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जनमत संग्रह करा कर सिगरेट पर रोक

१५ जुलाई २०१०

जर्मन प्रदेश बवेरिया में एक जनमत संग्रह में सार्वजनिक स्थलों पर सिगरेट पीने पर पूरी रोक की पुष्टि कर दी गई है. इस फ़ैसले के साथ आम लोगों के स्वास्थ्य के मुद्दे पर जनता की भागीदारी की नई परंपरा शुरू.

जनमत संग्रह ने बुझाई सिगरेटतस्वीर: picture alliance/dpa

सिगरेट पीने को वयस्क होने का सर्टिफिकेट माना जाता है, लेकिन सर्टिफिकेट पाने के चक्कर में ऐसी लत लगती है कि ज़िंदगी भर नहीं छूटती. खुद के स्वास्थ्य पर इसका असर तो पड़ता ही है, इसका भी ध्यान नहीं रहता कि मुंह से निकलने वाले धुएं के छल्ले सिगरेट न पीने वाले को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. सिगरेट पर रोक के प्रयासों के बीच जर्मन प्रांत बवेरिया में पिछले दिनों एक जनमत संग्रह हुआ. लोगों ने भारी बहुमत से सार्वजनिक स्थलों पर सिगरेट पीने पर पूरी रोक का पक्ष लिया.

सिगरेट पर रोक की बहस पश्चिमी देशों में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च से जुड़ गई है. चूंकि स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ रहा है, खर्च घटाने के लिए स्वस्थ्य रहना ज़रूरी होता जा रहा है और सिगरेट लोगों को खर्चीले मुश्किलों में डालने वाले विलेन के रूप में सामने आया है. वैसे सिगरेट पीने पर रोक लगाने की बहस उतनी ही पुरानी है जितनी सिगरेट पीने की आदत.

यूरोप में सिगरेट पीने की शुरुआत लगभग 500 साल पहले हुई. वजह थी भारत की खोज. भारत खोजते खोजते कोलंबस अमेरिका पहुंच गया और अमेरिका की खोज कर डाली. अमेरिका की खोज के साथ तंबाकू पहली बार यूरोप पहुंचा. यूरोप में 1618 से 1648 तक तीस वर्षीय युद्ध चला. इस युद्ध के दौरान पहले रजवाड़ों ने लकड़ी से बने घरों को बचाने के लिए तंबाकू पीने पर रोक लगा दी. लेकिन इसका मकसद भाड़े के लड़ाकों में तंबाकू के नशे की तेज़ी से बढ़ रही लत पर काबू पाना भी था. तंबाकू पीने पर रोक का कड़ाई से पालन किया जाता था. जर्मन रजवाड़े ल्यूनेबर्ग में 1692 तक प्रतिबंध को तोड़ने वाले को मौत की सज़ा दी जा सकती थी. लेकिन कुछ ने इसे रोकने के लिए उस पर टैक्स लगाना शुरू किया और तंबाकू टैक्स से इतनी आमदनी होने लगी कि बहुत से ताक़तवर राजाओं ने तंबाकू से समझौता कर लिया. आज भी तंबाकू टैक्स राज्य की आय का एक अहम ज़रिया है.

सिगरेट बीयर का साथतस्वीर: picture-alliance/dpa

20वीं शताब्दी में सिगरेट, सिगार और पाइप पीने पर प्रतिबंध वैचारिक और सैद्धांतिक लड़ाई के रूप में सामने आया. जर्मनी में यह नाज़ी काल में अलग तरह से देखने को मिला. नाज़ी तंबाकू को नस्ली ज़हर कहते थे, जो दूसरों पर निर्भरता का संकेत था. नाज़ी सिर्फ़ तानाशाह हिटलर पर निर्भरता चाहते थ और उसका कहना था कि उसका उत्थान इसलिए हुआ है कि उसने सिगरेट पीनी छोड़ दी है.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप का पुनर्निर्माण भी तंबाकू के साथ निकट रूप से जुड़ा है. युद्ध के दौरान लोगों को सिगरेट पीने की ऐसी आदत लग गई थी कि अभाव के उन दिनों में लेन देन पैसे के बदले सिगरेट से होने लगा था. अमेरिका ने यूरोप के पुनर्निर्माण के लिए मार्शल प्लान के तहत पहले ही साल जर्मनी को 90 हज़ार टन वर्जीनिया तंबाकू के पत्ते भेजे. युद्ध की समाप्ति के बाद 1945 से सिगरेट वैकल्पिक मुद्रा बन गई थी और उसके साथ ही एक ताक़तवर तंबाकू उद्योग का विकास हुआ.

जर्मनी में पहली सिगरेट विरोधी पहल 1970 के सालों में शुरू हुई. लेकिन जर्मन संसद में पहली बार 1998 में सिगरेट नहीं पीने वालों की सुरक्षा के कानून पर चर्चा हुई. संसद में विभिन्न संसदीय दलों द्वारा संयुक्त रूप से लाया गया बिल पास नहीं हो पाया, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हॉर्स्ट जेहोफ़र के विरोध के कारण. 8 साल बाद चांसलर अंगेला मैर्केल की कैबिनेट में उपभोक्ता मंत्री के रूप में उंही हॉर्स्ट जेहोफ़र ने चांसलर से सिगरेट पीने पर रोक के लिए एक कड़ा कानून बनाने की मांग की. इस बहस में उन्होंने कहा, "मैं इस बात को समस्याजनक मानता हूं कि कुछ राज्यों में रेस्तरां मालिकों को अपने रेस्तरां को सिगरेट की अनुमति वाले रेस्तरां के रूप में चिंहित करने की अनुमति होगी जबकि कुछ दूसरे राज्य कुछ प्रकार के रेस्तरां को प्रतिबंध से बाहर रखना चाहते हैं, जैसे पबों को."

जर्मन सरकार ने 2006 में एसपीडी सांसद लोथार बिंडिष के एक निजी बिल का समर्थन किया. लेकिन जर्मन संसद बुंडेसटाग में उसे पास करने में भी सफलता नहीं मिली. उस समय जर्मनी की कानून मंत्री एसपीडी की ब्रिगिटे त्सिप्रीस थी. उनका कहना था, "बुंडेसटाग को यह फ़ैसला करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है कि महापालिका भवनों और स्कूलों में सिगरेट पीने पर क्या रवैया हो."

उसके बाद जर्मनी के सभी 16 प्रांतों के मुख्यमंत्रियों ने मिलजुल कर एक साझा कानून तय करने पर बातचीत शुरू की. लेकिन सहमति पर पहुंचने का वह प्रयास भी विफल रहा. और तब अगस्त 2007 से जुलाई 2008 तक विभिन्न प्रातों ने सिगरेट नहीं पीने वालों की सुरक्षा के अलग अलग कानून पास किए. सिगरेट पीने वालों की दिक़्क़त यह है कि उन्हें अब हर प्रांत का कानून पता होना चाहिए. जिस तरह आप ड्युसैलडॉर्फ़ के पब में बीयर के साथ सिगरेट पी सकते हैं क्या उसी तरह ड्रेसडेन में भी पी सकते हैं? सबसे कड़ा कानून जेहोफ़र की सीएसयू पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री एडमुंड श्टोइबर ने बवेरिया में पास करवाया. उन्होंने कहा, "सरकारी दफ़्तरों और सभी रेस्तरांओं में सिगरेट नहीं पी जा सकेगी."

श्टोइबर के इस्तीफ़े के बाद अब हॉर्स्ट ज़ेहोफ़र बवेरिया के मुख्यमंत्री हैं. पब और बीयरगार्डन परंपरा वाले बवेरिया में सिगरेट पीने पर प्रतिबंध के कारण सीएसयू पार्टी के बहुत वोट कटे. जेहोफ़र ने अगस्त 2009 से प्रतिबंध में ढ़ील दे दी, रेस्तरां में एक कमरा सिगरेट पीने वालों के लिए हो सकता था और छोटे पब अपने को सिगरेट पीने वाला पब घोषित कर सकते थे. सिगरेट विरोधी जनता को यह मंज़ूर नहीं था. जनमत संग्रह की पहल शुरू हुई. जनमत संग्रह से पहले मुख्यमंत्री हॉर्स्ट जेहोफ़र ने किसी का पक्ष नहीं लिया, "मैं चाहता हूं कि जनता बड़ी संख्या में जनमत संग्रह में हिस्सा ले और उसके बाद फिर से शांति हो."

