कार्ड से पेमेंट करेंगे तो ज्यादा पैसा चुकाना पड़ेगा. एटीएम से इतनी बार ही मुफ्त में पैसा निकलेगा. कैशलेस इंडिया बहुत महंगा साबित हो रहा है. और ऐसा लगता है जैसे सरकार और रिजर्व बैंक को यह बात समझ में आ ही नहीं रही है.
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भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ मोदी सरकार ने कई कदम उठाए हैं. नोटबंदी के बाद सरकार ने कैशलैस इंडिया का अभियान छेड़ा. नकद भुगतान को कम करने की कोशिश की, कार्ड से पेमेंट को बढ़ावा दिया. कैशलैस भुगतान में हर सौदा बैंक रिकॉर्ड में दर्ज हो जाता है. टैक्स और वित्तीय पारदर्शिता के लिहाज से यह अच्छी पहल है. लेकिन पर्याप्त तैयारियों के बिना ये कदम आम लोगों पर अनचाहा वित्तीय बोझ बन रहा है, और सरकार इसकी अनदेखी कर रही है.
उदाहरण के लिए आप 10,000 हजार रुपये का कोई सामान खरीदिए. कैश से पेमेंट करने पर आपको 10,000 रुपये की एमआरपी ही चुकानी पड़ती है. लेकिन बहुत संभव है कि कई जगहों पर कार्ड से भुगतान करने पर डेढ़ फीसदी या ढाई फीसदी ज्यादा पैसा चुकाना पड़े. यानि 10,000 रुपये की एमआरपी के लिए 10,150 या 10,250 रुपये चुकाने पड़ें. और ऐसा सिर्फ महंगे सामानों के साथ ही नहीं है. कार्ड स्वाइप करने पर छोटे छोटे सौदे भी महंगे पड़ते हैं. खाते में न्यूनतम बैलेंस न हो तो हर बार कार्ड से स्वाइप करने पर 17 से 25 रुपये की पेनल्टी. ऐसे में कैशलैस अर्थव्यवस्था लोकप्रिय कैसे होगी, उसकी साख कैसे बनेगी? कार्ड से पारदर्शी सौदा करने वाले को बार बार ज्यादा कीमत क्यों चुकानी चाहिए?
भारत में दुकानदार कार्ड स्वाइप मशीन ऑपरेट करने के लिए किसी बैंक की सेवा लेते हैं. बैंक, कार्ड स्वाइप मशीन की सर्विस देने के बदले कुछ चार्ज लेता है. इस चार्ज की भरपाई सीधे उपभोक्ता से सिर उड़ेली जा रही है. ज्वैलर्स या इलेक्ट्रॉनिक आइटम बेचने वाले कई व्यापारी अब भी कैश ज्यादा पसंद करते हैं, इसके पीछे उनकी क्या मंशा है, यह तो वही जानें, लेकिन ग्राहकों की मंशा साफ है, क्योंकि एक्स्ट्रा चार्ज कैशलैस इंडिया में रह रहे ग्राहक को देना पड़ता है.
दुनिया से 10 सबसे कैशलेस देश
भारत में नोटबंदी के बाद कैशलेस व्यवस्था को बढ़ावा देने पर बहुत जोर दिया जा रहा है. एक नजर दुनिया के सबसे ज्यादा कैशलेस देशों पर.
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10. दक्षिण कोरिया
मास्टर कार्ड कैशलेस जर्नी नाम की एक रिपोर्ट में दुनिया की सबसे ज्यादा कैशलेस अर्थव्यवस्थाओं का ब्यौरा दिया गया है. इस लिस्ट में 10वें पायदान पर दक्षिण कोरिया है जहां समूचे कंज्यूमर पेमेंट का 70 फीसदी पेमेंट कैशलेस होता है. देश की 58 फीसदी आबादी के पास डेबिट कार्ड है.
