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जंग की गर्द में खो गई हथियारों की शान

३ फ़रवरी २०११

पाकिस्तान उत्तर पश्चिम में स्थानीय हथियारों के उत्पादन व बिक्री का एक फलता-फूलता बाजार हुआ करता था. बाजार तो अब भी है, लेकिन उत्पादन तो काफी चोट पहुंची है. आखिर क्यों? शामिल शम्स इस मसले पर नजर डाल रहे हैं.

तस्वीर: AP

इसकी शुरुआत 1980 के दशक में ही हो चुकी थी, जब अफगानिस्तान में सोवियत हमले के बाद पाकिस्तान के कबीलाई इलाके में आधुनिक रूसी हथियार आने लगे थे. अमेरिका में 11 सितंबर के हमले के बाद आए दौर में अब वहां सारी दुनिया के छोटे हथियारों की भरमार है. दर्रा आदम खेल हमेशा से छोटे हथियारों के उत्पादन का एक केंद्र रहा है, जहां कुटीर उद्योग के रूप में ये हथियार बनाए जाते थे. कबीलाई इलाके में हथियार रखना शान की बात है और उसकी एक लंबी परंपरा है. सिर्फ आपसी झगड़ों में ही उनका इस्तेमाल नहीं होता है, हवा में फायर करते हुए शादियाने के बिना कबीलाई शादी फीकी मानी जाती है.

सरकार की नहीं हथियार की

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि ये हथियार कानूनी हैं या गैरकानूनी. कबीलाई इलाके में वैसे भी पाक सरकार की नहीं चलती थी. आमतौर पर सरकारी एजेंट लाइसेंस बांटते हैं और इन इलाकों में उनकी मर्जी चलती है. जहां सेना तैनात हो, वहां हथियार बनाने के लाइसेंस पाकिस्तान सरकार की ओर से दिए जाते थे.

तस्वीर: AP

लेकिन अफगानिस्तान में कई दशकों से जारी युद्ध के बाद यहां जिंदगी का ढर्रा बदल चुका है.

पेशावर में डॉएचे वेले के रिपोर्टर फरीदुल्लाह खान का मानना है कि 1970 के दशक के अंत से ही कबीलाई बाजारों में रूसी एके-47 आने लगे और स्थानीय उत्पादन को भारी धक्का पहुंचा. वह कहते हैं कि रूसी हथियार गैरकानूनी ढंग से अफगानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान आते थे और स्थानीय हथियार उनके मुकाबले के लायक नहीं थे. फिर सन 2001 में पाकिस्तान तालिबान के खिलाफ पश्चिमी देशों के संघर्ष में शामिल हुआ और बाजार में भारी मात्रा में सारी दुनिया से हथियार आने लगे. नतीजतन स्थानीय उत्पादन चौपट हो गया.

विदेशी हथियारों ने किया नुकसान

जिन घरों में हथियार बनाए जाते हैं, वहां अक्सर सरकारी छापे भी पड़ते हैं. साथ ही, स्थानीय हथियारों और विदेशी इम्पोर्ट की कीमतों में भी कोई खास फर्क नहीं है और ग्राहकों को बेहतर विदेशी हथियार ज्यादा पसंद हैं.

नतीजा यह हुआ है कि हथियार बनाने वालों को दूसरे पेशे ढूंढने पड़ रहे हैं. दर्रा आदम खेल के जमाल अफरीदी भी हथियार बनाने के पेशे में अपने हाथ आजमा चुके हैं. डॉएचे वेले को उन्होंने बताया कि अब बहुतेरे लोग पेशा बदलने लगे हैं. कुछ लोग टैक्सी चला रहे हैं, कुछ ने दुकानें खोल रखी हैं. कोई दूसरा चारा न रहने पर ही लोग इस पेशे से जुड़े हुए हैं. उनमें से कुछ सरकारी कारखानों के लिए असलहे बना रहे हैं.

तस्वीर: AP

कारखानों से गुजारा नहीं

वाह सैनिक अड्डे सहित कुछ इलाकों में पाकिस्तान सरकार ने हथियारों के कारखानों में कुछ लोगों को नौकरी दी है. कोई अचरज नहीं कि लगातार जारी युद्ध के चलते इस इलाके में बेरोजगारी भी बढ़ी है और हथियारों के उत्पादक तालिबान की पांतों में भी गए हैं. हालांकि डॉएचे वेले के रिपोर्टर फरीदुल्ला खान का कहना है कि तालिबान को स्थानीय उत्पादन के बदले वेस्टर्न इम्पोर्ट पर ज्यादा भरोसा है.

कुछ हथियार बनाने वाले नकली माल बना रहे हैं, खासकर अमेरिकी और रूसी ब्रांडों का. कभी कभी असली नकली में फर्क करना मुश्किल हो जाता है. जमाल अफरीदी कहते हैं कि हथियार बनाना पश्तुनों के खून में है. उनकी राय में इस पेशे को कानूनी बना देना चाहिए. फिर उस पर नियंत्रण रखा जा सकेगा. साथ ही तस्करी पर भी काबू पाना चाहिए.

"अपराधों की असली वजह बेरोजगारी है", जमाल अफरीदी कहते हैं. सरकार को चाहिए कि वह छोटे उत्पादकों को लाइसेंस दे. वे भी कमाएं, सरकार को भी टैक्स मिले. आखिर दूसरे देशों में भी तो हथियार बनाए जाते हैं, उन्हें बेचा जाता है.

रिपोर्ट: शामिल शम्स/उ भट्टाचार्य

संपादन: वी कुमार

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