जनता के भारी बहुमत ने जनमत संग्रह में सिगरेट पर रोक में मिली छूटों को खारिज कर दिया. अपवाद सिर्फ़ इस साल का अक्टूबर महोत्सव होगा जो बवेरिया बीयर महोत्सव भी है. बवेरिया के इस फ़ैसले के साथ जर्मनी में एक बार फिर पूरे देश में सिगरेट पीने पर कड़ाई से रोक लगाने की बहस छिड़ गई है.

सिगरेट पीने पर बवेरिया में जनमत संग्रह द्वारा लगाया गया प्रतिबंध जर्मनी का सबसे कड़ा प्रतिबंध है. लगभग 60 फ़ीसदी लोगों ने जनमत संग्रह में फ़ैसला किया कि रेस्तरां, बार और पबों में भविष्य में सिगरेट नहीं पी जा सकेगी. जर्मनी में लगभग एक तिहाई वयस्क आबादी सिगरेट पीती है इसलिए फ़ैसला आसान नहीं था. बवेरिया में बहुमत ने सिगरेट समर्थकों की इस दलील को ठुकरा दिया कि बीयर गार्डनों में सिगरेट पीना परंपरा का हिस्सा है. जर्मनी में सिगरेट नहीं पीने वालों की सुरक्षा का मामला राज्य सूची में आता है. इसलिए केंद्र सरकार सिगरेट पीने पर देशव्यापी रोक लगाने से बचती रही है लेकिन बवेरिया के फ़ैसले का सांकेतिक असर हो रहा है.

सेबाश्टियान फ़्रांकेनबर्गरतस्वीर: picture-alliance/dpa

बवेरिया के फ़ैसले की खासियत यह है कि यह फ़ैसला ने जनता के प्रतिनिधियों के बदले स्वयं जनता ने लिया है. राजनीतिक हितों वाली बहस और फ़ैसलों से परे लोगों ने अपने और यहां तक कि रेस्तरां और पबों में काम करने वाले कर्मचारियों के स्वास्थ्य का ख्याल रखा है. इस फ़ैसले का श्रेय सेबाश्टियान फ़्रांकेनबर्गर को जाता है जिनके संगठन सिगरेट नहीं पीने वालों की सुरक्षा को हां ने जनमत संग्रह की पहल की. अब बवेरिया में मिली सफलता के बाद उनका कहना है कि अब पूरे जर्मनी में एक जैसा कानून बनाने का समय आ गया है. फ़्रांकेनबर्गर कहते हैं, "अब मुझे पहले की तरह केंद्रीय सरकार से उम्मीद है कि वह कहे, जनता एक व्यापक सिगरेट नहीं पीने वालों की सुरक्षा का कानून चाहती है. वह स्वास्थ्य की सुरक्षा और लत से किशोरों की सुरक्षा चाहती है."

स्वास्थ्य की सुरक्षा राज्य का विषय है लेकिन सिगरेट विरोधी श्रम सुरक्षा कानून का इस्तेमाल कर इसे रोकने की मांग कर रहे हैं जो केंद्रीय विषय है. यदि कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए कार्यस्थानों पर सिगरेट पीने पर रोक लगा दी जाए तो ग्राहकों की भी सुरक्षा हो सकेगी. प्रतिबंध के समर्थकों का कहना है कि यूरोपीय संघ 2013 तक इस तरह का कानून यूं भी लागू कर सकता है. लेकिन राज्य व केंद्र के विवाद के पचड़े से बचने के लिए बवेरिया के स्वास्थ्य मंत्री मार्कुस जोएडर कहते हैं, "यह एक बवेरियाई समाधान था, जिसके लिए कानून भी बवेरिया बनाएगा. अब दूसरे प्रातों को सलाह देना अक्खड़पन होगा. हर किसी को खुद फ़ैसला लेना चाहिए."

नॉर्थ राइन वेस्टफ़ैलिया और बर्लिन प्रदेशों में पहले से ही इस मुद्दे पर जनमत संग्रह कराने की योजना है. वहां यदि बवेरिया जैसा फ़ैसला हो जाता है तो दूसरे प्रातों पर दबाव बढ़ जाएगा. बहुत सी बीमारियों का कारण बनने वाले सिगरेट से लड़ने की ज़िम्मेदारी जनता ने खुद संभाल ली है.

रिपोर्ट: महेश झा

संपादन: ए जमाल

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