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9. जर्मनी
सबसे कैशलेस देशों की फेहरिस्त में नौवें नंबर पर यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी है. यहां कुल कंज्यूमर पेमेंट का 76 प्रतिशत भुगतान कार्ड या अन्य कैशलेस तरीकों से होता है. 88 फीसदी आबादी के पास डेबिट कार्ड है.
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8. अमेरिका
अमेरिका में 72 प्रतिशत लोगों के पास डेबिट कार्ड है जबकि कुल कंज्यूमर पेमेंट का 80 फीसदी पेमेंट कैशलेस होता है. हालत यह है कि वहां एटीएम मशीनों की प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे हैं.
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7. नीदरलैंड्स
नीदरलैंड्स ने कैशलेस होने के मामले में खासी प्रगति की है जहां कुल कंज्यूमर पेमेंट का 85 फीसदी पेमेंट कैशलेस हो रहा है. देश के 98 प्रतिशत लोगों के पास डेबिट कार्ड है. राजधानी एम्सटरडैम में पार्किंग वाले तक कैश नहीं लेते, सिर्फ कार्ड से ही पेमेंट होता है.
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6. ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया में 79 प्रतिशत लोगों के पास डेबिट कार्ड है जबकि कंज्यूमर पेमेंट का 86 प्रतिशत कैशलेस होता है. वहां कैशलेस पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए कई आयोजन होते हैं.
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5. स्वीडन
स्वीडन में 2008 में जहां 110 बैंक डकैतियां हुईं, वहीं 2011 में इतनी संख्या घटकर 16 रह गई. वजह है बैंकों में कम से कम कैश होना. कैशलेस देशों की सूची में स्वीडन पांचवें नंबर पर है जहां कंज्यूमर पेमेंट का 89 फीसदी हिस्सा कैशलेस है. देश के 96 प्रतिशत लोगों के पास डेबिट कार्ड है.
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4. ब्रिटेन
लंदन की मशहूर डबल डेकर बस में चढ़ने से पहले सुनिश्चित कर लें कि आपके पास या तो 'ओइस्टर कार्ड' हो या प्रिपेड टिकट, क्योंकि इसमें कैश नहीं चलता. वैसे पूरे ब्रिटेन में कैश का चलन घट रहा है. कुल कंज्यूमर पेमेंट का 89 कैशलेस ही होता है और 88 फीसदी लोगों के पास डेबिट कार्ड हैं.
कनाडा में कुल कंज्यूमर पेमेंट का 90 फीसदी कैशलेस होता है जबकि देश के 88 फीसदी लोगों के पास डेबिट कार्ड है. वैसे, कनाडा ने 2013 से सेंट के सिक्के बनाना बंद कर दिया है. यानी वहां भी कैशलेस होने पर ज्यादा से ज्यादा जोर है.
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2. फ्रांस
फ्रांस में 69 प्रतिशत लोगों के पास डेबिट कार्ड है, हालांकि कुल कंज्यूमर पेमेंट का 92 फीसदी हिस्सा कैशलेस होता है. फ्रांस में तीन हजार यूरो से ज्यादा कैश के लेन-देन की अनुमति नहीं है.
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1. बेल्जियम
फिलहाल बेल्जियम दुनिया का सबसे ज्यादा कैशलेस देश है जहां कुल कंज्यूमर पेमेंट का 93 फीसदी कैशलेस होता है. देश की 86 फीसदी आबादी के पास डेबिट कार्ड है. वहां अगर तीन हजार यूरो से ज्यादा कैश का लेन-देन किया तो सवा दो लाख यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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इसके अलावा एटीएम के इस्तेमाल पर भी चार्ज लगने लगा है. किसी बैंक के एटीएम से महीने में सिर्फ छह बार निःशुल्क पैसा निकाल सकते हैं तो किसी के एटीएम से 10 बार 10 निकासी संभव है. निकासी की यह लिमिट खत्म होने के बाद अगर उपभोक्ता अपने बैंक एटीएम से भी पैसा निकालता है तो उसे अतिरिक्त शुल्क देना पड़ रहा है. यानि लोग पैसा निकालें तो भी खर्चा, कार्ड से पेमेंट करें तो भी एक्स्ट्रा चार्ज.
