1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जंगलमहल का चुनावी दंगल

२३ अप्रैल २०११

जंगलमहल यानी पश्चिम बंगाल के माओवादी असर वाले पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया और बांकुड़ा जिले के 14 विधानसभा इलाके. यहां जंगल जरूर है, लेकिन कोई महल नहीं होने के बावजूद इस इलाके को जंगलमहल के नाम से ही जाना जाता है.

डरे हुए वोटरतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

पिछले विधानसभा चुनाव के समय इस इलाके में माओवादियों का वैसा आतंक नहीं था. तब यहां भी सीपीएम की तूती बोलती थी. लेकिन लालगढ़ की घटना के बाद हालात तेजी से बदले हैं. इस बार तो सीपीएम के लोग डर के मारे चुनाव प्रचार में भी नहीं निकल रहे हैं. इलाके के वोटर भी डरे सहमे हैं.

महतो चुनाव में

अब माओवादियों के समर्थक संगठन पुलिस अत्याचार विरोधी समिति के नेता छत्रधर महतो ने झाड़ग्राम सीट के लिए नामांकन दाखिल कर समीकरण को दिलचस्प बना दिया है. महतो लगभग डेढ़ साल से जेल में हैं और वहीं से चुनाव लड़ रहे हैं. माओवादियों ने इलाके में वोट बायकॉट की अपील तो की है. लेकिन साथ ही कहा है कि वह जंगलमहल से सीपीएम का सफाया चाहते हैं. इसलिए सीपीएम के खिलाफ वोट डालने वालों को बाधा नहीं पहुंचाई जाएगी.

इस इलाके में चुनाव सबसे आखिरी दौर में 10 मई को होना है. लेकिन इलाके के लोग डर के मारे मुंह नहीं खोल रहे हैं. लालगढ़ को पहले से ही माओवादियों की शरणस्थली माना जाता रहा है. लेकिन 2 नवंबर, 2008 को मुख्यमंत्री बुद्घदेव भट्टाचार्य और केंद्रीय मंत्रियों रामविलास पासवान और जितिन प्रसाद के काफिले पर बारूदी सुरंग विस्फोट से हमले के बाद घटी घटनाओं और पुलिसिया अत्याचार की वजह से आम लोगों के लिए जीवन काफी दूभर हो गया है. जून, 2009 में लालगढ़ में कानून व्यवस्था बहाल करने के लिए पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने माओवादियों को इलाके से खदेड़ने के लिए जो साझा अभियान शुरू किया उसका शिकार बेकसूर लोगों को भी होना पड़ा है.

डरे हुए लोग

इलाके में भारी तादाद में सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बावजूद लोग आतंक के साए में जी रहे हैं. पश्चिम मेदिनीपुर जिला प्रशासन की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है कि माओवादी असर वाले इलाकों में ज्यादातर लोग वोट डालने से डर रहे हैं. उनको एक ओर माओवादियों का डर सता रहा है तो दूसरी ओर सुरक्षा बलों का.

झाड़ग्राम के पास लोधासुली में दुकान चलाने वाले सीपीएम समर्थक मनोरंजन महतो कहते हैं कि पिछले डेढ़ साल से माओवादियों की धमकी की वजह से सैकड़ों पार्टी समर्थकों की तरह वह भी रात को अपने घर में नहीं सोते. 2009 के लोकसभा चुनावों में माओवादियों ने वोट बायकॉट की अपील की थी. ऐसे में इस बार हम वोट कैसे डालेंगे?

सीपीएम के जिला सचिव मंडल के सदस्य धारेश्वर सेन कहते हैं, ‘माओवादी हमलों के डर से उन इलाकों में हमारे उम्मीदवार खुल कर चुनाव प्रचार तक नहीं कर पा रहे हैं. लोगों का डरना स्वाभाविक है.'

निर्दलीय महतो

छत्रधर महतो माओवादियों के समर्थन से ही निर्दलीय के तौर पर मैदान में हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ममता बनर्जी पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत ऐसा किया गया है. लालगढ़ आंदोलन के बाद इलाके में ममता और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की पकड़ मजबूत हुई है. सीपीआई (माओवादी) के प्रवक्ता अरण्य ने इसी सप्ताह एक बयान में कहा है कि लोग यह जानना चाहते हैं कि ममता इलाके की समस्या से कैसे निपटेंगी? क्या वह जंगलमहल से केंद्रीय सुरक्षा बलों को वापस भेजने के अपने वादे पर कायम रहेंगी? क्या सत्ता में आने के बाद वह पुलिस अत्याचार विरोधी समिति (छत्रधर महतो का संगठन) के नेताओं से बातचीत की प्रक्रिया शुरू करेंगी?

