एक वक्त ऐसा आया था जब धरती पर सिर्फ 1,280 लोग रह गये थे और मानव जाति लगभग खत्म होने के कगार पर पहुंच गयी थी. ऐसा एक ताजा अध्ययन में कहा गया है.
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पृथ्वी पर रहने वाले आठ अरब लोग क्या आज सिर्फ इसलिए जिंदा हैं क्योंकि नौ लाख साल पहले 1,280 लोग इतने मजबूत थे कि वे तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी जिंदा रहे?
हाल ही में जारी एक नये अध्ययन में बताया गया है कि एक लाख 20 हजार साल तक इंसानियत के समूल नाश का खतरा बना रहा था.
जेनेटिक विश्लेषण के आधार पर किये गये अध्ययन में इंसान के पूर्वजों के उस दौर के जीवन की जांच की गयी है जब मानव जाति समूल नाश के कगार पर पहुंच गयी थी.
क्या वाकई ऐसा हुआ था?
कुछ वैज्ञानिक इस अध्ययन के नतीजों से सहमत नहीं हैं. इस अध्ययन में शामिल नहीं रहे एक वैज्ञानिक के मुताबिक जेनेटिक्स विशेषज्ञों में इस बात पर लगभग आम सहमति है कि ये दावे यकीन लायक नहीं हैं.
बर्फ में 5,300 सालों से दबा पाषाण युग का मानव "ओट्जी"
हजारों सालों से एक ग्लेशियर में दबे "ओट्जी" की खोज सितंबर 1991 में हुई थी, लेकिन वह आज भी लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है.
तस्वीर: Picture-alliance/dpa/M. Rattini/Port au Prince Pictures
सनसनीखेज खोज
जर्मन कपल एरिका और हेल्मुट साइमन को नौ सितंबर को ओट्ज्टाल ऐल्प्स पहाड़ों में बर्फ में जमा हुआ एक मानव मिला. यह जगह ऑस्ट्रिया और इटली की सीमा पर कहीं स्थित थी. शुरू में समझा गया कि यह शायद किसी हाइकर का शव है जिसकी किसी वजह से अचानक मौत हो गई होगी लेकिन बाद में पता चला कि यह पाषाण युग के एक आदमी का शरीर है, जो 5,300 सालों से बर्फ में पड़ा हुआ है. फिर इसे "ओट्जी" का उपनाम दिया गया.
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आकर्षण का केंद्र
कई सालों की सौदेबाजी के बाद एरिका को दक्षिणी टायरॉल राज्य की सरकार से 2,04,899 डॉलर का इनाम मिला. तब तक उनके पति का देहांत हो चुका था. वो पहाड़ों में हाइक करते हुए एक हादसे में मारे गए थे, जिसकी वजह से "ओट्जी के श्राप" जैसी बातें भी चल निकलीं. इसके बावजूद कोविड से पहले बोल्जानो स्थित पुरातत्व संग्रहालय में "ओट्जी" को हर साल देखने आने वालों की संख्या 3,00,000 के आस पास हो गई थी.
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कैसा दिखता होगा
"ओट्जी" के शरीर को संग्रहालय में 99 प्रतिशत आर्द्रता वाले एक बर्फीले कमरे में रखा जाता है. उस पर नियमित रूप से रोगाणु-हीन पानी का छिड़काव किया जाता है. अगर शरीर में कुछ बदलाव हुए तो उनका पता लगाने के लिए एक तोलन यंत्र भी लगा हुआ है. इसे निरीक्षण के लिए सामान्य तापमान के माहौल में कम ही लाया जाता है और वो भी बहुत ही कम समय के लिए. इस तस्वीर के जरिए कल्पना की गई है कि "ओट्जी" कैसा दिखता होगा.
तस्वीर: dapd
किसका "ओट्जी"?
"ओट्जी" की खोज की अहमियत जैसे ही स्पष्ट हुई ऑस्ट्रिया और इटली के बीच इस बात पर झगड़ा शुरू हो गया कि उसे कौन रखेगा. अंत में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उसे दोनों देशों के बीच की सीमा से 92.56 मीटर दूर, इटली की सीमा के अंदर पाया गया था.
