकिस्तान, फिलिस्तीन-इस्राएल, इराक-ईरान और अमेरिका-उत्तरी कोरिया देशों के युवाओं के बीच संपर्क स्थापित करता है.

सीके/एए (रॉयटर्स)

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