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जमीन के ऊपर कब्रिस्तान

१९ नवम्बर २०१०

दुनिया के किसी भी हिस्से में कब्रिस्तान के नाम पर दो गज जमीन के नीचे खोदी गई कब्र ही याद आती है. लेकिन ब्राजील में ऐसा कब्रिस्तान बनाया गया है जो जमीन के ऊपर है. यह बहुमंजिला कब्रिस्तान है.

तस्वीर: DW / Ani Ruci

ब्राजील के सेंटोस शहर में बनाए गए इस कब्रिस्तान में मरने के बाद समुद्र, जंगल, स्टेडियम या फिर बस्ती की ओर रुख करके चिरनिद्रा में सोने का विकल्प भी मौजूद है. इस इच्छा को पूरा करने के लिए मरने से पहले इसका जिक्र या तो वसीयत में करना होगा या अपने परिजनों को पहले से बता कर रखना होगा.

कब्रिस्तान के निदेशक मारियो आर अफ्रीकानो बताते हैं कि यह इमारत 14 मंजिला है और इसमें 16000 कब्रें बनाई गई है. भविष्य में जरूरत पड़ने पर कब्रिस्तान को 32 मंजिल तक बढ़ाया जा सकता है. इस प्रकार सबसे ऊंची कब्र जमीन से 108 मीटर ऊंची है. इसमें लेटने पर अपने आप स्वर्ग के करीब होने का एहसास होने लगता है.

तस्वीर: AP

अफ्रीकानो बताते हैं कि इसे दुनिया की सबसे अलग और सबसे ऊंची कब्रगाह होने के कारण इसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हो गया है. रंगीन कमरों वाले इस कब्रिस्तान में कब्र के आसपास रोशनी का भी पर्याप्त इंतजाम किया है.

किसी वीआईपी को दफनाने के लिए कब्रिस्तान में शाही इंतजाम भी किए गए हैं. ऐसे लोगों के लिए इंपीरियल रूम है जिसमें अंतिम संस्कार के समय मृतक के 300 परिजन आराम से शामिल हो सकते हैं. गम हल्का करने के लिए एक मिनी बार भी है और शानदार वेटिंग रूम भी है.

वह कहते हैं कि वैसे तो किसी की मौत सभी के लिए बेहद दुखद क्षण होता है लेकिन इस कब्रिस्तान की सुविधाएं इस पीड़ा को सहन करने में मददगार साबित होंगी.

अफ्रीकानो बताते हैं कि ब्राजील की गर्म जलवायु में 24 घंटे के भीतर शव का अंतिम संस्कार जरूरी है. जबकि मातम की हालत में परिजनों के लिए यह कम समय साबित होता है. इसलिए ऐसे कब्रिस्तान की जरूरत महसूस हुई जिसमें सारी सुविधाएं भी हों और लोगों को अंतिम संस्कार के लिए भागमभाग न करनी पडे.

यह ऐसी जगह स्थित है जिसके एक छोर पर समुद्र दिखता है, दूसरे पर सदाबहार जंगल और तीसरे छोर पर सेंटोस एफसी स्टेडियम. जिसमें फुटबॉल के महान खिलाड़ी पेले ने अपने करियर के कई शानदार मैच खेले. अफ्रीकानो यह जानकारी देना नहीं भूलते कि स्टेडियम की ओर रुख वाली एक कब्र में पेले के मरहूम पिता को दफनाया गया. वह कहते हैं. यही कारण है कि मेरी नजर में यह कब्रिस्तान नहीं बल्कि एक मेमोरियल है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/निर्मल

संपादन: महेश झा

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