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शरीर पर टैटू
"ओट्जी" के शरीर पर 61 टैटू पाए गए. क्रॉस और रेखाएं वाले इन टैटूओं को बनाने वाले ने "ओट्जी" की त्वचा को काट दिया था और बाद में घावों को सख्त कोयले से भर दिया था. यह काफी दर्द भरा तरीका रहा होगा. "ओट्जी" की मौत उसके कंधे में एक तीर के लग जाने से हुई थी. जब उसके शरीर की खोज हुई, वह तीर तब भी उसके शरीर में गड़ा हुआ था.
"ओट्जी" के पेट में जो भी था उसका भी गहन अध्ययन किया गया और पता चला कि उसे अपनी मौत से ठीक पहले काफी गरिष्ठ और चर्बीयुक्त खाना खाया था. इस भोजन में अनाज की एक काफी पुराना किस्म "आइनकॉर्न गेहूं" और बकरे का मांस मिला.
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आधुनिक तकलीफें
"ओट्जी" को ऐसी कई स्वास्थ्य समस्याएं थीं जो आज भी पाई जाती हैं. उसे दांतों का खराब होना, लाइम बीमारी और शरीर में पिस्सू होना जैसी समस्याएं थीं. उसे लैक्टोज असहनशीलता भी थी और आग के आस पास काफी ज्यादा वक्त बिताने से उसके फेंफड़े किसी सिगरेट पीने वाले के फेंफड़ों जैसे हो गए थे. उसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी नाम की पेट की समस्या भी थी और हृदय रोग भी थे.
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"ओट्जी" 2.0"
"ओट्जी" के बारे में और लोग जान सकें इस उद्देश्य से अप्रैल 2016 में उसकी एक प्रति बनाई गई. इटली के युरैक रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने एक थ्रीडी प्रिंटर की मदद से राल का इस्तेमाल कर उसकी एक प्रति बनाई. उसके बाद अमेरिकी पैलियो आर्टिस्ट गैरी स्ताब ने उसकी बारीकियों को उभारा. वो अब न्यू यॉर्क के कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैबोरेटरी के डीएनए लर्निंग सेंटर में है. (टॉर्स्टन लैंड्सबर्ग)
हालांकि वैज्ञानिकों को इस बात से इनकार नहीं है कि एक वक्त पर मानव जाति पूरी तरह समूल नाश के कगार पर पहुंच गयी थी लेकिन ताजा अध्ययन में जिस तरह की सटीकता जाहिर की गयी है, उस पर वैज्ञानिकों को संदेह है.
ऐसा इसलिए है क्योंकि इतने पुराने समय में पृथ्वी की आबादी में आये बदलावों का अध्ययनकरना एक बेहद जटिल काम है और पहले भी ऐसे ही तरीकों से जो अध्ययन किये गये हैं, उनमें ऐसे नतीजे नहीं मिले थे. ताजा अध्ययन कहता है कि लगभग पूरी आबादी खत्म हो गयी थी.
कैसे हुआ अध्ययन?
वैज्ञानिकों के पास जांच के लिए दो लाख साल पहले के आदिमानवों के कुछ अवशेष ही हैं, जिनसे डीएनए लेकर उनका अध्ययन किया गया है.
हालांकि जीनोम सीक्वेंसिंग तकनीक अब बहुत तरक्की कर चुकी है और वैज्ञानिक अब इंसान में आए जेनेटिक बदलावों का पता लगाकर कंप्यूटर मॉडलिंग के जरिये अति प्राचीन समय के आदिमानवों का भी विश्लेषण कर सकते हैं.
इस महीने साइंस पत्रिका में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है. इसके लिए 3,150 लोगों के डीएनए का अध्ययन किया गया.
चीनी शोधकर्ताओं के इस दल ने इन आंकड़ों के अध्ययन के लिए एक कंप्यूटर मॉडलिंग तैयार की. उन्हें चला कि करीब नौ लाख 30 हजार साल पहले एक वक्त ऐसा आया था जब धरती पर सिर्फ 1,280 लोग रह गये थे.
