जम्मू और कश्मीर में एक आतंकवादी हमले में एक सीआरपीएफ जवान और एक नागरिक की जान चली गई है. पिछले महीने सुरक्षाबलों के साथ कई मुठभेड़ों में कम से कम 48 आतंकवादी मारे गए. इस साल 100 से भी ज्यादा आतंकवादी मारे गए हैं.
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बुधवार सुबह जम्मू और कश्मीर के बारामुल्ला जिले के सोपोर में एक आतंकवादी हमले में कम से कम एक सीआरपीएफ जवान और एक नागरिक की जान चली गई. हमले में सीआरपीएफ के तीन और जवान घायल हो गए. हमला तब हुआ जब सुरक्षाबलों की एक टुकड़ी गश्त पर निकली हुई थी. जवानों ने आतंकवादियों की गोलीबारी का जवाब भी दिया लेकिन वे भाग निकलने में कामयाब रहे.
एक वरिष्ठ पुलिसकर्मी ने मीडिया को बताया कि हमले के स्थान पर एक व्यक्ति एक बच्चे के साथ मौजूद था. उस व्यक्ति को भी गोली लगी और उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई. बच्चा सुरक्षित है.
सीमा-पार से आतंकवादियों का लगातार आते रहना सुरक्षाबलों के लिए एक चुनौती बना हुआ है. एक अनुमान के अनुसार पिछले महीने सुरक्षाबलों के साथ कई मुठभेड़ों में कम से कम 48 आतंकवादी मारे गए. पिछले महीने राज्य पुलिस के डीजीपी दिलबाग सिंह ने मीडिया को बताया था कि इस साल 100 से भी ज्यादा आतंकवादी मारे गए हैं, जिनमें 50 से ज्यादा हिज्बुल मुजाहिद्दीन, करीब 20 लश्कर-ए-तैयबा, 20 जैश-ए-मोहम्मद और कई अल-बद्र, अंसार गजवतुल हिंद इत्यादि जैसे छोटे छोटे आतंकी संगठनों से थे.
दो सप्ताह पहले चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के 20 सिपाहियों के मारे जाने के बाद चीन के साथ सीमा पर तनाव इतना बढ़ गया है कि वहां भारतीय सेना ने भारी संख्या में सिपाहियों और हथियारों की तैनाती कर दी है. ऐसे में दूसरी सीमा यानी भारत-पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पर भी लगातार तनाव बने रहने से सुरक्षाबलों की चुनौतियां बढ़ गई हैं.
सुरक्षाबलों को पाकिस्तान की तरफ से लगातार हो रहे युद्ध-विराम के उल्लंघन का जवाब देना और सीमा-पार से लगातार आ रहे आतंकवादियों का सामना, दोनों एक साथ करना पड़ रहा है. मीडिया में आई खबरों के अनुसार इस साल मई में युद्ध-विराम के उल्लंघन की 382 घटनाएं और जून में 302 घटनाएं सामने आईं. पिछले साल इन्हीं महीनों में 221 और 181 घटनाएं हुई थीं. पाकिस्तान ने सीमा पर गोलाबारी तेज कर दी है, जो महामारी के बीच भी कम नहीं हुई.
जानकारों का कहना है कि सीमा-पार से गोलाबारी आतंकवादियों की मदद करने के लिए ही की जाती है ताकि सुरक्षाबलों का ध्यान गोलीबारी का जवाब देने में लगा रहे और मौके का फायदा उठा कर आतंकवादी भारतीय सीमा के अंदर घुस आएं.
मई में सेना प्रमुख जनरल एमएम नारवाने ने कहा था कि सुरक्षाबलों को चीन और पाकिस्तान के खिलाफ एक साथ दो-मोर्चों पर जंग की संभावना के लिए तैयार रहना चाहिए, हालांकि उसकी संभावना काफी काम है.
दुनिया भर में कुछ ऐसे विवाद हैं जो कभी भी युद्ध भड़का सकते हैं. ये सिर्फ दो देशों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को लड़ाई में खींच सकते हैं.
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दक्षिण चीन सागर
बीते दशक में जब यह पता चला कि चीन, फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और कंबोडिया के बीच सागर में बेहद कीमती पेट्रोलियम संसाधन है, तभी से वहां झगड़ा शुरू होने लगा. चीन पूरे इलाके का अपना बताता है. वहीं अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल चीन के इस दावे के खारिज कर चुका है. बीजिंग और अमेरिका इस मुद्दे पर बार बार आमने सामने हो रहे हैं.
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पूर्वी यूक्रेन/क्रीमिया
2014 में रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप को यूक्रेन से अलग कर दिया. तब से क्रीमिया यूक्रेन और रूस के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है. यूक्रेन क्रीमिया को वापस पाना चाहता है. पश्चिमी देश इस विवाद में यूक्रेन के पाले में है.
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कोरियाई प्रायद्वीप
उत्तर और दक्षिण कोरिया हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहते हैं. उत्तर कोरिया भड़काता है और दक्षिण को तैयारी में लगे रहना पड़ता है. दो किलोमीटर का सेनामुक्त इलाका इन देशों को अलग अलग रखे हुए हैं. उत्तर को बीजिंग का समर्थन मिलता है, वहीं बाकी दुनिया की सहानुभूति दक्षिण के साथ है.
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कश्मीर
भारत और पाकिस्तान के बीच बंटा कश्मीर दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य मौजूदगी वाला इलाका है. दोनों देशों के बीच इसे लेकर तीन बार युद्ध भी हो चुका है. 1998 में करगिल युद्ध के वक्त तो परमाणु युद्ध जैसे हालात बनने लगे थे.
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साउथ ओसेटिया और अबखासिया
कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे इन इलाकों पर जॉर्जिया अपना दावा करता है. वहीं रूस इनकी स्वायत्ता का समर्थन करता है. इन इलाकों के चलते 2008 में रूस-जॉर्जिया युद्ध भी हुआ. रूसी सेनाओं ने इन इलाकों से जॉर्जिया की सेना को बाहर कर दिया और उनकी स्वतंत्रता को मान्यता दे दी.
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नागोर्नो-काराबाख
नागोर्नो-काराबाख के चलते अजरबैजान और अर्मेनिया का युद्ध भी हो चुका है. 1994 में हुई संधि के बाद भी हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. इस इलाके को अर्मेनिया की सेना नियंत्रित करती है. अप्रैल 2016 में वहां एक बार फिर युद्ध जैसे हालात बने.
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पश्चिमी सहारा
1975 में स्पेन के पीछे हटने के बाद मोरक्को ने पश्चिमी सहारा को खुद में मिला लिया. इसके बाद दोनों तरफ से हिंसा होती रही. 1991 में संयुक्त राष्ट्र के संघर्षविराम करवाया. अब जनमत संग्रह की बात होती है, लेकिन कोई भी पक्ष उसे लेकर पहल नहीं करता. रेगिस्तान के अधिकार को लेकर तनाव कभी भी भड़क सकता है.
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ट्रांस-डिनिएस्टर
मोल्डोवा का ट्रांस-डिनिएस्टर इलाका रूस समर्थक है. यह इलाका यूक्रेन और रूस की सीमा है. वहां रूस की सेना तैनात रहती है. विशेषज्ञों के मुताबिक पश्चिम और मोल्डोवा की बढ़ती नजदीकी मॉस्को को यहां परेशान कर सकती है.