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जब लड़ पड़े मुबारक के दोनों बेटे

१४ फ़रवरी २०११

एक तरफ हुस्नी मुबारक के हाथ से सत्ता निकल रही थी और दूसरी तरफ उनके दोनों बेटों में न काबू करने लायक झगड़ा हो गया. बड़े ने छोटे को झाड़ते हुए कहा कि उसकी नीतियों और दोस्तों के चलते पिता की बेइज्जती हो रही है.

होस्नी मुबारक और जमाल मुबारकतस्वीर: AP

मिस्र के राष्ट्रीय अखबार का कहना है कि मुबारक के बड़े बेटे अला मुबारक ने छोटे भाई जमाल मुबारक को झाड़ते हुए कहा कि अपने कारोबारी दोस्तों को फायदा पहुंचाने के चलते मिस्र की राजनीति डांवाडोल हो गई है. अखबार का कहना है कि अला के मुताबिक यही उनके पिता के पतन का कारण बन गया.

अखबार ने अला को कहते हुए बताया, "तुमने जब अपने दोस्तों के लिए दरवाजे खोले तो देश को बर्बाद कर दिया. नतीजा तुम्हारे सामने है. जब तुम्हारे पिता को अपनी जिन्दगी के आखिरी लम्हों में इज्जत मिलनी चाहिए थी, तुमने उनकी छवि को इस तरह खराब कर दिया." अखबार ने किसी सूत्र का हवाला नहीं दिया है.

इसका कहना है कि जिस वक्त मुबारक अपना आखिरी भाषण तैयार कर रहे थे, उनके दोनों बेटे राजधानी काहिरा के राष्ट्रपति भवन में झगड़ रहे थे. उनकी लड़ाई इतनी बढ़ गई कि वरिष्ठ अधिकारियों को बीच बचाव करना पड़ा.

हुस्नी मुबारक के छोटे बेटे 47 साल के जमाल मुबारक ने 11 साल तक बैंक ऑफ अमेरिका में नौकरी की है. मुबारक ने उनका राजनीतिक कद बढ़ाते हुए उन्हें 2002 में पार्टी के नीति निर्धारण समिति का अध्यक्ष बना दिया. जानकारों का मानना है कि इसके बाद जमाल मुबारक ने अपने दोस्तों के लिए एनडीपी पार्टी में दरवाजे खोल दिए और प्रधानमंत्री अहमद नजीफ की कैबिनेट में भी दखल देने लगे.

मिस्र के लोगों को मुबारक के सत्ता में भ्रष्टाचार को लेकर भी भारी नाराजगी थी. हालांकि वे पुलिस बर्बरता और राजनीतिक दमन को लेकर भी नाराज थे. मिस्र के लोगों को अंदेशा था कि मुबारक अपने बेटे जमाल मुबारक को सत्ता में लाना चाहते हैं. इससे पहले 1990 के दशक में उनकी राय थी कि बड़े बेटे अला मुबारक राजनीति में आएंगे. हालांकि अला ने हमेशा अपने बिजनेस पर ध्यान दिया.

अखबार की रिपोर्ट कहती है कि अला मुबारक इसलिए भी गुस्सा थे कि उनके पिता के भाषण की असली कॉपी फाड़ दी गई. उस भाषण के मुताबिक हुस्नी मुबारक असैनिक शक्तियां अपने उप राष्ट्रपति उमर सुलेमान को और सैनिक शक्तियां सेना को देने वाले थे.

लेकिन बाद में मुबारक ने बदला हुआ भाषण पढ़ा. उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन में यह उनका सबसे बुरा कदम रहा, जिसके अगले दिन उन्हें पहले राजधानी काहिरा छोड़ना पड़ा और बाद में इस्तीफा देना पड़ा.

रिपोर्टः एएफपी/ए जमाल

संपादनः एस गौड़

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