पुलिस से ज्यादा डरतस्वीर: dpa

सीपीएम और लेफ्ट फ्रंट के तमाम नेता ममता और माओवादियों के बीच साठगांठ के आरोप लगा रहे हैं. लेकिन ममता और कांग्रेस के प्रणब मुखर्जी इसके लिए राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. प्रणब मुखर्जी कहते हैं कि माओवादियों की सक्रियता बढ़ने के लिए सरकार की गलत नीतियां जिम्मेवार हैं. पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है. माओवादी थानों पर हमला कर हथियार लूट लेते हैं और पुलिस वाले अपनी जान बचाने के लिए भाग जाते हैं. यही वजह है कि जंगलमहल माओवादियों का गढ़ बन गया है.

पुलिस से ज्यादा डर

बांकुड़ा जिले के अयोध्या पहाड़ी इलाके में 65 साल के सुनंद बारुई कहते हैं, 'हमें माओवादियों के बजाय पुलिस से ज्यादा डर लगता है. माओवाद विरोधी अभियान के दौरान उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया और जबरन माओवादियों के बारे में पूछताछ की. अभी तो सबकुछ ठीक है. लेकिन हम इस बात को लेकर आशंकित हैं कि चुनाव के दौरान क्या होगा.' लालगढ़ में सांकराइल गांव के धीरेंद्र पाल कहते हैं, ‘हमलोग मझधार में हैं. लहर जिधर खींचेगी, उधर ही चले जाएंगे. वोट किसे दूंगा, यह फैसला तो चुनाव के दिन ही होगा. गांव के लोग जिसे वोट देंगे, मैं भी उसे ही दूंगा.

यह इलाका झाड़ग्राम विधानसभा सीट का हिस्सा है. इस विधानसभा सीट पर सीपीएम के अमर बोस, तृणमूल कांग्रेस के सुकुमार हंसदा और पुलिस अत्याचार विरोधी समिति (पीसीपीए) के छत्रधर महतो के बीच दिलचस्प त्रिकोणीय मुकाबला है. पीसीपीए के महतो निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं.

विकास के लिए

छत्रधर महतो को जेल में दिन काटते हुए अचानक चुनाव लड़ने का ख्याल कैसे आया? इस सवाल पर महतो कहते हैं कि लालगढ़ और जंगलमहल के लोगों ने बरसों से विकास का मुंह नहीं देखा है. सीपीएम की अगुआई वाली सरकार हिंसक तरीके से हमारे लोकतांत्रिक आंदोलन को कुचलने का प्रयास कर रही है. सरकार को सत्ता से उखाड़ कर ही इस आंतक से बचा जा सकता है. छत्रधर का आरोप है कि सीपीएम ने इस आदिवासी-बहुल इलाके में विकास का कोई काम नहीं किया है. अब तक इन आदिवासियों का इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर ही होता रहा है. वह चुनाव जीतने के बाद यह तमाम मुद्दे विधानसभा में उठाना चाहते हैं. आदिवासियों के हक की लड़ाई के लिए मैदान में उतरे छत्रधर को आदिवासियों का पूरा समर्थन मिलने का भरोसा है.

इलाके के लोग फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं. वह किसी पार्टी या उम्मीदवार के बारे में बात करने तक को तैयार नहीं हैं. सबका एक ही जवाब है—बाकी लोग जिसे वोट देंगे, मैं भी उसे ही दूंगा. लालगढ़ में चाय की दुकान चलाने वाले गणेश महतो कहते हैं,'मैं तृणमूल का समर्थक हूं. लेकिन जो भी चुनाव जीतेगा, हम उससे सुरक्षा की मांग करेंगे. रात को आठ बजे के बाद बाहर निकलने पर यहां हालात सामान्य नहीं रहते. मैं तो शाम को ही अपनी दुकान ही बंद कर देता हूं.'

अतिरिक्त सुरक्षा

वैसे, चुनाव अधिकारी आखिरी दौर में होने वाले इस चुनाव को बिना किसी बाधा के पूरा करने की पूरी तैयारी कर रहे हैं. इलाके में पहले से तैनात बलों के अलावा मतदान से पहले और ज्यादा जवानों को तैनात किया जाएगा. राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी सुनील गुप्ता कहते हैं, 'हम क्षेत्र में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात कर रहे हैं.'

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि माओवादी अपनी भावी रणनीति तय करने के लिए इस चुनाव पर करीबी नजर रख रहे हैं. आखिरी मौके पर उनके फरमान से ही किसी खास पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में वोट पड़ेंगे. लेकिन चुनाव आयोग और जिला प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती वोटरों के मन में समाया आतंक दूर करने की है ताकि वह लोग मतदान के दिन वोट डालने पोलिंग बूथों तक पहुंच सकें.

रिपोर्टः प्रभाकर,कोलकाता

संपादनः आभा एम

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें