ईशा फांउडेशन के संस्थापक और भारत के 50 सबसे अधिक प्रभावी लोगों में शामिल सदगुरू जग्गी वासुदेव का मानना है कि धरती को बचाने के लिए जरूरी है बढ़ती जनसंख्या को काबू करना.
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सदगुरू के नाम से मशहूर जग्गी वासुदेव जर्मनी के बॉन शहर में ग्लोबल लैंडस्केप फोरम में नदियों को लेकर भारत में अपने कामों के बारे में विस्तार से बता रहे थे. इस दौरान सदगुरू ने कहा, "योग मेरे लिए कोई शारीरिक मुद्रा नहीं है बल्कि योग मेरे लिए ब्रहामंड के साथ जुड़ाव है, मेरे अनुभव के साथ जुड़ाव है." उन्होंने कहा कि हमारे ग्रह की आबादी लगातार बढ़ी रही है जो वाकई संसाधनों पर बोझ डाल रही है. ऐसे में अगर हम वाकई अपनी धरती को बचाना चाहते हैं तो हमें बढ़ती आबादी को रोकना होगा. उन्होंने कहा, "जब व्यक्ति ने मौत को स्थगित कर दिया तो क्यों नहीं जन्म को किया जा सकता."
प्लास्टिक की नदियां
महासागरों में प्लास्टिक के कचरे के द्वीप बन रहे हैं. और यह प्लास्टिक इन 10 नदियों से बहता हुआ सागरों में समा रहा है.
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10. मेकॉन्ग
दक्षिण पूर्वी एशिया की यह नदी वियतनाम समेत छह देशों की जीवनधारा है. मेकॉन्ग डेल्टा पर करीब दो करोड़ लोग रहते हैं. मेकॉन्ग में हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक बहता है. और अंत में यह समंदर में पहुंचता है.
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9. नाइजर
नाइजर पश्चिमी अफ्रीका की मुख्य नदी है. इस नदी पर करीब 10 करोड़ लोग निर्भर है. अंटलांटिक में गिरने से पहले ये नदी पांच देशों से गुजरती है. इसमें प्लास्टिक और बड़ी मात्रा में तेल घुला रहता है.
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8. आमूर
पूर्वोत्तर चीन की यह नदी जब तक पहाड़ों में रहती है, तब तक साफ बनी रहती है. रूस और चीन की सीमा को बांटने वाली यह नदी प्लास्टिक के कचरे के मामले में आठवें नंबर पर है.
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7. पर्ल
चीन की पर्ल नदी गंदगी के लिए बदनाम है. इस नदी के किनारे अथाह शहरीकरण हुआ और फिर कूड़ा व सीवेज पर्ल में समाता गया.
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6. गंगा
भारत में मां कहकर पुकारी जाने वाली गंगा नदी 60 करोड़ से ज्यादा लोगों को जीवन देती है. लेकिन औद्योगिक कचरे, प्लास्टिक और सीवेज ने गंगा को बीमार कर रखा गया. यह दुनिया की सबसे दूषित नदियों में से एक है.
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5. नील
11 देशों और 36 करोड़ लोगों को पालने वाली नील नदी करोड़ों टन प्लास्टिक समंदर तक ले जा रही है. प्लास्टिक बहाव के मामले में यह पांचवें नंबर पर है.
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4. हाई
चीन की एक और नदी हाई इस मामले में चौथे नंबर पर है. यह दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले शहरों में शुमार बीजिंग और तियानजिन को जोड़ती है.
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2. सिंधु
एशिया की सबसे लंबी नदियों में शामिल सिंधु नदी भी प्लास्टिक की वजह से बुरी तरह दूषित है. जर्मनी के हेल्महोल्ज सेंटर ऑफ एनवॉयरन्मेंट रिसर्च के मुताबिक महासागरों तक जाने वाला 90 फीसदी प्लास्टिक इन्हीं 10 नदियों में बहता है.
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3. यलो रिवर
चीन की पीली नदी में अब मछलियों की कई प्रजातियां नहीं मिलतीं. ये प्रजातियां प्रदूषण के कारण खत्म हो चुकी हैं. पीली नदी के पानी में भारी मात्रा में प्लास्टिक मिला है. इसका पानी सिंचाई के लायक भी नहीं है.
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1. यांगत्से
एशिया की सबसे लंबी और विश्व की तीसरी लंबी नदी यांगत्से प्लास्टिक के कचरे के मामले में पहले नंबर पर है. आलोचकों के मुताबिक चीन के अंधाधुंध आर्थिक विकास की कीमत इन नदियों और महासागरों ने चुकायी है. (रिपोर्ट: जेनिफर कॉलिंस/ओएसजे)
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डीडब्ल्यू से बातचीत में सदगुरू ने कहा कि अगर हम काम करने के मौजूदा ढांचे पर आगे बढ़ते हैं तो अगले 15 सालों में भारत की तकरीबन 60 फीसदी सदानीरा नदियां, मौसमी नदियों में तब्दील हो जाएगी. सदगुरू कहते हैं, "हमारी इतनी क्षमता है कि हम इन नदियों को बहते रहने दे सकते हैं. इन नदियों का प्रवाह बना रहे उसके लिए पर्याप्त वनस्पति होना चाहिए क्योंकि यही एकमात्र तरीका है जिससे आप ऐसा कर सकते हैं." सदगुरू कहते हैं, "अब ऐसा माना जाने लगा है कि वह नदियों पर बांध तैयार कर उनके बहाव को धीमा कर सकते हैं, जिससे लोगों को त्वरित लाभ मिल सकता है लेकिन यह टिकाऊ नहीं है. ऐसे में अगर मौजूदा तरीके पर चलते रहे तो हमें मानकर चलना चाहिए की हम 1.3 अरब लोगों की जिंदगियों के जीवन को जोखिम में डाल रहे हैं."
सदगुरू ने बताया कि तकरीबन 22 साल पहले उन्होंने तमिलनाडु में जल और मिट्टी को बचाने के लिए प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स शुरू किया था. इस कार्यक्रम के तहत तकरीबन 3.2 करोड़ पेड़ भी लगाए गए लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया कि एक व्यक्ति, व्यक्तिगत स्तर पर और सामूहिक स्तर पर कितना कर सकता है. सदगुरू मानते हैं, "ऐसे कदम टिकाऊ समाधान साबित नहीं हो सकते, टिकाऊ समाधानों के लिए हमें एक नीति की आवश्यकता है जो बताये कि हम अपने पर्यावरणीय स्तर को अगले 50 साल में, और इसके बाद अगले 100 सालों में कैसा चाहते हैं."
धरती की सबसे लंबी नदियां
वे कई देशों को सींचती हैं. अरबों लोगों की प्यास बुझाती हैं. उनकी यात्रा अनंत काल से जारी है. देखिये ऐसी ही दुनिया की सबसे लंबी नदियां.
कार्यक्रम में शामिल जर्मनी की पर्यावरण मंत्री बारबरा हेंड्रिक्स ने कार्यक्रम के पहले दिन सभी मेहमानों का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि दुनिया जिन पर्यावरण चुनौतियों से जूझ रही है वह अपने आप में बहुत बड़ी है. ऐसे में दुनिया की तमाम संस्थाओं के पास जैवविविधता के क्षेत्र में साथ काम करने का मौका है. इस दिशा में ग्लोबल लैंडस्केप फोरम (जीएलएफ) एक ऐसा कार्यकारी मंच है जो स्थानीय स्तर पर आजमाए जा रहे इनोवेटिव आईडियाज को साथ जोड़ने का काम करता है.