जब प्राग को वारसा संधि के टैंकों ने कुचला
२१ अगस्त २०१८5,00,000 सैनिक और सबसे आगे सोवियत सेना के टैंक. 20 अगस्त 1968 की रात वारसा संधि के सैनिकों ने मॉस्को की कम्युनिस्ट पार्टी की शह पर प्राग वसंत को खिलने से पहले ही कुचल दिया. इसके साथ ही आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले साम्यवाद का सपना पूरा होने से पहले ही छिन्न भिन्न हो गया. 1968 की शुरुआत से ही पत्रकारों ने चेकोस्लोवाकिया की कम्युनिस्ट पार्टी के सेंसर की अवहेलना करनी शुरू कर दी थी.
पार्टी के नेता अलेक्जांडर दुबचेक ने उन्हें ऐसा करने दिया. वे एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक समाजवाद का समर्थन कर रहे थे, इस उम्मीद में कि मॉस्को इसकी इजाजत देगा. इसलिए भी कि चेक कम्युनिस्ट सोवियत वर्चस्व वाले पूर्वी ब्लॉक का हिस्सा बने रहना चाहते थे. लेकिन ये डर बहुत बड़ा साबित हुआ कि प्राग में अधिक आजादी का मतलब पड़ोसी देशों में कम्युनिस्ट वर्चस्व का अंत होगा.
इतिहास के गवाह
रोलांड बेरावर की वह रात प्राग के पहाड़ी हिस्से में मोलदाऊ नदी के ऊपर एक स्काउट तंबू में कटी थी. अब 82 वर्षीय रोलांड बताते हैं, "हमने देखा कि बख्तरबंद गाड़ियां हमारे करीब से सिटी सेंटर की तरफ जा रही थीं." वे स्काउट से जुड़े एक अखबार में काम कर रहे थे. यह अखबार खुलकर लिख सकता था, यह प्राग वसंत की देन था. एक तंबू में उन्होंने दफ्तर बना रखा था, जहां टाइपिंग मशीन, प्रिटिंग मशीन और कैमरे थे.
रोलांड बेरावर फोटोग्राफर थे. उन्होंने ग्रुप को सेना के मार्च के बारे में बताया और साथियों से अखबार के मशीनों को छुपाने को कहा. "मैं कैमरा लेकर शहर की ओर निकल पड़ा." उन्होंने प्राग पर वारसा संधि की सेना के कब्जे के दिन की तस्वीरें खींची. रेडियो के दफ्तर के आगे गोलियां चलीं. उन्होंने खुद को एक दुकान में छुपकर बचाया. रेडियो के दरवाजे से सोवियत सैनिक प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला रहे थे. "भयानक नजारा था." कुछ ही महीने बाद पार्टी नेता अलेक्जांडर दुबचेक को उनके पद से हटा दिया गया.
आर्काइव से मिली जानकारी
उस दिन की याद चेक जनमानस में आज भी ताजा है. प्राग के निरंकुशता शोध संस्थान के उप निदेशक ऑन्द्रे माटेका कहते हैं, "68 को वह भावनात्मक सदमा समझा जाता है जो देश के कब्जे के साथ जुड़ा है." वे बताते हैं कि 21 अगस्त और उसके कुछ दिनों बाद तक लोगों ने अप्रत्यक्ष विरोध जताया और समाज के रूप में वे एकजुट रहे. वे मानते हैं कि 1968 की घटना ने अपनी सामयिकता नहीं खोई है. इसलिए भी कि वारसा संधि के देशों की खुफिया एजेंसियों की आर्काइव से नित नई फाइलें निकल रही हैं.
खासकर जीडीआर की खुफिया एजेंसी स्टाजी ने 1968 के वसंत से ही प्राग में हो रहे सुधारों पर तीखी नजर रखी थी और वह लगातार तस्वीरें के अलावा एजेंटों तथा मुखबिरों की रिपोर्टों को जमा कर रहा था. बर्लिन के आर्काइव विशेषज्ञ ओलिवर स्ट्रूबिंग बताते हैं कि इस बात के पहली बार सबूत हैं कि एक दोस्त देश की खुफिया एजेंसी दूसरे देश के नागरिकों की जासूसी करने का अधिकार लेती है. उनके सामने प्राग की घटनाओं की हजारों तस्वीरें हैं. इतना ही नहीं प्राग वसंत को दबाए जाने के बाद जीडीआर के एजेंटों ने प्राग में सलाहकार के रूप में काम किया.
प्रधानमंत्री पर जासूसी के आरोप
चेक खुफिया सेवा की जांच करने वाले इतिहासकारों का प्राग और ब्रातिस्लावा दोनों में ही मानना है कि खुफिया सेवा के साए राजनीति और दूसरे हिस्सों पर आज भी हैं. पिछले साल उन्होंने पहली फाइलें जारी की हैं जिससे पता चलता है कि मौजूदा प्रधानमंत्री आंग्रे बाबिस कथित तौर पर 1982 से खुफिया सेवा के अनौपचारिक एजेंट थे. वे इन आरोपों के खिलाफ अदालतों में लड़ रहे हैं लेकिन इतिहासकारों के खिलाफ उनके मुकदमे रद्द कर दिए गए हैं.
राष्ट्रपति वात्स्लाव हावेल के करीबी और साम्यवाद के पतन के बाद चेक हिस्से के प्रधानमंत्री रहे पेटर पिटहार्ट कहते हैं कि बाबिस हमेशा झूठे शब्द दोहराते हैं. इस बीच बड़े उद्यमी बन गए पिटहार्ट की पार्टी संसद में सबसे बड़ी पार्टी है और उनका मानना है कि बाबिस खुफिया एजेंट होने के आरोपों से पूरी तरह बच नहीं पाएंगे. इतिहासकार ऑन्द्रे माटेका आलोचना के लहजे में कहते हैं, "हमारे यहां एक पूर्व खुफिया एजेंट आज पीएम है, ऐसा इस पर निर्भर है जैसा कि हमने पिछले 30 साल में इतिहास पर बहस की है या नहीं की है."