कैसे पता चला हमारे पूर्वजों के बारे में
इस्राएल में हाल ही में पाए गए मानव अवशेषों से मानव विकास की कहानी में नई परतें जुड़ गई हैं. एक नजर इस तरह की और भी अहम खोजों पर जो हमारे पूर्वजों और उनकी जीवन शैली पर रोशनी डालती हैं.
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वंश वृक्ष की एक नई शाखा
इस्राएल में खुदाई के दौरान कुछ ऐसे अवशेष मिले हैं जो एक ऐसी मानव प्रजाति के हैं जिसके बारे में आज तक कोई जानकारी नहीं थी. अभी तक यह पता चल पाया है कि यह आदिमानव 1,00,000 सालों से भी ज्यादा पहले हमारी प्रजाति यानी होमो सेपिएंस के साथ साथ ही रहता होगा.
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
'नेशर रामला होमो'
ये अवशेष इस्राएल के नेशर रामाल्लाह नाम की जगह पर मिले. माना जा रहा है कि ये प्राचीन मानवों के "आखिरी उत्तरजीवियों" में से एक मानव के हैं, जिसका यूरोपीय नियान्डेरथल से करीबी संबंध हो सकता है. यह भी माना जा रहा है कि इनमें से कुछ मानव पूर्व में भारत और चीन की तरफ भी गए होंगे. पूर्वी एशिया में मिले कुछ अवशेषों में इन नए अवशेषों से मिलती जुलती विशेषताएं पाई गई हैं.
नियान्डेरथलों को लोकप्रिय रूप से अक्सर गलत छवि दिखाई गई है. उन्हें अक्सर पीठ पर कूबड़ वाले और हाथों में मुगदर लिए आदिमानवों के रूप में दिखाया जाता है. यह छवि 1908 में मिले एक कंकाल के पुराने और छिछले अध्ययनों पर आधारित है. इस कंकाल की रीढ़ विकृत थी और घुटने मुड़े हुए थे.
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जितना हम सोचते हैं उससे ज्यादा करीबी
लेकिन 21वीं सदी में पता चला कि नियान्डेरथल आधुनिक मानव के काफी करीब थे. वो उपकरण बनाने के लिए काफी विकसित तरीके इस्तेमाल करते थे, अपने आस पास की चीजों का इस्तेमाल कर आग और ज्यादा तेजी से लगा लिए करते थे, बड़े जानवरों का शिकार करते थे और आधुनिक मानवों के साथ प्रजनन भी करते थे.
तस्वीर: Imago/F. Jason
जिस पूर्वज का नाम बीटल्स की वजह से पड़ा
'लूसी' एक महिला का कंकाल है जिसे पूरी दुनिया में पाए गए सबसे पुरानी मानव पूर्वज प्रजातियों में से माना जाता है. इसकी खोज अफ्रीका के इथियोपिया के हदर में 1974 में जीवाश्मिकी वैज्ञानिक डॉनल्ड सी जोहानसन ने की थी. जिस दिन इसकी खोज हुई उस दिन खोज के जश्न में आयोजित की गई एक पार्टी में बार बार बीटल्स का एक गाना बज रहा था - "लूसी इन द स्काई विद डायमंड्स" और उसी के नाम पर कंकाल का नाम लूसी रख दिया गया.
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फ्लो, उर्फ 'द हॉब्बिट'
'फ्लो' की खोज इंडोनेशिया के द्वीप फ्लोरेस में 2004 में हुई थी. होमो फ्लोरेसिएन्सिस प्रजाति की एक आदिम मानव के इन अवशेषों को 12,000 साल पुराना माना जाता है. फ्लो सिर्फ 3.7 फिट लंबी थी, जिसकी वजह से उसका नाम 'लॉर्ड ऑफ द रिंग्स' फिल्मों के एक किरदार के नाम पर 'द हॉब्बिट' रख दिया गया.