हर बैंक के अपने नियम कायदे हैं. भारत में बैंकिंग जनता के वित्तीय समावेशन के लिए नहीं बल्कि मुनाफा कमाने का जरिया बनती दिख रही है. यह समस्या रिजर्व बैंक के गर्वनर रह चुके रघुराम राजन के समय में भी थी. अब उर्जित पटेल के काल में भी हैं. वित्त मंत्रालय से जुड़े सभी अधिकारी इससे वाकिफ हैं. दूसरे देशों के बैंकिंग और फाइनेंस सेक्टर पर लगातार नजर रखने वाले ये सभी लोग इन समस्याओं को दूर करने की फिलहाल कोई पहल नहीं कर रहे हैं.
आम लोगों के लिए सहूलियत भरी कैशलैस व्यवस्था कैसे बनाई जा सकती है, इसकी सीख यूरोप से ली जा सकती है. जर्मनी, फ्रांस, इटली, नॉर्वे, फिनलैंड और स्वीडन समेत यूरोपीय संघ के सभी देशों में कार्ड से भुगतान करने पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ता. कार्ड में पैसा हो तो उसे खरीदारी के लिए ढेरों बार इस्तेमाल किया जा सकता है. अपने एटीएम से बार बार पैसे निकाले जा सकते हैं. सिर्फ दूसरे बैंकों के एटीएम से पैसा निकालने पर शुल्क देना पड़ता है. ग्राहकों की सुविधा के लिए बैंकों ने दूसरे बैंकों के साथ एटीएम सहयोग समझौता कर लिया है. चालू खाता रखने के लिए बहुत कम मासिक न्यूनतम फीस जरूर देनी पड़ती है, लेकिन यह शुल्क बाकी मुश्किलों से बचाता है. कई बैंकों में न्यूनतम राशि रखने पर यह मासिक शुल्क नहीं लगता. ऑनलाइन बैंकों में तो यह मुफ्त है ही. आखिर बैंक ग्राहकों के खातों में रखे धन से कमाई कर ही रहे हैं.
यूरोपीय संघ में अब 28 देशों के बीच आम नागरिकों के लिए ईजी कार्ड पेमेंट सिस्टम बनाया जा रहा है. जर्मन संसद ने 2017 में यूरोपीय संघ के फैसले के बादर कार्ड पेमेंट पर किसी भी तरह के एक्स्ट्रा चार्ज पर रोक लगा दी. इसके अलावा क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल को भी सस्ता और सुरक्षित बनाया गया. यूरोपीय संघ ने निर्देश यूरोप में आम लोगों की सुविधा बढ़ाने के लिए जारी किए. जून 2017 से पहले जर्मनी में ङी क्रेडिट कार्ड के जरिए इंटरनेट से फ्लाइट, या होटल बुक करने पर अतिरिक्त चार्ज की वसूली शुरू हो गई थी. संसद ने ग्राहकों को इस खर्च से बचाने के लिए इस पर रोक लगा दी. पूरे यूरोप में अब ऐसा नहीं किया जा सकेगा.
क्रेडिट कार्ड लोगों की मदद करने के लिए है, उन्हें लूटने के लिए नहीं. कैश की ही तरह वह भी भुगतान का अतिरिक्त साधन है. उस पर शुल्क लगाना ग्राहकों की लूट के अलावा और कुछ नहीं है. इस लूट को रोकना सरकारों की जिम्मेदारी है. भारत में अब भी क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने में लोगों को घबराहट होती है. वह कर्ज का ऐसा जंजाल बन जाता है, जो कभी खत्म ही नहीं होता. इस बीच पेटीएम और मोबाइल मनी जैसी सेवाओं ने आम लोगों की मदद की है. लेकिन इन सेवाओं के साथ साथ बैंकिंग में मौजूद मूलभूत समस्याओं को भी हल करने की जरूरत है. वरना कैशलैस इंडिया का नारा सिर्फ एक जुमला बनकर रह जाएगा.
