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जड़ से जमीन तलाशती सीपीएम

प्रभाकर मणि तिवारी
२५ अप्रैल २०१७

वर्ष 2011 में चुनाव हारने के बाद सीपीएम और इसकी अगुवाई वाले लेफ्ट फ्रंट के पैरों तले की जमीन लगातार खिसक रही है. पार्टी ने अब भूमि सुधार और अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों का सहारा लेने का फैसला किया है.

Indien Nandigram Denkmal Opfer der Polizeigewalt in 2007
नंदीग्राम का भूत सता रहा है सीपीएम कोतस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tewari

तमाम उपायों के बावजूद अब तक सीपीएम और वामपंथी पार्टियों की हालत में कोई सुधार नहीं होने के बाद अब फ्रंट ने उसी फार्मूले का अपनाने का फैसला किया है जिसने उसे बंगाल में अजेय बना दिया था. फार्मूला यानी भूमि सुधार. इसके तहत वह पूरे देश में जबरन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बना रही है. पार्टी देश के तमाम किसानों को अपने साथ लेकर इस मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहती है.

उखड़ते पांव

सीपीएम ने किसी दौर में जमीन आंदोलन और भूमि सुधारों के जरिए ही बंगाल में अपनी पैठ बनाई थी. पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु की अगुवाई में होने वाले भूमि सुधारों ने सीपीएम और उसकी अगुवाई वाले लेफ्ट फ्रंट को बंगाल में अजेय बना दिया था और उसने दो मुख्यमंत्रियों के तहत कोई साढ़े तीन दशकों तक यहां राज किया. यह भी विडंबना ही कही जाएगी कि जमीन के जिस मुद्दे ने यहां उसकी जड़ें गहरे तक जमाई थी वही मुद्दा उसके सत्ता से जाने की भी वजह बना. तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने सिंगुर और नंदीग्राम में जबरन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ जो आंदोलन शुरू किया था वही ममता के सत्ता में आने और सीपीएम की सत्ता की विदाई का कारण बना.

सत्ता से जाने के बाद बीते छह वर्षों के दौरान सीपीएम के पैरों तले की जमीन लगातार खिसकती रही है और वह एक के बाद एक तमाम चुनावों में धूल चाटती रही है. इसकी एक वजह नेतृत्व की कमी और नए चेहरों का सामने नहीं आना भी है. अपने पैर मजबूत करने के तमाम उपाय फेल हो जाने के बाद पार्टी ने अब नए सिरे से संगठन को मजबूत करने की रणनीति बनाई है. इसके तहत उसने जमीन के अपने मूल मुद्दे की ओर लौटने का फैसला किया है. यही वजह है कि वह बीते छह महीनों से राज्य के किसी भी कोने में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ होने वाले आंदोलनों को खुल कर समर्थन देती रही है. सीपीएम की किसान शाखा अखिल भारतीय कृषक सभा ने आंदोलनकारियों की मांगों के समर्थन में 22 मई को राज्य सचिवालय नवान्न तक किसानों की रैली आयोजित करने का भी फैसला किया है.

जमीन ही मुद्दा

सीपीएम के वरिष्ठ नेता और किसानों के सबसे बड़े संगठन अखिल भारतीय कृषक सभा के महासचिव हन्नान मौल्ला कहते हैं, "जमीन के लिए संघर्ष ही वाम राजनीति की धुरी रही है. हमने पूरे देश में जबरन अधिग्रहण और लोगों को उनकी जमीन से उजाड़ने के खिलाफ संघर्ष शुरू करने का फैसला किया है." वह कहते हैं कि पार्टी ने बंगाल में भी ऐसे आंदोलन शुरू करने और दूसरे वाम या लोकतांत्रिक ताकतों की ओर से होने वाले आंदोलनों को खुल कर समर्थन देने का फैसला किया है. पार्टी को अगले महीने होने वाले सचिवालय अभियान में दो लाख से ज्यादा किसानों के शामिल होने की उम्मीद है. उसने इसके लिए 10 अन्य किसान संगठनों से भी सहयोग मांगा है. सीपीएम ने जमीन अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने की मांग उठाई है.

सीपीएम सांसद और पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम कहते हैं, "जमीन के लिए संघर्ष वामपंथी राजनीतिक कार्यक्रम का केंद्र रहा है और हमेशा रहेगा." वह कहते हैं कि ममता बनर्जी सरकार ने जमीन अधिग्रहण के मामले में कोई ठोस नीति नहीं बनाई है. इससे भू-माफिया की सक्रियता बढ़ गई है. सीपीएम इन भू-माफियाओं की गतिविधियों के खिलाफ आंदोलन तेज करेगी.

अधिग्रहण-विरोधी आंदोलन

वैसे, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी निजी परियोजनाओं के लिए जमीन के जबरन अधिग्रहण के खिलाफ हैं. बावजूद इसके बीते छह महीनों के दौरान राज्य में केंद्रीय या राज्य सरकार की परियोजनाओं के लिए जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ कई आंदोलन सिर उठा चुके हैं. नक्सली या मानवाधिकार संगठनों की ओर से शुरू किये गये इन आंदोलनों को समर्थन देने में सीपीएम ने कोई कोताही नहीं बरती है.

बीते दिनों कोलकाता से सटे भांगड़ इलाके में पावर ग्रिड कार्पोरेशन की बिजली परियोजना के खिलाफ आंदोलन में दो लोगों की मौत हो गई थी. इसी तरह कहीं नेशनल हाइवे के प्रसार के लिए अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन हो रहे हैं तो कहीं रेलवे परियोजना के खिलाफ. बीरभूम के अलावा बोलपुर व बर्दवान जिलों में ऐसे आंदोलन सिर उठाने लगे हैं.

सांगठनिक फेरबदल

सीपीएम ने अब जमीन के मुद्दे पर संघर्ष तेज करने के साथ ही पार्टी के निष्क्रिय सदस्यों को हटाने का भी फैसला किया है. बंगाल में पार्टी के 2.65 लाख सदस्य हैं. अब इनमें से लगभग 30 फीसदी को हटाने का फैसला किया गया है. मोहम्मद सलीम कहते हैं, "हमने बंगाल में पार्टी के समक्ष खड़ी चुनौतियों की शिनाख्त कर ली है. अब पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए निष्क्रिय सदस्यों को हटा कर नए सिरे से सदस्यता अभियान चलाया जाएगा."

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि तमाम हथकंडे फेल होने के बाद अब सीपीएम अपने जड़ों की ओर लौटने का प्रयास कर रही है. वह अतीत की गलतियों को सुधार कर इसी मुद्दे के सहारे अपने पैरों की खिसकती जमीन रोकने का प्रयास कर रही है. बीते साल सीपीएम से निकाले गए अब्दुर रज्जाक मौल्ला कहते हैं, "सीपीएम बंगाल में खत्म हो गई है और कभी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकेगी." लंबे अरसे तक सीपीएम में रहे मौल्ला कहते हैं कि पार्टी को निचले स्तर के काडरों की बजाय पार्टी के उन वरिष्ठ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए जो हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. वह कहते हैं कि पहले शीर्ष स्तर पर बदलाव जरूरी है.

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