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जरदारी को तख्तापलट का डर था?

१७ नवम्बर २०११

मई महीने में एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को तख्तापलट का डर लगने लगा. ऐसी रिपोर्टें हैं कि उन्होंने अमेरिका से सरकार बचाने की गुहार लगाई.

हुसैन हक्कानीतस्वीर: AP

वॉशिंगटन में पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक्कानी ने इस्तीफे की पेशकश की है. फाइनैंशल टाइम्स में छपे एक कॉलम में आरोप लगाया गया है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अमेरिका से गुहार लगाई थी कि उनकी सरकार के सैन्य तख्तापलट को बचा लें.

पाकिस्तान के बिजनसमैन मंसूर इजाज ने फाइनैंशल टाइम्स के अपने इस कॉलम में दावा किया है कि एक पाकिस्तानी राजनयिक ने उनसे कहा था कि तत्कालीन अमेरिकी सेना प्रमुख एडमिरल माइक मुलेन तक संदेश पहुंचाएं. मंसूर एजाज लिखते हैं कि जरदारी को डर था कि सेना उनकी सरकार का तख्ता पलट सकती है. ऐसा अमेरिकी हमले में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद हुआ. बिन लादेन को अमेरिकी सेना ने इसी साल मई में इस्लामाबाद के पास एबटाबाद में मारा था. अमेरिकी सेना की इस कार्रवाई के बाद देश की नागरिक सरकार और मजबूत सैन्य नेतृत्व के बीच तनाव पैदा हो गया था.

हक्कानी ने क्या किया

इस कॉलम के छपने के बाद पाकिस्तानी मीडिया में इस तरह की अटकलें हैं कि अमेरिका तक जरदारी का संदेश ले जाने का काम राजदूत हुसैन हक्कानी ने किया होगा. 2008 से अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत हुसैन हक्कानी ने जवाब में इस्तीफे की पेशकश की है. उन्होंने कहा, "मैं पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मर्जी से काम करता हूं. मैंने अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी है और कह दिया है कि मैं ऐसी किसी भी जांच के लिए तैयार हूं जो देश के कुछ तत्वों की पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार पर मिट्टी उछालने की कोशिशों को खत्म कर सके."

पाक राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारीतस्वीर: AP/DW-Montage

अभी पाकिस्तान सरकार ने इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. हक्कानी का इस्तीफा मंजूर किया जाएगा या नहीं, यह भी अभी तय नहीं है. लेकिन हक्कानी का कहना है कि उन्होंने कोई संदेश किसी तक नहीं पहुंचाया. उन्होंने कहा, "मैंने कोई गलत काम नहीं किया है. इसलिए अभी तक मेरा नाम नहीं आया है. जो कहा जा रहा है वे संकेत ही हैं. जिस तरह के संदेश की बात मीडिया में हो रही हैं, वैसा कोई मेमो न तो तैयार हुआ और न ही मैंने उसे किसी तक पहुंचाया." हक्कानी ने कहा कि जब से उन्होंने वॉशिंगटन में दफ्तर संभाला है कुछ लोग उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं, "2008 में वॉशिंगटन आने के बाद से ही मुझे बदनाम करने की कोशिशें हो रही हैं. कुछ लोग यह साबित करना चाहते हैं कि मैं पाकिस्तानी सेना को कमजोर करने की कोशिशों में शामिल हूं. ऐसा मैंने कभी नहीं किया."

लेकिन अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि उन्हें इस तरह का मेमो मिला था. हालांकि उस मेमो में क्या कहा गया था यह जाहिर नहीं किया गया है. इस साल के शुरुआत में पद छोड़ने तक एडमिरल माइक मुलेन के प्रवक्ता रहे कैप्टन जॉन किर्बी ने कहा है कि पहले तो मुलेन को ऐसे किसी मेमो के बारे में कुछ याद नहीं आया लेकिन बाद में एक मेमो का पता चला. किर्बी ने कहा, "न तो इस मेमो का वजूद है या उसमें जो कुछ लिखा गया, उससे एडमिरल मुलेन के पाकिस्तानी सेना या सरकार के साथ रिश्तों पर या कामकाज के तरीकों पर कोई असर नहीं पड़ा."

रिपोर्टः रॉयटर्स/वी कुमार

संपादनः ईशा भाटिया

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