ATM के 50 साल
50 साल, पहले दुनिया ने पहली एटीएम मशीन देखी. आज भी बैंकिंग के इतिहास में शायद इससे बड़ी खोज नहीं हुई. एक नजर इसके इतिहास और भविष्य पर.
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पहली मशीन
वैसे तो पहली बार नोट गिनने की मशीन 50 साल पहले स्कॉटलैंड के जॉन स्टीफर्ड-बैरन ने बनाई. लेकिन इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई. बैरन की मशीन के आधार पर 1968 में पहली बार गिनकर नोट देने वाली मशीन लॉन्च की गई. कैपिटल नेशनल बैंक ऑफ मायामी के निदेशक ने इस पहली एटीएम मशीन को बैंक की लॉबी में लगवाया.
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सीमा के पार
अमेरिका में लॉन्च हुई एटीएम मशीन ने दुनिया भर में तहलका मचा दिया. 1970 के दशक में यूरोप में भी पैसा निकालने वाली मशीनें बेहद लोकप्रिय हो गईं. 1970 के दशक में एटीएम ऐसा दिखाई पड़ता था.
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कैसे काम करती है मशीन
एटीएम मशीन एक सॉफ्टवेयर के जरिये ऑपरेट करती है. मशीन के भीतर लगे खांचों में नोट भरे जाते हैं. सॉफ्टवेयर मशीन को नोट निकालने का निर्देश देता है. हर मशीन इंट्रानेट कनेक्शन से जुड़ी होती है, जिसके चलते कैश निकालने के बाद सीधे बैंक खाता भी अपडेट हो जाता है.
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आम जिंदगी का हिस्सा
एटीएम के चलते बैंकों और आम लोगों के बड़ी राहत मिली है. अब पैसा निकालने के लिए बैंक जाने की और पासबुक अपडेट कराने की जरूरत नहीं पड़ती. इन मशीनों के जरिये बैकिंग में कागज का इस्तेमाल 50 फीसदी कम हुआ है.
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यूनिवर्सल सिस्टम
एटीएम मशीन चाहे दुनिया के किसी हिस्से में हो, उनके कुछ बटन एक जैसे होते हैं. एंटर के लिए हरा और कैंसल के लिए लाल. इसी एकरूपता के चलते आपको भाषा भले ही समझ न आए लेकिन एटीएम इस्तेमाल किया जा सकता है.
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नकदी का जलवा
आज एटीएम मशीन का जलवा पूरी दुनिया में है. कड़े नियमों वाले इस्लामिक देशों में भी इस मशीन को खूब इस्तेमाल किया जाता है. इस्लाम में जमा पैसे पर ब्याज लेना हराम माना जाता हो, लेकिन एटीएम मशीन तो मुस्लिम देशों में घनघनाती है.
तस्वीर: MEHR
एटीएम नहीं मिनी बैंक
समय के साथ ये मशीनें भी इंटेलिजेंट हुई हैं. अब इनमें पैसा जमा और ट्रांसफर भी किया जा सकता है. हल्की फुल्की इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा भी मिलने लगी है.
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अपराधियों की भी पसंदीदा मशीनें
भारत में बुल्डोजर से एटीएम मशीन उखाड़ने के मामले सामने आ चुके हैं. जर्मनी में धमाका कर मशीन क्रैक करने के मामले सामने आ चुके हैं. जर्मनी में करीब हर महीने ही कहीं न कहीं एटीएम को निशाना बनाया जाता है.
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भविष्य कितना लंबा
अब एटीएम मशीनों के दिन भी लदते दिख रहे हैं. कैश से प्लास्टिक मनी तक पहुंची दुनिया अब कैशलेस होने की ओर बढ़ रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक अगले 5-10 साल में परंपरागत एटीएम खत्म होने लगेंगे. इनकी जगह मोबाइल कनेक्टिविटी वाली कोडिंग मशीनें लेने लगेंगी.
रिपोर्ट: टीके/ओएसजे