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जंग के बाद फिर जंग का डर

८ फ़रवरी २०१४

माली में फ्रांस के सैनिक इस्लामी कट्टरपंथियों को भगाने में सफल रहे हैं. लेकिन अब उन्हें और उनकी सहायता कर रहे जर्मन सैनिकों को वापस आना है. माली का भविष्य कैसा होगा?

तस्वीर: JOEL SAGET/AFP/Getty Images

गाओ में जिंदगी फिर सामान्य सी हो गई है. नाइजर नदी के पास माली के उत्तरी शहर गाओ में यूरो बार दोबारा खुल गया है. लेकिन दुकान के ऊपर छत नहीं है. ग्राहक इससे खुश हैं कि बिजली का कनेक्शन बचा हुआ है और लाउडस्पीकर पर संगीत भी सुन सकते हैं. बार में मिलने वाली बीयर ठंडी है.

पश्चिम अफ्रीकी देश माली का शहर गाओ इस्लामी कट्टरपंथियों का गढ़ था. 2012 की शुरुआत में गाओ पर टिंबकटू की तरह पहले माली के तुआरेग विद्रोहियों ने कब्जा किया फिर इस्लामी उग्रवादी शहर पर हावी हो गए. टिंबकटू में तो अल कायदा ने धावा बोला लेकिन गाओ में अल कायदा से भी खतरनाक माने जाने वाले गुट मुजाओ ने शहर को पूरी तरह घेर लिया.

जंग से बास्केटबॉल तक

फ्रांस और माली शिखर सम्मेलनतस्वीर: Alain Jocard/AFP/Getty Images

गाओ के स्वतंत्रता चौक का नाम बदल दिया गया और इस्लामी कट्टरपंथियों ने इसे शरिया चौक बना दिया. जो उनकी बात नहीं मानता, उसे खुले आम चाबुक से मारा जाता. 17 साल का अगाली याद करता है, "बहुत खतरनाक था. हमें बाहर जाने की इजाजत नहीं थी. इस्लामी कट्टरपंथियों ने हमें डराया धमकाया. उन्होंने हम पर जुल्म ढाए. लेकिन अब सब ठीक है. मैं आजाद हूं."

आज अगाली बास्केटबॉल खेल सकता है. फ्रांसीसी सैनिकों के मिशन ने इस्लामी कट्टरपंथियों को शहर से भगा दिया है. 2013 में हुई जंग ने कई इमारतों को नष्ट कर दिया. डाकघर, टाउन हॉल और थाना अब बस खंडहर बन कर रह गए हैं.

गाओ में स्कूल और दुकानें खुली हैं लेकिन रेडियो जॉकी का काम कर रहीं आमीनाता माइगा कहती हैं कि वह अपने को अब भी सुरक्षित महसूस करतीं हैं. कोई बाजार जाता है तो वापस आने तक सांस रुकी रहती है.

क्या वापस आएंगे कट्टरपंथी

तुआरेग विद्रोहीतस्वीर: picture alliance/AP Photo

संयुक्त राष्ट्र की नीली टोपी वाले सैनिक और फ्रांस के सुरक्षाकर्मी पहरा लगाए रहते हैं लेकिन फिर भी लगभग हर दिन हमलों की खबर आती है. हाल ही में गाओ के एयरपोर्ट पर बारूदी सुरंगों को उड़ाया गया. माली के उत्तर में किदाल के बारे में कहा जाता है कि वहां बस अराजकता है. इलाका तुआरेग कबीले के मुक्ति आंदोलन एमएनएलए का गढ़ है. विद्रोही अजावाद नाम के इलाके को आजाद करना चाहते हैं. एक तरफ स्वतंत्रता की क्रांति है तो दूसरी ओर नफरत, आतंकवाद और नस्ली हिंसा.

माली में जर्मन संस्थान फ्रीडरिष एबर्ट में काम कर रहे अब्दुररहमान डीको कहते हैं, "अगर किसी को कुछ बदमाशी करनी है तो वह बम से लैस अपनी बेल्ट लगाकर आ सकता है, बाइक से या चलकर. हमारे यहां अब तक कोई राष्ट्र नहीं है. यह इलाका अधिकारों से वंचित है. यहां सही वक्त पर कुछ भी करना मुश्किल है."

फ्रांस अपने सैनिक वापस बुला रहा है. माली में 1,000 फ्रांसीसी सुरक्षाकर्मी बचेंगे. गाओ फिर से इस्लामी कट्टरपंथियों का गढ़ बन सकता है. लोगों को अपनी सेना पर भरोसा नहीं है. उन्हें फ्रांस से ट्रेनिंग मिल रही है लेकिन अभी उसमें वक्त लगेगा.

रिपोर्ट: आलेक्स गोएबेल/एमजी

संपादन: महेश झा

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