तस्वीर: AP/STR/picture alliance
दो पैरों पर चलने का सबूत
1924 में दक्षिण अफ्रीका के ताउन्ग में शरीर रचना विशेषज्ञ रेमंड डार्ट ने एक खदान में पाई गई एक विचित्र सी खोपड़ी का निरीक्षण करने पर पाया कि वो एक तीन साल के आदिमानव की थी, जिसका उन्होंने नाम रखा ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रिकानस. ये करीब 28 लाख साल पहले जीवित रहा होगा और इसे मानवों के दो पैरों पर चलने का प्रारंभिक सबूत भी माना जाता है. इससे मानवों के अफ्रीका में विकास होने की अवधारणा को भी बल मिला.
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डीएनए से मदद
2008 में पुरातत्वविद माइकल शून्कोव को रूस और कजाकिस्तान की सीमा पर अल्ताई पर्वत श्रृंखला के काफी अंदर एक गुफा में एक अज्ञात आदिमानव के अवशेष मिले. आनुवांशिकी विज्ञानियों ने पाया कि इन अवशेषों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का संबंध एक अज्ञात पूर्वज से था. इन्हें उस गुफा के नाम पर डेनिसोवियन्स कहा गया. ये भी अफ्रीका से ही निकले थे, लेकिन शुरुआती नियान्डेरथल और होमो सेपिएंस से अलग.
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होमो सेपिएंस के नए रिश्तेदार
2015 में दक्षिण अफ्रीका की राइजिंग स्टार गुफाओं में कम से कम 15 लोगों के 1,500 से भी ज्यादा अवशेष मिले थे, जिनमें होमो नलेडी समूह के शिशुओं से लेकर बुजुर्ग तक शामिल थे. हालांकि विशेषज्ञों के बीच इनकी पहचान को लेकर सहमति नहीं थी: क्या ये प्राचीन मानव थे या प्रारम्भिक होमो इरेक्टस?
प्राचीन मानवों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों में भी हमारे अतीत के सुराग होते हैं. कोलंबिया के चिरिबिकेट राष्ट्रीय उद्यान में पाए गए ये गुफा चित्र 22,000 साल से भी ज्यादा पुराने हैं. कुछ दूसरे पुरातत्व-संबंधी सबूतों के साथ ये चित्र इस अवधारणा के ओर इशारा करते हैं कि आज उत्तर और दक्षिणी अमेरिका कहे जाने वाले इलाके में मानवों का 20,000 से 30,000 साल पहले कब्जा था.
तस्वीर: Jorge Mario Álvarez Arango
अभी तक के सबसे प्राचीन गुफा चित्र
2021 में ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के पुरातत्वविदों को इंडोनेशिया के सुलावेसी में और भी पुराने गुफा चित्र मिले. ये लिखित इतिहास के पहले के इंडोनेशियाई सूअरों की तस्वीरें थीं जो ओकर नाम के एक अकार्बनिक पदार्थ से बनाई गई थीं जिसकी कार्बन-डेटिंग नहीं हो पाती है. तो शोधकर्ताओं ने चित्रों के इर्द-गिर्द चूने के स्तंभों की डेटिंग की और पाया कि सबसे पुराने चित्र को कम से कम 45,500 साल पहले बनाया गया होगा.
तस्वीर: Maxime Aubert/Griffith University/AFP
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चाइनीज अकैडमी ऑफ साइंसेज के शंघाई इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन एंड हेल्थ के हाईपेंग ली मुख्य शोधकर्ता हैं. वह कहते हैं, "98.7 फीसदी आबादी खत्म हो गयी थी. हमारे पूर्वज लगभग विलुप्त हो गये थे और बचकर दोबारा पनपने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी.”
अध्ययन के मुताबिक ऐसा संभवतया हिमयुग के वक्त धरती का तापमान गिरने की वजह से हुआ था जो करीब एक लाख 20 हजार साल तक जारी रहा. उसके बाद जब तापमान बढ़ने लगा तो आबादी बहुत तेजी से बढ़ी. इसी दौर में इंसान ने आग पर काबू पाया था.